लोकसभा चुनाव में चला ‘मोदी मैजिक’ विधानसभा चुनावों में चलता दिख नहीं रहा. जिसकी वजह से भाजपा को दूसरे दलों से बगावत करने वालों को अपने साथ लेना पड़ रहा है.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 73 सीटें जीतने वाली भाजपा को अब अपने दम पर बहुमत हासिल होता नहीं दिख रहा. जिसकी वजह से भाजपा को बसपा से स्वामी प्रसाद मौर्य और कांग्रेस से रीता बहुगुणा जोशी जैसे उन नेताओं को पार्टी में शामिल करना पड़ रहा है जो कुछ समय पहले तक भाजपा और उसके नेताओं को ‘कोसते’ थे.
भाजपा में प्रदेश स्तर के नेताओं में कोई ऐसा बड़ा नाम नहीं रह गया जिसको आगे का चुनाव लड़ाया जा सके. भाजपा में गिरे हुये इस आत्मविश्वास के चलते प्रदेश से केन्द्र की राजनीति में गये नेता वापस आना पंसद नहीं कर रहे. ऐसे में भाजपा को अब दूसरे दलों के बागी नेताओं को अपना साथी बनाने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
कांग्रेस नेता रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस छोड़ने का मन तब से बना रही थी जब से उनको प्रदेश कांग्रेस पद से हटा दिया गया था. वह समाजवादी पार्टी के साथ सांठगांठ कर रही थी. सपा उनको पार्टी में लेने को तैयार थी पर रीता विधायक पद छोड़ने के एवज में विधानपरिषद या राज्यसभा जाना चाहती थी. सपा इसके लिये तैयार नहीं थी.
ऐसे में वह कांग्रेस में बनी रही. इस बीच ‘उत्तराखंड कांड’ में रीता के भाई विजय बहुगुणा ने जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार को गिराया तब से कांग्रेस में रीता बहुगुणा जोशी पूरी तरह से अलग थलग पड़ गई थी.