कोर्ट रूम में जब दो दिग्गज वकील आमने सामने होते हैं तो असली लुत्फ वहां मौजूद लोगों और जज को भी आता है. हालत दंगल जैसे होते हैं जिसमे बराबरी के दो पहलवान लंगोट बांधे पहले नजरों से एक दूसरे की हैसियत और मनोवल नापते हैं फिर अपने गुरु और इष्ट का ध्यान करते दांव पेंच आजमाने लगते हैं. अखाड़े की धूल छंटने के बाद कुश्ती प्रेमियों को दिखता है कि किस पहलवान की छाती पर दूसरे का पांव रखा है और वह शान से अपनी मूंछों पर ताव देकर जता रहा है कि देख लो अच्छे से कि मैं ही वह सूरमा हूं जिसने नीचे पड़े वाले को चित कर पिद्दी बना दिया.
कानून के अखाड़े के दो दिग्गज वकील राम जेठमलानी और अरुण जेटली आमने सामने थे. जेटली वादी थे और जेठमलानी प्रतिवादी अरविंद केजरीवाल के वकील थे, संक्षेप मे वाद यह है कि प्रतिवादी ने वादी के बारे में कुछ ऐसी बातें सार्वजनिक तौर पर कहीं थीं जिनसे वादी को लगा था कि वे मानहानि के दायरे में आती हैं, लिहाजा वह न्याय के लिए ओनरेबल कोर्ट जा पहुंचा और 10 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति का दावा ठोक दिया था. वादी को लगा था कि चूंकि वह नामी वकील भी हैं इसलिए पहली दूसरी पेशी में ही प्रतिवादी को पानी पिला देगा, पर प्रतिवादी भी कम चतुर नहीं निकला और जेठमलानी जैसा ख्यातिनाम वकील कर वादी की मुश्किल बढ़ा दी.
खैर जिरह शुरू हुई, प्रतिवादी के वकील ने अपनी एनक उतारी और उसे हिला डुलाकर उपस्थित लोगों को एहसास कराया कि क्यों तेज गेंदबाज रन अप लेते वक्त गेंद को पेंट से रगड़ता रहता है अपना आत्मविश्वास चार्ज कर जज के सामने सर झुकाने की रस्म अदा करने के बाद वह वादी से मुखातिब हुआ और उसकी आखों में आंखे डाल कर चंद ऐसे सवाल पूछे जिनसे वादी लड़खड़ा गया. वादी खुद हमले और बचाव के मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञाता है, पर तजुर्बे में मात खा गया. मानहानि का मुकदमा कानून की धाराओं पर कम तर्क और वाकपटुता से ज्यादा लड़ा जाता है, इसलिए वादी के साथ साथ उसके वकील भी प्रतिवादी के वकील के इस सवाल पर सकपका उठे कि यह कैसे तय किया जाये कि भरपाई आर्थिक रूप से हो सकती है और मानहानि 10 करोड़ की ही है. इस पर वादी ने वही जबाब दिया जो प्रतिवादी का वकील उससे उगलवाना चाहता था कि मानहानि की भरपाई आर्थिक तौर पर नहीं हो सकती है, परिवार और समाज में उसकी जो अहमियत है उसकी बिना पर ही 10 करोड़ का दावा उसने ठोका है.
अब प्रतिवादी के वकील ने यह पूछते गुगली बाल डाल दी कि कहीं मामला खुद को महान समझने का तो नहीं, साख और प्रतिष्ठा में क्या फर्क है, ठग भी अगर कुछ लोगों को थोड़ा दान दे दे तो लेने वालों के बीच उसकी साख होगी, इसलिए आप की याचिका का कोई तर्कसंगत कारण नजर नहीं आता. वादी बौखलाकर बताने की कोशिश करता रहा कि बात सिर्फ कीमत की नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा की भी है, बात उसकी सच्चाई निष्ठा की भी है, वह भी 1977 से वकालत कर रहा है और फलाने ढिकाने अहम पदों पर रह चुका है वगैरह वगैरह. वादी ने अदालत को इंप्रेस करने के लिए भावुक होने की भी कोशिश की, पर उसका दिन ही खराब था जो वह प्रतिष्ठा और उसके आर्थिक मूल्य में कोई तालमेल नहीं बैठा पाया.
वह अगर झूठा अहम और बड़प्पन छोड़ कह देता कि हां प्रतिष्ठा की भरपाई 10 करोड़ से हो जाएगी तो बात कुछ और होती. वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर दायर मानहानि के मुकदमे की पैरवी करते हुये राम जेठमलानी ने साबित कर दिया कि जितनी जेटली की उम्र है उससे कुछ कम का उन्हे वकालत का तजुरबा है. फैसला कुछ भी आए पर जेटली लड़खड़ा तो गए ही हैं.