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उन की चंद अभिव्यक्तियों ने मुझे उन की दीवानी बना दिया था. जो मन में था वह बाहर आने लगा था. प्रेम परवान चढ़ने लगा था. वक्त तेजी से दौड़ रहा था.

‘‘मैडम, बड़े सर ने बुलाया है,’’ चपरासी क्लास में कहने आया. मैं तेजी से अपना बैग उठा कर पिं्रसिपल औफिस में पहुंची.

‘‘जी सर,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां मैडम, आप का ट्रांसफर और्डर आ गया है. आप को देहरादून मिल गया है. बधाई हो,’’ प्रिंसिपल सर ने कहा. ‘मुझे ट्रांसफर नहीं चाहिए,’ मैं लगभग बुदबुदाई.

‘‘जी?’’ सर ने कहा.

‘‘नहीं, कुछ नहीं सर, कब जौइन करना है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘विद इन अ वीक,’’ वे बोले.

मैं ने तेजी से अपना शरीर स्टाफरूम की तरफ ढकेला. टन...टन...टन छुट्टी की आवाज आई, मैं किसी से मिले बिना चुपचाप घर चली गई. तो क्या जिंदगी का एक अध्याय यहीं खत्म हुआ. नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं यह ट्रांसफर लेना नहीं चाहती. मैं अभी एक ऐप्लीकेशन लिखती हूं. तभी अचानक फोन की घंटी से मैं स्वयं से बाहर निकली, ‘‘हैलो.’’

‘‘हां बेटा, मैं ने नैट पर देखा, तुम्हारा ट्रांसफर हो गया है. तुम अब घर आ जाओगी. चलो, अच्छा हुआ, मन बहुत परेशान रहता था. तुम्हें अकेला छोड़ तो रखा था पर...’’ पापा बोलते जा रहे थे. पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

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मै इस घटना के बाद 2 दिन तक कालेज नहीं गई. तीसरे दिन सर, कुछ परेशान से घर पर आए, बोले, ‘‘क्या बात है मैडम, कालेज क्यों नहीं आईं? 4 दिन बाद तो आप वैसे भी जा रही हैं. फिर तो हम आप को देख नहीं पाएंगे.’’

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