आज से कई साल पहले की बात है. अपने औफिस के किसी काम से मैं दिल्ली में बने अमेरिकी दूतावास में गया था. भीतर जा कर मैंने देखा कि वहां जिस के साथ भी मेरी निगाहें मिलीं वह मुझे देख कर मुसकुराया. पहले-पहल तो मैं हैरान हुआ कि माजरा क्या है? कहीं मेरे चेहरे पर तो कुछ नहीं लगा है? लेकिन बाद में जब वहां की एक भारतीय सफाई कर्मचारी ने मुसकराते हुए मुझे 'गुड मौर्निंग' कहा तो मेरे दिमाग की बत्ती जली कि भई यहां का तो रिवाज ही ऐसा है. जब भी किसी अजनबी से मिलो तो अपनेपन के साथ मुस्कुरा कर.

एक सुबह मैट्रो से औफिस जाते समय मुझे जब यह बात याद आई तो मैं ने सोचा कि क्यों न मैं आज मैट्रो में सवारी कर रहे इन अनजान लोगों को देख कर मुस्कुराऊं? देखते हैं कि मुझे कैसा रिस्पौन्स मिलता है? क्या वे मेरी मुस्कुराहट का जवाब का मुस्कुरा कर देंगे?
सही कहूं तो मेरा ऐसा करना पहले तो मुझे ही बड़ा मुश्किल लगा. मन में एक अनजान डर था कि कहीं किसी की डांट न खानी पड़ जाए सुबह-सुबह खासकर किसी महिला या लड़की से.

फिर भी मैं ने हिम्मत कर के 4-5 लोगों पर यह बात आजमाई. पर जैसा सोचा था वैसा कोई नतीजा मिला नहीं. किसी ने भी मेरी मुस्कुराहट को संजीदगी से नहीं लिया. लड़कियों ने तो एकदम से इग्नोर कर दिया. एक ने तो अपनी खूबसूरत आंखों से सवाल किया कि क्या परेशानी है?

तो फिर अमेरिकन दूतावास में वहां काम करने वालों को ऐसा निर्देश क्यों दिया गया था कि वे जिस किसी से निगाहें मिलाएं तो मुस्कुरा दें?

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