औफिस में कोमल को आज का दिन काटना भारी पड़ना ही था, सब कामधाम एक तरफ था सब का, और वीडियो पर हंसने वालों का, उस से उस की राय पूछने वालों का आज अजीब टाइमपास हो रहा था, उस के सीनियर रमेश शर्मा ने उसे अपने केबिन में बुलाया, तो उसे अपने पीछे खुसुरफुसुर की आवाजें बहुत साफ सुनाई दीं. रमेश ने कहा,‘‘ मैं तो तुम्हें बहुत एजुकेटेड फैमिली की लड़की समझता था, क्या तुम्हारे फादर की सोच ऐसी है कि देश के मेरे जैसे नागरिक उस पर शर्मिंदा हो जाएं? क्या वे किसी राजनीतिक पार्टी में हैं?‘‘
‘‘सर, नहीं. वे किसी पार्टी में तो नहीं हैं.‘’ ‘‘कमाल है, जब भी तुम्हारी बातें सुनीं, लगा कि बहुत अच्छी परवरिश हुई है तुम्हारी, पर तुम्हारे फादर ने तो जोर का झटका दिया…‘‘
कोमल उन के केबिन से निकल कर सीधे बिना इधरउधर देखे वाशरूम की तरफ बढ़ गई. कोने की टेबल पर बैठे जुबैर का उदास, गंभीर चेहरा दिखा. कोमल की आंखों से कुछ आंसू बह ही गए, वाशरूम में जा कर कोमल फफक पड़ी, यह क्या किया पापा ने, हजारों लोग वीडियो देख चुके हैं, कितनी इंसल्ट करवा दी.
दिल का गुबार निकाल वह अपना बैग ले कर कुछ जल्दी ही निकलने लगी, तो जुबैर उस के साथ कुछ कदम चला, पूछा, ‘‘छोड़ दूं?‘‘ ‘‘नहीं, आज नहीं.‘‘कोमल ने पार्किंग से अपनी कार निकाली और रास्ते में एक खाली सी रोड पर यों ही कार रोक दी.
घर जा कर अपने पापा अनिल भारद्वाज को देखने का उस का मन ही नहीं था, दिल चाह रहा था कि उस घर में वह कदम भी न रखे, जहां धर्म के नाम पर इतना तमाशा करने वाले उस के पापा इस समय बड़ी शान से घूम रहे होंगे.
आज सुबह ही जब अनिल अपने कुछ कट्टर साथियों के साथ मंदिर से वापस आ रहे थे, उन्हें अपने औफिस में काम करने वाला छोटू दिखाई दे गया था.
छोटू को सब ‘छोटू’ ही कहते थे, छोटा सा ही तो था, पतलादुबला सा, अनिल के औफिस में चाय लाया करता. आज वह अपने पिता का हाथ पकडे़ चल रहा था. पिता के सिर पर टोपी और उन की दाढ़ी और पहनावे से साफसाफ समझ आ रहा था कि छोटू तो एक मुसलिम पिता का बेटा है.
यह देख अनिल के अंदर नफरत की एक आग सी भड़क उठी. उस ने एक गाली दे कर कहा, ‘‘ये तो हमारे औफिस में चाय लाया करता है, ये तो मुसलिम है? अभी बताता हूं इसे,‘‘ कहते हुए अनिल आगे बढ़ा, तो उन के साथी चिल्लाए, ‘‘छोड़ना मत… पीट डाल…‘‘
अनिल जैसे ही छोटू के पास पहुंचे, छोटू पहचान गया, खुश हुआ, ‘‘साहब, आप…?‘‘ अनिल फुंफकारे, ‘‘तू मुसलमान है?‘‘ छोटू के पिता सरफराज ने कहा, ‘‘जी साहब.‘‘ ‘‘अभी तक बताया क्यों नहीं? हम रोज ही एक मुसलमान के हाथ की चाय पी रहे हैं?‘‘ अनिल गुस्से में छोटू के पिता सरफराज से कह रहे थे.
छोटू के पिता सरफराज को स्थिति गंभीर लगी. उन्होंने नरमी से कहा, ‘‘साहब, गरीब आदमी हैं. मैं साइकिल की दुकान पर काम करता हूं, छोटू चाय की दुकान पर काम करता है. बस, मेहनत कर के किसी तरह पेट भरते हैं.‘‘
‘‘मेहनत कर के या हम लोगों का धर्म भ्रष्ट कर के?‘‘ ‘‘साहब, छोटू के मालिक को तो हमारा धर्म पता है, हम ने कभी नहीं छुपाया.‘‘ ‘‘पर, हमें तो नहीं पता था न… जो हमारा धर्म इतने दिन भ्रष्ट हुआ, उस की सजा तो तुम्हें मिलेगी न…‘‘
सरफराज ने सब के आक्रामक तेवर देखे तो डर गए. छोटू को अपने पीछे छुपाते हुए बोले, ‘‘ठीक है साहब, छोटू आप के औफिस में अब चाय ले कर नहीं आएगा.‘’‘‘हां, वह तो अब आने भी कौन देगा, पर अब तक जो हुआ, उस की सजा तो मिलेगी,‘‘ कहतेकहते अनिल ने एक जोर का थप्पड़ छोटू के गाल पर लगाया. उन के साथी रमेश और सोहन एकसाथ बोले, ‘छोड़ना मत, और मार इसे…‘
छोटू तेज वार से जमीन पर गिर पड़ा था. सरफराज उसे उठाने के लिए आगे बढ़े, तो रमेश ने उन के दोनों हाथ पीछे से पकड़ लिए, कहा, ‘‘सोहन, चल, बना ले एक वीडियो…‘‘
अनिल ने छोटू को मारमार कर जमीन पर अधमरा कर दिया. सरफराज रोरो कर मदद की गुहार करते रहे, पर इस समय इक्कादुक्का लोग ही आसपास थे, जो दूर खड़े तमाशा देख रहे थे. सोहन ने हंसते हुए वीडियो बनाया, फिर सरफराज को भी सड़क पर एक जोर का धक्का दे कर तीनों चले गए और बड़ी शान से वीडियो वायरल कर दिया था.
अब तो कोई भी ऐसा नहीं बचा था, जिस ने यह वीडियो न देखा हो. कुछ तो अनिल की हरकत पर गर्व कर रहे थे, कह रहे थे कि ठीक किया. ये वही लोग थे, जो आजकल धर्म के नशे में अंधे हो चुके हैं. एक तरफ वे लोग थे, जिन का सिर इस वीडियो को देख कर शर्म से झुक गया था.