Gustaakh Ishq Movie Review : इश्क का फंडा सदियों से चला आ रहा है. आज भी लोग ‘लैला मजनूं’, ‘हीर रांझा’, ‘अनारकली’, ‘मधुमति’ आदि फिल्मों की चर्चा करते हैं. इश्क का जादू आज भी बरकरार है. 70-80 के दशक में इश्क के सब्जेक्ट पर ‘शोले’, ‘कभीकभी’, ‘सिलसिला’, ‘मैं ने प्यार किया’ जैसी फिल्में बनीं जो इश्क के सार को विभिन्न दृष्टिकोणों से दर्शाती है.
1960 में आई ‘मुगलेआजम’ को भला कौन भूला होगा. आज भी लोग शहजादा सलीम और अनारकली के इश्क की चर्चा करते हैं. इश्क शीर्षक वाली फिल्में ‘इश्क,’ ‘इश्क विश्क’ ने इश्क के सार को बेहतरीन तरीके से प्रेजेंट किया.
‘इश्क’ सब्जेक्ट पर बनी फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ तो 25 साल से अधिक सिनेमाघरों में चली. अजय देवगन और काजोल को ले कर भी ‘इश्क’ शीर्षक से फिल्म बनी. लब्बोलुआब यह है कि इश्क सदियों से होता आया है और आगे भी होता रहेगा, भले ही उस के जाहिर करने में बदलाव होते रहें.
90 के दशक में इश्क पर बनने वाली फिल्मों जैसी एक और फिल्म ‘गुस्ताख इश्क’ रिलीज हुई है. यह फिल्म पुरानी दिल्ली की गलियों और पुराने जमाने के रोमांस पर आधारित है. इस फिल्म की कॉस्ट्यूम डिजाइन मनीष मल्होत्रा ने बनाई है. इसे देखते वक्त आप पुरानी दिल्ली और पंजाब में खो जाएंगे. धीमी गति के इस इश्क में वह गरमाहट नहीं है. अगर आप धैर्यपूर्वक इसे देखेंगे तो तभी इस गुस्ताख इश्क का मजा ले पाएंगे.
कहानी 1998 में दरियागंज से शुरू होती है. नवाबुद्दीन रहमान उर्फ पप्पन (विजय वर्मा) अपनी मां (नताशा रस्तोगी) और छोटे भाई जुम्मन (रोहन वर्मा) के साथ बड़ी मुश्किल से जीवन यापन कर रहा है. वह कर्ज में डूबे अपने मरहूम पिता की आखिरी निशानी प्रिंटिंग प्रेस को बचाना चाहता है. एक सड़क छाप लेखक फारूख (लिलिपुट) से शायर अजीज (नसीरुद्दीन शाह) का नाम सुनकर पप्पन उन की किताब छापने के लिए हां कह देता है.
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