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तोशी ने सुमित्राजी के जाने के बाद अपनी मां की डायरी को ढूंढ़ना प्रारंभ किया. डायरी मिलने में देर क्यों लगती. तोशी जानती थी कि मम्मी चीज को संभाल कर कहां रखेंगी. मोतियों से अक्षर लिखने वाली मां की राइटिंग, डायरी में बड़ी बेतरतीब सी थी और क्यों न होती?

मां किस मनःस्थिति में अपना दर्द बयां कर रही थीं. वर्तनी की शुद्धता और अक्षरों की बनावट को भला वह कैसे संभालती. मां पहले डायरी नहीं लिखती थीं. उन्हें फुरसत भी कहां थी. और सच कहें तो जरूरत भी कहां थी. एक खुली किताब सी जिंदगी जी रही थीं. शायद वह मामा की बीमारी के कारण भी न लिखती. उन्हें मुश्किल हालातों से जूझना आता था. लेकिन जब उन्हें रिश्ते की जटिलताओं से जूझना पड़ा तो वह भला किस से कहती. पापा का इतने समय का साथ, जिस पर एक स्त्री को सब से बड़ा भरोसा होता है. उन के लिए उस साथ को निभाना अब मुश्किल हो गया था, क्योंकि उन्होंने ही धीरेधीरे एक महत्वपूर्ण रिश्ते को खो दिया. मम्मी के दिल को और भी अधिक जख्मी कर दिया था. पापा का साथ मिला होता तो मम्मी हर मुश्किल से जीत जाती. मगर पापा ने तो अपनी हठधर्मिता से मम्मी को निराश ही कर दिया था.

मां की डायरी के पेज पर लिखे उन के शब्द आंसुओं से बिगड़े हुए भी थे. इतने महीनों का दर्द. तोशी मानो एकसाथ में ही पढ़ गई. दुख और क्रोध के मिलेजुले भावों से विचलित तोशी समझ नहीं पा रही थी कि अब उसे आगे क्या करना है. वह तो यहां पापा को अपने साथ ले जाने के लिए आई थी. शुरू में तो पापा फोन पर मना ही करते रहे थे, लेकिन लगता था कि अब वह इस अकेलेपन से घबराने लगे हैं. और पापा कहीं फिर से मना न कर दें, इसलिए उन की एक बार हां होने पर वह जल्दी ही यहां आ गई थी. लेकिन अब पापा के प्रति प्यार धीरेधीरे एक धीमी नफरत में बदल रहा था.

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