सीमा एक स्कूल में टीचर थीं. बहुत सुलझी सोच वाली सीमा किसी धर्म और जाति के चक्कर में न पड़तीं, स्टूडेंट्स की चहेती टीचर थीं. प्रिंसिपल सायमा अत्यंत प्रतिभावान और बुद्धिजीवी महिला थीं, उन्हें सीमा के विचार प्रभावित करते, उन दोनों में अच्छी दोस्ती भी हो गई थी, कभीकभी एकदूसरे के घर भी आनाजाना हो जाता. कोमल और रजत भी उन का खूब सम्मान करते. अनिल हर धर्मजाति पर चूंचूं करता, पर सब उसे इग्नोर कर देते.
अनिल तो रातभर चैन से सोया, पर समाजसेवी संस्थाएं अपना काम कर रही थीं और एक कंप्लेंट पर सुबहसुबह अनिल को अरैस्ट कर लिया गया.
यह देख सीमा और कोमल को भी एक बड़ा धक्का लगा. वे दोनों समझ भी रहे थे कि यह तो होना ही था. कहीं न कहीं इस बात के लिए अनिल मन ही मन तैयार भी थे, इस समय भी अनिल बड़ी शान से किसी को फोन करते हुए, ’संभाल लेना,’ कह रहा था और अपने परिवार को परेशान देख मुसकराते हुए बोला, ‘‘अरे, यह कोई बड़ी बात नहीं. यों गया और यों आया. ऐसा कुछ गलत नहीं किया मैं ने. धर्म के नाम पर तो मेरी जान हाजिर है.‘‘
अब भी इतनी अकड़ से कहे शब्द दोनों को और दुख से भर गए. अनिल की जमानत की कोशिश शुरू हो चुकी थी, पर बच्चे के लिए आवाज उठाने वालों की भी कमी न थी.कोमल कुछ ज्यादा ही बेचैन थी. सीमा ने उस की उदासी, बेचैनी भांप ली थी, पूछा, ‘‘कोमल, कुछ ज्यादा ही परेशान सी हो, रातभर शायद सो भी नहीं पाई तुम, क्या हुआ, बेटा?‘‘