‘मैं भी चौकीदार’ का नारा दे कर भाजपा भले ही प्रचारित करना चाहती हो कि देश की सुरक्षा और भ्रष्टाचारियों से खजाने की रक्षा की वही एक मात्र चौकीदार है पर जमीनी हकीकत में वह दलित, स्त्री, किसान और अल्पसंख्यकों की रक्षा की चौकीदार कहीं से भी नहीं लगती.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ब्राह्मणों के कहने पर पिछले 5 सालों से इस देश की सदियों पुरानी ब्राह्मणवादी हिंदुत्व की पहरेदारी ही कर रहे हैं. शिवाजी राज को पेशवा ब्राह्मण चला रहे थे, आज संघ चला रहा है. यह वैसा ही है जैसा हमारे पुराणों में बारबार कहा गया है.

रामायण का प्रसंग है – ब्राह्मण वशिष्ठ नारद सहित 8 मुनियों को ले कर राम के दरबार में पहुंचे. राम पहले से ही चिंतन में थे कि उन के राज में एक ब्राह्मण के पुत्र की मृत्यु हो गई तो आखिर किसलिए. ब्राह्मण के शब्द राम के कानों में गूंज रहे थे, ‘‘यह अवश्य राजा के किसी दुष्कर्म का फल है. राज्य में ऐसी दुर्घटना हुई है, ब्राह्मण का बेटा मरा है. राजा के दोष से जब प्रजा का विधिवत पालन नहीं होता तभी प्रजा को ऐसी विपत्ति का सामना करना पड़ता है.’’

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नारद ने कहा, ‘‘राजन, निश्चय ही आप के राज में कोई शूद्र वर्ग का मनुष्य तपस्या कर रहा है. इसी से इस ब्राह्मण बालक की मृत्यु हुई है. इसलिए, आप खोज कराइए कि आप के राज में कोई व्यक्ति कर्तव्यों की सीमा का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है.’’

नारद की बात सुन कर राम ने ऐसा ही किया. राम दक्षिण दिशा में स्थित शैवाल पर्वत पर बने एक सरोवर पर पहुंचे जहां एक तपस्वी नीचे की ओर मुंह कर के उलटा लेटा हुआ भयंकर तपस्या कर रहा था. उस की यह विकट तपस्या देख कर राम ने पूछा, ‘हे तपस्वी, तुम कौन हो, किस वर्ण के हो और यह कठिन तपस्या क्यों कर रहे हो?’’

यह सुन कर तपस्वी बोला, ‘महात्मन, मैं शूद्र योनि से उत्पन्न हूं और सशरीर स्वर्ग जाने के लिए तपस्या कर रहा हूं. मेरा नाम शंबूक है.’

शंबूक की बात सुन कर राम ने म्यान से तलवार निकाल कर उस का सिर काट दिया. इंद्र आदि देवताओं ने आ कर उन की प्रशंसा की. उस ब्राह्मण का मृत पुत्र जिंदा हो उठा.

किस की चौकीदारी

इन दिनों प्रधानमंत्री सहित उन के कई मंत्री और नेता ‘मैं भी चौकीदार’ की जो मुहिम चला रहे हैं वह असल में किस की चौकीदारी की बात कर रहे हैं? इस देश के धार्मिक अंधविश्वास की चौकीदारी की, न कि आम गरीब, दलित, पिछड़े, किसान, अल्पसंख्यक की सुरक्षा की. ज्यादातर चौकीदार का तगमा लगाए ब्राह्मण ही दिखेंगे. उन्हें अपना कार्य बचाना है न.

आइए, जानते हैं केंद्र में भाजपा की अगुआई वाली सरकार आखिर किस की चौकीदारी कर रही है.

कांग्रेस की ‘चौकीदार चोर है’ मुहिम के बाद भाजपा नेताओं ने सोशल मीडिया में अपने नाम के आगे चौकीदार लगाने का अभियान चलाया. प्रधानमंत्री के ट्विटर पर नाम से पहले चौकीदार लगाने के बाद भाजपा के दूसरे नेताओं ने भी ‘मैं भी चौकीदार’ लगाना शुरू कर दिया. भाजपा का यह अभियान ट्विटर पर टैं्रड भी करने लगा. इसे ले कर भाजपा और विपक्षी दलों में सोशल मीडिया पर वार छिड़ गई.

