ऐसा शायद सट्टे के ज्ञात इतिहास में पहली बार हो रहा है कि खाईबाजों की नींद उडी हुई है. यहां बात चुनावी सट्टे की जा रही है जिसमें सटोरिये गच्चा खा गए हैं और जैसे-तैसे संभावित नुकसान की भरपाई करने चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बात पर पैसा लगाएं कि इस बार भी भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिल रही हैं और एनडीए आखिरकार फिर से सरकार बना ले जाएगा. इस बाबत सट्टा सिटी के नाम से मशहूर इंदौर सहित पूरे देश भर के सटोरिये जी जान से जुटे हुये भी हैं.
गड़बड़झाला समझने के लिए साल की शुरुआत पर नजर डाला जाना जरूरी है, जब हर कोई यह मान कर चल रहा था कि भाजपा इस बार भी बहुमत में आ जाएगी तब इक्का दुक्का लोग ही चुनाव पर सट्टा लगा रहे थे क्योंकि चुनावी परिदृश्य लगभग स्पष्ट था, लेकिन जैसे ही चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ तो सट्टा बाजार भी गुलजार हो उठा. सबसे ज्यादा दांव भाजपा और एनडीए के बहुमत पर ही लगे जिसका भाव तब सबसे कम था. चुनावी सट्टे में जिसका भाव सबसे कम होता है उसके जीतने के चांस उतने ही ज्यादा होते हैं. पहले दौर की वोटिंग होते होते अच्छी खासी रकम भाजपा की जीत पर लग चुकी थी.
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लेकिन तीसरे दौर की वोटिंग आते आते अचानक बाजी पलटी और चुनावी माहौल और मतदाताओं का मूड देख कर लोग भाजपा की कम सीटों पर दांव लगाने लगे. अब चूंकि बात बहुमत से हटकर भाजपा को मिलने बाली सीटों की संख्या पर आ गई थी इसलिए खाइबाज सावधान होने लगे क्योंकि वे लंबी रकम भाजपा की बहुमत बाली सरकार के नाम पर ले चुके थे और ऐसे में अगर भाजपा उम्मीद से कम सीटों पर सिमट कर रह जाती है और एनडीए भी बहुमत नहीं ला पाये तो उन्हें करोड़ों का नुकसान होना तय था. जिस भाजपा को शुरू में सट्टा बाजार आसानी से 280 सीटें देता नजर आ रहा था अब वह 180 देने में भी हिचक रहा है.
आदर्श आचार संहिता के चलते न्यूज़ चेनल्स और दूसरी एजेंसियों के चुनावी सर्वेक्षणों पर रोक लगी हुई है और अधिकांश मीडिया रिपोर्ट्स और विश्लेषण भाजपा के पक्ष में जा रहे थे इसलिए सटोरियों ने उसके नाम पर खूब पैसा बटोरा पर जैसे ही त्रिशंकु लोकसभा की सुगबुगाहट शुरू हुई तो नजारा एकदम बदल गया. हाल अब यह है कि ज़्यादातर लोग इसी बात पर दांव लगा रहे हैं कि लोकसभा त्रिशंकु होगी और एनडीए आसानी तो क्या मुश्किल से भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है.
इस बात की पुष्टि जब खुद भाजपा नेता राम माधव और फिर शिवसेना के संजय राऊत ने कर दी तो एकदम से त्रिशंकु लोकसभा पर दांव लगना शुरू हो गए. सटोरियों को भी यह एहसास है कि इस बार का घमासान आसान नहीं है तो वे घबरा उठे क्योंकि जितना दांव त्रिशंकु लोकसभा पर लग रहा है उसी अनुपात में उनका नुकसान हो रहा है. भोपाल के एक बुकी यानि खाईबाज की मानें तो एक महीने पहले तक सौ में से नव्वे लोग भाजपा पर दांव लगा रहे थे, लेकिन अब सौ में से दस लोग भी भाजपा को बहुमत में आना नहीं मान रहे. ऐसे में भाजपा पर पहले लगाया गया पैसा तो हम हजम कर जाएंगे, लेकिन नई दिक्कत यह है कि अब हर कोई उस पर दांव नहीं लगा रहा अधिकांश लोग त्रिशंकु लोकसभा पर ही पैसा लगा रहे हैं.
