भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनके चुनावी क्षेत्र में घेरने के लिये स्मृति ईरानी के रूप में अपना सबसे बड़ा दांव चला. 2014 के लोकसभा चुनाव में 1 लाख वोट से हारने के बाद भी स्मृति ईरानी को मंत्री बनाया. यही नहीं पूरे 5 साल स्मृति ईरानी अमेठी चुनाव क्षेत्र में सक्रिय रही. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की घेराबंदी के बाद राहुल गांधी को केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ने जाना पड़ा. भले ही राहुल गांधी अमेठी से चुनाव जीत ले पर भाजपा की घेराबंदी ने उनको असमंजस में तो डाल ही दिया. भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में भाजपा के किसी बड़े नेता यानि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ कोई दमदार प्रत्याशी मैदान में नहीं उतार पाई.

ऐसा नहीं कि कांग्रेस के पास कोई प्रत्याशी नहीं है. कांग्रेस के पास चुनाव का प्रबंधन नहीं है. प्रदेश की जनता के बीच कांग्रेस को लेकर एक सकारात्मक सोच बनी है. कांग्रेस की तरफ से जैसे ही कोई दमदार प्रत्याशी दिखता है लोग उसको समर्थन भी करते हैं. 1999 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई भाजपा के शीर्ष नेताओं में थे. प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. कांग्रेस ने उनके खिलाफ चुनाव के ऐन वक्त पर कश्मीर से कर्ण सिंह को अपना प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया था. प्रचार का कम समय मिलने के बाद भी कर्ण सिंह ने अपना दमदार प्रभाव दिखाया और अटल जी को चुनाव जीतने के लिये लखनऊ में तमाम जन सभाएं करनी पड़ी.

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