विवाह से पहले ही समाज की विभिन्न स्थितियों ने, लोगों की उस पर पड़ने वाली नजरों ने, समाज में स्त्रियों के प्रति होते जघन्य अपराधों ने, समाज में स्त्रियों के प्रति सम्मानहीनता की भावना ने, उस के अपने मातापिता ने, और खुद उस की विवेक बुद्धि ने रश्मि को समझा दिया था कि स्त्री होने का मतलब एक ही चीज है और कोई भी पुरुष उसी चीज की लालसा से स्त्री के पास आता है और स्त्री का एकमात्र काम उस चीज को बचाए रखना है.
उसे सिमोन डे बौयर की वह बात याद आती थी, जिस में उस ने बहुत अच्छे शब्दों में कहा था कि स्त्री जन्म नहीं लेती, उसे स्त्री बनाया जाता है.
पराए मर्दों को अपना दुश्मन समझना और एक तरह से घरघुसिया हो कर ही रह जाना, रश्मि को स्त्री का यही धर्म समझाया गया था, और यही उस ने अपना लिया था.
विवाह से पहले रश्मि अपने मातापिता के संरक्षण में सुरक्षित रही और विवाह के बाद उस ने अपने पति, बच्चों और रिश्तेदारों को ही अपना दायरा मान लिया.
उस ने देखा था कि अगर कोई स्त्री किसी पुरुष से हंस कर दो बातें भी कर लेती है, तो वह और दूसरे लोग भी उसे उस की प्रेमिका समझने में देर नहीं लगाते. तुरंत बातें होने लगती हैं और यहां तक पहुंच जाती हैं कि दोनों में शारीरिक संबंध हैं.
स्त्री जहां पुरुषों में मित्रता, सहृदयता, उदारता, करुणा और अपनेपन की भावना तलाशती है, तो वहीं पुरुष की उस के रूपरंग, शरीर के आकारप्रकार पर ही नजर रहती है. अंतर बस इतना हो सकता है कि कुछ इस मामले में इतने निर्लज्ज होते हैं कि अपनी अंतिम भावनाओं को छिपाते नहीं हैं, और कुछ इतने संवेदनशील, इतने संकोची होते हैं कि अपनी भावनाओं का पता ही नहीं चलने देते.
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