Download App

दिल्ली दंगे और आरोपियों को सजा

उम्मीद तो नहीं थी कि 2020 की फरवरी में उत्तरी दिल्ली में कराए गए मुसलिमों के खिलाफ दंगों, आगजनी और हत्याओं पर किसी हिंदू को भी सजा मिलेगी पर पहली कोर्ट ने एक दिनेश यादव को गुनाहगार मान ही लिया है. वह एक घर जलाने का अपराधी माना गया है जिस में 73 साल की मुसलिम औरत जल कर मर गई.

पुलिस और गवाहों की मिलीभगत से कई दशकों से सत्ता में बैठी पार्टी के गुर्गों के लिए कुकर्मों पर सजा कम ही मिल पाती है. 1984 के दंगों में 2-4 को सजा मिली, मेरठ के ङ्क्षहदूमुसलिम दंगों में नहीं मिली, 2002 के गुजरात के दंगों में नहीं मिली और उत्तरी दिल्ली के दंगों में बीसियों मुसलिम आज भी गिरफ्तार है. पर हिंदू दंगाई आजाद है और एकदो को पहली अदालत ने सजा दी है और शायद ऊंची अदालतों तक यह भी खत्म हो जाएगी.

हमारी क्रिमीनल कानून व्यवस्था ही ऐसी है कि गुनाहगारों को अगर सजा देती है तो अदालत में मामला जाने से पहले दे दो, जमानत न दो. इस चक्कर में गुनाहगाहर और बेगुनाह दोनों फंस जाते हैं. 200-300 की हिंदूओं की भीड़ में से केवल एक को अपराधी मान कर न्याय का कचूमर निकाला गया है. इस भीड़ ने मकानों पर हमला किया, लूटा और फिर वहां दुबके छिपे लोगों के साथ मकान को बिना डरे आग लगा दी और फैसला अभी झोल लिए हुए है कि वह अपराधी भीड़ का हिस्सा था और भीड़ के लूट व हत्या की. यह फैसला ऐसा है जो अपील में बदला जाए तो बड़ी बात नहीं.

आज भी इस इलाके में डर का माहौल यह है कि भीड़ में चेहरे पहचानने वाले केवल पुलिस वाले गवाह है, आम आदमी नहीं. जो मरे उन के रिश्तेदार भी चुप हैं. क्योंकि वे जानते हैं कि इस तरह के दंगों में किसी को सजा न देने का पुरानी परंपरा है और इक्केदुक्के मामलों में सजा पहली अदालत ने दे भी दी तो बाद में छूट जाएंगे.

हिंदूमुसलिम दंगों या हिंदू सिख दंगों में खुलेआम हत्याएं हुर्ई और लूट व आगजनी हुई पर गिरफ्तार मुट्ठीभर लोग हुए और वे भी एकएक कर के छूट गए. हां उन में से कुछ को लंबे समय अदालतों के चक्कर काटने पड़े जो अपनेआप में किसी सजा से कम नहीं है. पर यह तो लाखों बेगुनाहों को करना होता जिन्हें जैसेतैसे पुलिस के हां करने पर जमानत मिल ही जाती है.

धर्म किसी को सुधारता है, आदमी बनाता है, सच बोलना सिखाता है, अच्छे काम करने का रास्ता दिखाता है, गलत कामों से रोकता है, यह सब ख्याली पुलाव है और धाॢमक दंगे इसकी पोल खोलते हैं. आज नहीं हमेशा से, भारत में ही नहीं दुनिया भर में, औरत, जमीन और पैसे पर नहीं धर्म पर ज्यादा मारकाट हुई है और मारने और लूटनेवालों के हमेशा अपने धर्म से धर्म की रक्षा करने की वाहवाई मिली है. हर धाॢमक नेता के पीछ कोई बड़ा अपराध या बड़ा अपराधी है. फिर भी लोगों को कहा जाता है कि धर्म के सहारे ही समाज टिका है.

उत्तरी दिल्ली के कई मामलों में फैसले आने हैं पर वे कुछ अच्छा फैसला देंगे या आरोप पैदा करेंगे, इस का भरोसा कम है. अदालत तो वही देखेंगी न जो दिखाया जाएगा.

सच्चाई: आखिर क्यों मां नहीं बनना चाहती थी सिमरन?

पड़ोस में आते ही अशोक दंपती ने 9 वर्षीय सपना को अपने 5 वर्षीय बेटे सचिन की दीदी बना दिया था. ‘‘तुम सचिन की बड़ी दीदी हो. इसलिए तुम्हीं इस की आसपास के बच्चों से दोस्ती कराना और स्कूल में भी इस का ध्यान रखा करना.’’ सपना को भी गोलमटोल सचिन अच्छा लगा था. उस की मम्मी तो यह कह कर कि गिरा देगी, छोटे भाई को गोद में भी नहीं उठाने देती थीं. समय बीतता रहा. दोनों परिवारों में और बच्चे भी आ गए. मगर सपना और सचिन का स्नेह एकदूसरे के प्रति वैसा ही रहा. सचिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए मणिपाल चला गया. सपना को अपने ही शहर में मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया था. फिर एक सहपाठी से शादी के बाद वह स्थानीय अस्पताल में काम करने लगी थी. हालांकि सचिन के पापा का वहां से तबादला हो चुका था. फिर भी वह मौका मिलते ही सपना से मिलने आ जाता था. सऊदी अरब में नौकरी पर जाने के बाद भी उस ने फोन और ईमेल द्वारा संपर्क बनाए रखा. इसी बीच सपना और उस के पति सलिल को भी विदेश जाने का मौका मिल गया. जब वे लौट कर आए तो सचिन भी सऊदी अरब से लौट कर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी कर रहा था.

‘‘बहुत दिन लगा दिए लौटने में दीदी? मैं तो यहां इस आस से आया था कि यहां आप अपनी मिल जाएंगी. मम्मीपापा तो जबलपुर में ही बस गए हैं और आप भी यहां से चली गईं. इतने साल सऊदी अरब में अकेला रहा और फिर यहां भी कोई अपना नहीं. बेजार हो गया हूं अकेलेपन से,’’ सचिन ने शिकायत की. ‘‘कुंआरों की तो साथिन ही बेजारी है साले साहब,’’ सलिल हंसा, ‘‘ढलती जवानी में अकेलेपन का स्थायी इलाज शादी है.’’

‘‘सलिल का कहना ठीक है सचिन. तूने अब तक शादी क्यों नहीं की?’’ सपना ने पूछा.

‘‘सऊदी अरब में और फिर यहां अकेले रहते हुए शादी कैसे करता दीदी? खैर, अब आप आ गई हैं तो लगता है शादी हो ही जाएगी.’’

‘‘लगने वाली क्या बात है, शादी तो अब होनी ही चाहिए… और यहां अकेले का क्या मतलब हुआ? शादी जबलपुर में करवा कर यहां आ कर रिसैप्शन दे देता किसी होटल में.’’

‘‘जबलपुर वाले मेरी उम्र की वजह से न अपनी पसंद का रिश्ता ढूंढ़ पा रहे हैं और न ही मेरी पसंद को पसंद कर रहे हैं,’’ सचिन ने हताश स्वर में कहा, ‘‘अब आप समझा सको तो मम्मीपापा को समझाओ या फिर स्वयं ही बड़ी बहन की तरह यह जिम्मेदारी निभा दो.’’ ‘‘मगर चाचीचाचाजी को ऐतराज क्यों है? तेरी पसंद विजातीय या पहले से शादीशुदा बालबच्चों वाली है?’’ सपना ने पूछा.

‘‘नहीं दीदी, स्वजातीय और अविवाहित है और उसे भविष्य में भी संतान नहीं चाहिए. यही बात मम्मीपापा को मंजूर नहीं है.’’

‘‘मगर उसे संतान क्यों नहीं चाहिए और अभी तक वह अविवाहित क्यों है?’’ सपना ने शंकित स्वर में पूछा. ‘‘क्योंकि सिमरन इकलौती संतान है. उस ने पढ़ाई पूरी की ही थी कि पिता को कैंसर हो गया और फिर मां को लकवा. बहुत इलाज के बाद भी दोनों को ही बचा नहीं सकी. मेरे साथ ही पढ़ती थी मणिपाल में और अब काम भी करती है. मुझ से शादी तो करना चाहती है, लेकिन अपनी संतान न होने वाली शर्त के साथ.’’

‘‘मगर उस की यह शर्त या जिद क्यों है?’’

‘‘यह मैं ने नहीं पूछा न पूछूंगा. वह बताना तो चाहती थी, मगर मुझे उस के अतीत में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं तो उसे सुखद भविष्य देना चाहता हूं. उस ने मुझे बताया था कि मातापिता के इलाज के लिए पैसा कमाने के लिए उस ने बहुत मेहनत की, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया, जिस के लिए कभी किसी से या स्वयं से लज्जित होना पड़े. शर्त की कोई अनैतिक वजह नहीं है और वैसे भी दीदी प्यार का यह मतलब यह तो नहीं है कि उस में आप की प्राइवेसी ही न रहे? मेरे बच्चे होने न होने से मम्मीपापा को क्या फर्क पड़ता है? जतिन और श्रेया ने बना तो दिया है उन्हें दादादादी और नानानानी. फूलफल तो रही है उन की वंशबेल,’’ फिर कुछ हिचकते हुए बोला, ‘‘और फिर गोद लेने या सैरोगेसी का विकल्प तो है ही.’’

‘‘इस विषय में बात की सिमरन से?’’ सलिल ने पूछा. ‘‘उसी ने यह सुझाव दिया था कि अगर घर वालों को तुम्हारा ही बच्चा चाहिए तो सैरोगेसी द्वारा दिलवा दो, मुझे ऐतराज नहीं होगा. इस के बावजूद मम्मीपापा नहीं मान रहे. आप कुछ करिए न,’’ सचिन ने कहा, ‘‘आप जानती हैं दीदी, प्यार अंधा होता है और खासकर बड़ी उम्र का प्यार पहला ही नहीं अंतिम भी होता है.’’

