Bihar Politics: किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में एक नेता के 20 साल का सफर कम नहीं होता है. 20 साल में पूरी पीढ़ी बदल जाती है. 18 साल में देश में वोट डालने का अधिकार मिल जाता है. नीतीश कुमार 2005 से ले कर 2014 तक लगातार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. इस के बाद बीचबीच में कुछ अंतराल को छोड़ दें तो 20 साल वह बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं. बात 20 साल की जगह अगर केवल 5 साल की भी की जाए तो क्या काम नीतीश कुमार ने किया जिस को याद रखा जाए ?
मसलन लालू प्रसाद यादव की बात की जाए तो बिहार का एक बड़ा तबका कहता है कि दलित पिछड़ी जातियों को सम्मान जनक जीने का अधिकार दिलाया. उस के पहले बिहार में बाबू साहब का राज होता था. बिहार में कई लोकगीत लालू प्रसाद यादव के उपर बने हैं. जिन में यह गा कर बताया जाता है कि आज दलित और पिछड़े जो मूंछ रख कर घूम रहे हैं उस के पीछे लालू प्रसाद की मेहनत है. वरना दलित पिछड़ों को सम्मान से जीने का अधिकार नहीं था.
क्या पिछले 5 साल में नीतीश कुमार की इस तरह की कोई उपलब्धि है, जिस की वजह से उन को याद किया जा सके ? 5 साल की क्यों नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में बिहार में लंबे समय तक काम करने का मौका मिला है. पहली बार वह 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक मुख्यमंत्री रहे. दूसरी बार 24 नवबंर 2005 से 25 नवबंर 2010 तक, तीसरी बार 26 नवबंर 2010 से 19 मई 2014 तक, चौथी बार 22 फरवरी 2015 से 19 नवम्बर 2015 तक, पाचंवी बार 20 नवबंर 2015 से 26 जुलाई 2017 तक, छठी बार 27 जुलाई 2017 से 15 नवबंर 2020 तक, सातवी बार 16 नवबंर 2020 से 9 अगस्त 2022 तक और आठवी बार 10 अगस्त 2023 से अब तक मुख्यमंत्री है.
इन को जोड़ कर देखें तो करीब 18 साल से अधिक समय तक नीतीश कुमार बिहार की कुर्सी पर बैठे रहे हैं. नीतीश कुमार ने श्रीकृष्ण सिंह का रिकौर्ड तोड़ दिया. वह 14 साल 314 दिन तक मुख्यमंत्री रहे थे. श्रीकृष्ण सिंह कायस्थ बिरादरी के सिन्हा वर्ग से आते थे. नीतीश कुमार के ही नाम सब से कम समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकौर्ड भी रहा है. उन का पहला कार्यकाल मार्च 2000 में केवल 7 दिन का भी रहा है. सब से लंबा कार्यकाल 8 साल 239 दिन भी नीतीश कुमार के नाम रहा. जब वह 2005 से 2014 तक मुख्यमंत्री रहे.
बिहार रहा बदहाल
बचपन में जिस नीतीश कुमार को लोग ‘मुन्ना‘ के नाम से पुकारते थे मुख्यमंत्री बनने के बाद उन को ‘सुशासन बाबू‘ के नाम से जानने लगे. सुशासन बाबू के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार का नाम तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्री के रूप में लिया जाने लगा था. भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलने के बाद जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो नीतीश कुमार ने राजनीति की गति को समझा और धीरेधीरे वह ‘मोदी मय‘ होते गए. ऐसे में नीतीश कुमार भले ही 15 साल मुख्यमंत्री बन पाए हो पर बिहार का विकास नहीं हो सका.
नीतीश कुमार केवल बिहार का विकास ही नहीं कर पाए यहां की सामाजिक सरंचना को भी नहीं बचा पाए. जिस समाजवादी विचारधारा के नेता जय प्रकाश नारायण के साथ नीतीश ने अपनी राजनीति शुरू की थी बाद में वह कांग्रेस के विरोध के नाम पर भाजपा की धर्मवादी सोच का हिस्सा बन गए. मोदी के प्रखर धर्म और राष्ट्रवाद आने के बाद नीतीश कुमार उस का हिस्सा बनते गए. नीतीश कुमार ने धर्म की आड़ में गरीब पिछड़ों की आवाज को दबा दिया. नीतीश के शासन में बिहार की हालत पहले से भी बद से बदत्तर होती गई. बिहार में बेकारी, बदहाली, अपराध, स्वास्थ्य और षिक्षा का बुरा हाल है.
