गंगा किनारे बसे धार्मिक शहर इलाहाबाद का अपना अलग धार्मिक महत्त्व है, जिसे घाट किनारे बैठे पंडे ज्यादा बेहतर जानते हैं. ये पंडे न केवल मुफ्त की दक्षिणा उड़ाते हैं, बल्कि इन्हें देश भर से आई महिलाओं के देह दर्शन भी फ्री में होते हैं. अलसुबह उठ कर पंडे अपनी पूजापाठ की दुकान का सामान ले कर अपने ठीए पर पहुंच जाते हैं और देर रात तक वहां मुफ्त का चंदन घिसते रहते हैं.

महेश प्रसाद अवस्थी भी एक ऐसे ही ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ था. उस का ही नहीं बल्कि उस के पूर्वजों का भी पुश्तैनी धंधा इलाहाबाद में गंगा किनारे पूजापाठ का था. बचपन से ही उस का घाट पर आनाजाना आम बात थी.

इस दौरान उसे समझ आ गया था कि देश भर से आए श्रद्धालु अपनी मरजी से मोक्ष मुक्ति के चक्कर में पैसा पंडों को देते हैं और घाट पर बैठ कर देखो तो चारों तरफ महिलाएं नहाती दिख जाती हैं.

किशोर होतेहोते महेश की यौन जिज्ञासाएं भी सर उठाने लगी थीं. वह नहाती महिलाओं को देखता था तो एक करंट सा उस के शरीर में दौड़ जाता था. डुबकी लगा कर जो महिलाएं गंगा के बाहर निकलती थीं, उन के गीले कपड़े शरीर से चिपक जाते थे. ऐसे में उस की नजरें अकसर महिलाओं के शरीर और खासतौर से उभारों पर टिक जाती थीं जो कपड़ों से ढके होने के बाद भी अनावृत से रहते थे.

यह उस की मजबूरी थी कि वह ऐसे दृश्य चुपचाप देखता भर रहे. इस की वजह यह थी कि पंडों को अपनी दुकान चलाए रखने के लिए काफी नियमधरम से रहना पड़ता है. अगर जरा सी भी बेचैनी या लंपटता वे उन महिलाओं के मामले में दिखाएंगे तो मुफ्त का पैसा मिलना तो बंद होगा ही, साथ ही पिटाई होगी सो अलग. इसलिए समझदार पंडे मंत्रोच्चारण करते समय आमतौर पर सिर तक नहीं उठाते और उठाते भी हैं तो इस तरह कि उन पर कोई आरोप न लगा पाए.

इलाहाबाद कहने को ही पवित्र और धार्मिक शहर है, नहीं तो वहां की गलियों में क्याक्या और कैसेकैसे पाप नहीं होते, यह सब महेश को काफी कम उम्र में ही समझ आ गया था. घाट से दूर शहर की गलियों तक में उस ने देखा था कि हर जगह अनाथ लाचार और बेबस औरतों का देह शोषण आम बात है जिस पर कोई कुछ नहीं बोलता.

ये वे औरतें होती हैं, जिन का कोई नहीं होता या जिन्हें उन के सगे वाले भीख मांग कर गुजारा करने गंगा मैया के हवाले कर जाते हैं. खुद भीख मांग कर पेट भरने वाली ये महिलाएं दूसरों की हवस पूरी करने के काम आती हैं, जिन में सभ्य शहरियों से ले कर पंडे, इलाके के गुंडे बदमाश और पुलिस वाले तक शामिल होते हैं.

गंगा घाट से पनपी बुरी आदतें

किशोर महेश पर अपने विशालकाय और प्रतिष्ठित अवस्थी परिवार की वर्जनाओं का दबाव था. वह एक अजीब से विरोधाभास में फंसा था कि जिन कामों को पाप बताया जाता है, वही इस धार्मिक शहर में इफरात से फलतेफूलते हैं. यह देख कर वह हैरान रह जाता था लेकिन घाट पर जब भी आता था तो अर्धनग्न सी महिलाओं को देख कर बेकाबू सा होने लगता था.

