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क्या उस का बाकी जीवन ऐसे इनसान के साथ बीतेगा? अपनेआप को अनेकों बार संभाल कर, फिर से उन के सभी ऐब को दरकिनार कर वह उन्हें प्यारसम्मान देती रही, इस उम्मीद से कि शायद वे एक दिन जरूर सुधर जाएंगे. मगर उन के लिए संवेदना, प्यार, अपनापन कोई मायने नहीं रखते थे.

हर बार संबंध बनाने के बाद वे उस पर पैसे फेंकने लगे. 1-2 बार तो उसे समझ नहीं आया, जब लगा कि ये अपनी पत्नी को भी वेश्या समझते हैं. तो उन की यह घटिया सोच उस से बरदाश्त नहीं हुई. उस ने उन के ऐसे बरताव करने पर एतराज जताया.

‘‘तो क्या करेगी तू...? मुकदमा करेगी...? जा कर, अब देख तेरे साथ और क्याक्या करता हूं, आई अपनी वकालत झाड़ने....‘‘
उन्होंने जो कहा, अखिरकार उस के साथ वैसा करने लगे.

उस की बिना मरजी के बारबार वे उस की देह पर वार करते रहे और उन के इस घिनौने कामों को वह खून की प्याली समझ पीती गई. उन के साथ एक कमरें में रहना उस के लिए असहनीय बनता जा रहा था. वह चाहती थी कि वह मर जाए, जिस से उस की जिंदगी को यह सब झेलने से आजादी मिल सके.

आप को क्या लगता है, उस ने मायके में अपनी घुटन भरी यातनाओं का जिक्र नहीं किया होगा...? हजार बार किया, मगर उन के घर औरतों के दुखतकलीफ का कोई महत्व नहीं होता. पिता तक तो खबर ही नहीं पहुंचती, मां और बहनें सब उसे ही ज्यादा पढ़ेलिखे होने की दुहाई देते.

‘‘अरे जैसा है चला, सब को कुछ ना कुछ सहना तो पड़ता है.‘‘

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