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विकास के बहाने एजेंडे पर जोर

भाजपा का यह अभियान विपक्ष के निशाने पर है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं कि प्रधानमंत्री प्रयास करते रहें पर इस से सचाई को नहीं दबाया जा सकता. वोट के लिए अपने को चौकीदार बताया जा रहा है, जबकि पिछले चुनाव के समय वोट की खातिर खुद को चायवाला प्रचारित किया था.

लोकसभा के 2019 के आम चुनावों में जिस तरह से प्रचार चला उस में जनता से जुड़े किसी मुद्दे की चर्चा ही नहीं हुई.

2014 में भाजपा विकास का नारा ले कर सत्ता में आई थी, पर शीघ्र ही वह अपने ब्राह्मणवादी हिंदुत्व एजेंडे पर उतर आई. गौरक्षा, वंदेमातरम, समान नागरिक संहिता, जम्मूकश्मीर में धारा 370 खत्म करने का मुद्दा, राष्ट्रवाद, राममंदिर निर्माण, आसमानी मूर्तियों का निर्माण, दलितों का दमन, मौब लिंचिंग, तीन तलाक, योग, आयुर्वेद, संस्कृत की अनिवार्य शिक्षा, इतिहास पुनर्लेखन, नदियों की सफाई का ढोंग, तीर्थों का विकास, अर्द्धकुंभ का महाकुंभ के रूप में आयोजन जैसे मुद्दे जोरशोर से उठाने शुरू कर दिए गए.

विज्ञान पर हमले शुरू कर दिए गए. आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों को पौराणिककाल की करार देने की कोशिशें शुरू कर दी गईं ताकि पौराणिक विचार सर्वोपरि बता कर स्थापित किए जा सकें.

हिंदुत्ववादी सोच को आगे बढ़ाने के उद्ेदश्य से पौराणिक विज्ञान की बातें कर तार्किक और वैज्ञानिक सोच पर हमला किया जा रहा है.

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं मुंबई के रिलायंस हौस्पिटल के एक कार्यक्रम में कहा था कि पौैराणिक काल में भी आनुवंशिक विज्ञान मौजूद था. महाभारत में कर्ण अपनी मां की कोख से पैदा नहीं हुए थे. इस का मतलब है कि उस समय भी जेनेटिक साइंस थी जिस से वह अपनी मां के गर्भ से बाहर पैदा हो सके.

उन्होंने गणेश के बारे में प्राचीनकाल में प्लास्टिक सर्जरी के प्रमाण के रूप में उल्लेख करते हुए कहा था कि  उस समय किसी प्लास्टिक सर्जन ने हाथी के सिर को मानव शरीर पर लगाया होगा.

इसी तरह मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने मानव विकास के बारे में चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत को गलत बताते हुए कहा था कि  किसी ने भी बंदर को आदमी में बदलते हुए नहीं देखा था. उन्होंने इस वैज्ञानिक तथ्य की परवा नहीं की कि जैविक विकास क्रम में किसी प्रजाति का परिवर्तन लाखों साल के अंतराल पर हो पाता है, न कि एक इंसान के जीवनकाल में.

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने भी अपना पौैराणिक ज्ञान देते हुए फरमाया था कि भारत में टैक्नोलौजी महाभारत के समय से विकसित है. महाभारत में इंटरनैट, सैटेलाइट जैसी सुविधाएं उपलब्ध थीं क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो संजय धृतराष्ट्र को युद्ध का विवरण कैसे सुनाते.

बिप्लब देब के इस ज्ञान पर कई जोक और मीम्स बन चुके हैं और सोशल मीडिया पर खूब मजाक भी उड़ाया गया.

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा था कि राजा जनक की बेटी सीता टैस्टट्यूब बेबी थीं. पौैराणिक आख्यानों के अनुसार, सीता खेत में पड़े एक घड़े में मिली थीं.

केंद्र के एक और मंत्री हर्षवर्द्धन ने कहा था कि स्टीफन हौकिंस ने भी माना था कि आइंस्टीन की थ्योरी से आगे वेद हैं.

राजस्थान के शिक्षा मंत्री रहे वासुदेव देवनानी ने यह दावा किया था कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है जो औक्सीजन ग्रहण करती है और औक्सीजन छोड़ती है.

