Hindi Story : भोपाल की वह पौश कालोनी थी जहां दादी के बेटे मानव का फ्लैट था. नया फ्लैट था. मानव और उस की पत्नी मीनल एक प्राइवेट कंपनी में जौब करते थे. मानव ने मां को महीनेभर पहले ही बोल दिया था, ‘अम्मा, हम दोनों कंपनी के काम से बाहर जाएंगे तो कुछ दिनों तक तुम को यहां आना है. तुम्हारे आने से हम निश्ंिचत हो कर जा सकेंगे. मानसी को भी आप के साथ ज्यादा समय मिल जाएगा.’

बेटेबहू के प्यारभरे बुलावे को कैसे टाल देती, रीना. पोती मानसी के साथ रहने की कल्पना से ही खुश हो उठी थी वह. मानसी 10 साल की थी. दादी सरकारी स्कूल में टीचर थीं. कुछ समय पहले ही रिटायर हुई थी. कुछ समय तो नहीं कह सकते क्योंकि वह 11-12 साल पहले रिटायर हुई थीं. गांव बीरमपुर में बड़े बेटे के साथ रहती थीं वे. गांव की शुद्ध ताजी हवा, पौष्टिक खानपान और फिजिकली रूप से सक्रिय दादी की चुस्तीफुरती देखते ही बनती थी. वे बढ़ती उम्र को सिर्फ नंबर मानती थीं क्योंकि उन्हें हर समय छोटीछोटी समस्याओं पर रोनाधोना, काम से जी चुराना पसंद नहीं था.

दूसरी आम महिलाओं की तरह मंदिरों में भजनकीर्तन में समय गंवाना भी पसंद नहीं था उन्हें. वे कर्म में विश्वास रखती थीं, जो सोचती थीं वही बोलती थीं. कर्म ही सब से बड़ा धर्म है, कर्म से बढ़ कर कुछ नहीं है. बेटे भी मां पर गर्व महसूस करते थे. लेकिन बहुएं कभीकभी चिढ़ जाती थीं और बोल देती थीं, ‘अम्मा आराम से घर में बैठो, गरम रोटी दे रहे हैं खाने को. आप आराम किया करो.’

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