अवस्थी परिवार की इलाहाबाद में अपनी एक अलग साख है और देश भर में उन के यजमान फैले हुए हैं, जो उस का काफी सम्मान करते हैं. इस की वजह इस परिवार द्वारा ईमानदारी से पुरोहिताई करना है. महेश जैसेजैसे बड़ा होने लगा तो घाट पर उस की हरकतें उस के घर वालों को नागवार गुजरने लगीं. वह अब पूरी बेशर्मी से महिलाओं को देखता था, जिस पर महिलाएं ऐतराज जताने लगीं तो उस के घर वालों ने घाट पर उस का आनाजाना बंद कर दिया.

मगर यह समस्या का हल नहीं था, बल्कि उसे और बढ़ावा देने वाली बात थी जो बीते दिनों भोपाल में साबित हुई. बुजुर्ग महेश प्रसाद अवस्थी इन दिनों जेल में हैं. आरोप है उस ने कई मूकबधिर युवतियों का यौनशोषण और बलात्कार किया. इस मामले को ले कर खूब हल्ला भोपाल सहित देश भर में मचा.

जब घाट पर उस का आनाजाना बंद हो गया तो पढ़ाई पूरी करने के बाद महेश को सेना में नौकरी मिल गई. तबादले होतेहोते वह भोपाल आ गया और यहीं से रिटायर भी हुआ. भोपाल में उस की खास जानपहचान हो गई थी, लिहाजा उस ने यहीं बसने का फैसला ले लिया था.

ऊपर से सामान्य और कर्मकांडी पंडितों जैसा दिखने वाला यह बूढ़ा भीतर से कितना असामान्य और कुंठित है, इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पाता था. रिटायरमेंट के बाद महेश को फिर किशोरावस्था के दिन याद आने लगे, जिन में वह उन्मुक्त हो कर घाट पर नहाती और नहा कर निकलती महिलाओं को देखता रहता था. और जब घाट से शहर जाता था तो लाचार और बेबस महिलाओं का खुलेआम यौनशोषण होते रोज देखता था.

खाली वक्त गुजारने और दूसरे रिटायर्ड मिलिट्री वालों की तरह कुछ करने की सूझी तो एक खुराफाती आइडिया उस के दिमाग में आया तो उस की बांछें खिल उठीं. यह आइडिया था अपाहिजों के लिए आश्रम खोलने का, जिस पर उस ने अमल भी कर डाला. उस के पीछे उस की असल मंशा क्या थी, यह कोई भी 14 साल तक समझ नहीं पाया.

जैसे इलाहाबाद में गंगा का धार्मिक महत्त्व है, वैसे ही भोपाल से 78 किलोमीटर की दूरी पर बसे शहर होशंगाबाद में नर्मदा नदी का है. फर्क सिर्फ इतना है कि नर्मदा किनारे पंडावाद कम है और यहां देश भर के श्रद्धालु नहीं आते. यहां मध्य प्रदेश और उस से सटे राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान सहित छत्तीसगढ़ के श्रद्धालु इफरात से होशंगाबाद विभिन्न तीजत्यौहारों पर आते हैं.

होशंगाबाद के नजदीक मालाखेड़ी मोहल्ले में महेश ने मूकबधिरों के लिए एक हौस्टल खोल डाला. इस के लिए उस ने काफी भागादौड़ी की थी और कई सरकारी विभागों की परिक्रमा भी करनी पड़ी थी.

एक तो ब्राह्मण और ऊपर से रिटायर्ड मिलिट्री पर्सन, यह देख कर ही लोग मान लेते थे कि उस में समाजसेवा का जज्बा होना स्वाभाविक बात है. लिहाजा हर कहीं उस के काम आसानी से होते गए. जहां जरूरत पड़ी, वहां उस ने घूस भी दी और चापलूसी भी की.

मालाखेड़ी वाला उस का आश्रम यानी हौस्टल चल निकला. जल्द ही सामाजिक न्याय विभाग उस के आश्रम में मूकबधिरों को भेजने लगा. इस से महेश को खर्च चलाने में काफी सहूलियत हो गई, क्योंकि सरकारी विभाग छात्रों या मूकबधिरों को जिस आश्रम में भेजता है, उस आश्रम को उन का पूरा खर्चा भी देता है.

महेश ने हौस्टल में छात्रों की देखभाल के लिए कविता चौहान नाम की महिला को बतौर केयर टेकर रखा. यह साल 2000 की बात है. 17 साल में सैकड़ों मूकबधिर इस आश्रम में रहे, जिसे स्थानीय लोग विकलांगों का हौस्टल भी कहते थे.

