गंगा किनारे बसे धार्मिक शहर इलाहाबाद का अपना अलग धार्मिक महत्त्व है, जिसे घाट किनारे बैठे पंडे ज्यादा बेहतर जानते हैं. ये पंडे न केवल मुफ्त की दक्षिणा उड़ाते हैं, बल्कि इन्हें देश भर से आई महिलाओं के देह दर्शन भी फ्री में होते हैं. अलसुबह उठ कर पंडे अपनी पूजापाठ की दुकान का सामान ले कर अपने ठीए पर पहुंच जाते हैं और देर रात तक वहां मुफ्त का चंदन घिसते रहते हैं.
महेश प्रसाद अवस्थी भी एक ऐसे ही ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ था. उस का ही नहीं बल्कि उस के पूर्वजों का भी पुश्तैनी धंधा इलाहाबाद में गंगा किनारे पूजापाठ का था. बचपन से ही उस का घाट पर आनाजाना आम बात थी.
इस दौरान उसे समझ आ गया था कि देश भर से आए श्रद्धालु अपनी मरजी से मोक्ष मुक्ति के चक्कर में पैसा पंडों को देते हैं और घाट पर बैठ कर देखो तो चारों तरफ महिलाएं नहाती दिख जाती हैं.
किशोर होतेहोते महेश की यौन जिज्ञासाएं भी सर उठाने लगी थीं. वह नहाती महिलाओं को देखता था तो एक करंट सा उस के शरीर में दौड़ जाता था. डुबकी लगा कर जो महिलाएं गंगा के बाहर निकलती थीं, उन के गीले कपड़े शरीर से चिपक जाते थे. ऐसे में उस की नजरें अकसर महिलाओं के शरीर और खासतौर से उभारों पर टिक जाती थीं जो कपड़ों से ढके होने के बाद भी अनावृत से रहते थे.
यह उस की मजबूरी थी कि वह ऐसे दृश्य चुपचाप देखता भर रहे. इस की वजह यह थी कि पंडों को अपनी दुकान चलाए रखने के लिए काफी नियमधरम से रहना पड़ता है. अगर जरा सी भी बेचैनी या लंपटता वे उन महिलाओं के मामले में दिखाएंगे तो मुफ्त का पैसा मिलना तो बंद होगा ही, साथ ही पिटाई होगी सो अलग. इसलिए समझदार पंडे मंत्रोच्चारण करते समय आमतौर पर सिर तक नहीं उठाते और उठाते भी हैं तो इस तरह कि उन पर कोई आरोप न लगा पाए.