किसी को क्या कोई शौक होता है अपनी शादीशुदा जिंदगी खत्म कर के ससुराल से रातोंरात भागना? बिना मंजिल राह चलती किसी भी बस में चढ़ जाना? अपना चेहरा औरों की नजरों से छुपा कर, बिखरते आंसुओं को पांेछना, भला किसे सुख देता होगा?
मगर, ऐसा हाल सुलक्षणा का हो चुका था…
उस के ससुराल में पैसों और रुतबे की कोई कमी भी नहीं थी. कमी थी तो बस उस के जज्बात की थोड़ी भी समझ न रखने की.
आप को लगता होगा कि उस का यह कदम गलत हो सकता है. उसे अपना रिश्ता बचाने के लिए थोड़ा और प्रयास करना था… या शायद गलती उसी की हो? जैसा कि उस के परिवार वालों और ससुराल पक्ष को हमेशा से लगता आया है.
चलिए, फिर आप ही एक बार उस की कहानी सुनिए और बताइए कि क्या उस का निर्णय सही था या नहीं?
उस की परिस्थितियों को समझने के लिए थोड़ा पीछे मुड़ कर उस की पिछली जिंदगी में झांकना होगा, क्योंकि इनसान की वर्तमान स्थिति उस के भूत में गुजरे और गुजारे दिनों के इर्दगिर्द ही तय कर जाया करती हैं.
बहुत सालों पहले की बात है, जब उस के पिता का विवाह उन के किशोरावस्था में उस के दादाजी द्वारा संपन्न करा दिया गया था. दादाजी ने दहेज का पैसा जोड़ कर एक सुनार की दुकान खोली, जो समय गुजरते, सफलता के उच्चतम पायदान पर पहुंचने लगी.
दादाजी के निधन के बाद पिता तुरंत उन की संपूर्ण संचित संपत्ति के सीधे हकदार बन गए. धीरेधीरे 3 बहनें हो गईं. पोते की ख्वाहिश पूरी करने के लिए दादी द्वारा विशेष पूजाअनुष्ठानों के कई सालों बाद उन के घर एक छोटा भाई आया.
उस के पिता जिस घर में जनमे थे, वहां बहुओं को केवल रसोई और बच्चों की परवरिश तक सीमित रखा गया था. आगे के विषयों पर उन से कभी कोई मशवरा नहीं लिया जाता था और यह प्रथा जमाने से उन के खानदान में आज तक चली आ रही है.
लड़के जो कि उन के बुढ़ापे का सहारा है, उन्हें कोई बंदिशें नहीं. रही बात लड़कियों की, तो उन्हें हलकाफुलका शादी योग पढ़ना होगा और घरगृहस्थी के कामों में निपुण, एक बार ब्याह गई, फिर उन की जिम्मेदारी खत्म, अपने भाग्य से जीती रहे. उन का इस घर से न के बराबर सरोकार होगा, क्योंकि अब उन का घर उन का ससुराल है.
अच्छे पैसे वाले घर से होने के कारण वे चारों शहर के सब से नामी स्कूल में पढ़ने जाया करते थे, पढ़ाईलिखाई से दादी की तरह पिता को भी कोई दिलचस्पी नहीं थी.
उन की आगे की रणनीति बिलकुल पानी की तरह साफ थी, एक उम्र के बाद अच्छा दहेज दे कर तीनों की संपन्न परिवार में शादी और भाई को जल्द से जल्द अपने पेशे में शामिल कर, अथाह दहेज ले कर उस की भी शादी. वैसा ही जैसा दादाजी ने उन के साथ किया था.
उस के पिता की दुनिया में सिर्फ पैसा ही एकमात्र ऐसी चीज है जो अच्छी जिंदगी देने के लिए पर्याप्त है. न तो पढ़ाई, संस्कार, सद्भावना, करुणा और न ही कोई दानपुण्य, यह सब उन के लिए समय और पैसे की बरबादी के रास्ते थे.
इन सब के बावजूद ऊपर वाला उन की बरकत करता जा रहा था. धीरेधीरे उन की शहर में बहुत बड़ी आभूषण की दुकान हो गई. पिताजी का समाज और रिश्तेदारों में बहुत रुतबा बढ़ने लगा. दूरदराज से लोग भारी ब्याज पर उन से रुपए उधार लेने आने लगे. किसी का घर ही क्यों न तबाह हो जाए, मजाल है कि वे उन का एक पैसा भी माफ कर दें.
समय गुजारता चला गया. उस की दोनों बड़ी बहनों और भाई को शिक्षा रास न आई, परंतु उस की कई मिन्नतों और जिद के बाद दादी से वकालत करने की इजाजत इस शर्त पर मांगी कि जैसे ही उस की पढ़ाई खत्म होगी, वह अपने पिता के कहे घर पर आंख बंद कर ब्याह कर लेगी.
हुआ भी कुछ ऐसा ही. एक के बाद एक दोनों बहनों को उन के ससुराल वालों की तिजोरी देख विदा कर दिया गया.
कुछ सालों बाद अब वह एक वकील बन कर दादी को किए वादे के अनुसार अपने पिता के नए बिजनैस पार्टनर के बेटे संग शादी के बंधन में बंध गई.
वह मानती है कि उस का परिवेश बाकी घरों की तुलना में बहुत संकीर्ण मानसिकता के बीच हुआ है. जहां कोई अपना अलग रास्ता चुनने का साहस नहीं कर सकता, और खासतौर से बेटियों को तो कदापि नहीं, तब भी वह अपने भविष्य संजोने के सपने देखती रही.
वह अपने पूरे वंश की एकमात्र शिक्षित लड़की थी और आज के बाद एकमात्र ऐसी पत्नी भी, को गैरवक्त अपना ससुराल छोड़ कर भाग खड़ी हुई.
शादी तो उस ने कर ली, मगर उस का मन उन चारदीवारों के अंदर कैद हो कर अपनी शेष जिंदगी काटना बिलकुल नहीं चाहता था.
इसलिए समय देख अपनी वकालत को नियमित रखने के लिए अपने पति को मनाने की सोची, शायद उन्हें अपनी पत्नी की इच्छा, सपनों की परवाह हो. वह उस के घर वालों की तरह बंधे विचार न रखते हों. लेकिन जैसा सोचा था, उस के विपरीत उस ने अपना जीवन मुश्किलों से भरा हुआ पाया.
उस के पिता ने सिर्फ धनसंपत्ति और अपने बिजनैस को आगे बढ़ता देख उस की शादी उस घर में तय कर दी, लेकिन एक बार के लिए अपने बिगड़े दामाद के चालचलन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी. उस की बहनें इस मामले में खुशकिस्मत निकलीं, उन की जिंदगी में उस के जैसी तकलीफें नहीं लिखी थीं.
उस का पति शराबी, जुआ खेलने वाले, अन्य औरतों से जिस्मानी रिश्ते रखने वाले. और तो और बिना बात के उस पर हाथ उठाने वाले नासूर इनसान निकले. वह उन्हें पूरी तरह से समझतेसमझते टूटने लगी.