बिहार की पोल कोविड काल में पूरे देश ने देखी. 2019 में कोरोना काल के दौरान प्रवासी मजदूरों के पलायन सब ने देखा. आंकड़े बताते हैं कि बिहार से करीब 90 लाख लोगों ने रोजीरोटी के लिए बिहार छोड़ा था. इन में से कोरोना के दौरान 40 लाख लोग इस भ्रम में वापस बिहार आए कि उन को अब यहां काम मिल जाएगा तो मनरेगा के तहत भी उन को पूरा काम नहीं मिला. बिहार में कुल मजदूरों की संख्या 2 करोड़ 43 लाख है. जिन लोगों ने मनरेगा के तहत काम के लिए आवेदन किया था. उन में से केवल 65 लाख को ही जौब कार्ड बन सका.
बिहार में सब से प्रमुख नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि टैक्नोलौजी, उदारीकरण और एआई के दौर के बाद भी विगत 20 सालों में बिहार की प्रति व्यक्ति आय सब से गरीब अफ्रीकी देशों युगांडा और रवांडा से भी कम है. बिहार के 8 करोड़ युवाओं को नौकरी की तलाश है. तेजस्वी यादव को विरोधी भले ही 9वीं फेल कह कर उपहास उड़ाते हों पर तेजस्वी बात खरीखरी कहते हैं. तेजस्वी यादव ने 20 सवाल किए. जिन के जरीए बिहार की हालत का पता किया जा सकता है. उन का कहना था ’बिहार में केला, मकई, मखाना, चावल, गन्ना, आलू, लीची, आम इत्यादि अनेक विश्व प्रसिद्ध अनाज, फल, सब्जियों का इतना उत्पादन होता है, लेकिन इन सभी से संबंधित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग 20 वर्षों से बिहार में क्यों नहीं लगाए गए ?
तेजस्वी यादव ने ट्वीट करते हुए पूछा बिहार बेरोजगारी का मुख्य केंद्र क्यों है? 20 वर्षों की एनडीए सरकार बताए कि बिहार में आईटी कंपनियां क्यों नहीं बुलाई गई ? क्यों नहीं आई और क्यों नहीं आ सकती ? बिहार में आईटी पार्क क्यों नहीं बन सकते ? बिहार दूसरे प्रदेशों से मछली खरीदता है ? बिहार में मछली उत्पादन संबंधित तमाम संसाधन होने के बावजूद यहां ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं कर सकते ? बिहार में मछली उत्पादन को बढ़ावा दे कर, यहां जिलावार मछली बाजार लगाकर मछुआरों की आमदनी और उत्पादन क्यों नहीं बढ़ा सकते ?
बिहार में डेयरी प्रौडक्ट्स यानी दुग्ध उत्पादन संबंधित बड़े उद्योग क्यों नहीं लगाए जा सकते ? बिहार का दूध, घी, मक्खन, चीज, पनीर, खोया इत्यादि दूसरे प्रदेशों और देशों में क्यों नहीं भेजा जा सकता ? बिहार में इंडस्ट्री स्पेसिफिक क्लस्टर या उद्योग-विशिष्ट क्लस्टर क्यों नहीं लगाए जा सकते ? यहां बुन कर उद्योग, लघु उद्योग और हथकरघा उद्योग के लिए क्या किया ? इन के शासन में बड़े पैमाने पर इन उद्योगों को बढ़ावा क्यों नहीं दिया गया ? बिहार को अब तक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित क्यों नहीं किया ? बिहार में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं.
सरकार नियुक्ति, भर्ती परीक्षा और प्रक्रिया को पारदर्शी तथा नियमित क्यों नहीं करती ? इस बात की जानकारी देनी चाहिए कि बिहार से कुल कितना पलायन हुआ ? बिहार में अप्रत्याशित दर से पलायन क्यों बढ़ रहा है ? पहले से चालू कितने चीनी मिल, जूट मिल, पेपर मिल एवं कुल कितने उद्योग-धंधे और कल-कारखाने बंद हुए तथा उस से बिहार को कुल कितने राजस्व व रोजगार के अवसरों की हानि हुई ? बिहार का कुल कितने लाख करोड़ रुपए शिक्षा और चिकित्सा के नाम पर दूसरे प्रदेशों में गया ? बिहार के मानव संसाधन का कुल कितने प्रतिशत बिहार में और कितने प्रतिशत दूसरे प्रदेशों में कार्यरत है ?
