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उन के जाने के बाद मां ने कुछ परेशान होते हुए कहा, ‘साड़ी उतार दो और मन में पल रहे प्रेम को मार दो क्योंकि यह रिश्ता नहीं हो सकेगा.’’ मुझे आश्चर्य हुआ ऐसा क्या था जो मां को पसंद नहीं आया. मैं ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि वे हमारे परिवार को पसंद नहीं करेंगे,’’ जवाब पापा ने दिया था.

मैं पापा की तरफ मुड़ी, ‘‘पर उन्होंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा.’’

‘‘25 साल पहले ही कह दिया था जब तुम्हारे चाचा ने तुम्हारी चाची से अंतर्जातीय विवाह किया था. तुम्हारी चाची एक ऐसी जाति से हैं जिसे अपने समाज ने तिरस्कृत किया है. चाचाजी तो चाची से शादी कर के विदेश चले गए पर हमारे परिवार का हुक्कापानी अपनी जाति वालों ने बंद कर दिया. हम मां और पिताजी को ले कर देहरादून आ गए. तब से हम बरेली लौट कर नहीं गए. अपनों से दूर, अपनी मिट्टी से दूर, अपने रिश्तों से दूर. मां इसी गम को लिए साल भर के भीतर चल बसीं और पिताजीउन के 5 साल बाद. न चाचाजी को फिर कभी दोबारा देखा और न अपना घर,’’ पापा ने लंबी सांस ली. मां ने पापा के कंधे को पकड़ लिया.

पापा इन चंद लमहों में मुझे बूढ़े दिखाई देने लगे. मैं झल्लाई, ‘‘हुक्कापानी बंद पर पापा, यह तो अब ब्लैक ऐंड व्हाइट मूवी की स्टोरी जैसा लगता है. पापा इंटरनैट का जमाना है. लोग दूसरे प्लैनैट्स पर कालोनीज बनाने की सोच रहे हैं. क्या आज भी 25 साल पुरानी बातें माने रखेंगी? यह आप का पूर्वाग्रह है. आप परेशान न हों, देखना कल सर का ‘हां’ में फोन जरूर आएगा.’’ पाप मुसकराए और बोले, ‘‘बेटा, बदलाव की बयार चल जरूर रही है पर सब को छू नहीं पा रही है. तुम नहीं जानतीं, आज भी अपटूडेट दिखने वाले भी वैसे ही अनपढ़ हैं जैसे पहले थे. आज भी हम हर जाति के साथ अपना लंच शेयर नहीं करते. मैं नेतो अपने स्कूल में देखा है, बच्चों का एक समूह आज भी दीवार से चिपक कर जमीन पर बैठ कर चुपचाप अपना खाना खा लेता

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