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क्षेत्रीय निदेशक होने के नाते अनिल के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी. उस ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर के न केवल उन के आनेजाने की व्यवस्था कर दी, बल्कि शहर में रहने का अच्छा इंतजाम भी कर दिया.

इस बीच कुछ ऐसा हुआ कि अनिल को कुछ महीनों के लिए दिल्ली यानी रश्मि के कार्यालय में काम करना पड़ा.

इस दौरान उन की दोस्ती थोड़ी और आगे बढ़ी. दोनों अकसर ही दोस्तों के साथ चाय वगैरह के समय मिल जाते थे और कुछ हंसीमजाक और आपसी बातों के लिए समय निकाल लेते थे.

यह सिलसिला ज्यादा समय तक नहीं चल पाया, क्योंकि अनिल जल्दी ही वापस लौट गया. लेकिन उन की दोस्ती का सिलसिला चल निकला. दोनों अकसर फोन पर बातें करते. एकदूसरे से बात कर के दोनों को खुशी मिलती थी.

जब भी निजी तौर पर या काम के सिलसिले में अनिल मुख्यालय आता, तो कोई न कोई ऐसी व्यवस्था हो जाती थी कि दोनों की मुलाकात होती.

अंगरेजी की एक कहावत है कि समान पंखों वाले पक्षी एकसाथ उड़ते हैं. मतलब, अगर हम में कुछ समानताएं हैं, तो हम एकदूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं.

लेकिन, क्या यह इतना सीधा है? ऐसा भी होता है कि जब हमें हमारी पूरक चीज मिलती है तो भी हम उस की तरफ आकर्षित हो सकते हैं.

वहीं बात यह भी हो सकती है कि जहां हमें सम्मान मिलता है, या जहां हमें सुख मिलता है, हम वहां रहने की ज्यादा कोशिश करते हैं.

अनिल की फिर से तरक्की हुई और वह रश्मि के विभाग का निदेशक बन कर मुख्यालय में आ गया. इस में प्रकट रूप से सब से ज्यादा खुशी रश्मि को ही हुई. उस ने न केवल उस का भरपूर स्वागत किया, बल्कि कह भी दिया कि वह इस बात से बहुत खुश है. उस के स्वागत में उस ने पारिवारिक लंच भी रखा.

बातोंबातों में अनिल ने बताया कि वह अकेला ही आया है और मुख्यालय में काम के दौरान उसे अकेले ही शहर में रहना है.

रश्मि ने स्वाभाविक रूप से उस के खाने, रहने और बाकी इंतजामों के बारे में पूछताछ की. अनिल ने बताया कि वह बाहर से खाना मंगवा लेता है और घर की सफाई, कपड़ों की धुलाई वगैहर के लिए नौकरानी आती है.

इस बातचीत के अगले ही दिन दफ्तर में रश्मि ने इंटरकौम पर अनिल को बताया कि वह उस के लिए लंच लाई है. साथ ही, उस ने जोर देते हुए कहा, “लंच खा लेना.”

यह सुन कर अनिल को झटका सा लगा, उस के मुंह से निकला, “क्यों…?”

“क्योंकि, दोपहर को भूख लगती है?” रश्मि ने कहा.

“मेरा मतलब है कि लंच लाने की जहमत क्यों की?” अनिल ने बात साफ की.

रश्मि ने सरलता से कहा, “खाने के लिए?”

अनिल ने संकोच से कहा, “लेकिन, तुम्हें इतनी तकलीफ करने की क्या जरूरत थी?”

रश्मि ने कहा, “इस में तकलीफ जैसी कोई बात नहीं है. मेरे घर में खाना बनाने के लिए नौकरानी आती है. मेरा काम सिर्फ इसे लाने का है. इस से कम से कम तुम्हें दिन के समय तो घर का खाना मिल जाएगा. और इस में ज्यादा बहस करने की गुंजाइश नहीं है. चुपचाप खाना खा लेना.”

अनिल को अभी भी संकोच था, “इस की क्या जरूरत थी भला?”

रश्मि ने जैसे अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “जरूरत थी, इसीलिए लाई हूं. और अब हर रोज मैं लंच ले कर आऊंगी.”

अनिल रश्मि द्वारा लंच लाने की बात से खुश तो था कि हां, कोई तो ध्यान रखने वाला है, लेकिन वह यह भी नहीं चाहता था कि इस के लिए रश्मि को परेशानी उठानी पड़े.

दूसरी बात यह थी कि अगर रश्मि रोज लंच ले कर आएगी, तो यह बात छिपी नहीं रहेगी और दफ्तर में सब को पता चल जाएगा. इस पर तरहतरह की बातें बनेंगी, हंसीमजाक बनेगा. बल्कि यह भी संभावना थी कि दोनों के परिवार के लोगों, मतलब एक के पति और दूसरे की पत्नी में भी इस बात को ले कर कुछ मनमुटाव हो सकता है.

उसे चिंता इस बात को ले कर भी थी कि रश्मि का पति क्या सोचेगा? साथ ही, यह भी चिंता थी कि खुद उस की पत्नी ऐसी बातें जान कर क्या कहेगी.
लेकिन, इन सब के बावजूद वह इस प्यार के व्यवहार को स्वीकार करने से मना नहीं कर सका.

ऐसा नहीं था कि रश्मि को अनिल के लिए खाना लाने के लिए घर से कुछ छिपाने की जरूरत हो. यह काम उस ने अपने पति की सहमति के साथ किया था.

पति को इस बात से कोई एतराज नहीं था, इसलिए उस ने हां कर दी थी. यहां तक कि वह इस काम का समर्थन दर्शाने के लिए नया लंच बौक्स भी खरीद कर ले आया था.

बौस के लिए लंच लाने के काम को रश्मि ने बड़ी शिद्दत से निभाया. जब कभी उस की नौकरानी छुट्टी पर होती, तो वह खुद ही लंच बनाती और ले जाती.

नरेश और रश्मि का प्रेम विवाह हुआ था. रश्मि ने उसे 5 साल तक अपने आगेपीछे चक्कर लगाने के बाद ही शादी के लिए हां की थी.

इस बीच नरेश की बहन भी रश्मि को मनाने के लिए उस से मिली थी. यह विवाह बहुत आसान नहीं था, खासतौर से रश्मि के लिए. क्योंकि दोनों ही अलगअलग समाज के थे.

रश्मि का समाज थोड़ा पुरातनपंथी था और अपने समाज से बाहर विवाह करने के बारे में वे लोग सोच भी नहीं सकते थे.

रश्मि ने तो इस शादी के लिए हां कर दी, लेकिन उस के पिता ने ना कर दी और कह

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