बिहार में 60 लाख ग्रेजुएट हैं. इन में से आधे बेरोजगार हैं. जिस आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि हर दूसरा आदमी बेरोजगार हैं. कारोबारी और किसानों की हालत भी बेहद खराब है. बिहार में 2005 में मंडी सिस्टम बंद कर के उस के समांतर निजी खरीददारों की व्यवस्था है. प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से देखें तो बिहार का देश में चौथा स्थान है. बिहार की प्रति व्यक्ति आय 6 हजार रुपए मासिक यानी करीब 2 सौ रुपए रोज है.
क्या है शराब बंदी का सच ?
नीतीश कुमार के कामों को सोचें तो कोई खास काम सामने नहीं दिखते हैं. एक बात की सब से ज्यादा चर्चा होती है कि उन के राज में शराब बंदी हुई. शराब बंदी का असर तक होता जब लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया होता. शराब बंदी का असर गरीब और पिछड़ी जातियो के लोगों पर हुआ जिन को पुलिस ने शराब बेचने के आरोप में बंद कर दिया. तेजस्वी यादव ने आंकड़ों के जरिए शराब बंदी के सच को समझाते हुए पूरा गणित समझाया.
बिहार में शराबबंदी का कड़वा व काला सच 99 फीसदी गरीब, दलित, पिछड़े और अतिपिछड़े वर्गों के लोगों को पकड़ा गया. शराबबंदी कानून के तहत अब तक 9 लाख 36 हजार 949 मुकदमें दर्ज किए गए. जिस के तहत 14 लाख 32 हजार 837 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इन में से लगभग 14 लाख 20 हजार 700 से अधिक गिरफ्तार लोग गरीब, दलित, पिछड़े और अतिपिछड़े वर्गों के हैं. बाकी बचे एक प्रतिशत से भी कम गिरफ्तार लोगों में गैर दलित, गैर पिछड़ा गैर अति पिछड़ा और अन्य राज्यों के लोग है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिहार में 3 करोड़ 86 लाख 96 हजार 570 लीटर शराब बरामद की गई. इस में 2 करोड़ 10 लाख 64 हजार 584 लीटर विदेशी तथा एक करोड़ 76 लाख 31 हजार 986 लीटर देशी शराब शामिल है. इस का मतलब हुआ कि बिहार में विदेशी शराब की खपत अधिक है. अब गरीब लोग तो 2 करोड़ 10 लाख लीटर विदेशी शराब पिएंगे नहीं ? फिर बिहार में विदेशी शराब कौन पीता है? उत्तर है अमीर लोग- जिन्हें ये भ्रष्ट सरकार और पुलिस गिरफ्तार नहीं करती ?
तेजस्वी यादव सवाल पूछते हैं ‘सरकार बताए कि 9 लाख, 36 हजार 949 मुकदमे दर्ज होने और 14 लाख 32 हजार 837 लोगों को गिरफ्तार करने के बाद भी बिहार में 3 करोड़ 86 लाख 96 हजार 570 लीटर शराब कहां से आ रही है ? शराब किस की मिलीभगत से आ रही है ? सप्लाई कौन कर रहा है ? बिहार पुलिस और बिहार सरकार ने शराबबंदी को अवैध उगाही, तस्करी और भ्रष्टाचार का एक सशक्त उपकरण बना लिया है. क्या यह सच नहीं है कि शराबबंदी के नाम पर बिहार में 40 हजार करोड़ से अधिक के अवैध कारोबार की समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है.
नीतीश कुमार में क्या था खास
सवाल उठता है कि नीतीश कुमार में ऐसी क्या खास बात थी कि वह इतने लंबे समय तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे ? दूसरी तरफ उन के 5 साल के कार्यकाल में एक भी ऐसा काम नजर नहीं आ रहा जिस की वजह से बिहार उन को याद रखे ? बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव को सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले नेता के रूप में देखा जाएगा तो नीतीश कुमार को पिछड़ा वर्ग के वोटबैंक में सेंधमारी करने वाले अवसरवादी नेता के रूप में याद किया जाएगा.
देश में मंडल कमीशन के बाद पिछड़ी जातियों ने अपने हक और अधिकार की जो लड़ाई शुरू उसे उपजातियों में बांट कर अपने लाभ के लिए खत्म कर दिया गया. 1990 के बाद हाशिए पर पहुंची सवर्ण राजनीति को पिछड़ा वर्ग में बंटवारे का लाभ मिला. इस वजह से 2025 में सवर्णवादी राजनीति बिहार में वापस कायम होती दिख रही है. नीतीश ने अपना राजनीतिक सफर जयप्रकाश नारायण के साथ शुरू कर के जनता पार्टी, लोकदल, जनतादल, समता पार्टी और फिर जनता दल यूनाइटेड तक तय किया. समय के हिसाब से वह पाला बदलते रहे. इस कारण ही वह लंबे समय तक बिहार के मुख्यमंत्री बने रह सके.
जदयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि ‘मुझे लोकनायक जयप्रकाश नारायण, छोटे साहब सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जननायक कर्पूरी ठाकुर के चरणों में जानने और सीखने का मौका मिला है.‘ नीतीश कुमार के राजनीतिक कैरियर को देखें तो उन्होंने पिछड़ा वर्ग में सेंधमारी कर के उसे कमजोर किया. जिस सवर्णवादी राजनीति को बिहार ने नकार दिया था नीतीश कुमार ने पिछड़े वर्ग के वोटों का सौदा कर के उसी सवर्णवादी सोच को बिहार की सत्ता में स्थापित होने का मौका दिया.
90 के दशक में जब बिहार में सवर्णवादी राजनीति हाशिए पर पहुंच रही थी. लालू प्रसाद यादव ने पिछड़ी जातियों को बिहार की मुख्यधारा में स्थापित करने का काम किया. इस वजह से उन को सामाजिक न्याय के नेता के रूप में स्वीकार किया जाता है. लालू प्रसाद यादव को कमजोर करने के लिए नीतीश कुमार ने पहले पिछड़ी जातियों में सेंधमारी फिर सवर्णवादी राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ समझौता कर के बिहार में उन के जनाधार को बढ़ाने का काम किया.
पिछड़ी जातियों में सेंधमारी के लिए नीतीश कुमार ने जातियों के वर्ग के बीच उपवर्ग और जातियों की श्रेणियों को तैयार किया. पिछड़ा वर्ग को सब से अधिक नुकसान मोस्ट ओबीसी के अलग होने से हुआ. नीतीश कुमार ने पिछड़ा वर्ग से 22 फीसदी मोस्ट ओबीसी, 12 फीसदी कोइरी, कुर्मी और कुशवाहा, 8 फीसदी महादलित को अलग कर के अपना एक नया वोट बैंक तैयार किया. इस वर्ग ने 16 फीसदी अगड़ों का साथ दे कर पिछड़ा वर्ग की राजनीति को बिहार से उखाड़ कर फेंक दिया.
नीतीश कुमार की सफलता का श्रेय उन के पलटीमार दांव को दिया जा सकता है. जय प्रकाश की समाजवादी विचारधारा से राजनीति शुरू की. पिछड़ों की अगुवाई करने वाले लालू प्रसाद यादव को हाशिए पर ढकेलने के लिए ऊंची जातियों ने नीतीश कुमार का प्रयोग किया. कांग्रेस की विचारधारा का विरोध करने वाले नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल कर पिछड़े वर्ग को कमजोर करने का काम किया. ऊंची जातियों ने पिछड़ों के नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को आमने सामने कर के लालू यादव की ताकत को बिहार में खत्म कर दिया.
समाजवाद को भूल दक्षिणापंथी बने नीतीश कुमार
नीतीश कुमार ने नौकरी छोड़ कर 1975 में राजनीति में प्रवेश किया और जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ गए. इंदिरा सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई. नीतीश कुमार ने 1977 में विधानसभा चुनाव लड़ा और चुनाव हार गए. इस के बाद भी नीतीश ने हार नहीं मानी. इस के बाद 1980 में विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला लेकिन इस में भी उन को हार मिली. भले ही ये लगातार चुनावों में हार रहे थे. लेकिन इन पर हार का कोई विशेष प्रभाव नहीं था पड़ा.
1985 में पहली बार नीतीश कुमार को जीत मिली. इस के बाद युवा लोकदल के अध्यक्ष और बाद में जनता दल के प्रदेश सचिव बन गए.
1990 में केन्द्र की चन्द्रशेखर सरकार वह पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में कृषि राज्यमंत्री बने. 1991 में वह एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने गए. इस साल ही जनता दल का राष्ट्रीय सचिव भी चुना गया. इस के संसद में वह जनता दल के उपनेता भी बने. 1989 और 2000 में वह बाढ़ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1989-1999 में वह केन्द्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री भी रहे. अगस्त 1999 में गैसाल में हुई रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने मंत्रीपद से अपना इस्तीफा दे दिया. जौर्ज फर्नांडिस की समता पार्टी के साथ काम किया. साल 2000 में इन को कृषि मंत्री बना दिया गया और 2001 में फिर से रेल मंत्री बना दिया गया.