सन 2017 में नामालूम वजहों के चलते यह आश्रम बंद हो गया तो महेश अवस्थी ने भोपाल की उपनगरी बैरागढ़ में एक दूसरा आश्रम खोल लिया, जिस का नाम उस ने साईं विकलांग एवं अनाथ सेवाश्रम रखा.

अब तक सरकारी विभागों सहित प्रदेश भर की सामाजिक संस्थाओं में महेश प्रसाद अवस्थी का नाम पहचाना जाने लगा था, इसलिए बैरागढ़ वाला आश्रम भी चल निकला. यहां भी जरूरत और वक्त के मारे मूकबधिरों की लाइन लगने लगी. इन में लड़कियों की संख्या ज्यादा होती थी.

70 साल के बूढ़े महेश प्रसाद अवस्थी के पापों का घड़ा शायद न फूटता, अगर होशंगाबाद निवासी मूकबधिर युवती पूजा (बदला नाम) पहल न करती और साइन लैंग्वेज की जानकार रीवा की रहने वाली श्रद्धा शर्मा उस की मदद न करतीं.

ऐसे खुला राज

इसी साल 10 फरवरी को 18 वर्षीय पूजा की शादी उस की तरह ही होशंगाबाद के मूकबधिर युवक अमित (बदला नाम) से हुई थी. ऐसी शादियों पर मीडिया खूब तवज्जो देता है. आम लोग भी अप्रत्यक्ष ही सही, मूकबधिरों की खुशी में शामिल हो जाते हैं. कई नेता और अधिकारी जो कभी इन की सुध तक नहीं लेते, वे भी मंडप में आशीर्वाद देने जरूर पहुंच जाते हैं, जिस से अगले दिन अखबारों में उन के नाम व फोटो छपे.

पूजा और अमित की शादी में पंडित इशारों में दोनों से बात करते विधिविधान से शादी संपन्न करवा रहा था. वे दोनों भी मंडप में बैठे अपनी साइन लैंग्वेज में आम दूल्हादुलहन जैसे बात कर रहे थे.

अमित शासकीय सेवा में है, इसलिए शादी के बाद इन दोनों को कोई खास दिक्कत पेश नहीं आई और दोनों दुनियाजहान से दूर अपना एक अलग जहां बसा बैठे. पूजा अब आम गृहिणियों की तरह घर संभालने लगी थी. अमित की इच्छा थी कि अगर पूजा बीए की पढ़ाई पूरी कर ले तो उसे भी सरकारी नौकरी मिल सकती है.

इस से घर की आमदनी तो बढ़ेगी, साथ ही पूजा का वक्त भी कट जाएगा. पूजा इस प्रस्ताव पर सहमत हो गई तो अमित ने उस का दाखिला होशंगाबाद के एक कालेज में करवा दिया.

गलत नहीं कहा जाता कि प्यार की कोई भाषा नहीं होती, बल्कि प्यार खुद अपने आप में एक भाषा होता है. यह बात अमित और पूजा को देख समझी जा सकती थी, जो नए जोड़ों की तरह एकदूसरे में डूबे रहते थे. अब इन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं रह गया था कि लोग उन के बारे में क्या सोचते हैं.

पूजा अमित को खुश रखने का हरसंभव कोशिश करती थी, लेकिन जाने क्यों अमित को उस के चेहरे पर अकसर एक उदासी सी दिखती थी. लगता था मानो वह कुछ कहना चाह रही हो, पर किसी वजह से कह नहीं पा रही है. इस बाबत अमित ने कई बार पूजा से पूछा भी, लेकिन वह हर बार टाल जाती.

पर वास्तव में पूजा अपने दिलोदिमाग और आत्मा पर एक बोझ ले कर जी रही थी. अमित अंदाजा भर लगा सकता था कि आखिर ऐसी कौन सी बात है, जो पूजा उस पर भी विश्वास नहीं कर रही है. लेकिन कुछ न कुछ बात जरूर है, इतना वह समझ गया था.

पूजा पर किसी तरह का दबाव न बना कर अमित ने प्यार से काम लिया तो एक दिन उस की बांहों में समाई पूजा के दिल का लावा आंखों के रास्ते बह निकला. अमित ने उसे प्यार दिया तो पूजा ने अपने साथ घटी सारी घटना बता दी, जिसे सुन कर अमित के होश उड़ गए.

