‘‘बौद्धों ने कभी सिर मुड़ाना नहीं छोड़ा सिखों ने भी सदैव पगड़ी का पालन किया मुसलमान ने न दाढ़ी छोड़ी, न ही 5 बार नमाज ईसाई संडे को चर्च जरूर जाता है फिर हिंदू अपनी पहचान संस्कारों से क्यों दूर हुआ…

कहां लुप्त हो गए-जनेऊ, शिखा, यज्ञ, शस्त्र, शास्त्र, नित्य मंदिर जाने का संस्कार…

हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे हैं.

अपनी पहचान बनाओ, अपने मूल संस्कारों को अपनाओ.’’

इस तरह की एक नहीं, बल्कि दर्जनों भड़काऊ पोस्ट नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं जिन के असल माने यही हैं कि आम लोगों ने उन्हें और भाजपा को सिर्फ  और सिर्फ हिंदुत्व के मुद्दे पर चुना है. देश का विकास हो, रोजगार के मौके बढ़ें, नई फैक्टरियां और कारखाने लगें, पुल और सड़कें बनें, अन्नदाता किसानों की बदहाली दूर हो और स्कूल व अस्पताल बनें, ये सब लोगों की प्राथमिकता में नहीं रह गए हैं. लोगों की प्राथमिकता यह है कि मोदीजी कश्मीर समस्या सुलझाने के नाम पर सेना का मनमाना इस्तेमाल करें, देश में मुसलमानों की हालत और बदहाल हो और हिंदू सिर्फ कट्टर बनें ही नहीं, बल्कि दिखें भी.

इस बाबत भी बाकायदा सोशल मीडिया पर ही नरेंद्र मोदी से अपील की जा रही है कि वे घाटी में कश्मीरी पंडितों को बसाएं, आतंकवादियों को खदेड़ें और समान नागरिक संहिता लागू करें. समान संहिता लागू कराने में वे हिंदू विवाह विधि को भी नहीं छोड़ेंगे, यह पक्का है, जिस में पुजारियों को मोटी दक्षिणा मिलती है.

अगर नरेंद्र मोदी वाकई इसलिए चुने गए हैं तो ऐसा होना भी मुमकिन है. लेकिन इस के बाद क्या…? इस सवाल का जवाब शायद ही कोई दे पाएगा. सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस के बाद मोदीजी से कहा जाएगा कि देश को बाकायदा हिंदू राष्ट्र घोषित करते हुए जातिगत आरक्षण खत्म करें जिस से हिंदुओं के इस देश में फिर से विधिवत वर्णव्यवस्था नए रूप में बहाल हो सके. यह सब से बड़ा एजेंडा है हिंदू राष्ट्र का क्योंकि कट्टर हिंदू आज किसी बात से परेशान है तो अछूतों व उन के मुद्दों के सामाजिक, राजनीतिक बढ़ते रुतबे के कारण.

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जिन्हें इस बात और सवर्णों की मंशा पर शक हो उन्हें ज्यादा से ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर बिताना चाहिए. वहां नफरत के शोले इफरात से फौरवर्ड हो रहे हैं जिन का मकसद यह है कि देश को पहले इसलाममुक्त किया जाए, फिर बाकी का एजेंडा घोषित किया जाएगा. आइए, ऐसी ही एक और पोस्ट पर नजर डालें जिस से साबित होता है कि देश हिंदू राष्ट्र बनने की तरफ तेजी से अग्रसर हो रहा है-

‘‘मुसलिम ने मोदी से कहा 10-15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो एक भी हिंदू नहीं बचेगा तो मोदी ने बोला हटाई तो थी गुजरात से 7-8 मिनटों के लिए…’’

इस से आगे 10-12 लाइनें और हैं जिन्हें यहां लिखना व प्रकाशित करना सही नहीं है.

क्या हैं माने

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इन मैसेजों से स्पष्ट है कि देश में कितनी कट्टर मानसिकता के लोग मौजूद हैं. इन संदेशों में 2 तरह की बातें कही जा रही हैं. पहली यह कि अब हिंदुओं को जागना होगा और दूसरी, मुसलमान इस देश के सब से बड़े दुश्मन हैं. जिन का सफाया नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं. तमाम और मुद्दों को हाशिए पर रखते उन्हें दोबारा चुना गया है ताकि 2024 तक देश हिंदू राष्ट्र बन सके. कैसे नरेंद्र मोदी मुसलमानों को सबक सिखा सकते हैं, इस का भी उदाहरण गोधरा कांड के जरिए दिया जा रहा है.

