‘‘किसे बारबार फोन कर रहे हो मोहित, कोई परेशानी है?’’
‘‘कब से फोन कर रहा हूं मां को, उठा ही नहीं रही हैं.’’
‘‘तो पापा को लगाओ न.’’
‘‘वे भी कहां उठा रहे हैं. कैसे हैं ये लोग, उफ्फ.’’
‘‘हो सकता है दोनों कहीं बाहर घूमने या फिर किसी काम से निकले होंगे और शोरगुल में फोन की आवाज सुन नहीं पा रहे होंगे. आप चिंता मत कीजिए, मिस्ड कौल देखेंगे तो खुद ही फोन करेंगे.’’
‘‘तुम्हें तो पता है न, रचिता, कि दोनों कैसे हैं. एकदूसरे से ठीक से बात तो करते नहीं हैं, घूमने क्या जाएंगे साथ में?’’
‘‘जब से औफिस से आए हो, परेशान दिख रहे हो. कोई बात हो गई, क्या? मेरा मतलब है कि क्या कोई जरूरी बात करनी है आप को मां से? थोड़ी देर में फिर से कोशिश करना, तब तक खाना खा लो.’’
‘‘देखो, अब तो दोनों का फोन स्विच औफ जा रहा है, क्या करूं?’’
‘‘हो सकता है फोन की बैटरी चार्ज न हो. वैसे भी, पटना में बिजली की हालत अच्छी नहीं है.’’ मेरी बातों पर तो मोहित का जरा भी ध्यान नहीं था. बस, बारबार फोन लगाए जा रहे थे. ‘‘दीदी को फोन करो, मोहित.’’
जैसे ही वे दीदी को फोन करने जा रहे थे वैसे ही दीदी का फोन आ गया.
‘‘दीदी, मैं आप को ही फोन कर रहा था. देखो न, कब से मांपापा को फोन कर रहा हूं, लग नहीं रहा है. कुछ पता है आप को?’’ मोहित बकबक किए जा रहे थे और दीदी कुछ बोल ही नहीं रही थीं, ‘‘दीदी सुन रही हो?’’
‘‘तू चुप होगा तब बोलूंगी न, मैं भी कब से फोन कर रही हूं. वैसे, तुम चिंता मत करो, मोहित. तुम्हें पता तो है कि मांपापा कैसे हैं. खुद तो मस्त रहते हैं, दूसरों को टैंशन देते हैं और शुरू से तेरी आदत है बेवजह चिंता करने की, अभी सो जा, सुबह बात हो जाएगी.’’