2005 में बिहार में चुनाव हुए इस समय तक नीतीश कुमार ने जनता दल यूनाइटेड नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली थी. लालू यादव के जंगलराज और परिवारवाद के खिलाफ जनता को विकास का वादा कर के चुनाव जीतने में सफल रहे. भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन के साथ बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. 2010 में फिर मुख्यमंत्री के चुनाव हुए. इस में नीतीश को भारी जीत मिली. अब तक नीतीश को भाजपा की जरूरत खत्म हो गई थी तो वह भाजपा से अलग हो गए. इस समय तक भाजपा में नरेंद्र मोदी का उदय शुरू हो चुका था. नीतीश नरेंद्र मोदी की आलोचना करने लगे थे. 2014 के लोकसभा चुनावों में नीतीश को तीसरे मोर्चे का नेता मान प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी माना जा रहा था. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह सारे कयास धरे के धरे रह गए.
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन कर लिया. इस चुनाव में नीतीश की पार्टी जदयू बिहार में तीसरे नम्बर पर थी इन को 17 फीसदी वोट और 71 सीटें मिलीं, राजद को 18 फीसदी वोट और 80 सीटें मिलीं और भाजपा को 24 फीसदी वोट और 50 सीटें मिलीं. कांग्रेस को 7 फीसदी वोट और 27 सीटें मिलीं. इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने के बाद भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री और राजद नेता लालू प्रसाद यादव के बेटे और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बन गए.
बिहार में फैली धर्म की राजनीति
नीतीश और तेजस्वी यादव के बीच संबंधों की खींचतान के कारण महागठबंधन में विवाद शुरू हुआ था. 26 जुलाई 2017 को सीबीआई द्वारा एफआईआर में उपमुख्यमंत्री और लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव के नाम आने के बाद नीतीश कुमार ने गठबंधन सहयोगी राजद के बीच मतभेद के चलते इस्तीफा दे दिया था. 20 महीने पुरानी महागठबंधन सरकार गिर गई तो नीतीश कुमार पाला बदल कर वापस भाजपा की तरफ आ गए. वह एनडीए गठबंधन में शामिल हुए और मुख्यमंत्री पद की पुनः शपथ ली. भाजपा के सहयोग से सरकार चलाने लगे.
बिहार में जाति की राजनीति का असर था कि यहां धर्म की राजनीति कभी पनप नहीं पाई. नीतीश कुमार का साथ ले कर भाजपा ने अपना उल्लू सीधा करना शुरू किया. 2000 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी. अब 2025 में भाजपा का पूरा प्रयास होगा कि बिहार में पहली बार वह अपना मुख्यमंत्री बना सके. इस में नीतीश कुमार का सब से बड़ा सहयोग रहेगा. एक बार धर्म का प्रभाव फैला तो फिर अगड़ी जातियों के प्रभाव को खत्म करना मुश्किल हो जाएगा. नीतीश कुमार ने हर कदम भाजपा का साथ दिया है. उम्र में बराबर होने के बाद भी वह प्रधानमंत्री का पैर मंच पर छूने से नहीं चूकते हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जब भाजपा अपने बल पर केन्द्र में सरकार नहीं बना पा रही थी तो नीतीश कुमार ने बैशाखी का काम किया. कहने को नीतीश कुमार की राजनीति पिछड़े वर्ग की रही असल में वह अगड़ी जातियों के हित में काम करते रहे. वह भाजपा की पाखंडवादी राजनीति का हिस्सा बन गए. जब अयोध्या में राम मंदिर बना तो भाजपा ने बिहार के सीतामढ़ी में सीता मंदिर बनाने की योजना बनाई तब नीतीश सरकार ने इस काम को पूरा किया.
बिहार के सीतामढ़ी स्थित पुनौराधाम में सीता मंदिर परिसर का शिलान्यास 8 अगस्त को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया. 67 एकड़ में बनने वाले इस भव्य मंदिर का निर्माण 882 करोड़ की लागत से मात्र 11 महीने में पूरा करने की योजना है. पुनौराधाम को सीता के जन्मस्थल के रूप में माना जाता है. नीतीश कुमार के 20 साल की तुलना करें या 5 साल की बिहार को कुछ ऐसा नहीं हासिल हुआ जिस के कारण उन को याद किया जा सके. नीतीश कुमार के सहारे भाजपा ने बिहार पर कुंडली मार ली है. धर्म की जकडन से बिहार को निकालना सरल नहीं है. Bihar Politics