‘‘सिमरन का भी पहला प्यार ही है?’’ सपना ने पूछा. सचिन ने सहमति में सिर हिलाया, ‘‘हां दीदी, पसंद तो हम एकदूसरे को पहली नजर से ही करने लगे थे पर संयम और शालीनता से. सोचा था पढ़ाई खत्म करने के बाद सब को बताएंगे, लेकिन उस से पहले ही उस के पापा बीमार हो गए और सिमरन ने मुझ से संपर्क तक रखने से इनकार कर दिया. मगर यहां रहते हुए तो यह मुमकिन नहीं था. अत: मैं सऊदी अरब चला गया. एक दोस्त से सिमरन के मातापिता के न रहने की खबर सुन कर उसी की कंपनी में नौकरी लगने के बाद ही वापस आया हूं.’’ ‘‘ऐसी बात है तो फिर तो तुम्हारी मदद करनी ही होगी साले साहब. जब तक अपना नर्सिंगहोम नहीं खुलता तब तक तुम्हारे पास समय है सपना. उस समय का सदुपयोग तुम सचिन की शादी करवाने में करो,’’ सलिल ने कहा.

‘‘ठीक है, आज फोन पर बात करूंगी चाचीजी से और जरूरत पड़ी तो जबलपुर भी चली जाऊंगी, लेकिन उस से पहले सचिन मुझे सिमरन से तो मिलवा,’’ सपना ने कहा. ‘‘आज तो देर हो गई है, कल ले चलूंगा आप को उस के घर. मगर उस से पहले आप मम्मी से बात कर लेना,’’ कह कर सचिन चला गया. सपना ने अशोक दंपती को फोन किया. ‘‘कमाल है सपना, तुझे डाक्टर हो कर भी इस रिश्ते से ऐतराज नहीं है?  तुझे नहीं लगता ऐसी शर्त रखने वाली लड़की जरूर किसी मानसिक या शारीरिक रोग से ग्रस्त होगी?’’ चाची के इस प्रश्न से सपना सकते में आ गई.

‘‘हो सकता है चाची…कल मैं उस से मिल कर पता लगाने की कोशिश करती हूं,’’ उस ने खिसियाए स्वर में कह कर फोन रख दिया.

‘‘हम ने तो इस संभावना के बारे में सोचा ही नहीं था,’’ सब सुनने के बाद सलिल ने कहा. ‘‘अगर ऐसा कुछ है तो हम उस का इलाज करवा सकते हैं. आजकल कोई रोग असाध्य नहीं है, लेकिन अभी यह सब सचिन को मत बताना वरना अपने मम्मीपापा से और भी ज्यादा चिढ़ जाएगा.’’

‘‘उन का ऐतराज भी सही है सलिल, किसी व्याधि या पूर्वाग्रस्त लड़की से कौन अभिभावक अपने बेटे का विवाह करना चाहेगा? बगैर सचिन या सिमरन को कुछ बताए हमें बड़ी होशियारी से असलियत का पता लगाना होगा,’’ सपना ने कहा. ‘‘सिमरन के घर जाने के बजाय उस से पहले कहीं मिलना बेहतर रहेगा. ऐसा करो तुम कल लंचब्रेक में सचिन के औफिस चली जाओ. कह देना किसी काम से इधर आई थी, सोचा लंच तुम्हारे साथ कर लूं. वैसे तो वह स्वयं ही सिमरन को बुलाएगा और अगर न बुलाए तो तुम आग्रह कर के बुलवा लेना,’’ सलिल ने सुझाव दिया. अगले दिन सपना सचिन के औफिस में पहुंची ही थी कि सचिन लिफ्ट से एक लंबी, सांवली मगर आकर्षक युवती के साथ निकलता दिखाई दिया.

‘‘अरे दीदी, आप यहां? खैरियत तो है?’’ सचिन ने चौंक कर पूछा.

‘‘सब ठीक है, इस तरफ किसी काम से आई थी. अत: मिलने चली आई. कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘सिमरन को लंच पर ले जा रहा था. शाम का प्रोग्राम बनाने के लिए…आप भी हमारे साथ लंच के लिए चलिए न दीदी,’’ सचिन बोला.

‘‘चलो, लेकिन किसी अच्छी जगह यानी जहां बैठ कर इतमीनान से बात कर सकें.’’

‘‘तब तो बराबर वाली बिल्डिंग की ‘अंगीठी’ का फैमिलीरूम ठीक रहेगा,’’ सिमरन बोली. चंद ही मिनट में वे बढि़या रेस्तरां पहुंच गए. ‘बहुत बढि़या आइडिया है यहां आने का सिमरन. पार्किंग और आनेजाने में व्यर्थ होने वाला समय बच गया,’’ सपना ने कहा. ‘‘सिमरन के सुझाव हमेशा बढि़या और सटीक होते हैं दीदी.’’

‘‘फिर तो इसे जल्दी से परिवार में लाना पड़ेगा सब का थिंक टैंक बनाने के लिए.’’ सचिन ने मुसकरा कर सिमरन की ओर देखा. सपना को लगा कि मुसकराहट के साथ ही सिमरन के चेहरे पर एक उदासी की लहर भी उभरी जिसे छिपाने के लिए उस ने बात बदल कर सपना से उस के विदेश प्रवास के बारे में पूछना शुरू कर दिया. ‘‘मेरा विदेश वृतांत तो खत्म हुआ, अब तुम अपने बारे में बताओ सिमरन.’’ ‘‘मेरे बारे में तो जो भी बताने लायक है वह सचिन ने बता ही दिया होगा दीदी. वैसे भी कुछ खास नहीं है बताने को. सचिन की सहपाठिन थी, अब सहकर्मी हूं और नेहरू नगर में रहती हूं.’’

‘‘अपने पापा के शौक से बनाए घर में जो लाख परेशानियां आने के बावजूद इस ने बेचा नहीं,’’ सचिन ने जोड़ा, ‘‘अकेली रहती है वहां.’’

‘‘डर नहीं लगता?’’

‘‘नहीं दीदी, डर तो अपना साथी है,’’ सिमरन हंसी. ‘‘आई सी…इस ने तेरे बचपन के नाम डरपोक को छोटा कर दिया है सचिन.’’ सिमरन खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं दीदी, इस ने बताया ही नहीं कि इस का नाम डरपोक था. किस से डरता था यह दीदी?’’ ‘‘बताने की क्या जरूरत है जब रातदिन इस के साथ रहोगी तो अपनेआप ही पता चल जाएगा,’’ सपना हंसी. ‘‘रातदिन साथ रहने की संभावना तो बहुत कम है, मैं मम्मीजी की भावनाओं को आहत कर के सचिन से शादी नहीं कर सकती,’’ सिमरन की आंखों में उदासी, मगर स्वर में दृढ़ता थी. सपना ने घड़ी देखी फिर बोली, ‘‘अभी न तो समय है और न ही सही जगह जहां इस विषय पर बहस कर सकें. जब तक मेरा नर्सिंगहोम तैयार नहीं हो जाता, मैं तो फुरसत में ही हूं, तुम्हारे पास जब समय हो तो बताना. तब इतमीनान से इस विषय पर चर्चा करेंगे और कोई हल ढूंढ़ेंगे.’’

‘‘आज शाम को आप और जीजाजी चल रहे हैं न इस के घर?’’ सचिन ने पूछा.

‘‘अभी यहां से मैं नर्सिंगहोम जाऊंगी यह देखने कि काम कैसा चल रहा है, फिर घर जा कर दोबारा बाहर जाने की हिम्मत नहीं होगी और फिर आज मिल तो लिए ही हैं.’’

‘‘आप मिली हैं न, जीजाजी से भी तो मिलवाना है इसे,’’ सचिन बोला, ‘‘आप घर पर ही आराम करिए, मैं सिमरन को ले कर वहीं आ जाऊंगा.’’

‘‘इस से अच्छा और क्या होगा, जरूर आओ,’’ सपना मुसकराई, ‘‘खाना हमारे साथ ही खाना.’’ शाम को सचिन और सिमरन आ गए. सलिल की चुटकियों से शीघ्र ही वातावरण अनौपचारिक हो गया. जब किसी काम से सपना किचन में गई तो सचिन उस के पीछेपीछे आया.

‘‘आप ने मम्मी से बात की दीदी?’’

‘‘हां, हालचाल पूछ लिया सब का.’’

‘‘बस हालचाल ही पूछा? जो बात करनी थी वह नहीं की? आप को हो क्या गया है दीदी?’’ सचिन ने झल्ला कर पूछा. ‘‘तजरबा, सही समय पर सही बात करने का. सिमरन कहीं भागी नहीं जा रही है, शादी करेगी तो तेरे से ही. जहां इतने साल सब्र किया है थोड़ा और कर ले.’’ ‘‘इस के सिवा और कर भी क्या सकता हूं,’’ सचिन ने उसांस ले कर कहा. इस के बाद सपना ने सिमरन से और भी आत्मीयता से बातचीत शुरू कर दी. यह सुन कर कि सचिन औफिस के काम से मुंबई जा रहा है, सपना उस शाम सिमरन के घर चली गई. उस का घर बहुत ही सुंदर था. लगता था बनवाने वाले ने बहुत ही शौक से बनवाया था. ‘‘बहुत अच्छा किया तुम ने यह घर न बेच कर सिमरन. जाहिर है, शादी के बाद भी यहीं रहना चाहोगी. सचिन तैयार है इस के लिए?’’ ‘‘सचिन तो बगैर किसी शर्त के मेरी हर बात मानने को तैयार है, लेकिन मैं बगैर उस के मम्मीपापा की रजामंदी के शादी नहीं कर सकती. मांबाप से उन के बेटे को विमुख कभी नहीं करूंगी. प्रेम तो विवेकहीन और अव्यावहारिक होता है दीदी. उस के लिए सचिन को अपनों को नहीं छोड़ने दूंगी.’’