सोशल मीडिया बिलाशक लोगों की मानसिकता और भावनाओं को समझने का सब से बड़ा प्लेटफौर्म है. इन दिनों इस पर जो मैसेज वायरल हो रहे हैं उन से लगता है कि आम लोगों की नरेंद्र मोदी से अपेक्षाएं सिर्फ कश्मीर मुद्दे और मुसलमानों तक ही सिमटी हुई हैं. लेकिन यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि इस तरह की पोस्ट बनाने वाले मुट्ठीभर सवर्ण हैं और वही इन का प्रचारप्रसार कर रहे हैं. उन के पास समय और भक्ति की कमी नहीं है.

गरीब, दलितों और मुसलमानों का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करता क्योंकि वह जैसेतैसे अपना पेट पालने में जुटा है.

यहां यह सवाल बड़ा दिलचस्प है कि इन धार्मिक और कट्टरवाद फैलाती पोस्टों का राजनीति से क्या संबंध है और हिंदीभाषी राज्यों में भाजपा को जो अप्रत्याशित सफलता मिली क्या उस में दलितों और मुसलमानों की भागीदारी या झुकाव भाजपा की तरफ नहीं था? भाजपा अगर सिर्फ सवर्णों और हिंदूवादियों की पार्टी है, जिस का मकसद हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना है तो क्या उस से दलितपिछड़े भी सहमत हैं? अगर हैं, तो क्या वे समाज में अपनी वैदिककालीन स्थिति स्वीकारने को भी तैयार हैं?

निश्चितरूप से 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे देख इस का जवाब स्पष्ट रूप से कोई नहीं दे सकता क्योंकि भाजपा ने ‘सब का साथ सब का विकास’ की बात भी प्रमुखता से कही थी. ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि दलित व पिछड़ों ने उसे इन में से किस मुद्दे पर वोट दिया, हिंदू राष्ट्र निर्माण के लिए या फिर विकास के लिए.

जानबूझ कर माहौल बिगाड़ने पर उतारू हो आए सवर्ण इतिहास को भी तोड़मरोड़ कर पेश कर रहे हैं कि हिंदुओं के इस इकलौते देश में बच्चों को औरंगजेब, हुमायूं और अकबर जैसे मुगल शासकों की गाथाएं पढ़ाई जाती हैं. महाराणा प्रताप, शिवाजी और रानी लक्ष्मीबाई नहीं पढ़ाए जाते, इस से बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है. पिछले दिनों एक न्यूज चैनल की डिबेट में भाजपा के एक प्रवक्ता इस बात पर बेहद आक्रामक हो कर इस बाबत दलीलें देते हुए भी दिखाई दिए.

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ये और इस तरह की बातें कितने बड़े पैमाने पर अब की जाने लगी हैं, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक पोस्ट में तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ही मुसलिम साबित कर दिया गया है, ठीक उसी तरह जिस तरह 2014 के पहले से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को मुसलमानों का वंशज बताते यह साबित कर दिया गया कि उन के दादा यानी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी तो फिरोज गांधी, बल्कि जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू भी मुसलमान थे. यानी नरेंद्र मोदी के पहले तक अप्रत्यक्ष रूप से शासन मुसलमानों का ही रहा है और अब हिंदुओं की बारी है. भाजपा सरकारें योगी और मोदी के खिलाफ महसूस की जाने वाली पोस्ट पर तुरंत पुलिस कार्यवाही शुरू कर देती हैं पर इन को छू भी नहीं रहीं.

राजनीति धर्म को ज्यादा ताकत देती है या धर्म राजनीति को, यह बात कतई सोचने की नहीं रह गई है क्योंकि 2019 का चुनाव धार्मिक मुद्दों पर लड़ा गया था और राहुल गांधी का तमाम वक्त खुद को हिंदू साबित करने की कोशिश में जाया हुआ था.