पूजा ने रोते हुए बताया कि मालाखेड़ी आश्रम में जब वह रहती थी तो वहां के संचालक महेश प्रसाद अवस्थी ने कोई एकदो बार नहीं बल्कि सैकड़ों बार उस के साथ बलात्कार किया था और इस दौरान उसे भीषण नारकीय यातनाएं भी दी थीं.

सन 2004 में जब पूजा 9 साल की थी तब उसे महेश अवस्थी के मालाखेड़ी आश्रम भेजा गया था. 2 साल तो ठीकठाक गुजरे लेकिन इस के बाद बूढ़े महेश की नीयत उस पर बिगड़ने लगी. किशोर होती पूजा अब काफी कुछ समझने लगी थी, लेकिन वह लाचारी के चलते महेश का विरोध नहीं कर पाती थी, जो अकसर उस के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ करता रहता था.

पूजा 10 साल की हो पाती, इस के पहले ही हैवान महेश ने इस कली को मसल डाला. विरोध करने पर वह उसे बुरी तरह मारतापीटता था. एक उम्मीद भरी निगाह उस ने केयरटेकर कविता पर डाली तो निराशा ही हाथ लगी.

कविता ने बजाय उसे सांत्वना देने के दोटूक कहा कि चुपचाप वह सब करती जाए, जो अवस्थी साहब कहते हैं. इतना ही नहीं, वह पूजा और दूसरी लड़कियों को सैक्स के बाबत उकसा कर उस के फायदे भी गिनाने लगी थी.

अमित पत्नी पर हुए अत्याचारों की दास्तान सुन कर दहल उठा, लेकिन वह कोई फिल्मी हीरो नहीं था जो आश्रम जा कर महेश प्रसाद अवस्थी की धुनाई कर उसे सबक सिखा पाता या उसे उस के किए की सजा दे पाता. इसलिए उस ने कानून का रास्ता चुन पूजा को इंसाफ दिलाने की पहल की.

अवस्थी के खिलाफ खोला मोर्चा

अमित का फैसला न केवल हिम्मत और समझ भरा था, बल्कि काबिलेतारीफ भी था. जिस में उस ने समझदारी दिखाते हुए पूजा को ही आम पतियों की तरह दोषी या अपवित्र नहीं माना, बल्कि उस ने उसे गले लगा कर वादा किया था कि महेश अवस्थी नाम के इस हैवान को सबक सिखाया जाना जरूरी है, जिस से उस के किए की सजा मिले, वरना यह पता नहीं कितनी और लाचारों का शोषण करता रहेगा.

लेकिन यह कोई आसान काम नहीं था. वजह हर कोई उन की भाषा नहीं समझ पाता, फिर इन के जज्बातों को कोई समझेगा, यह उम्मीद करना तो बेकार की बात है. हिम्मत के साथ इन्होंने श्रद्धा शर्मा से संपर्क साधा जो साइन लैंग्वेज की एक्सपर्ट हैं.

पूजा की आपबीती सुन कर श्रद्धा भी चौंक गईं. उन्हें पहले भी कुछ युवतियां इस तरह की शिकायत कर चुकी थीं, लिहाजा उन्होंने महेश अवस्थी के खिलाफ सुनियोजित तरीके से मोर्चा खोल डाला.

वह 14 सितंबर, 2018 का दिन था जब भोपाल के लिंक रोड नंबर-2 पर स्थित सामाजिक न्याय एवं नि:शक्त जन कल्याण विभाग के सामने कोई 36 मूकबधिर इकट्ठा हुए. इन में वे लड़कियां भी थीं जो कभी न कभी महेश अवस्थी की हवस का शिकार बनने के लिए मजबूर हुई थीं. श्रद्धा ने इन सब को इकट्ठा कर प्रदर्शन किया.

वहां मौजूद अधिकारियों से श्रद्धा शर्मा ने महेश अवस्थी पर 4 युवतियों के साथ बलात्कार का आरोप लगाया. इस के अलावा कुछ युवकों ने भी अपने साथ दुष्कर्म होने की बात कही.

भारी तादाद में मूकबधिरों को इकट्ठा देख उधर से गुजरने वाले राहगीरों की भीड़ भी वहां जमा होने लगी. वहां से चंद कदमों की दूरी पर स्थित प्रदेश कांग्रेस कार्यालय से कांग्रेस की प्रवक्ता शोभा ओझा भी उन के बीच पहुंच गईं.

