बात हेमामलिनी या स्मृति ईरानी जैसी कट्टर भाजपाई अभिनेत्रियों की होती तो तय है कि भाजपाई अब तक आसमान सर पर उठा चुके होते लेकिन बात चूंकि जयाप्रदा की है इसलिए भगवा खेमे को कोई खास सरोकार उनकी बेइज्जती से नहीं है जो सपा छोड़कर भाजपा में आईं हैं. आईं भी क्या हैं अमर सिंह द्वारा लाई गईं हैं. उन्होंने आरएसएस के एक आनुशांगिक संगठन को 12 करोड़ की अपनी पैतृक संपत्ति दान देकर रामपुर से उनके लिए भाजपा का टिकट खरीदा है.
अमर सिंह और जयाप्रदा दोनों कभी सपा की शान और जान हुआ करते थे. यह बात आजम खान ने गिनाई भी लेकिन जयाप्रदा की अंडरवियर का खाकी रंग गिनाकर उन्होंने न केवल खुद के लिए आफत मोल ली हैं. बल्कि अपनी छिछोरी मानसिकता का भी नवीनीकरण कराते हुए साबित कर दिया है कि औरत होना किसी गुनाह से कम नहीं. भाजपाइयों की खामोशी कोई खास सस्पेंस पैदा नहीं कर रही क्योंकि वे आदिकाल से औरतों के अपमान पर चुप ही रहे हैं उल्टे इसका आनंद ही लेते रहे हैं. द्रौपदी का चीरहरण हो, अहिल्या का बलात्कार हो या फिर सीता का त्याग इसमें भी किवदंतियां गढ़ने में माहिर पौराणिकवादी जयाप्रदा के इस अपमान पर कोई खास नोटिस नहीं ले रहे हैं.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सपा मुखिया मुलायम सिंह को ट्वीट कर एक रस्म सी अदा कर दी हैं. मुमकिन है अब भाजपा इस वाकया का जिक्र जन सभाओं में करें लेकिन आजम खान को घेरने का सही वक्त और मौका वह गंवा चुकी हैं. रामपुर की लड़ाई लगभग एकतरफा दिख रही है जहां अभी तक कोई दिग्गज भाजपाई नेता नहीं पहुंचा है और न ही पहुंचने के आसार दिख रहे तो उसकी वजह उनका जयाप्रदा को बाहरी और अछूत समझना ही है. नामांकन दाखिल करते वक्त भी उनके साथ कोई दिग्गज भाजपाई नेता भी नहीं था सिवाय मुख्तार अब्बास नकबी के जिन्हें मुसलमान होने के चलते भेजा गया था जिससे मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर मुस्लिम वोटर को रिझा सकें. गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ स्मृति ईरानी और हेमामलिनी के नामांकन दाखिले के समय उनके साथ थे .
बहरहाल आजम खान की मंशा अगर खाकी अंडरवियर के बहाने जयाप्रदा के आरएसएस से जुड़ाव की बात बताने की थी तो और भी कई शिष्ट तरीके वे इस्तेमाल कर सकते थे. लेकिन उनकी मंशा जयाप्रदा को जलील करने की ही थी, जो उन्होंने पूरी कर डाली जिस पर कौरव पांडवों की सभा में द्वापर सा सन्नाटा छाया हुआ है. ‘कृष्ण’ को आने की फुर्सत नहीं क्योंकि वे मथुरा में हेमामलिनी का प्रचार देख रहे हैं.
भगवा खेमे से चुप्पी की उम्मीद से ज्यादा हैरत की बात फिल्म इंडस्ट्री की भी प्रतिक्रियाहीनता है जो अपने साथी कलाकार के अपमान पर उफ तक नहीं कर रही. यानि आजम खान का आतंक रामपुर या लखनऊ तक ही सिमटा नहीं है बल्कि मुंबई तक उनका लिहाज करती है. वैसे सोचने वाले यह सोचकर भी खामोश रहे होंगे कि जिस पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है जब उसे ही कोई मतलब नहीं तो हमारी क्या गरज पड़ी है.
चुनाव प्रचार और कितने घटिया और छिछोरे लेबल पर जाएगा. यह देखने में अभी 35 दिन और हैं, वैसे बात चोली और चुनरी से नीचे और क्या जाएगी.