नरेंद्र मोदी हिंदुत्व के नायक के तौर पर पेश किए गए और अब उन की भूमिका को यह कहते विस्तार दिया जा रहा है कि बालाकोट एयर स्ट्राइक तो एक ट्रेलर भर था, असली फिल्म तो अभी बाकी है. यानी 2024 तक जम्मूकश्मीर से कानून की धाराएं 370 और 35-ए खत्म हो जाएंगी और देश हिंदू राष्ट्र बनने की दिशा में निर्णायक कदम उठा चुका होगा. अफसोस की बात तो यह है कि इस दुष्प्रचार में नरेंद्र मोदी को राजनीति के नहीं, बल्कि हिंदुत्व के नायक और अवतार के रूप में पेश किया जा रहा है.

इस धार्मिक ड्रामे का मकसद बेहद साफ है कि बाद में जो होगा सो होगा, लेकिन हालफिलहाल तो मुसलमानों को इतना दबा दिया जाए कि वे सालों तक सिर न उठा पाएं. इस बवंडर में कोई लोकतंत्र  और संविधान की बात नहीं कर रहा और जो कर रहे हैं वे साफतौर पर यह भी कहने लगे हैं कि अगर देश है तो आखिरकार हिंदुओं का ही, फिर इस पर तर्ककुतर्क क्यों?

निशाने पर दलित

भाजपा के प्रचंड बहुमत में आने और नरेंद्र मोदी के फिर प्रधानमंत्री बनने से बौराए सवर्ण एक तीर से दूसरा मुख्य निशाना साध रहे हैं. ऊपर बताई पहली पोस्ट में जिन धार्मिक प्रतीकों और कर्मकांडों को अपनाने की बात की गई है वे दलितों के लिए कभी नहीं रहीं. 2014 के पहले से ही दलितों के हाथ में छोटेमोटे देवीदेवता थमा दिए गए थे लेकिन उस के बाद के 5 साल में तो दलितों के छोेटेछोटे मंदिरों की बाढ़ सी देशभर में आ गई. इन सब में राम, कृष्ण, विष्णु, लक्ष्मण को पूजने का अधिकार दलितों व पिछड़ों को नहीं दिया गया है. वे बहुत स्थानीय देवीदेवता पूजते हैं.

यह षड्यंत्र सालों से बड़े पैमाने पर रचा जा रहा था जिस का आंशिक खुलासा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कहते किया था कि हनुमान दलित थे और फिर हनुमान को ही हथियार की तरह इस्तेमाल करते उन्होंने बड़े फख्र से लोकसभा चुनावप्रचार में यह भी कहा था कि उन के (मुसलमानों) के पास अली है तो हमारे (हिंदुओं के) पास बजरंग बली है. रामायण व महाभारत में जिस तरह का उल्लेख हनुमान के बारे में है, वह वही है जो आदित्यकाल में ही मोदी ने कहा.

बात कतई नई नहीं है. मुगलकाल के दौर से ही दलितों को मुसलमानों से धर्म के नाम पर लड़वाया जाता रहा है. दलित भी यह सोच कर मुसलमानों से भिड़ जाया करते थे कि ऐसा करने से ऊंची जाति वाले हिंदू खुश हो कर उन्हें अपना लेंगे और मुख्यधारा से जुड़ने का मौका देंगे जिस से वे भी स्वाभिमान और आत्मसम्मान से जी सकेंगे. हालांकि ऐसा कभी नहीं हुआ. सेनाओं से बढ़ते दलितों और पिछड़ों को दुत्कार ही मिली है.

इस में शक नहीं कि 2014 और 2019 दोनों आम चुनावों में कुछ दलितों ने भाजपा को वोट दिया लेकिन इस का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि इस समुदाय ने ऊंची जाति वाले हिंदुओं की यह शर्त स्वीकार कर ली है कि भैरव, शनि, काली, राहू, केतु और नंदी जैसे देवीदेवता तुम ले लो और विष्णु, राम और कृष्ण हमारे रहेंगे. शिव को सभी लोग इच्छानुसार पूज सकते हैं लेकिन दलित बस्तियों में उन का भी मंदिर नहीं होगा.