‘‘यह तो बहुत ही अच्छी बात है सिमरन. चाचाचाचीजी यानी सचिन के मम्मीपापा भी बहुत अच्छे हैं. अगर उन्हें ठीक से समझाया जाए यानी तुम्हारी शर्त का कारण बताया जाए तो वे भी सहर्ष मान जाएंगे. लेकिन सचिन ने उन्हें कारण बताया ही नहीं है.’’ ‘‘बताता तो तब न जब उसे खुद मालूम होता. मैं ने उसे कई बार बताने की कोशिश की, लेकिन वह सुनना ही नहीं चाहता. कहता है कि जब मेरे साथ हो तो भविष्य के सुनहरे सपने देखो, अतीत की बात मत करो. मुझे भी अतीत याद रखने का कोई शौक नहीं है दीदी, मगर अतीत से या जीवन से जुड़े कुछ तथ्य ऐसे भी होते हैं जिन्हें चाह कर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, उन के साथ जीना मजबूरी होती है.’’ ‘‘अगर चाहो तो उस मजबूरी को मुझ से बांट सकती हो सिमरन,’’ सपना ने धीरे से कहा. ‘‘मैं भी यही सोच रही थी दीदी,’’ सिमरन ने जैसे राहत की सांस ली, ‘‘अकसर देर से जाने और बारबार छुट्टी लेने के कारण न नौकरी पर ध्यान दे पा रही थी न पापा के इलाज पर, अत: मैं नौकरी छोड़ कर पापा को इलाज के लिए मुंबई ले गई थी. वहां पैसा कमाने के लिए वैक्यूम क्लीनर बेचने से ले कर अस्पताल की कैंटीन, साफसफाई और बेबी सिटिंग तक के सभी काम लिए. फिर मम्मीपापा के ऐतराज के बावजूद पैसा कमाने के लिए 2 बार सैरोगेट मदर बनी. तब तो मैं ने एक मशीन की भांति बच्चों को जन्म दे कर पैसे देने वालों को पकड़ा दिया था, लेकिन अब सोचती हूं कि जब मेरे अपने बच्चे होंगे तो उन्हें पालते हुए मुझे जरूर उन बच्चों की याद आ सकती है, जिन्हें मैं ने अजनबियों पर छोड़ दिया था. हो सकता है कि विचलित या व्यथित भी हो जाऊं और ऐसा होना सचिन और उस के बच्चे के प्रति अन्याय होगा. अत: इस से बेहतर है कि यह स्थिति ही न आने दूं यानी बच्चा ही पैदा न करूं. वैसे भी मेरी उम्र अब इस के उपयुक्त नहीं है. आप चाहें तो यह सब सचिन और उस के परिवार को बता सकती हैं. उन की कोई भी प्रतिक्रिया मुझे स्वीकार होगी.’’

‘‘ठीक है सिमरन, मैं मौका देख कर सब से बात करूंगी,’’ सपना ने सिमरन को आश्वासन दिया. सिमरन ने जो कहा था उसे नकारा नहीं जा सकता था. उस की भावनाओं का खयाल रखना जरूरी था. सचिन के साथ तो खैर कोई समस्या नहीं थी, उसे तो सिमरन हर हाल में ही स्वीकार थी, लेकिन उस के घर वालों से आज की सचाई यानी सैरोगेट मदर बन चुकी बहू को स्वीकार करवाना आसान नहीं था. उन लोगों को तो सिमरन की बड़ी उम्र बच्चे पैदा करने के उपयुक्त नहीं है कि दलील दे कर समझाना होगा. सचिन के प्यार के लिए इतने से कपट का सहारा लेना तो बनता ही है.

मुद्दा: सिविल सोसाइटी को कुचलने की मंशा

सरदार वल्लभभाई पटेल नैशनल पुलिस एकैडमी, हैदराबाद में वर्ष 2020 बैच के दीक्षांत परेड समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने प्रशिक्षु पुलिस अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘सिविल सोसाइटी चौथी पीढ़ी के युद्ध का औजार है. आईपीएस अधिकारियों को देखना होगा कि इस के जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा को कोई खतरा पैदा न हो.’’

डोभाल ने कहा, ‘‘अब युद्ध का नया मोरचा, जिसे आप युद्ध की चौथी पीढ़ी कहते हैं, सिविल सोसाइटी है. युद्ध अब अपने राजनीतिक या सैन्य लक्ष्यों को हासिल करने के प्रभावी उपाय नहीं रह गए हैं. उन के नतीजों को ले कर अनिश्चितता की स्थिति बन गई है. लेकिन सिविल सोसाइटी को राष्ट्र के हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए परास्त और दुष्प्रेरित किया जा सकता है. उस में फूट डाली जा सकती है, उसे बहलाया जा सकता है और आप यह देखने के लिए हैं कि वे पूरी तरह सुरक्षित रहें.’’

जिस दिन जम्मूकश्मीर पुलिस ने एक युवक की हत्या करने के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल से सवाल पूछने के लिए एक मानवाधिकार कार्यकर्ता को गिरफ्तार किया, वह वही दिन था जब अजीत डोभाल ने प्रशिक्षु पुलिस अधिकारियों से कहा कि नागरिक समाज (सिविल सोसाइटी ‘युद्ध का चौथा मोरचा’ है. यानी उन्होंने सिविल सोसाइटी को देश के दुश्मन के रूप में रेखांकित करते हुए प्रशिक्षुओं के दिलों में देश के सजग नागरिकों के प्रति एक गांठ डाल दी, अपरोक्ष रूप से यह कहने की कोशिश की कि सत्ता से सवाल पूछने वाला देश का दुश्मन है.

गौरतलब है कि भारत में नागरिक समाज ने हमेशा लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम किया है, चाहे उन की जाति, पंथ, लिंग, समुदाय, जगह या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो. अगर यह नागरिक समाज न होता तो सूचना के अधिकार या रोजगार गारंटी या शिक्षा के बुनियादी अधिकार जैसे कानूनों का बनना कठिन होता. विकास के तर्क के मुकाबले आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार या पर्यावरण के संरक्षण के प्रश्न भी इसी नागरिक समाज ने ही उठाए.

नागरिक समाज हमेशा सरकार की उन नीतियों या सरकार के उन कार्यों का विरोध करता रहा है जिन्हें आम लोगों के हित के खिलाफ माना जाता है. सिविल सोसाइटी के अंतर्गत तमाम स्वयंसेवी संस्थाएं, छात्रों और वकीलों के समूह, ग्रामीण आंदोलनकारी, गैरसरकारी संगठन, मजदूर संघ, देसी समूह, परमार्थ संगठन, आस्था आधारित संगठन, पेशेवर संघ और तमाम तरह के प्रतिष्ठान आते हैं तो क्या ये सब देश के दुश्मन हैं?

तो क्या महात्मा गांधी के तमाम आंदोलन अजीत डोभाल द्वारा तय की गई परिभाषा के तहत देशद्रोह माने जाएं? भारतीय नागरिक समाज ने स्वतंत्रता के बाद सरकार के खिलाफ सब से मजबूत प्रतिरोध की मिसाल उस वक्त पेश की जब इंदिरा गांधी ने जून 1975 में आपातकाल की घोषणा की थी. यह प्रतिरोध भी शांतिपूर्ण था और इस में कोई हिंसा या विद्रोह शामिल नहीं था. क्या वह देश के लिए खतरा था? क्या उसे देशद्रोह करार दिया गया था? अगर देशभर का किसान सरकार द्वारा लाए गए 3 कृषि कानूनों के खिलाफ सड़क पर आंदोलनरत रहा तो क्या इसे देश के लिए खतरा मान लिया जाए?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने दिल्ली की नैशनल लौ यूनिवर्सिटी के 8वें दीक्षांत समारोह में कानून स्नातकों को संबोधित करते हुए कहा कि आप आत्मकेंद्रित नहीं रह सकते. देश की विचार प्रक्रिया पर संकीर्ण और पक्षपातपूर्ण मुद्दों को हावी न होने दें. आखिरकार यह हमारे लोकतंत्र और हमारे राष्ट्र की प्रगति को नुकसान पहुंचाएगा.

श्री रमन्ना ने कहा, ‘‘छात्रों की समाज के प्रति एक विशेष जिम्मेदारी है और वे सार्वजनिक बहस व सामाजिक, आर्थिक वास्तविकताओं से अलगथलग नहीं रह सकते. छात्र भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का चेहरा रहे हैं. उन्होंने ऐसे मुद्दों को उठाया है जिन्होंने राजनीतिक दलों को उन को अपनाने के लिए प्रेरित किया. लेकिन पिछले कुछ दशकों में छात्र समुदाय से कोई बड़ा नेता सामने नहीं आया है.’’

राजनीतिक जानकारों की मानें तो केंद्र की सत्ता पर काबिज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तानाशाह शासक बनने की चाह रखते हैं. वे अपनी सत्ता और शासन के प्रति लोगों से पूर्ण वफादारी चाहते हैं और दूसरों की राय या परेशानियों से उन्हें कोई मतलब नहीं है. एनएसए अजीत डोभाल या हैलिकौप्टर हादसे में शिकार हुए चीफ औफ डिफैंस स्टाफ विपिन रावत जैसे मोदी के खास लोगों के समयसमय पर दिए गए वक्तव्य इसी मंशा को पूरी करने की राह तैयार करते रहे हैं.

लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं

गौरतलब है कि पुलिस अकादमी से निकलने वाले प्रशिक्षुओं का मन कच्चे घड़े की तरह होता है. उस पर कुछ भी उकेरा जा सकता है. खासतौर से अगर सलाह अजीत डोभाल जैसे उन की अपनी सेवा के सफलतम अधिकारी के मुख से निकल रही हो तो उन में से अधिकांश के लिए यह किसी वेदवाक्य से कम नहीं होगा. सौ के लगभग ये अधिकारी अगले 5-6 वर्षों के भीतर देश के अलगअलग हिस्सों में पुलिस का मध्य नेतृत्व संभाल रहे होंगे और अगर तब उन्हें यह वक्तव्य याद आया कि राज्य के प्रभावी नैरेटिव के विपक्ष में खड़े दिखते नागरिक समाज के लोग देश की सुरक्षा के लिए खतरा होते हैं तो आप कल्पना कर सकते हैं कि उन के प्रति उस पुलिस अधिकारी का आचरण कैसा होगा.

उन्हें यह सम?ाना मुश्किल होगा कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए बड़े बांधों या आणविक संयंत्रों का विरोध करने वाले नागरिक देश के शत्रु नहीं हैं. उन्हें यह विश्वास दिलाने में भी आप को काफी प्रयास करना पड़ेगा कि घरेलू हिंसा के खिलाफ बातें करने वाले लोग भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के किसी वृहत्तर अंतराष्ट्रीय एजेंडे के अंग नहीं हैं.

विशेषज्ञ कहते हैं कि बीजेपी सरकार द्वारा चलाई जा रही वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है और सरकार इसे हर हाल में पूरा करना चाहती है. यह चीन की तरह भारतीय लोकतंत्र को एकदलीय शासन में बदलने की चाह है.

2014 से लोकतांत्रिक संस्थाओं का कमजोर होना, खुफिया विभाग का बजट 700 करोड़ रुपए कर दिया जाना जो 2012 में 17 करोड़ रुपए ही था और विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं आदि की जासूसी करने के लिए पैगासस टैक्नोलौजी का इस्तेमाल किया जाना आदि सब घटनाएं भारत के लोकतंत्र को एक तानाशाही शासन की ओर अग्रसर होने का संकेत देती हैं. यही कारण है कि पुलिस प्रबंधन के शीर्ष आईपीएस अधिकारियों को नागरिक समाज के खिलाफ किया जा रहा है. अगर ऐसा हुआ तो यह भारतीय लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा और सरकार की नीतियों और कार्यों के विरुद्ध किसी भी सामूहिक विरोध को विभाजनकारी व गैरकानूनी माना जाएगा और पुलिस के पास इसे पूरी ताकत से दबाने का लाइसैंस होगा. इस के परिणाम भयावह होंगे.

पिछले 7 वर्षों में देश में जो कुछ हुआ है, अगर उस पर गौर किया जाए तो हम पाएंगे कि कैसे असहमति या विरोध को दबाने के लिए सभी कानूनों का खुलेआम उल्लंघन किया गया है. वर्तमान में दलितों, मुसलमानों और अन्य कमजोर समूहों के खिलाफ नफरत व हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई.

मुसलिम युवकों, विशेष रूप से विश्वविद्यालय के लड़कों और लड़कियों पर दिल्ली दंगों के संबंध में देशद्रोह और आतंकवाद की धाराओं में केस दर्ज किए गए ताकि मुसलमानों में भय और आतंक पैदा किया जा सके. मुसलिम विद्यार्थियों का यही वर्ग राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा सरकार की नीतियों का विरोध करने वाला सब से बड़ा समूह है.

आंगनबाड़ी से ले कर सरकारी डाक्टरों, शिक्षकों और विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों के आंदोलन पर भी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध पर ध्यान नहीं दिया. किसानों द्वारा की जा रही

3 कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर एक वर्ष के लंबे अरसे तक कोई ध्यान नहीं दिया, बल्कि उन्हें कुचला गया और जब आगामी यूपी चुनाव में नुकसान होता दिखाई दिया तो अब ये कानून वापस ले लिए. इस के अलावा, सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले में विश्वविद्यालयों के वामपंथी ?ाकाव वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ भी मामला दर्ज किया था.

मुसलमानों और दलितों के बाद उच्च जाति के उन हिंदुओं और मीडियाकर्मियों व मीडिया संस्थानों को भी निशाना बनाया जा रहा है जो सरकार की योजना में बाधा बन रहे हैं. इस सब से पता चलता है कि देश किस ओर जा रहा है.

सरकार की मानसिकता

अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने न्यायपालिका से ‘फाइव स्टार एक्टिविस्ट्स’ से सावधान रहने को कहा. उन के इस बयान ने सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रति उन की मानसिकता को उजागर किया था. उन के इस भाषण के बाद एमनेस्टी इंटरनैशनल और ग्रीनपीस के खिलाफ कार्रवाई की गई थी. इस के बाद वामपंथी नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपमानित करने के लिए ‘अर्बन नक्सल’ शब्द का भी आविष्कार किया गया था. सरकार ने गैरसरकारी संगठनों की मानवाधिकार संबंधी उन की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए उन को मिलने वाले फंड में कमी लाने को एफसीआरए नियमों में संशोधन भी किया.

यह मानसिकता ही त्रिपुरा पुलिस को हाल में राज्य में हुए मुसलिमविरोधी हिंसा पर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार करने वाले वकीलों पर आतंकवाद के आरोप लगाने की ओर ले जाती है. यही मानसिकता उन वकीलों पर राजद्रोह जैसे गंभीर आपराधिक आरोप लगाती है जिन्होंने यह रिपोर्टिंग की थी कि 26 जनवरी को दिल्ली में हुए किसानों के प्रदर्शनों के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को वास्तव में गोली मारी गई थी.

विश्लेषकों की राय

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भारत 1947 से एक जीवंत लोकतंत्र रहा है और लोगों ने हमेशा अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करने के लिए किया है. ऐसे में अगर चीन की तरह भारत में भी लोकतंत्र को निरंकुश या एकदलीय शासन में बदलने के लिए कोई प्रयास किया गया तो इस का बड़े स्तर पर विरोध निश्चित है.

सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी

और ‘पीपुल फर्स्ट’ के अध्यक्ष एम जी देवासहायम, जो भारतीय सेना को भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं, अजीत डोभाल के वक्तव्य पर कहते हैं, ‘‘अजीत डोभाल के बयान से ऐसा लगता है कि वे भारत को अभी भी औपनिवेशिक राजशाही मानते हैं, जहां लोगों को प्रजा माना जाता है कि वह एक लोकतंत्र नहीं है, जहां लोगों को नागरिक माना जाता है. डोभाल के लिए लोग नहीं, बल्कि राज्यतंत्र सर्वोपरि है, जबकि हमारा संविधान इन शब्दों से शुरू होता है- ‘हम भारत के लोग…’ और इस में लोकतंत्र को एक ऐसे समाज के रूप में परिभाषित किया गया है जिस में नागरिक संप्रभु है और वही राज्यसत्ता का मालिक है.’’

एम जी देवासहायम आगे कहते हैं, प्रजा और नागरिक में भारी अंतर है. प्रजा वह है जो किसी सम्राट या सरकार की सत्ता के मातहत होती है. जबकि नागरिक को एक स्वतंत्र व्यक्ति के अधिकार और विशेषाधिकार हासिल होते हैं. सरकार के आदेश का पालन करना प्रजा का फर्ज है, जबकि नागरिक को यह अधिकार हासिल है कि वह राज्यसत्ता को आदेश दे क्योंकि वे ही अपने मताधिकार का प्रयोग कर के सरकार का गठन करते हैं. सार यह कि लोकतंत्र मूलतया ‘जनता की सत्ता’ है न कि राज्यतंत्र की सत्ता.

‘‘सिविल सोसाइटी की वास्तविक परिभाषा में भारत की पूरी जनता शामिल मानी जाएगी जिसे संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत मौलिक अधिकारों का दावा करने का संवैधानिक विशेषाधिकार हासिल है, सिवा सेना में शामिल लोगों के, जिन के संवैधानिक अधिकार सीमित हैं. सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर करने वाले लाखों आंदोलनकारी किसान भी सिविल सोसाइटी का हिस्सा हैं. ऐसे में अजीत डोभाल युवा पुलिस अधिकारियों से यह कैसे कह सकते हैं कि वे ‘हम, भारत के लोग’ को दुश्मन मानें और उन के खिलाफ युद्ध करें?’’

‘द शिलौंग टाइम्स’ की संपादक पैट्रिशिया मुखीम लिखती हैं, ‘‘एनएसए की नजर में केवल उन्हीं की अहमियत है जो भारतीय राज्यतंत्र के वफादारों के रूप में वर्तमान सरकार का खुला समर्थन करते हैं, जो हर पल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उन के नंबर दो अमित शाह का गुणगान करते रहते हैं, जो अपने सोशल मीडिया नैटवर्क का इस्तेमाल सरकार के आलोचकों की निरंतर निंदा में करते रहते हैं.’’

वे आगे लिखती हैं, ‘‘शिलौंग वी केयर’ नामक ?ांडे के नीचे इकट्ठा हुए विविध लोगों का समूह शायद पहला ऐसा संगठन है जो मेघालय में उग्रवाद के खिलाफ शुरू से लड़ रहा है. मेघालय में उग्रवादियों को भगाने में सिविल सोसाइटी समूह अग्रिम मोरचे पर रहे हैं. अजीत डोभाल के लिए बेहतर होगा कि वे भारत के मुख्य इलाकों को ही नहीं, बल्कि आंतरिक इलाकों के माहौल को भी सम?ाने की कोशिश करें और देश की विशद विविधताओं के मद्देनजर उसी के मुताबिक अपने सिद्धांत गढ़ें.’’

