सायमा ने कुछ लोगों से बात की, फिर जुबैर के परिवार से भी मिलने गईं. बहुत देर तक काफी गंभीर माहौल में बहुत सी बातों पर विचारविमर्श हुआ. सब तय हो गया.
सीमा ने कोमल से कहा, ‘’मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी की इच्छा में कोई अड़ंगा लगाए, अब हम तुम्हारे पापा पर विश्वास नहीं कर सकते. इस बच्चे की घटना ने मेरा विश्वास उन पर से पूरी तरह हिला दिया है, उन के घर आने से पहले दोनों निकाह कर लो. फिर आगे की कार्यवाही करते रहेंगे.
"मैं ने अच्छी तरह बहुतकुछ सोच लिया है, यह सब जरूरी है. अब अनिल जिन तरह के लोगों के साथ रहता है, तुम्हारी शादी इतनी आसानी से नहीं होने देंगे ये लोग. मेरी बेटी के प्यार पर मैं इन लोगों का साया भी नहीं पड़ने दूंगी.’’
उस दिन तो अनिल की जमानत नहीं हो पाई. अनिल से मुलाकात हुई. उस के चेहरे पर अब भी वही अकड़ थी, जैसे उस ने कोई बड़ा काम किया हो. सीमा ने कहा, ‘‘कहां हैं तुम्हारे दोस्त...? जमानत जल्दी क्यों नहीं करवा रहे?‘‘
‘‘अरे, हो जाएगी जमानत. तुम चिंता न करो. मुझे यहां कोई दिक्कत नहीं है, सब ठीक से हो जाएगा.‘’ फरवरी का महीना था. अनिल के बाहर आने से पहले सीमा और सायमा ने काफी तैयारी कर जुबैर के घर ही गिनेचुने लोगों की मौजूदगी में सादा सा निकाह संपन्न करवा दिया. थोड़ीबहुत तैयारी में ही कोमल का सुंदर चेहरा दमक उठा था.
सायमा एक महिला कल्याण समिति की हेड भी थीं. उन का शहर में अच्छा प्रभाव भी था. सायमा की मौजूदगी ने सीमा को बड़ी हिम्मत दी थी.सीमा ने जुबैर के मातापिता अनवर और शाहीन को सब अच्छी तरह समझा दिया था. सीमा ने कोमल और जुबैर को गले लगा लिया था.