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"मुझ से अब और नहीं सहा जाता. अब तो इन का साथ भी नहीं सुहा रहा है. मन करता है कि कुछ खा कर सदा के लिए सो जाऊं. भाभीभैया को बहाना बना कर मैं ने अपने घर में आने से रोका है. आप समझ सकती हो कि इस वक्त मेरे दिल पर क्या गुजर रही होगी. छोटा भाई तिलतिल कर मर रहा है. चाहती थी, जब तक है मेरी आंखों के सामने रहे. मगर पत्थरदिल शर्माजी ने एक बड़ी दीवार खड़ी कर दी है. फैसला मुझे लेना है. मेरे लिए शर्म से डूब मरने की बात है कि मेरे शहर में रहते हुए भी, मेरा कैंसर से जूझ रहा भाई अजनबियों की तरह आ कर असुविधाजनक स्थितियों में रहे. किराए का कमरा ढूंढ़े. अपने बूढ़े मांबाप के पास मुझे हिम्मत बढ़ाने के लिए खड़ा होना था. शर्माजी के इस व्यवहार के बाद अगर मैंं वहां जाने का कड़ा निर्णय लेती हूं, तो बूढ़े मातापिता के लिए अपनी बेटी के परिवार टूटने का दुख भी एक छोटा दुख नहीं होता. उन की बूढ़ी आंखें बिना कहे ही मेरी तकलीफ को पहचान लेंगी.

"परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी हैं कि जो भी निर्णय लूंगी, उसे दुनिया गलत ही कहेगी, मगर अब जो भी हो. शर्माजी का साथ और उन की सेवा करना. न जाने क्यों मेरा मन कतई गवारा नहीं कर रहा है.

"आप कहती थीं न दीदी. सुमन, आजकल तुम्हें इस डायरी से बहुत प्यार हो गया है. मैं ने अपना सारा दर्द इस डायरी में उड़ेल दिया है. डायरी भर चुकी है न. इसलिए आप के सामने छलक पड़ा,’’ गला रुंध गया था सुमन का.

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