राजन साहब फाइलें ले कर आए थे और लगभग 1 घंटे तक वे दोनों उन में डूबे रहे. पिछले 1 महीने की सारी प्रोग्रैस रिपोर्ट, फाइनैंशियल स्टेटमैंट, ट्रांजैक्शंस, सब देखे. तसल्ली इस बात की थी कि उन के न होने पर भी सबकुछ ठीक ढंग से हुआ था.
‘‘राजन साहब, नो डाउट, आप का मैनेजमैंट बहुत अच्छा है. हर काम बखूबी संभाला हुआ है आप ने. जहां आप जैसे ईमानदार व भरोसेमंद लोग हों वहां कंपनी कभी घाटे में जा ही नहीं सकती,’’ आदित्य ने उन्मुक्त ढंग से उन की प्रशंसा की.
‘‘सर, यह तो आप का बड़प्पन है कि आप गलतियों को भी नजरअंदाज कर देते हैं और सामने वाले को मौका देते हैं कि वह अपनी गलती सुधार ले. वैसे भी यह सब आप के मार्गदर्शन से ही संभव हो पाया है. वैसे, अभी आप कैसा फील कर रहे हैं? कमजोर तो हो ही गए हैं आप? रिकवर होने में समय लग जाएगा. अभी आप को थोड़ा और आराम करना चाहिए था.’’
‘‘मैं ठीक हूं, राजन साहब. कमजोरी भी भर जाएगी. बाकी अब इस बात के लिए घर पर तो बैठा नहीं जा सकता है. आप तो जानते ही हैं कि काम के बिना छटपटाहट होने लगती है मुझे. और फिर घर में मन ही कहां लगता है,’’ कहतेकहते वे अचानक चुप हो गए. इस तरह से किसी के सामने वे अपनी तकलीफों व दुखों का पिटारा खोल कर बैठना पसंद नहीं करते थे, इसलिए तुरंत अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर वे बोले, ‘‘जातेजाते गोपाल को भेज दीजिएगा.’’
गोपाल को कौफी लाने को कह वे फिर काम में डूब गए.
गोपाल कौफी ले आया था.
‘‘गोपाल, तुम्हारी बेटी की पढ़ाई कैसी चल रही है? 12वीं की परीक्षा देगी न इस बार? तुम्हारे पिताजी रिटायर होने वाले होंगे, तुम किसी बात की चिंता मत करना. बेटा पढ़ाई पूरी कर लेगा तो यहीं औफिस में लगा देंगे उसे.’’
गोपाल हाथ जोड़ कर उन के सामने नतमस्तक हो गया, ‘‘साहब, आप बड़े दयालु हैं. सब की दुखतकलीफ को ले कर चिंतित रहते हैं, फिर भी न जाने क्यों…’’ कहतेकहते वह चुप हो गया. क्या बोलने जा रहा था वह, मालिक के सामने उन के ही जख्मों को छीलने की हिमाकत कर रहा था.
‘‘ठीक है गोपाल, और कुछ चाहिए होगा तो बुला लूंगा,’’ आदित्य ने ही उसे उलझन से बाहर निकाला.
आखिर गोपाल की या किसी और की गलती भी क्या है. जो भी उन्हें जानता है, वह उन के आघातों से भी परिचित है. फिल्मी जीवन में जैसे एक के बाद एक घटनाएं घटित होती हैं, ऐसी असल जिंदगी में हों तो आश्चर्य
व नियति के खेल पर अचंभा होना स्वाभाविक ही है. फैमिली फोटोग्राफ में मुसकराती उन की पत्नी शेफाली और उन के दाएंबाएं 2 मजबूत खंभों की तरह खड़े उन के बेटे. शेफाली एक आम गृहिणी, पति खुश, बच्चे खुश और कोई चाह नहीं. हमेशा खिलखिलाती रहती. वे कभी परेशान होते तो झट उन के कंधों को दबा, बिना कुछ कहे जता देती कि फिक्र मत करना, मैं सदा तुम्हारे साथ हूं. न कभी किसी चीज का उलाहना दिया न शिकायत की.
