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वे उस दिन औफिस नहीं गए. उन्होंने अपने साहब को फोन कर औफिस न आ पाने के बारे में बता दिया था. रीना ने बच्चों को उन के पास नहीं जाने दिया. चिंटू दूर से ही पापा से बातें करता रहा. पापा के बगैर उस का मन लगता कहां था. रानू तो दौड़ कर उन के बिस्तर पर चढ़ ही गई. बड़ी मुश्किल से रीना ने उसे उन से अलग किया. सहेंद्र दोतीन दिनों तक ऐसे ही पड़े रहे. इन दोतीन दिनों में रीना ने कई बार उन से डाक्टर से चैक करा लेने को बोला, पर वे टालते रहे.

रीना की घबराहट बढ़ती जा रही थी. रीना ने अपने देवर महेंद्र को फोन कर सहेंद्र की बीमारी के बारे में बता दिया था, पर महेंद्र देखने भी नहीं आया.

उस दिन रीना ने फिर महेंद्र को फोन लगाया, ‘भाईसाहब, इन की तबीयत ज्यादा खराब लग रही है. हमें लगता है कि इन्हें डाक्टर को दिखा देना चाहिए.’

‘अरे, आप चिंता मत करो, वे ठीक हो जाएंगे.’

‘नहीं, आज 5 दिन हो गए, उन का बुखार उतर ही नहीं रहा है. आप आ जाएं तो इन्हें अस्पताल ले जा कर दिखा दें,’ रीना के स्वर में अनुरोध था.

‘अरे, मैं कैसे आ सकता हूं, भाभी. यदि भाई को कोरोना निकल आया तो?’

‘पर मैं अकेली कहां ले कर जाऊंगी. आप आ जाएं भाईसाहब, प्लीज.’

‘नहीं भाभी, मैं रिस्क नहीं ले सकता.’ और महेंद्र ने फोन काट दिया था.

रीना की बेचैनी अब बढ़ गई थी. उस ने खुद ही सहेंद्र को अस्पताल ले जाने का निर्णय कर लिया.

रीना ने सहेंद्र को सहारा दे कर औटो में बिठाया और खुद उसे पकड़ कर बाजू में ही बैठ गई. बड़ी मुश्किल से एक औटो वाला उन्हें अस्पताल ले जाने को तैयार हुआ था, ‘एक हजार रुपए लूंगा बहनजी.’

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