पंजाब की राजनीति बेहद दिलचस्प मोड़ पर आ खड़ी हुई है. शिअद यानी शिरोमणि अकाली दल और भाजपा की तरह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच भी गठबंधन न हो पाने से कहने को भले ही मुकाबला चतुर्कोणीय हो गया हो लेकिन वह 13 में से 4 सीटों पर सिमटा दिखाई दे रहा है, बाकी 9 पर तो आप और कांग्रेस भारी पड़ रहे हैं. सिखबाहुल्य राज्य पंजाब में न तो राम मंदिर और हिंदुत्व का कोई असर है और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां कभी करिश्माई साबित हो पाए हैं.
वे वहां इन बातों और मुद्दों का जिक्र करने में हिचकते हैं, हां, हिंदुओं और सिखों के बीच फूट डालने का दोष जरूर कांग्रेस के सिर मढ़ देते हैं जो बेअसर ही साबित होता रहा है. न केवल नरेंद्र मोदी बल्कि पूरा भगवा गैंग यह राग अलापता रहता है लेकिन सिख इस से भड़कते नहीं क्योंकि वे बेहतर जानतेसमझते हैं कि भाजपा का मकसद सिर्फ फूट डालना रहता है.

हिंदू राष्ट्र के होहल्ले और खतरों से भी सिख समुदाय वाकिफ है और कभी इस से सहमत नहीं रहा. जबजब भी इस मुद्दे ने जोर पकड़ा तो जवाब में खालिस्तान की मांग उठी जो भाजपा की नजर में राष्ट्रद्रोह होती है और आतंकवाद फैलाती है.
पंजाब में अगर कोई मुद्दा है तो वह किसान आंदोलन और किसानों की मांगे हैं. दूसरा मुद्दा जो धीरेधीरे जोर पकड़ रहा है वह शराब नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की साजिशाना और नाजायज गिरफ्तारी है. बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार पर भी वहां के लोग मुखर हैं यानी भाजपा के हक में कुछ खास नहीं है जिस ने 2019 का लोकसभा चुनाव शिअद के साथ लड़ा था तब उसे महज 2 सीटें 9.63 फीसदी वोटों के साथ मिली थीं. शिअद के खाते में भी 2 सीटें ही गई थीं लेकिन उम्मीद के मुताबिक उस का वोट शेयर ठीकठाक 27.76 रहा था.

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