विवाह के आरंभिक दिनों में उन का कारोबार नया था. तब बहुत पैसे नहीं थे उन के पास. फिर मांबाप, भाईबहन की जिम्मेदारी थी. तब भी शेफाली ने कभी पैसों की तंगी का रोना नहीं रोया. न ही पैसा आने के बाद वह सातवें आसमान में उड़ने लगी. एक प्रवाह में बहते हुए वह हर समय खुश रहा करती थी. तब किसे पता था कि एक दिन उस के होंठों से हंसी गायब हो जाएगी.
दरवाजे पर खटखट हुई.
‘‘सर, लंचटाइम हो गया है. खाना लगा दूं?’’ गोपाल ने पूछा.
खाना खातेखाते कमरे की खिड़की के बाहर खड़े पीपल के पेड़ पर उन की नजर गई. आज सुबह से ऐसी व्यस्तता थी कि उसे देखा ही नहीं था. कैसी तो हिम्मत आती है उसे देख कर. एक भव्यता और विस्तार का एहसास देता है, मानो किसी संबल से कम न हो. कितनी अडिगता से खड़ा रहता है यह पेड़ क्योंकि जानता है कि सुखदुख तो आतेजाते रहते हैं. गरमियों में उस की छांव को लोग पसंद करते हैं तो सर्दियों में उस के पत्ते झड़ते ही लोग उस से दूर भागते हैं.
सौरभ, उन के बड़े बेटे को भी कितना पसंद था यह पेड़. जब भी आता उस के पत्तों को अवश्य सहलाता. बीते दिन उन के मानसपटल पर छाने लगे थे. उस समय 16 बरस का था वह जब अचानक उस की तबीयत बिगड़ने लगी, हमेशा गला खराब रहता. शरीर में कमजोरी रहने लगी. पहले तो सोचा कि वैसी ही मौसमी बीमारी होगी. बाजार का उलटासीधा खाते हैं बच्चे, इसलिए गले में इन्फैक्शन हो गया होगा. पर जब इन्फैक्शन लगातार बना रहा तो टैस्ट कराने पर पता चला कि उसे गले का कैंसर है. शेफाली और वे दोनों ही सकते में आ गए थे. पर वे शेफाली को समझाते, ‘चिंता क्यों करती हो, शेफाली. आजकल टैक्नोलौजी इतनी एडवांस हो गई है कि इलाज संभव है. वरना विदेश में इलाज कराएंगे. तुम हिम्मत रखो.’ इलाज तो उन्होंने बहुत कराए पर सब व्यर्थ गया. उस की मौत ने तब पहली बार उन की खुशियों पर प्रहार किया था.
बेटे की मौत का गम शेफाली के लिए बरदाश्त करना संभव न था. वे तो दिनभर काम में डूबे रहते थे, इसलिए मन लग जाता था, पर शेफाली तो जैसे काठ की हो गई थी. दिनरात बस बेटे को याद कर रोती रहती. कहती, ‘सौरभ को जाना था तो वह आया ही क्यों था. पहले की तरह पैदा होते ही मर जाता तो कम से कम प्यार तो नहीं पनपता. क्यों सपने दिखाने के बाद यों इस तरह छोड़ कर चला गया.’
आदित्य उस के दर्द से भीगे चेहरे को हथेली में थाम उसे दिलासा देने की कोशिश करते. उन के एक बेटे की मृत्यु पैदा होते ही हो गई थी क्योंकि उस के दिल में छेद था. सौरभ की पैदाइश के समय भी बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, लेकिन वह स्वस्थ पैदा हुआ था. फिर गौरव के जन्म के समय औपरेशन करना पड़ा था. शेफाली एक बेटे को खोने के बाद दोनों बेटों को ले कर बहुत ही पजैसिव हो गई थी.
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