भाजपा के नेता पुष्पक विमान को ले कर भी तमाम दावे करते रहे हैं. यानी, भाजपाई सभी पौराणिक आख्यानों को वैज्ञानिक साबित करने पर तुले हैं.

मिस्र के लोग जिन भगवानों पर आस्था रखते थे उन के सिर भी जानवरों के थे. क्लियोपेट्रा के किस्सों से पता चलता है कि हैड्जवर का सिर लंगूर का था और एन्सूबिस का सिर लोमड़ी जैसा था. अगर भाजपा नेताओं को मिस्र की प्राचीन आस्थाओं का ज्ञान होता तो शायद वे यह कहने से भी नहीं चूकते कि भारत ने मिस्र तक अपने ज्ञान का निर्यात किया.

कट्टर संगठनों का खौफ

भाजपा के सत्ता में आने के बाद हिंदू संगठनों ने दलितों पर बेखौफ हो कर हमले किए. सहारनपुर में दलितों की बस्ती में आग लगा दी गई. दलित नेता चंद्रशेखर रावण को देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिया गया.

महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में दलितों पर हमला किया गया. घरों में तोड़फोड़, आगजनी की गई, गाडि़यां जला दी गईं. इस हमले में कई दलित घायल हो गए थे.

शैक्षणिक संस्थानों में हिंदुत्व विचारधारा थोपने के प्रयास किए गए. दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में दलित, वंचित तबकों के छात्रों की छात्रवृत्ति बंद करने की कोशिशें की गईं. धर्म, जाति, भ्रष्टाचार से आजादी की मांग उठाने पर कई छात्रों पर देशद्रोह के मुकदमे कायम करा दिए गए.

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला को आर्थिक, सामाजिक तौर पर प्रताडि़त कर के उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया गया.

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सितंबर 2017 में बेंगलुरु में कन्नड़ लेखिका व पत्रकार गौरी लंकेश की हिंदू कट्टरवादियों ने घर में घुस कर गोलियों से हत्या कर दी. तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, प्रोफैसर एम एम कलबुर्गी जैसे उदारवादी लेखकों, चिंतकों की आवाजें गोलियों से बंद कर दी गईं.

इन घटनाओं के आरोपियों को भाजपा की सत्ता ने न केवल बचाने की कोशिशें कीं, जांचकार्य को प्रभावित भी किया.

धर्म, जाति के नाम पर देशभर में नफरत, हिंसा फैलाने और संविधान के उल्लंघन की शुरुआत कर दी गई. पिछले 5 वर्षों से जिस राष्ट्रवाद का राग आलापा जा रहा है वह वास्तव में हिंदू राष्ट्रवाद है ताकि सिर्फ ब्राह्मणों की सलाह से हर काम होता रहे.

वोट हथियाने की साजिश

देश की 130 करोड़ जनता के लिए चौकीदार को लोकसभा चुनाव का मुद्दा बनाया जा रहा है. इस से पहले ‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारे को प्रचारित किया गया. पिछले 2014 के चुनावों में प्रधानमंत्री को चाय वाला के रूप में प्रचारित किया गया था. यानी इस देश का प्रधानमंत्री खुद को चाय वाला, चौकीदार बता कर उन निचले, दलित, पिछड़े वर्गों को अपने साथ जोड़ लेना चाहता है जो छोटेछोटे कामधंधे, नौकरी कर रहे हैं.

क्या चाय वालों और चौकीदारों की दशा सुधर गई? भाजपा के शासन में इन निचले तबकों की कोईर् तरक्की नहीं हुई. दलित, पिछड़े, गरीब वर्गों को चौकीदार की जरूरत ही नहीं पड़ती. यह वर्ग तो खुद औरों की चौकीदारी करता है और अपना पेट पालता है.

प्रधानमंत्री और उन का पूरा मंत्रिमंडल फिर किस की चौकीदारी की बात कर रहा है? देश के खजाने के पैसे की. वह पैसा किस के पास रहता है? नौकरशाहों के, चुन कर आए नेताओं के पास. ये लोग कितने होंगे? गिनती के. प्रधानमंत्री की सारी कवायद यही है कि ये लोग भ्रष्टाचार न करें. सारी तो क्या, प्रधानमंत्री केवल चंद लोगों की चौकीदारी करने के लिए इसे इतना बड़ा मुद्दा बना रहे हैं.