खबर मिलने पर कई मीडियाकर्मी भी वहां पहुंच गए. हल्ला मचने की जानकारी मिलते ही हबीबगंज थाने के सीएसपी भूपेंद्र सिंह भी मौके पर पहुंच गए थे.

प्रदर्शनकारियों ने सीएसपी भूपेंद्र सिंह के सामने महेश प्रसाद अवस्थी का चिट्ठा खोला तो उन्होंने पीडि़त युवतियों की शिकायत पर साईं विकलांग एवं अनाथ सेवा आश्रम के संचालक महेश प्रसाद अवस्थी के खिलाफ बलात्कार और दुष्कृत्य की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इतना ही नहीं, पुलिस ने उसे जल्द गिरफ्त में भी ले लिया.

इस पर लोगों को कुछ दिनों पहले का एक और मामला याद हो आया, जिस में भोपाल के ही अवधपुरी इलाके से एक ऐसे ही अनाथाश्रम के संचालक को ऐसे ही आरोपों में गिरफ्तार किया गया था.

अब कई बातें खुल कर सामने आईं, जिन में एक यह भी थी कि महेश प्रसाद अवस्थी के खिलाफ फरवरी, 2017 में एक मूकबधिर छात्रा ने अश्लील हरकतें करने की शिकायत की थी. तब कलेक्टर होशंगाबाद अविनाश लवानिया ने मालाखेड़ी आश्रम की जांच करवाई थी और अनियमितताएं पाए जाने पर उसे बंद करवा दिया था. होशंगाबाद पुलिस ने मालाखेड़ी आश्रम की केयरटेकर कविता चौहान को भी गिरफ्तार कर लिया था.

अय्याशी का अड्डा था आश्रम

जिस ने भी महेश की करतूत को सुना, थूथू की. लेकिन दूसरे दिन जब पीडि़ताओं ने अपनी आपबीती सुनाई तो वह गरुड़ पुराण में वर्णित किसी नर्क के चित्रण से कम नहीं कही जा सकती.

बैरागढ़ वाले आश्रम में 55 लड़कियां और 42 लड़के रह रहे थे, जिन का खुलेआम यौन शोषण होता था. इस घिनौने कृत्य में इस हौस्टल की केयरटेकर मीता मिश्रा भी उसी तरह शामिल थी, जिस तरह होशंगाबाद में कविता चौहान थी.

मीता का पति विजय मिश्रा और 19 वर्षीय बेटा अभिषेक मिश्रा भी मूकबधिर लड़कियों का दैहिक शोषण और बलात्कार करते थे. इन तीनों के अलावा पुलिस ने आश्रम के एक शिक्षक राकेश चौधरी को भी गिरफ्तार किया.

ये पांचों जेल में हैं लेकिन आश्रम में रहते इन्होंने जो जुल्म मूकबधिरों पर ढाए थे, उन्हें सुन कर शैतान भी हैरान रह जाएगा.

दुराचारियों के इस गैंग के सरगना महेश अवस्थी को जिस लड़की से बलात्कार करना होता था, उसे वह अपने कमरे में बुला कर उस से अपने पैर दबवाता था. इस दौरान वह लड़कियों के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ करता रहता था. फिर सारे कपड़े उतार कर लड़की से मालिश करवाता था. वह लड़कियों से सैक्सी बातें भी करता था. बलात्कार करने के लिए वह लड़की को घसीट कर छत पर बने कमरे में ले जाता था और उसे नोचताखसोटता रहता था.

जो लड़की विरोध करती थी, उसे बुरी तरह मारापीटा जाता था. उस के शरीर पर पिटाई के निशान न बनें, इसलिए प्लास्टिक के डंडों का इस्तेमाल किया जाता था. महेश अवस्थी अकसर शराब के नशे में रहता था.

विजय मिश्रा तो महेश से भी ज्यादा क्रूरता करते हुए किस तरह लड़कियों की विकलांगता का फायदा उठाता था, इसे समझाते हुए लड़कियों ने बताया कि सुबह सभी को नहाने के लिए निर्वस्त्र खड़ा कर दिया जाता था. फिर विजय पाइप से पानी की धार उन के शरीर पर छोड़ता था. पानी की धार नाजुक अंगों पर ज्यादा छोड़ता था. इस दौरान वह शैतानों की तरह मुसकराता रहता था.

