कई बरस पुरानी बात है. लुधियाना के सीएमसी (क्रिश्चियन मैडिकल कालेज) अस्पताल में पीडिएट्रिक सर्जरी यूनिट के इंचार्ज हुआ करते थे डा. योगेश कुमार सरीन. सीएमसी से थोड़ा आगे डा. जेनी का नॄसगहोम था. डा. जेनी से डा. सरीन का अच्छा परिचय था. एक दिन वह किसी काम से उन के यहां गए तो देखा कि डा. जेनी किसी ङ्क्षचता में डूबी थीं. डा. सरीन ने उन्हें गुडमौॄनग कहा तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठीं, “डा. सरीन, वैरी गुडमौनग. यह तो बहुत अच्छा हुआ कि आप आ गए. आइए, आप खुद देखिए यहां कैसी आश्चर्यजनक घटना घटी है.”
डा. जेनी डा. सरीन को लेबररूम के साथ वाले कमरे में ले गईं और एक बैड पर लेटी बच्ची उन्हें दिखाई. उस बच्ची को देख कर डा. सरीन चौंके. बैड पर एक नहीं, 2 नवजात बच्चियां लेटी थीं. आम इंसानों की तरह उन के भी 2-2 हाथ, 2-2 पैर थे.
मगर खास बात यह थी कि दोनों के धड़ बीच से जुड़े थे. एक का पेट कहां पर खत्म हुआ और दूसरी का कहां से शुरू हुआ, इस का पता गहराई से देखने पर भी नहीं चल रहा था. दोनों की एक ही नाभि थी, जबकि टांगें विपरीत दिशा में थीं. उन की स्थिति 180 डिग्री का कोण दर्शा रही थी.
उन बच्चियों को देख कर सरीन ने डा. जेनी से पूछा, “डिलीवरी कितने बजे हुई है?”
“सुबह करीब 7 बजे. हैरान करने वाली बात यह है डाक्टर साहब कि डिलीवरी पूरी तरह नौरमल थी. मेरी तो यही समझ में नहीं आ रहा कि मेरे हाथों एकदम सहज रूप से यह डिलीवरी हो कैसे गई?”