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‘‘तोशी, तुम ने यह बहुत अच्छा किया कि अपने पापा को साथ ले जाने का प्लान बना लिया है. सच में उन्हें देख कर तो अब लगता है कि वह भी अपने अकेलेपन से घबरा गए हैं. जिस उम्र में जीवनसाथी की सब से अधिक जरूरत होती है, उस उम्र में उन्हें अकेले रहना पड़ रहा है.’’

‘‘हां आंटी. यहां आती हूं तो अपने परिवार की चिंता रहती है. और जब वहां होती हूं तो पापा की चिंता रहती है. इसलिए अनूप और पापामम्मी ने ही इस बात के लिए जोर दिया कि अब पापा हमारे साथ जयपुर में ही रहें.’’

‘‘तुम्हारे सासससुर ने भी इस बात में तुम्हारा साथ दिया. वाकई वे बड़े दिल के हैं, वरना अकसर मातापिता, अपने बेटे और बहू पर तो केवल अपना ही अधिकार समझते हैं.’’

‘‘हां आंटी. मां के जाने के बाद पिछले एक साल में जितना संभव हो सका, मैं पापा के साथ आ कर रही हूं. लेकिन, बच्चों के साथ और नौकरी के कारण बारबार आ पाना संभव नहीं हो पाता. और जितना संभव हुआ वह मेरी सासू मां के सहयोग से ही संभव हो पाया…

“मम्मी ने तो सेवा का कोई मौका ही नहीं दिया. उन के जाने से पहले तो यह विचार भी कभी मन में नहीं आता था कि मां के बिना भी हमें रहना होगा.

“अच्छीभली औफिस से आई थी. पापा के साथ चाय पी थी. डाक्टर को बुलाया तो उन्होंने उम्मीद ही नहीं किया. शायद मां को ब्रेन हेमरेज हुआ था. मां के जाने से हमारे परिवार को तोड़ कर रख दिया था. और अब पापा बिलकुल अकेले पड़ गए हैं. बच्चे गृहस्थी बसा कर अपनी जिंदगी में मस्त और व्यस्त हो जाते हैं. कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, इन का साथ और उन की फिक्र हमारी पहली जिम्मेदारी है.’’

‘‘बेटी, सुमनजी तो इस दुनिया से असमय जा कर इस परिवार को ही नहीं, बल्कि मुझे भी अकेला कर गईं. हम दोनों के बीच कुछ भी छुपा हुआ नहीं था. अपने सुखदुख की बात कर के हम अपना जी हलका कर लेते थे. एकदूसरे पर खुद से भी ज्यादा भरोसा था. हमें एकदूसरे का साथ भी था और सहयोग भी. हां, तुम्हारे पापा और तुम्हारे अंकल इतने घनिष्ठ नहीं थे. खैर, हम दोनों पड़ोसन बड़े प्रेम से रहते रहे.’’

‘‘जी, आंटी. हम ने मां को खोया है, तो आप ने भी अपनी प्रिय सखी को खोया है. मम्मी का यों अचानक जाना एक बहुत बड़ा खालीपन दे गया है.

“एक बात बताइए आंटीजी, क्या मम्मी ने अपनी किसी छोटीबड़ी बीमारी के बारे में आप से जिक्र किया था? मम्मी तो मामा के गले के कैंसर की वजह से बहुत बेचैन थीं. वे उन की जी भर कर सेवा करना चाहती थीं. हो सकता है, वे इस परेशानी में अपने बढ़ते ब्लड प्रेशर या किसी अन्य संकेत को नजरअंदाज करती रही हों और नतीजा इस तरह सामने आया हो.’’

‘‘वाकई तोशी, सुमनजी तुम्हारे मामा की बीमारी से बहुत अधिक तनाव में तो थीं. अपने भाई का इतना बड़ा कष्ट उन से देखा नहीं जा रहा था.

“एक बात बोलूं तोशी. मैं, पिछले एक साल से वह बात अपने दिल में दबाए बैठी हूं. सुमनजी पहले तो मुझे कुछ बताना ही नहीं चाहती थीं. मैं उन के तनाव की वजह सिर्फ उन के लाड़ले छोटे भाई की बीमारी ही मान रही थी. ऐसा लगता था, जैसे वे अपने मन के गुबार को अपने मन में ही रखने के लिए कशमकश कर रही हैं.

“जब उन के भाई शिवपुरी में अपने घर या यहां ग्वालियर के अस्पताल में होते थे, तब मैं ने देखा कि सुमनजी एक काली डायरी में कुछ लिख रही होती थीं. और उस वक्त उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे होते थे.

“मेरे अचानक आ जाने पर, अपनी डायरी बंद कर अपने आंसू पोंछ लेती थीं. इस बात का अफसोस जरूर होता था कि आखिर हम दोनों के बीच कितनी दूरी क्यों हो गई कि सुमनजी, मुझ से शेयर करने की जगह बस डायरी को अपना हमराज बना रही हैं.

“सामान्य दिखने की कोशिश में भी उन की बेचैनी झलक पड़ती थी. उस वक्त ऐसा लगता था कि वे इस बात का इंतजार कर रही हैं कि मुझे अकेला छोड़ दो. मैं तुम से न कह पाऊंगी.

“मुझे अपनी अधूरी कहानी, अपनी इस डायरी को सुनानी है. औपचारिक सी बातें कर मैं उन केे मन को समझ कर डायरी के साथ उन्हें फिर अकेला छोड़ देती थी.

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