देश के नागरिकों के विशाल तबकों और सामाजिक कार्यों से जुड़े कार्यकर्ताओं को ‘युद्ध का नया मोरचा’ मानना और सिविल सोसाइटी के खिलाफ युद्ध को चौथी पीढ़ी के युद्ध के बराबर बताना उन दुविधाओं को बुलावा देना है

जो अल्पकालिक राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाती हैं. डोभाल साहब, यह नहीं चलेगा. भारत की अवधारणा आप की आधीअधूरी कल्पना से कहीं ज्यादा बड़ी है.

मनोहर कहानियां: रहस्यों में उलझी मिस केरल की मौत

राइटर- शाहनवाज

पहली नवंबर, 2021 की रात के करीब डेढ़ बज रहे थे. केरल के कोच्चि शहर की पुलिस को देर रात खबर मिली कि वेटिला और पलारीवट्टम के बीच होटल ‘होलीडे इन’ के पास एक कार के पेड़ से बुरी तरह से टकरा जाने पर उस के परखच्चे उड़ गए हैं, जिस में 4 लोग सवार थे.

कोच्चि शहर की पुलिस खबर मिलते ही बिना देर किए मौकाएवारदात पर पहुंची तो देखा कि इतनी रात को एक्सीडेंट होने की वजह से आसपास इलाके के लोगों ने सड़क किनारे पड़ी उस कार को घेरा हुआ था.

पुलिस के आते ही भीड़ छट गई. पुलिस ने सब से पहले कार में मौजूद सभी 4 लोगों को एकएक कर गाड़ी से बाहर निकाला और कार सवार सभी लोगों को नजदीक के अस्पताल में भरती कराया. लेकिन कार में सवार 2 युवतियों की मौत हो चुकी थी, जबकि बाकी बचे 2 लोग बुरी तरह से जख्मी थे. इन में से एक और शख्स की मौत भी कुछ देर बाद ही इलाज के दौरान हो गई.

पुलिस ने कार में मौजूद लोगों की पहचान शुरू की तो पता चला कि इन में से एक 2019 की मिस केरल अंसी कबीर (25) थी. जबकि दूसरी उसी साल मिस केरल कंप्टीशन की रनरअप रही अंजना शाजां (24) थी. मरने वाले तीसरे व्यक्ति की पहचान अंसी के दोस्त मोहम्मद आशिक (25) के रूप में हुई. गाड़ी में मौजूद चौथा व्यक्ति जो अकेला उस हादसे में बच गया था, वह उस कार का ड्राइवर अब्दुल रहमान था.

शुरुआती छानबीन में पुलिस को गाड़ी में शराब की कुछ बोतलें मिलीं, लिहाजा पुलिस ने अंदाजा लगा लिया कि ये ड्रंकन ड्राइव का ओपन एंड शट केस है.

यानी पुलिस यह मान कर चल रही थी कि ये दोनों मौडल और उन के दोस्त शराब के नशे में थे, जो गाड़ी चला रहा था वह भी नशे में था, लिहाजा उसी हालत में कार बेकाबू हुई और सड़क किनारे पेड़ से जा टकराई.

केरल के स्थानीय अखबारों और स्थानीय मीडिया में भी इस खबर को इसी तरह प्रसारित किया जा रहा था जिस से यह लग रहा था कि यह हादसा शराब के नशे में हुआ.

जिस गाड़ी में ये दोनों मौडल्स थीं, उस की तसवीरें देख कर भी ऐसा ही लग रहा था कि यह एक एक्सीडेंट ही रहा होगा. क्योंकि बिना दुर्घटना के किसी गाड़ी की ऐसी हालत नहीं हो सकती. ऊपर से गाड़ी में मिली शराब भी इसी तरफ इशारा कर रही थी.

लेकिन पुलिस के सामने सवाल यह था कि आखिर इतनी रात को अंसी और अंजना कहां जा रहे थे? हादसे को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने सब से पहले नैशनल हाईवे 66 पर, जहां अंसी और अंजना की गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था, पर मौजूद रास्ते के इर्दगिर्द सीसीटीवी कैमरों की छानबीन करनी शुरू कर दी.

सीसीटीवी कैमरों की छानबीन से पुलिस ने पाया कि जिस गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था, उस की रफ्तार काफी तेज थी. लेकिन हादसे के 7 दिनों के बाद 7 नवंबर, 2021 के दिन पुलिस को कुछ ऐसे सुराग और जानकारियां हासिल हुईं, जिस से कोच्चि में सड़क हादसे में 2 मौडलों का एक्सीडेंट का मामला एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करने लगा था.

दरअसल, पुलिस को यह सूचना मिली कि उस रात को अंसी कबीर और अंजना शाजां कोच्चि के एक होटल जिस का नाम ‘नंबर 18 होटल’ था, से एक हाईप्रोफाइल पार्टी से लौट रही थीं.

यह जानने के बाद पुलिस ने मामले की जांच को दोबारा से करने के लिए ‘नंबर 18 होटल’ का रुख किया. इसी के साथ ही दुर्घटना वाली रात के सीसीटीवी फुटेज को दोबारा से खंगालने का प्रयास किया गया.

सीसीटीवी फुटेज को दोबारा से देखने के बाद पुलिस को चौंका देने वाले सुराग हाथ लगा, जिस ने इस दुर्घटना को साजिश का रूप दे दिया था. उन्होंने देखा कि जिस गाड़ी में अंसी और अंजना मौजूद थे, उसी गाड़ी का पीछा 2 और गाडि़यां लगातार कर रही थीं.

यही नहीं, पुलिस ने सभी सीसीटीवी फुटेज को रिवर्स (पीछे) कर के देखा तो पाया कि अंसी और अंजना की गाड़ी के साथ वो 2 गाडि़यां भी उसी होटल से एक ही समय पर निकली थीं.

पुलिस को इस हाईप्रोफाइल मामले से जुड़े 2 अहम सुराग हाथ लगे थे, जिस की प्रामाणिकता जांचनी बाकी थी. पुलिस ने बिना समय गंवाए होटल पहुंच कर मामले की छानबीन करनी शुरू कर दी.

जब पुलिस ने होटल की सीसीटीवी फुटेज देखी तो मामला और भी संगीन और पेचीदा हो गया. पता चला कि 31 अक्तूबर की रात को अंसी, अंजना और उन के दोस्त जिस वक्त होटल में पहुंचे थे और जिस वक्त वहां से निकले थे, ठीक उसी वक्त की सारी फुटेज डिलीट की जा चुकी थीं.

क्राइम ब्रांच भी जुटी जांच में

इस से होटल प्रशासन पर पुलिस का शक गहराता चला गया. यहां से इस मामले की आगे की जांच कोच्चि क्राइम ब्रांच के हाथों सौंपी गई.

क्राइम ब्रांच की टीम ने होटल कर्मचारियों से जब इस बारे में पूछताछ की तो होटल कर्मचारियों ने मालिक रोय जोसफ व्यालात की ओर इशारा करते हुए बताया कि फुटेज मालिक के कहने पर ही डिलीट की गई थी.

क्राइम ब्रांच की टीम ने रोय जोसफ व्यालात को हिरासत में ले कर उस से इस बारे में पूछताछ की. लंबी पूछताछ के बाद 17 नवंबर को रोय जोसफ व्यालात ने क्राइम ब्रांच के सामने यह कुबूल कर लिया कि उस ने 31 अक्तूबर और पहली नवंबर की रात को साढ़े 7 बजे से रात 12 बजे तक की विडियो रिकौर्डिंग को नष्ट कर दिया है.

व्यालात ने क्राइम ब्रांच की टीम को बताया कि उस ने अपने एक होटल स्टाफ की मदद ले कर विडियो रिकौर्डिंग की हार्डडिस्क पास के थेवारु में कन्नामगट्टू ब्रिज से बहते हुए पानी में फेंक दी थी.

इस खुलासे के बाद कोच्चि पुलिस ने इंडियन नेवी, कोस्ट गार्ड और कोस्टल पुलिस की मदद से उसी जगह पर नष्ट हुई हार्डडिस्क को ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस की यह कोशिश कामयाब नहीं हो पाई.

इस के बाद होटल मालिक रोय जोसफ व्यालात और होटल के 5 कर्मचारियों को सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप में 17 नवंबर को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन व्यालात ज्यादा समय तक सलाखों के पीछे नहीं रहा.

व्यालात के बड़ेबड़े राजनीतिज्ञों से संबंध होने की वजह से उसे और उस के 5 अन्य कर्मचारियों को अगले ही दिन रिहा कर दिया गया.

इन सभी के बीच अंसी और अंजना का यह मामला कहीं न कहीं उलझता ही जा रहा था. कोच्चि क्राइम ब्रांच के सामने कई सवाल थे, जिन का खुलासा करना जरूरी था. जैसेजैसे इस मामले की परतें पुलिस और क्राइम ब्रांच के सामने खुलती जाती, वैसेवैसे पुलिस खुद को चारों ओर से घिरा हुआ महसूस करती.

कौन थी मिस केरल

साल 2019 में मिस केरल का खिताब हासिल करने वाली 25 वर्षीय अंसी कबीर केरल के त्रिवेंद्रम की रहने वाली थी. अपनी स्कूली शिक्षा के बाद, अंसी ने कजाकुट्टम के मैरियन कालेज से इलैक्ट्रौनिक संचार में स्नातक की पढ़ाई की थी.

अपने कालेज के दिनों के बाद अंसी ने दिसंबर 2019 में मिस केरल प्रतियोगिता में भाग लिया था. खिताब जीतने के बाद वह शूटिंग और उस से संबंधित अन्य गतिविधियों में बहुत व्यस्त हो गई थी.

अंजना शाजां ने साल 2019 के मिस केरल प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया था. अंजना का जन्म हैदराबाद में हुआ था. हैदराबाद के श्री चैतन्य जूनियर कालेज से ग्रैजुएशन की पढ़ाई के बाद अंजना ने केरल के केएमसीटी आयुर्वेद मैडिकल कालेज से मैडिकल की पढ़ाई की और डाक्टर बन गई.