यह कैसी चौकीदारी

बात चौकीदारी की हो तो भाजपा की सरकार रहते हुए विजय माल्या 9 हजार करोड़ रुपए ले कर कैसे भाग गया? कई बैंकों का पैसा ले कर नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, ललित मोदी कैसे फुर्र हो गए? राफेल सौदे पर क्यों बवाल मचा हुआ है? सौदे के गायब दस्तावेजों पर सरकार क्यों डरी हुई है? सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के

2 बेटों का विदेशों में कालाधन होने का मामला पब्लिक डोमैन में है. इन मामलों को ले कर चौकीदार की ईमानदारी पर सवाल उठ रहे हैं.

कालाधन जमा करने वालों के नाम संसद में उजागर नहीं होने दिए गए. सुप्रीम कोर्ट ने नामों की लिस्ट मांगी, तब दी गई, पर नाम जाहिर न करने की अदालत से गुहार की गई.  जाहिर है चौकीदारी का यह अभियान आम लोगों के लिए तो नहीं है.

किसान, बेरोजगार, अल्पसंख्यक, गरीब, वंचित, दलित, पिछड़े बगैर चौकीदारी के त्रस्त हैं, पिस रहे हैं. उन के बुनियादी हक तक उन्हें मुहैया नहीं हो रहे. देशभर के असल चौकीदार मीडिया के सामने आ कर कह रहे हैं उन्हें न्यूनतम वेतन भी मुहैया नहीं है.

नोटबंदी और जीएसटी लागू कर के छोटे कारोबारियों को खत्म कर दिया गया. उन का तो धंधा उलटे लूट लिया गया.

हां, भाजपा चौकीदार है तो सिर्फ हिंदुत्व की. जैसे कि राम थे. भाजपा पंडों, पुजारियों, गौरक्षकों, साधु, संतों, गुरुओं, ज्योतिषियों, प्रवाचकों, योगाचार्यों के धंधे की रखवाली करती आई है. उन के धंधे को और बढ़ाने में मदद कर रही है. धर्म के नाम पर तमाम तरह के ढोंग करने वालों और राममंदिर बनाने वालों की जरूर चौकीदार है वह. इन लोगों के धंधे की चौकसी सरकार बखूबी करती आई है भले ही धर्म के नाम पर धंधा करने वाले कई बाबा बलात्कार के मामलों में जेलों में बैठे हों.

भाजपा के सत्ता में आने के बाद कट्टर हिंदुत्व ताकतों को खुली छूट मिल गई. गौकशी के नाम पर भीड़तंत्र द्वारा लोगों की हत्याओं को अंजाम दिया जाने लगा. देशभर में मौब लिंचिंग की वारदातों की बाढ़ सी आ गई और इन घटनाओं पर सरकार या तो मौन रही या सरकार में बैठे नेताओं द्वारा इस तरह की घटनाओं को जायज ठहराने की कोशिशें की गईं. आरोपियों को देशभक्त ठहराया गया और उन्हें सम्मानित तक किया गया.

उत्तर प्रदेश के दादरी में गौहत्या के शक में अखलाक को पीटपीट कर मार डाला गया था. पहले मंदिर में माइक से अखलाक के घर में गौमांस होने की अफवाह फैलाई गई और फिर कट्टरपंथियों की जुटी भीड़ घर में घुस कर अखलाक व उन के बेटे दानिश को पीटने लगी. पिटाई से अखलाक की मौत हो गई थी. दानिश को भी घायल होने पर अस्पताल में भरती रहना पड़ा था.

इसी तरह, अप्रैल 2017 में राजस्थान के अलवर में पहलू खान नामक शख्स की गौतस्करी का आरोप लगा कर पीटपीट कर हत्या कर दी गई. डेयरी का धंधा करने वाले पहलू खान जयपुर से गाएं खरीद कर ला रहे थे. रास्ते में गौरक्षा के नाम पर धंधा चलाने वाले गुंडों ने पहलू खान को रोक लिया और मारनेपीटने लगे. बाद में पहलू खान की मौत हो गई.

