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राइटर- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

वैसे तो चिंटू ने एक छोटा स्टूल रख लिया था. जब वह उस पर खड़ा हो जाता तब ही उस के हाथ किचन में रखे गैसस्टोव तक पहुंचते. ऐसा नहीं था कि उस की हाइट कम थी बल्कि वह था ही छोटा. 8 साल की ही तो उस की उम्र थी. वह स्टूल पर खड़ा हो जाता और माचिस की तीली से चूल्हा जला लेता. उसे अभी गैस लाइटर से चूल्हा जलाना नहीं आता था. वैसे तो उसे माचिस से भी चूल्हा जलाना नहीं आता था.

तीनचार तीलियां बरबाद हो जातीं तब जा कर चूल्हा जलता. कई बार तो उस का हाथ भी जल जाता. वह अपने हाथों को पानी में डाल कर जलन मिटाने का प्रयास करता. चूल्हा जल जाने के बाद वह पानी भरा पतीला उस के ऊपर रख देता और नूडल्स का पैकेट खोल कर उस में डाल देता. अभी उसे संशी से पकड़ कर पतीला उतारना नहीं आता था, इसलिए वह चूल्हे को बंद कर देता और तब तक यों ही खड़ा इंतजार करता रहता जब तक कि पतीला ठंडा न हो जाता. वह सावधानीपूर्वक पतीला उतारता. फिर उस में मसाला डाल देता. चम्मच से उसे मिलाता. फिर एक प्लेट में डाल कर अपनी छोटी बहन रानू के सामने रख देता. रानू दूर बैठी अपने भाई को नूडल्स बनाते देखती रहती.

उसे बहुत जोर की भूख लगी थी. जैसे ही प्लेट उस के सामने आती, वह खाने बैठ जाती. चिंटू उसे खाता देखता रहता, ‘‘और चाहिए?’’

‘‘हां,’’ रानू खातेखाते ही बोल देती.

चिंटू थोड़ी सी मैगी और उस की प्लेट में डाल देता. उस के सामने पानी का गिलास रख देता. रानू जब खा चुकी होती तब जितना नूडल्स बच जाता वह चिंटू खा लेता. अकसर नूडल्स कम ही बच पाते थे. दादाजी नूडल्स नहीं खाते, उन के लिए चिंटू चाय बना देता. फिर चिंटू दोनों की प्लेट, चाय का कप और पतीला साफ कर रख देता. वह रानू का हाथ पकड़ कर बाहर के कमरे में ले आता और दोनों चुपचाप बैठ जाते.

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