अंजना को 2019 के मिस केरल कंपीटीशन में ‘मिस फोटोजेनिक’ और ‘मिस ब्यूटीफुल स्माइल’ के खिलाब से नवाजा गया था. यही नहीं, अंजना ने ‘सीवन सीपी’ नाम की मलयालम फिल्म में काम कर के फिल्म इंडस्ट्री में कदम भी रखा था.

ये दोनों ही मौडल एकदूसरे की बेहद अच्छी दोस्त थीं. दोनों की दोस्ती मिस केरल प्रतियोगिता के दौरान हुई और देखते ही देखते दोनों अच्छी दोस्त बन गई थीं. जब दोनों की मौत हुई थी तब यह बताया गया था कि दोनों कोच्चि के एक होटल में पार्टी कर के लौट रहीं थीं.

यह हादसा था या सुनियोजित हत्या

इन की कार में कुल 4 लोग थे. बताया जा रहा है कि जब ये कार से लौट रही थीं तभी इन की गाड़ी के सामने कोई बाइक वाला आ गया, जिसे बचाने में उन की कार बेकाबू हो कर पेड़ से टकरा गई थी.

पुलिस और क्राइम ब्रांच यह पता लगाने में जुट गई कि होटल में दोनों मौडल के साथ क्या हुआ? जिस होटल में पार्टी करने दोनों मौडल आई थीं, वहां ऐसा क्या हुआ, जिस के बाद अचानक ये घटना हुई जिस में दोनों की मौत हो गई. बताया जाता है कि जिस होटल में पार्टी थी, उस से जुड़े एक शख्स के लिंक ड्रग पेडलर से ले कर कई बड़े नेताओं और अभिनेताओं से हैं.

इस होटल में जो पार्टी हुई थी उसे क्लब 18 का नाम दिया गया था. इस में खासकर युवा देर रात तक पार्टी करते थे. जबकि कोच्चि में लेटनाइट पार्टी और ड्रग्स पर हर तरीके से रोक है.

लेकिन इस होटल में बड़े रसूख के चलते पार्टी होती है. उस रात भी वहां पार्टी हुई थी लेकिन उस के सीसीटीवी फुटेज को डिलीट कर दिया गया था.

बताया जाता है कि दोनों मौडल की होटल में एंट्री करने से ठीक पहले के सीसीटीवी फुटेज को डिलीट किया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा कौन सा राज था, जिस की वजह से फुटेज को हटाया गया?  होटल में दोनों मौडल के साथ ऐसा क्या हुआ था जिस के बाद दोनों का होटल से निकलते ही पीछा किया जाने लगा?

ऐसे में माना जा रहा है कि कहीं होटल में हुई किसी घटना को छिपाने के लिए दोनों मौडल की साजिश के तहत हत्या तो नहीं कराई गई? अब इस एंगल से भी क्राइम ब्रांच की टीम जांच कर रही थी.

एक्टर और ड्रग पेडलर की भूमिका पर सवाल

पुलिस की जांच में यह सामने आया है कि दोनों मौडल यानी अंसी कबीर और अंजना शाजां को उस रात पार्टी के बाद एक और पार्टी के लिए औफर किया गया था. ये औफर था वीआईपी लोगों के साथ आफ्टर पार्टी का. इस पार्टी का औफर साउथ की फिल्मों के एक मशहूर हीरो और होटल से जुड़े एक शख्स ने दिया था. इन के साथ में एक ड्रग पेडलर और औडी कार का ड्राइवर भी था जिस का नाम सैजू थांकचन है. उसी ने दोनों मौडल को आफ्टर पार्टी करने का औफर दिया था.

उस ने बताया था कि उस पार्टी में वीआईपी लोग शामिल होंगे. उस में एक्टर समेत कई नेता भी रहेंगे. लेकिन होटल में हुई कुछ बातों को ले कर दोनों मौडल ने आफ्टर पार्टी में जाने से सीधे मना कर दिया था.

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसी बात क्या थी, जिस की वजह से दोनों ने आफ्टर पार्टी में जाने से इनकार किया? साउथ फिल्मों के एक मशहूर अभिनेता की बातों को भी नजरअंदाज किया? इस की क्राइम ब्रांच जांच कर रही है.

हादसा था तो पीछा कर रहे लोगों ने सूचना क्यों नहीं दी? पुलिस की जांच में यह पता चला है कि जिस रूट से दोनों मौडल की कार त्रिशुर की तरफ जा रही थी, उन रास्तों के कई सीसीटीवी फुटेज देखे गए.

इस दौरान पुलिस को पता चला कि दोनों मौडलों का 2 कारों से पीछा किया जा रहा था. बताया जा रहा है कि उन दोनों कारों में से एक में साउथ का वही हीरो और दूसरे में होटल से जुड़ा शख्स था.

देर रात में जब हादसा हुआ तब उस समय मौजूद रहे प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ में और भी चौंकाने वाली बात सामने आई है. उस में यह पता चला है कि हादसे के बाद जब उस में सवार अंसी कबीर और अंजना दोनों गंभीर रूप से घायल थीं तब पीछा कर रहे कार वाले रुके भी थे.

उन में से कुछ लोग कार से बाहर निकल कर घटनास्थल तक आए थे. लेकिन उन दोनों ने इन की कोई मदद नहीं की और न ही पुलिस को सूचना दी.

ऐसे में सवाल उठता है कि अगर ये महज सड़क हादसा था तो पीछा करने वालों ने इस की सूचना पुलिस को दी क्यों नहीं? आखिर ऐसी क्या साजिश थी, जिसे अभी तक छिपाया जा रहा है? बहरहाल, कथा लिखने तक पुलिस इस केस की जांच में जुटी हुई थी.

Cubicles Season 2 Review: कारपोरेट जगत में काम करने वालों की कशमकश

रेटिंगः 3 स्टार

निर्माताः टीवीएफ

निर्देशकः चैतन्य कुंभकोणम

कलाकार:अभिषेक चौहाण, बद्री चौहाण, अभिषेक पांडे, शिवांकित परिहार, सोनू आनंद, निकेतन शर्मा,  प्रतीश मेहता, जैमिनी पाठक, अशीश गुप्ता, खुशबू बैद, आयुषी गुप्ता, निधि बिस्ट, विद्या पटेल व अन्य.

अवधिः लगभग तीस से 36 मिनट के पांच एपीसोड, कुल दो घंटे 42 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव

क्युबिकल्स’ के पहले सीजन के बाद कोरोना महामारी के चलते ‘वर्क फ्राम होम’चल रहा था, अब धीरे धीरे लोग आफिस जाने लगे हैं.

कहानीः

यूं तो दूसरे सीजन की कहानी वहीं से शुरू होती है,जहां पहले सीजन की कहानी खत्म हुई थी. लेकिन अब पीयूष का पुराना रूममेट कल्पेश चला गया है और अब उसका सहकर्मी गौतम (बद्री चव्हाण) उसका नया रूममेट है. ऐसा लग रहा था कि गौतम ने नए सीजन में पीयूष के साथ जगह बदल ली है, क्योंकि वह पीयूष को क्रैक करने की कोशिश कर रहा है और पीयूष को समय पर बिलों का भुगतान करने की याद दिलाता रहता है.

पुणे में पीयूष प्रजापति (अभिषेक चौहाण) को एक बड़ी आई टी कंपनी ‘‘सायनोटेक’ में अच्छी नौकरी मिल गयी है, लेकिन सैलरी थोड़ी कम है. फिर भी वह खुश है कि उसे बड़ी कंपनी मे उसे काम करने का मौका मिल रहा है, लेकिन जब पीयूष को उसकी कंपनी के बडे़ अफसरों व एचआर की तरफ से दबाव पड़ने लगता है, तो उसके जीवन में समस्याएं पैदा होने लगती हैं. वह दूसरी कंपनी में नौकरी के लिए कोशिश शुरू करता है.

पीयूष प्रजापति (अभिषेक चौहाण) की अपनी कहानी के साथ दूसरे किरदारों की कहानी भी चल रही है. पीयूष की बॉस मेघा अस्थाना (निधि बिष्ट) काम व निजी जीवन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है. दूसरी तरफ शेट्टी (निकेतन शर्मा) पिता बनने की दिशा में है और उसे पैटर्निटी लीव चाहिए. गौतम को जीवन साथी की तलाश है. जबकि नई भर्ती हुई सुनयना चौहाण (आयुषी गुप्ता) ‘छोड़ना मत चौहाण’ रटते हुए हर किसी का गला काटकर खुद आगे बढ़ने में यकीन करती है, पर अंततः पीयूष उसका हृदय परिवर्तन करता है.

एक एपीसोड में पीयूष कहते हैं कि एक कर्मचारी और एक संस्था के बीच तीन तरह के रिश्ते होते हैं.

हुकअप- जब कोई कर्मचारी एक माह के भीतर त्यागपत्र देता है.

विलंबित हुकअप – जब मामला 4-6 माह तक खिंचता है. लेकिन जब रिश्ता लंबा चलता है तो वह शादी जैसा होता है. इसीलिए अब पीयूष एक विवाहेत्तर संबंध की तलाश में है. वैसे भी वह अपनी वेतन वृद्धि से खुश नहीं है. लेकिन उसकी दुविधा यह है कि वह तीस प्रतिशत बढ़ी सैलरी के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा व ‘सर ’,‘मैम’ के साथ अपने उच्चाअधिकारियों के साथ बात करने वाली कंपनी में जाए अथवा कम सैलरी के बावजूद वहां काम करे जहां उसने दोस्त बनाए हैं और उच्चाधिकारी अपनेपन के माहौल में काम करते हैं.अंततः वह क्या चुनते हैं इसके लिए ‘क्यूबिकल्स एस 2’ देखना ही उचित होगा.