अलवर के ही रकबर खान को भी गौतस्करी के आरोप में भीड़ द्वारा मार डाला गया. दोनों मामलों में आरोपियों को बचाने की कोशिशें की गईं. पहलू खान के हत्यारों को तो पुलिस ने क्लीन चिट दे दी थी पर देशभर में जब होहल्ला मचा तब 9 आरोपी तय किए गए.

हिंदूवादी संगठनों द्वारा आरोपियों को राष्ट्रभक्त करार दिया गया. राज्य की तब की भाजपा सरकार द्वारा मामले में लीपापोती की गई. क्षेत्र के भाजपा विधायक रहे ज्ञानदेव आहूजा ने तो रकबर खान की मौत पुलिस हिरासत में बता कर असली अपराधियों को बचाने का प्रयास किया. आरोपी विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हुए थे.

2017 में ईद के मौके पर दिल्ली के सदर बाजार से खरीदारी कर के लोकल टे्रन से बल्लभगढ़ जा रहे एक किशोर जुनैद की भीड़ ने पीटपीट कर हत्या कर दी थी.

अखलाक मामले में एक आरोपी पर केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने तिरंगा लपेटा था और दूसरे केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने आरोपियों को सम्मानित किया था.

महिलाओं की पहरेदारी

सरकार स्त्रियों की सुरक्षा की नहीं, उन्हें धार्मिक मर्यादा के बाहर न निकलने देने की पहरेदारी जरूर कर रही है. स्त्रियों का शनि शिगणापुर, सबरीमाला जैसे मंदिरों में प्रवेश नहीं करने देने और पढ़ने जैसे मनुस्मृति के आदेशों की पहरेदारी की जा रही है.

दलितों, अल्पसंख्यकों पर हमलों की अनगिनत वारदातों पर सरकार खामोश रहती है या इन हमलों को जायज ठहराती रही है, इन की चौकदारी की चिंता उसे नहीं है. दरअसल, सरकार की असली चौकीदारी वर्णव्यवस्था को बनाए रखने की रही है.

धर्म के ठेकेदारों के धंधे को बचाने के लिए पाखंड, झूठ की पोल खोलने वालों पर डंडे फटकारे हैं. धर्म के रास्ते पर न चलने वालों को सबक सिखाया जा रहा है, धमकियां दी जा रही हैं. सरकार को उन की चौकीदारी की परवा नहीं है.

पिछले 5 वर्षों में अगर चौकीदारी हुई है तो केवल हिंदुत्व की. प्रयागराज में अर्धकुंभ था पर इस में 30 हजार करोड़ रुपए खर्च कर महाकुंभ के रूप में बंदोबस्त किया गया. देशभर के निठल्ले साधुओं, शंकराचार्याें, महंतों, मठाधीशों के लिए हलवापूरी का इंतजाम किया गया. पंडों के लिए दानदक्षिणा की व्यवस्था कराई गई.

सदियों से धर्म के जरिए जिस तरह जनता को बेवकूफ बनाया जाता रहा है, ‘मैं भी चौकीदार’ जैसा प्रचार अभियान भाजपा का एक और ढोंग ही है, इस से किसी का भला नहीं होगा. हां, भाजपा एक बार फिर सत्ता में आ कर फिर से धर्म के धंधेबाजों की चौकीदारी करती रहेगी. इस से न तो जनता का विकास होगा, न देश का.

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विकास के एजेंडे से हट कर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति अपना ली गई. देश में हिंदूराज स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. 1925 में बने संघ का सपना भारत में हिंदूराज की स्थापना करने का ही रहा है. उस के नेता समयसमय पर हिंदूराज का राग अलापते आ रहे हैं. देश में पेशवाराज जैसी नीतियां सफल होती दिख रही हैं.

2014 के बाद भाजपा सरकार द्वारा भारत को एक अलग तरीके के राष्ट्रवाद की स्वीकृति दिलाने की कोशिशें की गईं जिस का आधार हिंदू धर्म है. संघ और भाजपा शुरू से लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष भारत की अवधारणा से सहमत नहीं रहे. हिंदुत्व को मुख्यधारा की राजनीति में लाने में भाजपा कामयाब होती दिख रही है. भाजपा गैरबराबरी वाली व्यवस्था आधारित धर्म के बल पर देश को चलाना चाहती है.

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