सूरज का फोन आया था. सूरज उन की ही दुकान पर काम करता था. उसे पैसों की सख्त जरूरत थी. उस की बिटिया को कोरोना हो गया था. उसे इलाज कराने दूसरे शहर ले जाना पड़ेगा. उस ने सेठजी को भी फोन किया था पर सेठजी ने तो साफ मना कर दिया. बड़ी उम्मीदों के साथ उस ने मुनीमजी को फोन कर के सारी बात बताई.
‘‘देख भाई, मेरे पास सेठजी के कुछ पैसे हैं पर मैं बिना उन से पूछे नहीं दे सकता.’’‘‘मुनीमजी, आप तो हमारे माईबाप हैं. वक्त पर आप ही साथ नहीं देंगे तो फिर मैं किस से उम्मीद रखूं. आप पैसे दे दीजिए. मु?ो सेठजी से पैसे लेने हैं. मैं उन्हें बता दूंगा और नहीं मानेंगे तो मैं कहीं से भी कर्ज ला कर आप को दे दूंगा. अभी आप दे दीजिए. मेरी बिटिया की जिंदगी का सवाल है,’’ सूरज की रोंआसी आवाज से मुनीमजी द्रवित हो गए और बोले, ‘‘अच्छा, आ जाओ. जो होगा देखा जाएगा. तुम पैसे ले जाओ,’’ मुनीमजी की आवाज में दृढ़ संकल्प था.
कुछ ही देर में सूरज आ गया था और मुनीमजी ने उसे कुछ रुपए दे भी दिए थे. मुनीमजी सम?ा गए थे कि अब वे सेठजी के यहां नौकरी नहीं कर पाएंगे. सुमन ने उन के साथ जो व्यवहार किया है, उस से वे नाराज होंगे. साथ ही, जब उन्हें पता चलेगा कि उस ने सूरज को पैसे दिए हैं, तो बहुत ही ज्यादा नाराज होंगे. वैसे वह खुद भी उन के यहां नौकरी नहीं करना चाह रहा था. उन्होंने भी तो उसे पुलिस की धमकी दी थी.