लेखक-कुशलेंद्र श्रीवास्तव
‘‘सेठजी, आप इस तरह से बात क्यों कर रहे हैं? आप के पैसे मैं खा तो नहीं रहा हूं.’’‘‘वह तो तुम खा भी नहीं सकते. अब तुम पैसे ले कर तुरंत आ जाओ.’’‘‘सौरी सेठजी, मैं नहीं आ सकता. आप आ कर ले जाएं.’’इस के पहले सेठजी कुछ और बोलें, उस ने फोन रख दिया. वैसे, वह बुरी तरह घबरा चुका था.
वह बहुत देर तक दरवाजे पर बैठा सेठजी की राह देखता रहा, पर वे नहीं आए. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा कर पूछे कि वे आ रहे हैं कि नहीं पर उस ने सोचा कि रहने दो.सेठजी ने जिस तरह उसे गाली दी थी, वह उसे बुरी लगी थी.
सेठजी वैसे तो हर कर्मचारी से ऐसे ही बात करते हैं, पर उस के साथ उन्होंने कभी इस तरह से बात नहीं की थी. उस का मन सेठजी के प्रति नफरत से भरता जा रहा था.सुमन अपने पति को इस तरह परेशान देख दुखी हो रही थी. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था. वह भी चिंतित थी.
‘‘आप इतने परेशान क्यों हैं?’’ सुमन ने आखिर पूछ ही लिया.मुनीमजी ने सुमन से एक ही सांस में सारी बात बता दी. उस ने सेठजी द्वारा दी गई गालियों के बारे में भी बताया.यह सुन कर सुमन का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया था.‘‘अब आप सेठजी को न तो पैसे वापस करोगे और न ही तिजोरी की चाबी. देखते हैं कि वे हमारा क्या बिगाड़ते हैं?’’
सुमन ने अब सेठजी से बदला लेने के बारे में सोच ही लिया था.‘‘सुनो, अब की बार सेठजी का फोन आए तो फोन मु?ो पकड़ा देना. मैं उन से बात करूंगी.’’मुनीमजी कुछ नहीं बोले, पर वे अपनी पत्नी की बातों से सहमत जरूर नजर आए.सेठजी का फोन देररात आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘हां, बोलिए सेठजी.’’‘‘मुनीमजी कहां हैं? मु?ो उन से बात करनी है.’’‘‘वे तो सो रहे हैं. आप मु?ा से बात करो,’’ सुमन की आवाज कड़क थी.‘‘वो मुनीमजी चाबी और पैसे ले कर नहीं आए अभी तक.’’
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