‘‘थैंक्यू सर, पर दिक्कत यह है कि कुछ दिनों बाद मेरी बहन की शादी है
और मुझे छुट्टी लेनी पड़ेगी,’’ रोहित ने हिचकते हुए कहा.
‘‘कोई बात नहीं, प्रोजैक्ट साल में नहीं, डेढ़ साल में खत्म हो जाएगा. चिंता मत करो और अपनी बहन की शादी में बुलाना मत भूलना. एडवांस चाहिए तो ले लेना.’’
अवाक् रोहित सिर हिलाते हुए चला गया. आज तक जितना सर के बारे में सुना था उस से कहीं ज्यादा नरम दिल और अंडरस्टैंडिंग हैं वे तो. कैसे बिना कहे दूसरों की तकलीफों को समझ लेते हैं.
तभी फिर रंजन का फोन आया. ‘‘आदित्य, मोना के पति के नाम तुम ने जो वसीयत की थी, उसे भी तो बदलना होगा न? उस के भी कागज तैयार कर लाऊं?’’
‘‘हां, सब चीजें सैटेल हो जाएं तो मुझे तसल्ली हो जाएगी. निकुंज के नाम पर भी जमीनजायदाद करनी है. आएगा तो बताता हूं.’’
पोते का जिक्र आते ही एक बार फिर से वे जिंदगी के उन टुकड़ों को बटोरने की कोशिश करने लगे जो पीछे छूट गए थे. शेफाली के जाने के बाद गौरव, मोना और निकुंज में ही वे अपनी खुशियां तलाशने लगे. तब कोई 3 साल का होगा निकुंज, गौरव काम से जयपुर गया था. रात को हाइवे पर एक ट्रक ने ऐसी टक्कर मारी कि उस की कार 3-4 बार उलटती गई. गौरव की घटनास्थल पर ही मौत हो गई. इस से ज्यादा भयानक और क्या हो सकता है कि एक पिता अपने दोनों बेटों को खो दे और जवान बहू व नन्हे पोते को धीरज बंधाने को मजबूर हो. आदित्य को ऐसा करना पड़ा. मोना के वे पिता बन गए.