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इतना ही नहीं, यह बात भी अब किसी से छिपी नहीं रही है कि दलित जातियों के देवीदेवताओं और महान पुरुषों के पूजापाठ का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है. कबीर, रैदास और विश्वकर्मा सहित तमाम दलित विचारकों की जयंतियां सरकारी स्तर पर समारोहपूर्वक मनाई जाने लगी हैं. भीमराव अंबेडकर भी नहीं बख्शे गए हैं जिन्हें दलित समुदाय अपना भगवान मानता है और बाकायदा उन की पूजा करने लगा है.

दिक्कत यह है कि दलित समुदाय ही पिछले 5 सालों में 2 फाड़ हो गया है. उत्तर प्रदेश के नतीजों ने साफ कर दिया है कि बसपा वहीं ज्यादा जीती है जहां जाटव, चमार समुदाय के लोग ज्यादा हैं. बाकी दलितों, वाल्मीकि, निषाद वगैरह ने थोक में भाजपा के राष्ट्रवाद के नाम पर उसे वोट दिए हैं.

इन समीकरणों के दूरगामी परिणाम जब निकलेंगे तब क्या होगा, इस सवाल से पहले देश के मौजूदा कट्टर होते माहौल पर चिंता की जानी जरूरी है जिस में सवर्ण वर्णव्यवस्था थोपने पर उतारू हो रहे हैं और अब तो बड़े फख्र से ऊंची जाति वाले यह भी कहने लगे हैं कि अगर नरेंद्र मोदी मंदिर जाते हैं, पूजापाठ, हवन, अभिषेक करते हैं तो इस में हर्ज क्या है. यह तो हम हिंदुओं के लिए गर्व की बात है कि आजादी के बाद पहला प्रधानमंत्री हमें मिला जो अपने धर्म और संस्कृति को सम्मान सार्वजनिक रूप से देता है.

हर्ज ही हर्ज

ये मुट्ठीभर ऊंचे हिंदू, दरअसल, भरे पेट हैं जिन्हें देश, संविधान और लोकतंत्र जैसे शब्द बकवास लगते हैं. ये चाहते हैं कि धरती, आसमान, हवा, पानी सहित अंतरिक्ष भी इन का रहे और मुसलमान या तो खदेड़ दिए जाएं या फिर दलितों की तरह इतने दबा दिए जाएं कि कम से कम 2050 तक तो सिर न उठा पाएं.

इन ऊंची जाति वालों की मंशा आरक्षण खत्म करने की है और इस बाबत ही वे सोशल मीडिया पर आरक्षण विरोधी पोस्ट वायरल किया करते हैं जिन का मकसद दलितों की हिम्मत तोड़ना होता है. कुछ बुद्धिमान दलित ही इस चाल को समझ पाते हैं और दूसरे दलितों को खतरे से आगाह भी कर रहे हैं. अब इस दिलचस्प जंग में कौन कितना कामयाब रहा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

लेकिन हार देश और अर्थव्यवस्था रहे हैं जिन की परवा या चिंता किसी को नहीं कि जब बेरोजगारी का बम फट रहा है तो अब हालात क्या हो सकते हैं. जिस तेजी से जातिवाद और धार्मिक द्वेष बढ़ रहा है वह कभी अगर दंगों की शक्ल में सामने आया तो क्या होगा. पश्चिम बंगाल में तो आएदिन हिंसा होने लगी है. यह सोचना फुजूल की बात है कि वहां तृणमूल और भाजपा कार्यकर्ता लड़तेमरते हैं, बल्कि यह लड़ाई कट्टर हिंदुओं और निचले हिंदुओं के बीच की है जिस में भाजपा अपना फायदा लोकसभा चुनाव में 18 सीटों की शक्ल में उठा चुकी है. अब उस की नजरें विधानसभा चुनाव पर हैं.

नरेंद्र मोदी लोगों के रोल मौडल बनें, यह कतई हर्ज की बात नहीं. हर्ज की बात है निरंकुश होते कट्टरवादियों पर किसी अंकुश का न होना. आज जो लोग सोशल मीडिया पर द्वेष फैलाते हल्ला मचा रहे हैं वे ही कल सड़कों पर भी आ सकते हैं. इस खतरे से परे नरेंद्र मोदी और अमित शाह का देवताओं की तरह मुसकराते, सबकुछ खामोशी से देखते रहना एक विस्फोट को आमंत्रण है जिस के जिम्मेदार उन से ज्यादा वे सवर्ण होंगे जो माहौल खराब कर रहे हैं.

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