सौरभ का चले जाना उसे शरीर के साथ मानसिक तौर पर भी आघात दे गया.
इंटरकौम बजा, ‘‘सर, फ्री हों तो आ सकता हूं?’’ मि. जय थे.
‘‘आइए, मि. जय, आ जाइए.’’
‘‘सर, ये 3 कांट्रैक्ट आप की अनुपस्थिति में साइन किए गए थे. इन्हें देख लीजिए.’’
कांट्रैक्ट पर नजर डालते हुए वे बोले, ‘‘मि. जय, ध्यान रखिएगा कि कांट्रैक्ट की शर्तों का पूरा पालन हो. मुझे क्लाइंट्स से कोई शिकायत सुनने को न मिले.’’
मि. जय ने आदित्य की ओर देख सहमति में सिर हिलाया. गे्रशर्ट और ब्लैक टाई में उन का व्यक्तित्व निखर रहा था. गोल्डन फ्रेम का चश्मा उन को बहुत सूट करता है. कौन कहेगा कि उन की उम्र 55 वर्ष है. 40 से ज्यादा के नहीं लगते हैं. स्मार्टनैस और लुक इंसान के नेक विचारों से भी आते हैं. होंठों पर हमेशा मुसकान खिली रहती है और चेहरे पर एक अजीब सी शांति. उन के पास आ कर लगता मानो हर तरफ जीवन हिलोरें ले रहा हो. इतनी जीवंतता...आखिर कैसे वे दुखों के साथ यों सामान्य रह पाते हैं?
‘‘एनी थिंग ऐल्स, मि. जय? बाई द वे, आप की बेटी के लिए कोई लड़का मिला? देखिए, जल्दबाजी मत करिएगा, आप की बेटी पढ़ीलिखी है, अच्छी नौकरी कर रही है. उपयुक्त साथी ही उसे मिलना चाहिए.’’
‘‘थैंक्स, सर,’’ मि. जय इतना ही बोल पाए. जिस इंसान की खुद की जिंदगी वीरान हो वह दूसरों की हर छोटी बात याद रखे तो उस के लिए मन में सम्मान के सिवा और कुछ आ ही नहीं सकता है.
3 बज रहे थे. आदित्य को अब थोड़ी थकान महसूस होने लगी थी. ऐक्सिडेंट हुए 1 महीना हो चुका था, पर अभी डाक्टर ने चलनेफिरने से मना किया था. गोपाल की मदद से वे कमरे में रखे दीवान पर लेट गए. लेटे तो बंद आंखों ने फिर से बीती यादों को सामने ला खड़ा किया. शेफाली गुमसुम रहने लगी थी. यहां तक कि गौरव के प्रति भी उदासीन हो गई थी. कमरे में अकेले बैठी रहती. वे कहीं चलने को कहते तो वह मना कर देती. अंदर की घुटन फिट्स के रूप में बाहर आने लगी. उसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे. जबतब चक्कर खा कर गिर जाती. किसी चीज की सुधबुध नहीं रहती थी. हंसना तो मानो भूल गई थी. जब उसे हार्टअटैक आया तो उन के होश ही उड़ गए थे. बेटे का जाना और फिर शेफाली का लगातार बीमार रहना... बेशक वे परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने पर विश्वास नहीं करते थे, पर दर्द तो उन्हें भी होता था.