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जमीन आबादी से कुछ दूर हट कर थी. फिर भी रेट कम नहीं थे. जैसेतैसे डेढ़ सौ गज का एक प्लाट मास्साब ने ले कर दिवाली में पत्नी जया को जिंदगी में पहली बार कोई तोहफा दिया था, लेकिन तोहफा ऐसा कि पत्नी के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए थे. वह अब सपने सजाने लगी थी कि इस भूमि में अपना आशियाना बनाएगी. जहां पर बाहर से उस का नाम लिखा होगा. वह जहां चाहे आजा सकेगी और उसे कील ठोंकने पर, बच्चों के जोर से बोलने पर, तेज कदमों से चलने पर टोकने वाला कोई नहीं होगा. अपने सपनों के घर को देखने का खयाल दिल में ले कर खुशी में वह मीठी नींद में सो गई.

सुरेश मास्साब के दिमाग में जमीन से संबंधित अन्य कार्यवाही चल रही थी. जमीन की रजिस्ट्री तो हो गई थी, परंतु म्यूटेशन नहीं हो पाया था. इस के लिए मास्साब को लोगों ने एक वकील करने की सलाह दी. वह फिर से तहसील पहुंचे और काफी सोचनेविचारने के बाद एक वकील से बात हुई.

"आप बिलकुल चिंता ना करें. बहुत जल्दी ही आप का म्यूटेशन हो जाएगा. बस थोड़ाबहुत खर्चा आएगा. वह आप को एडवांस में देना होगा, क्योंकि हम भी अपनी जेब से नहीं लगा सकते. घरगृहस्थी वाले हैं."खैर, वकील साहब ने जितने भी पैसे बताए, वह मास्साब ने अगले दिन उन्हें दे दिए, क्योंकि वह भी चाहते थे कि जल्द से जल्द म्यूटेशन हो जाए और जमीन किसी घपले में ना पड़े.

दिन पर दिन बीत गए. वकील साहब को फोन लगाते और उधर से बहुत ही मधुर आवाज में मास्साब को लगातार आश्वासन मिलता रहता.काम में कुछ प्रगति न होते देख एक दिन मास्साब स्कूल से हाफडे ले कर तहसील चले गए. वहां जा कर पता चला कि वकील साहब चेंबर में हैं. चूंकि हाफडे की समयावधि पूरी हो रही थी, तो मास्साब वापस आ गए. रास्तेभर सोचते रहे कि घर जा कर सीधे वकील साहब से बात करेंगे.

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