मोक्ष का जिक्र हर धर्म में है. यह इसलिए ताकि मेहनत का फल मांगने वालों को उन के मेहनताने से दूर किया जा सके व उन्हें पंडेपुजारियों द्वारा समझाया जा सके कि असल फल या मुक्ति तो मोक्ष मिलने पर है. आज भी इस काल्पनिक मोक्ष के चक्कर में कई परिवार उजड़ रहे हैं.

लगभग 140 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में कोई एक आदमी भी मय सबूत के यह दावा पेश नहीं कर सकता कि वह धर्मग्रंथों में वर्णित 84 लाख योनियों में से पिछले जन्म में क्या था. मानव योनि में ही था या कोई शेर, चीता सरीखा हिंसक जंगली पशु था या उड़ने वाला कोई तोता, कौवा, चिडि़या था या कि मछली, मेढक, मगरमच्छ था.

यह सवाल मोक्ष के मद्देनजर बेहद मौजूं है जिस के बारे में आम धारणा यह है कि जीवनमृत्यु यानी जन्ममरण के चक्र से मुक्ति पा जाने को ही मोक्ष कहते हैं और यह मोक्ष हर किसी को यों ही नहीं मिल जाता.

मोक्ष के लिए बड़े धार्मिक जतन करने पड़ते हैं जिन में से पहला तो यह है कि आदमी कोई पाप न करे. बस, पुण्य ही पुण्य करता रहे. पाप क्या और पुण्य क्या, इस के लिए आप को अपने नजदीकी पंडित से संपर्क साधना चाहिए जो हजारदोहजार रुपए में बता देगा कि पाप और पुण्य इतनेउतने तरीके के और ऐसेवैसे होते हैं. लेकिन आप कितनी भी कोशिश कर लें पाप करने से नहीं बच सकते, इसलिए आप की मोक्ष की कामना पूरी नहीं होने वाली.

तो फिर हर किसी को काल्पनिक मोक्ष की हवस क्यों और वह कैसे पूरी हो, इस के लिए धर्म के दुकानदारों ने कई तरीके अर्थात विधिविधान फैला रखे हैं जिन पर अमल कर के आप मोक्ष को पा सकते हैं. इन में दान और एकादशी का व्रत प्रमुख हैं और शर्त यह कि दान भी सिर्फ ब्राह्मण को ही दिया जाए, तभी मनोकामना पूरी होती है.

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