लेखन व निर्देशनः

निर्देशक की हास्य व ह्यूमर के साथ कथा कथन शैली काफी रोचक है.दर्शक बोर नही होता.इसमें इस बात को रेखंाकित किया गया है कि हर क्यूबिकल एक जैसा लगने के बावजूद कर्मचारियों द्वारा एक ही तरह का काम करने के साथ ही हर कर्मचारी अलग-अलग आकांक्षाओं और पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति है.निर्देशक चैतन्य कुंभकोणम कारपोरेट जगत में लोगों के सुबह नौ से षाम पांच बजे तक के जीवन को यथार्थ परक ढंग से चित्रित करने में सफल रहे हैं.वहीं उन्होने

कारपोरेट जगत में गला काट प्रतिस्पर्धा और अनैतिकता की परतों को बाखूबी चित्रित किया है. पर बीच बीच में दिलीप उर्फ आरडी एक्स की बातों व पीयूष के मन की बातों से जिस तरह का उपदेश परोसा गया है, उससे लोग सहमत नही हो सकते. इसे इस वेब सीरीज की कमजोरी समझी जा सकती है.मेघा के किरदार व उसकी कामकाजी व निजी जिंदगी के बीच के कश्मकश पर और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए था. सुनयना चौहाण का किरदार ठीक से नही लिखा गया. इस पर लेखक व निर्देशक दोनो को मेहनत करनी चाहिए थी, पर लेखक व निर्देशक का ध्यान केवल पीयूष पर ही केंद्रित रहा.

अभिनयः

अभिषेक चौहाण ने पीयूष प्रजापति के किरदार को अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. उन्होंने पीयूष को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है. तो वहीं पीयूष की बॉस मेघा के किरदार में निधि बिस्ट ने कमाल का अभिनय किया है. अन्य कलाकारों का अभिनय ठीक ठाक है.

एक्वेरियम में ऐसे रखें रंगीन मछली

डा. सुबोध कुमार शर्मा, विकास कुमार उज्जैनियां,

डा. बीके शर्मा और डा. नेमीचंद उज्जैनियां

एक्वेरियम में रंगीन मछलियों को रखना और उस का पालन एक दिलचस्प काम है, जो न केवल घर की खूबसूरती बढ़ाता है, बल्कि मन को भी शांत करता है. रंगीन मछलियां व एक्वेरियम व्यवसाय स्वरोजगार के जरीए पैसे बनाने के मौके भी मुहैया कराता है.

दुनियाभर में 10-15 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर के साथ रंगीन मछलियों व सहायक सामग्री का कारोबार 8 बिलियन डौलर से ज्यादा का है. इस में भारत की निर्यात क्षमता 240 करोड़ रुपए प्रति वर्ष है. दुनियाभर की विभिन्न जलीय पारिस्थितिकी से तकरीबन 600 रंगीन मछलियों की प्रजातियों की जानकारी हासिल है.

भारत सजावटी मछलियों के मामले में 100 से ऊपर देशी प्रजातियों के साथ बहुत ज्यादा संपन्न है. साथ ही, विदेशी प्रजाति की मछलियां भी यहां पैदा की जाती हैं. शहरों व कसबों में रंगीन मछलियों को एक्वेरियम में रखने का प्रचलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है.

रंगीन मछलियों को शीशे के एक्वेरियम में पालना एक खास शौक है. रंगबिरंगी मछलियां बच्चे व बूढ़े सभी का मन मोह लेती हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि रंगीन मछलियों के साथ समय बिताने से ब्लडप्रैशर कंट्रोल में रहता है और दिमागी तनाव कम होता है.

आजकल एक्वेरियम को घर में सजाना लोगों का एक प्रचलित शौक हो गया है. रंगीन मछलियों के पालन व एक्वेरियम बनाने की तकनीकी जानकारी से अच्छी आमदनी हासिल की जा सकती है.

बहुरंगी मछलियों  की प्रजातियां

देशी और विदेशी मीठे जल की बहुरंगी मछलियों की प्रजातियों की मांग ज्यादा रहती है. व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उन का प्रजनन और पालन भी आसानी से किया जा सकता है. व्यावसायिक किस्मों के तौर पर आसानी से उत्पादन की जा सकने वाली रंगीन मछलियों की प्रजातियां निम्न हैं :

बच्चे देने वाली मछलियां

गप्पी (पोयसिलिया रेटिकुलेटा), मोली (मोलीनेसिया स्पीशिज) और स्वार्ड टेल (जीफोफोरस स्पीशिज).

अंडे देने वाली मछलियां

गोल्ड फिश (कैरासियस ओराट्स), कोई कौर्प (सिप्रिनस कौर्पियो की एक किस्म), जैब्रा डेनियो (ब्रेकिडेनियो रेरियो), ब्लैक विडो टैट्रा (सिमोक्रो-सिंबस स्पीशिज), नियोन टैट्रा (हीफेसो-ब्रीकोन इनेसी), सर्पी टैट्रा (हाफेसोब्रीकौन कालिसट्स) व एंजिल वगैरह.

एक्वेरियम तैयार करने के लिए जरूरी सामग्री

एक्वेरियम तैयार करने के लिए निम्न सामग्री की जरूरत होती है :

  1. 5-12 एमएम की मोटाई का फ्लोट गिलास नाप के मुताबिक कटा हुआ.
  2. एक्वेरियम के सही आकार का ढक्कन,
  3. जरूरत के मुताबिक और मजबूत तकरीबन 30 इंच ऊंचाई वाला स्टैंड,
  4. सिलिकौन सीलेंट,
  5. पेस्टिंग गन,
  6. छोटेछोटे रंगबिरंगे पत्थर,
  7. जलीय पौधे (कृत्रिम या प्राकृतिक),
  8. एक्वेरियम के बैकग्राउंड के लिए रंगीन पोस्टर,
  9. सजावटी खिलौने व डिफ्यूजर स्टोन,
  10. थर्मामीटर व थर्मोस्टेट,
  11. फिल्टर उपकरण,
  12. एयरेटर व वायु संचरण की नलिकाएं,
  13. क्लोरीन फ्री स्वच्छ जल,
  14. रंगीन मछलियां पसंद के मुताबिक,
  15. मछलियों का भोजन जरूरत के अनुसार,
  16. हैंड नैट,
  17. बालटी,
  18. मग व साइफन नलिका,
  19. स्पंज वगैरह.

एक्वेरियम कहां रखें?

एक्वेरियम रखने की जगह समतल होनी चाहिए और धरातल मजबूत होना चाहिए. लोहे या लकड़ी के बने मजबूत स्टैंड या टेबल का इस्तेमाल किया जा सकता है, जहां एक्वेरियम रखना है, वहां बिजली का इंतजाम भी जरूरी है. ध्यान रहे कि एक्वेरियम पर सूरज की सीधी रोशनी न पड़े, वरना उस में काई जमा हो  सकती है.

एक्वेरियम कैसा हो?

एक्वेरियम को खुद बनाने में सावधानी की जरूरत होती है. पौलिश किए हुए शीशे की प्लेट को सीलेंट से जोड़ कर आप एक्वेरियम बना सकते हैं.

बाजार में मुहैया एक्वेरियम विक्रेता से अपनी पसंद का एक्वेरियम भी खरीद सकते हैं. आमतौर पर घरों के लिए एक्वेरियम 60×30×45 सैंटीमीटर लंबाई, चौड़ाई व ऊंचाई की मांग ज्यादा रहती है. शीशे की मोटाई  5-6 मिलीमीटर होनी चाहिए. इस से बड़े आकार का एक्वेरियम बनाने के लिए मोटे शीशे का इस्तेमाल करना चाहिए.

एक्वेरियम को ढकने के लिए फाइबर या लकड़ी के बने ढक्कन को चुन सकते हैं. ढक्कन के अंदर एक बल्ब व ट्यूबलाइट लगी होनी चाहिए. 40 वाट के बल्ब की रोशनी एक साधारण एक्वेरियम के लिए सही है.

एक्वेरियम को कैसे सजाएं?

एक्वेरियम को खरीदने के बाद उसे सजाने से पहले अच्छी तरह साफ  कर लेना चाहिए. साफ करने के लिए साबुन या तेजाब का इस्तेमाल न करें. एक्वेरियम को रखने की जगह तय कर के उसे एक मजबूत स्टैंड पर रखना चाहिए. एक्वेरियम के नीचे एक थर्मोकौल शीट लगानी चाहिए. इस के बाद पेंदे में साफ बालू की

1-2 इंच की मोटी परत बिछा देते हैं और उस के ऊपर छोटेछोटे पत्थर की एक परत बिछा दी जाती है.

पत्थर बिछाने के साथ ही थर्मोस्टेट, एयरेटर व फिल्टर को भी लगा दिया जाता है. एक्वेरियम में जलीय पौधे लगाने से टैंक खूबसूरत दिखता है.

बाजार में आजकल तरहतरह के कृत्रिम पौधे मुहैया हैं. एक्वेरियम को आकर्षक बनाने के लिए तरहतरह के खिलौने अपनी पसंद से लगाए जा सकते हैं.

एक्वेरियम में भरा जाने वाला पानी क्लोरीन से मुक्त होना चाहिए, इसलिए यदि नल का पानी हो तो उसे कम से कम एक दिन संग्रह कर छोड़ देना चाहिए और फिर उस पानी को एक्वेरियम में भरना चाहिए.

एक्वेरियम में कितनी मछलियां रखें?

एक्वेरियम तैयार कर अनुकूलित करने के बाद उस में अलगअलग तरह की रंगबिरंगी मछलियां पाली जाती हैं. रंगीन मछलियों की अनेक प्रजातियां हैं, पर इन्हें एक्वेरियम में एकसाथ रखने के पहले जानना जरूरी है कि यह एकदूसरे को नुकसान न पहुंचाएं.

