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कुछ ही दिनों में रिटायरमेंट था. अब उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि देरसवेरे जब भी होगा कम से कम अपनी आंखों के सामने अपना घर बना पाएंगे पत्नी बोली, "सुनिए, एक दिन अपना प्लाट देख कर आते हैं. महीनों बीत गए हैं उस तरफ गए हुए."

सुरेश बाबू ने हामी भर दी. एक सुबह दोनों चल दिए. वहां जा कर देखते हैं कि तमाम निर्माण कार्य हो चुके हैं. उन के प्लाट के पीछे की तरफ ही एक बहुत विशालकाय भवन बन चुका था. उन के पीछे की ओर एक साइड की बाउंड्री कहीं नजर नहीं आ रही थी. वहां पर जमी घासमिट्टी को हाथों से इधरउधर कर के देखा, परंतु पीछे की साइड की बाउंड्री बिलकुल ही नजर नहीं आ रही थी.

एक और विपत्ति सुरेश बाबू के धैर्य का इम्तिहान ले रही थी. प्लाट के पीछे की साइड में जो मकान बना था, उस ने अपना मकान सीधा करने के लिए सुरेश बाबू की जमीन का एक बड़ा हिस्सा दबा लिया था. पहले ही कुल डेढ़ सौ गज जमीन... उस के भी एक हिस्से में कब्जा. पता करने पर मालूम हुआ कि किसी पैसे वाले एनआरआई का मकान बन रहा है. आसपड़ोस के लोगों ने तो साफ कह दिया कि कोर्टकचहरी के चक्कर लगाते रहोगे और आप का पैसा भी खर्च होगा, लेकिन पैसे के बल पर एनआरआई केस जीत जाएगा.

सुरेश बाबू तो वहीं सिर पकड़ कर बैठ गए. पत्नी जया को भी लगा कि वह गश खा कर गिर जाएगी. अपने को संयत करते हुए सुरेश बाबू बोले, "कुछ भी हो, मैं अपनी जमीन वापस ले कर रहूंगा." हालांकि मन ही मन वह भी जान चुके थे कि कितना मुश्किल है यह सब. बस खुद को झूठी तसल्ली देने के लिए ही ऐसा कह रहे थे.

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