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अब अगर लोकसभा त्रिशंकु आई तो सटोरियों को बड़ा भुगतान करना पड़ेगा. इंदौर के एक नामी सटोरिये ने बताया कि दिक्कत यह है कि अभी भी सट्टा बाजार में भाजपा का भाव सबसे कम है यानि उसके बहुमत में आने की संभावनाएं सबसे ज्यादा हैं तब भी लोग उस पर दांव नहीं लगा रहे, इससे हम खुद को गहरे गड्ढे में गिरता महसूस कर रहे हैं. अब होगा यह कि हमें बड़ा भुगतान उन लोगों को करना पड़ेगा जो त्रिशंकु लोकसभा और भाजपा की 200 से कम सीटों पर दांव लगा रहे हैं.
इन सटोरियों का अंदाजा लगाने का अपना एक अलग गणित होता है. मसलन प्रमुख और नामी नेताओं की रैलियों में उमड़ती भीड़, मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया के अलावा आम लोगों में हो रही चर्चा. सट्टे का भाव अब हर घंटे घट और बढ़ रहा है इसे दिलचस्प तरीके से समझने कांग्रेसी नेता सेम पित्रोदा का दिया वह बयान काफी है जिसमें उन्होने 1984 के दंगों पर कहा था कि जो हो गया सो हो गया. इस पर जैसे ही भाजपा और प्रधानमंत्री ने आक्रामक तेवर दिखाये तो भाजपा का भाव 32 पैसे से गिरकर 28 पर आ गया. फिर जैसे ही कांग्रेस ने अपनी सफाई दी और खुद सेम पित्रोदा ने अपनी मंशा बताई तो चार घंटों में भाव फिर यथावत हो गया मानो कुछ हुआ ही न हो, लेकिन असल दिक्कत ये तात्कालिक बातें या हालात नहीं बल्कि त्रिशंकु लोकसभा की आशंका है, यह सटोरिया बताता है कि खाइबाजों को मुनाफा तभी होगा जब ज़्यादातर लोग भाजपा की बढ़ी सीटों पर दांव लगाएंगे, जो अब न के बराबर हो रहा है. इन सटोरियों ने आकर्षक छूट की तर्ज पर भाजपा का भाव गिराकर रखा है जिससे ज़्यादातर लोग उस पर पैसा लगाएं.
आमतौर पर मीडिया सटोरियों के अंदाजे और आंकड़े लेता रहा है पर पहली बार गंगा उल्टी बह रही है कि सटोरिये मीडिया से आस लगा रहे हैं और इस बाबत ख़ासी रकम भी खर्च कर रहे हैं कि वह बढ़ चढ़ कर भाजपा को आगे बताए. भोपाल का एक सटोरिया बताता है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के इस बयान से भाजपा का भाव बढ़ा ही है कि उनकी पार्टी की सीटों में इस बार 55 सीटों का इजाफा हो रहा है.
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सटोरियों के मुताबिक नरेंद्र मोदी के भी चुनावी मुद्दों से हटकर बोलने से भाजपा का भाव बढ़ता है और लोग उस पर कम दांव लगाना शुरू कर देते हैं. सबसे ज्यादा दांव लोग उत्तरप्रदेश की सीटों की संख्या पर लगा रहे हैं. इंदोर के ही एक सटोरिये के मुताबिक अब कोई भी इस पर पैसा नहीं लगा रहा कि भाजपा वहां 25 से ज्यादा सीटें ले जाएगी जबकि मार्च में लोग मान रहे थे कि भाजपा 45 से 50 सीटें ले जाएगी. अब आम लोगों की नजर में सपा बसपा मिलकर 50 सीटें ले जा रहे हैं बाकी 40 में से 12- 15 कांग्रेस ले जा सकती है.
त्रिशंकु लोकसभा पर बढ़ते दांव की एक बड़ी वजह उत्तरप्रदेश भी है जिसने सटोरियों को भी मोदी और भाजपा का भजन कीर्तन करने मजबूर कर दिया है बावजूद यह जानने समझने के कि अब यह मुमकिन नहीं. सटोरिये दरअसल में अपने ही बिछाए जाल में फंसते जा रहे हैं जिन्होंने आंख बंद कर यह मान लिया था कि इस बार भाजपा और एनडीए के नाम पर तबियत से चांदी काटेंगे, लेकिन बिसात उलटती नजर आ रही है तो वे घबराए हुये भी हैं अब वे भाजपा का भाव और कम करेंगे तो भी खाई में गिरेंगे और अगर बढ़ाएंगे तो त्रिशंकु लोकसभा पर दांव खेलने बालों की तादाद बढ़ेगी जिसके भाव इन्होने पहले से ही बढ़ा रखे हैं.
Edited by- Rosy