इतना ही नहीं, लड़कियों को इस तरह नहलाते समय वह उन से एकदूसरे के शरीर पर साबुन मलने के लिए कहता था. इस दौरान महेश प्रसाद अवस्थी कुरसी पर बैठा तमाशा देखा करता था. कई बार वह नहाती हुई लड़कियों में किसी एक को रोक कर उस के शरीर को सहलाता था. पर दरअसल इशारा होता था कि आज रात तेरा नंबर है. इस चुनी गई लड़की को मीता शाम को छत पर बने कमरे में छोड़ आती थी.

बापबेटे करते थे बलात्कार

मांबाप के काले कारनामों का विरोध करने के बजाय अभिषेक भी उन का हिस्सा बन गया था. अभिषेक कभी भी बाथरूम में घुस कर लड़कियों के नाजुक अंगों को दबातासहलाता रहता था. इस पर मीता और विजय उसे रोकतेटोकते नहीं थे.

यह नारकीय इंतहा ही थी कि अभिषेक जब चाहे, तब किसी भी लड़की के कपड़े उतार कर उसे नग्न कर देता था. जो लड़की उस की इन ज्यादतियों की शिकायत मीता से करती थी, उसे बजाय इंसाफ के मार मिलती थी.

अभिषेक भी चुनी हुई लड़की को छत पर बने कमरे में ले जा कर बलात्कार करता था यानी इन राक्षसों ने बाकायदा एक रेप रूम ही बना रखा था. एक रात जब अभिषेक एक लड़की का बलात्कार कर रहा था तभी उस का पिता विजय भी दूसरी लड़की को ले कर छत पर पहुंच गया. बेटे को बलात्कार करते देख उस ने उस के चले जाने का इंतजार किया और कमरा खाली हो जाने पर अपने साथ लाए शिकार का बलात्कार किया था.

14 साल की एक लड़की के साथ शिक्षक राकेश चौधरी अकसर बलात्कार करता था तो ऐसा लगता कि यह कोई आश्रम नहीं बल्कि चकलाघर है, जहां नियम, कायदे कानूनों को धता बताते आए दिन संदिग्ध लोग अपनी हवस इन मूकबधिरों से पूरी करते थे.

सभ्य समाज के इस क्रूर बर्बर और नारकीय चेहरे का कुछ ही हिस्सा हम यहां इसलिए बता पा रहे हैं कि लोगों को समझ आए कि कैसेकैसे राक्षस देश में मौजूद हैं, जो मूकबधिरों को 2 वक्त का खाना और सिर छिपाने की छत किन शर्तों पर देते हैं. ऐसा हर कहीं हो रहा है, होता है और लोग जानते हुए भी खामोश रहते हैं.

बात जहां तक महेश प्रसाद अवस्थी के आश्रमों की है तो साफ समझ आता है कि सरकारी विभागों खासतौर से सामाजिक न्याय विभाग के कई अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है.

ये अधिकारी आश्रमों का निरीक्षण ही नहीं करते और यदि करते भी हैं तो काजू, किशमिश खा कर संचालक के मनमाफिक रिपोर्ट बना देते हैं. एवज में उन्हें नकदी घूस मिल जाती है. चिट्ठा उजागर होने से पहले महेश प्रसाद अवस्थी को एक लाख रुपए महीने की सरकारी इमदाद दी जा रही थी.

बहरहाल, यह हादसा आंखें खोल देने वाला है कि यौन कुंठित लोग कैसेकैसे समाजसेवा करते हैं. महेश प्रसाद अवस्थी की पत्नी किसी वजह से उसे छोड़ कर भाग गई थी.

लोगों की मांग है कि इन आरोपियों को फांसी की सजा होनी चाहिए और अगर इन्हें फांसी से कम सजा हुई तो वह सजा नहीं बल्कि इन के लिए ईनाम ही होगा. तारीफ की पात्र श्रद्धा शर्मा भी हैं, जो भोपाल में पढ़ते हुए मूकबधिरों के लिए जूझीं. उन से भी ज्यादा तारीफ का हकदार अमित है, जिस ने अपनी पत्नी के दर्द को समझा और उस के गुनहगारों को उन का असली मुकाम दिखाया. अब बारी अदालत की है कि वह इन हैवानों को कब सजा देती है?

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...