छोटी आकार की मछलियां रखना एक्वेरियम के लिए ज्यादा बेहतर माना जाता है, जिन के नाम निम्नलिखित हैं:

ब्लैक मोली, प्लेटी, गप्पी, गोरामी, फाइटर, एंजल, टैट्रा, बार्ब, औस्कर,  गोल्ड फिश.

इन मछलियों के अतिरिक्त कुछ देशी प्रजातियां हैं, जिन को भी एक्वेरियम में रखा जाने लगा है. जैसे लोच, कोलीसा, चंदा, मोरुला वगैरह. आमतौर पर 2-5 सैंटीमीटर औसतन आकार की 5-10 मछलियां प्रति वर्गफुट जल में रखी जा सकती हैं.

एक्वेरियम प्रबंधन के लिए जरूरी बातें

थर्मोस्टेट द्वारा पानी का तापमान 240 सैल्सियस से 280 सैल्सियस के बीच बनाए रखें. 8-10 घंटे तक एयरेटर द्वारा वायु प्रवाह करना चाहिए. पानी साफ रखने के लिए मेकैनिकल व जैविक फिल्टर का इस्तेमाल करना चाहिए.

एक्वेरियम में उपस्थित अनावश्यक आहार, उत्सर्जित पदार्थों को प्रति सप्ताह साइफन द्वारा बाहर निकालते रहना चाहिए. कम हुए पानी के स्थान पर स्वच्छ पानी भरना चाहिए.

यदि कोई मछली मर जाती है, तो उसे तुरंत निकाल दें और यदि कोई मछली बीमार हो, तो उस का उचित उपचार भी करना चाहिए.

एक्वेरियम कारोबार से अनुमानित आमदनी

रंगीन मछलियों के पालन व एक्वेरियम निर्माण से अच्छी आमदनी की जा सकती है. इस के लिए मुख्यत: निम्न आयव्यय का विवरण दिया जा रहा है. समय, जगह व हालात में इस में बदलाव हो सकता है :

स्थायी लागत

शैडनैट (500 वर्गफुट), छायादार जगह (100 वर्गफुट), फाइबर व सीमेंट की टंकियां (10-15), एयर कंप्रैसर और वायु नलिकाएं, औक्सीजन सिलैंडर-1, विद्युत व जल व्यवस्था व अन्य खर्च 1,25,000 रुपए.

कार्यशील पूंजी

शिशु मछलियां (6,000), प्रबंधन खर्च, बिजली, पानी, मत्स्य आहार, एक्वेरियम निर्माण व सहायक सामग्री, स्थायी लागत पर ब्याज व अन्य खर्चे 1,65,000 रुपए.

आय

मछलियां (10,000 × 20 रुपए), एक्वेरियम टैंक व सहायक सामग्री (120 × 2500 रुपए), बेचे गए एक्वेरियम टैंकों की वार्षिक मेंटेनैंस 1200 रुपए टैंक, कुल आय तकरीबन रुपए 5,80,000-6,40,000 रुपए, शुद्ध आय तकरीबन 3,55,000 से 4,15,000 रुपए प्रति वर्ष हासिल की जा सकती.

मेरी ब्रैस्ट पर स्ट्रैच मार्क्स हो गए हैं, इन्हें हटाने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरी ब्रैस्ट पर स्ट्रैच मार्क्स हो गए हैं, जो बहुत बुरे दिखते हैं. कृपया इन्हें हटाने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

जवाब

शरीर के किसी भी हिस्से पर स्ट्रैच मार्क्स होने का मुख्य कारण वजन का तेज गति से बढ़ना या घटना होता है. आमतौर पर ऐसा किशोरावस्था, प्रैगनैंसी या बर्थ कंट्रोल पिल्स लेने के कारण होता है. शुरू में ये रैडिश या पर्पलिश दिखते हैं. इन्हें पूरी तरह से हटाया जाना कठिन होता है, लेकिन धीरेधीरे हाइड्रेशन थेरैपी व ऐक्सरसाइज द्वारा इन्हें हलका किया जा सकता है.

घरेलू उपाय के तौर पर आप ऐलोवेरा जैल से स्ट्रैच मार्क्स पर मसाज करें. इस के अलावा शिया या कोकोनट बटर को भी प्रभावित त्वचा पर लगा सकती हैं इस से स्किन हाइडे्रट होगी व स्ट्रैच मार्क्स धीरेधीरे हलके हो जाएंगे.

नीबू का रस भी अपनी ऐसिडिक प्रौपर्टीज के कारण स्ट्रैच मार्क्स को हलका करने में मदद करता है. नीबू के रस से स्ट्रैच मार्क्स पर 10-15 मिनट सर्कुलर मोशन में मसाज करें. बाद में धो लें. लाभ होगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

देश में बढ़ती बेरोजगारी

जब देश में बेरोजगारी बढ़ रही हो, छोटे धंधों का सफाया हो रहा हो. किसानों की आमदनी रोजाना घट रही हो, बिमारी का खौफ बढ़ रहा हो, हमारे प्रधानमंत्री क्या कर रहे हैं. काशी कौरीडोर और प्रयागराज के हाईवे का पत्थर रख रहे हैं. यह वैसा ही है जब घर में सब बिमार पड़ रहे हों, फसल पानी न होने की वजह से सूख रही हो, बेटा जेल में मारपीट के अपराध में बंद हो और बाप अपनी जिम्मेदारी निभाने के नाम पर 20 दिन पैदल चलकर एक मंदिर में पूजा करने जा पहुंचा हो कि भगवान अब भला करेंगे.

देश की सरकार को आजकल सिवाए आरतियां करने, तीर्थ बनाने और उपदेश देने के अलावा मानो कुछ और आता ही न हो. एक किसान डरता है कि उसे 20 बीधे के खेत के लिए किनी रातें जाग कर काम करना होता है पर यहां ऊंचे नेता हो या छोटे अफसर सब पूजापाठ में लग कर देश की नैया पार कराने में लगे हैं.

सरकार चल रही है क्योंकि देश के किसान मजदूर और छोटे कारखाने वाले अपने जीने का जुगाड़ करने के लिए रात दिन लगे रहते हैं. उन्हें सरकार बहुत मोटा टैक्स बसूलती है. लोगों को कहा जाता है कि किसान तो मुफ्त का अनाज पा रहे हैं, सस्ती बिजली लीेते हैं, उन्हें मुफ्त में सडक़ें बिना जाती हैं. मजदूरों को कहते हैं कि वे तो नशा करने पड़े रहते हैं. छोटे कारखानेदारों पर टैक्स चोरी के इत्जाम ज्यादा लगते हैं, उन की मेहनत के फायदे, कम गिनाए जाते हैं.

यह सब साजिश है ताकि बड़े नेता अपना निकम्मापन छिपा सकें. इस निकम्मेपन को छिपाने के लिए वे मंदिरों का राग अलापते हैं, आज यहां मंदिर में कल वहां मठ में, परसों उस स्वामी के चरणों में, उस के पहले दिन उस मूॢत पर मालाएं. दिन में 4 बार कपड़े बदलने की फुरसत है पर किसान और मजदूर पास भी न फटकें क्योंकि समय नहीं है. देश के किसान साल भर दिल्ली की सडक़ों पर पड़े रहे, 80′ के करीब की मौत हो गई पर एक बोल बोलने का समय नहीं है. यहां तक कि संसद में जाने का भी समय नहीं है जहां सारे फैसले कहने को लिए जाते हैं. जिस को सुनाने के लिए गैर भाजपाई दलों के सांसद बोलते है वह ही कहीं भगवान से प्रार्थना कर रहा है तो क्या फायदा है ऐसी संसद का?

देश का आम आदमी ऐसी सरकार चाहता है जो राज न करे, देश के धंधों, खेतों, सडक़ों, कानून, पुलिस को चलवाए. देश का आम आदमी हो सकता है. पूजापाठी को देख कर खुश हो जाए पर कहीं ऐसा न हो जैसा सोमनाथ मंदिर पर हमले के समय हुआ था. उस का जो इतिहास मुसलिम इतिहासकारों ने लिख कर उस के हिसाब से मंदिर को बचाने के लिए मंदिर के पुजारी घंटे घडिय़ाल बजा रहे थे कि भगवान खुद आकर महमूद गजनी को खत्म कर देंगे. मगर कुछ हुआ नहीं.

आज फिर दोहराया जा रहा है. पहले मार्च 2020 में दिन में कोरोना पर जीत की घोषणा कोरोना आने से पहले कर डाली गई, फिर जनवरी 21 में कह दिया कि भारत ने जीत पा ली. दोनों बार कितना सहा है. देश में यह हर कोई जानता है. कोई पूजापाठ घंटा घडिय़ाल काम नहीं आया. आज जो काम दिख रहे हैं वे मेहनत की कमाई को धर्म के लाभ पर लुटाना भर है. क्योंकि धर्म का नशा नेताओं में भी और जनता की भी नसों में मंदिर तक भरा है. इसलिए कुछ की तो वाहवाही मिलती रहेगी, जब तक ममता बैनर्जी और स्टालिन सा सामने न होगा.

नई भर्तियों से मजबूत होगा स्वास्थ्य विभाग ढाँचा

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने पिछले पौने पांच वर्षों में साढ़े चार लाख सरकारी नौकरियां देकर अपना संकल्प पूरा किया.  कोविड 19 महामारी के दौरान भी योगी का मिशन रोज़गार धीमा नहीं पड़ा. समय की ज़रुरत के अनुसार स्वास्थ्य  विभाग के खाली पद भर कर  स्वास्थ्य   इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत किया.

स्वास्थ्य क्षेत्र के ढांचे को  सुदृढ़ बनाने की दिशा में उ. प्र. लोक सेवा आयोग का बड़ा योगदान रहा जिसने अन्य विभागों के साथ साथ स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा में समयबद्ध , निष्पक्ष और त्वरित तरीके से भर्तियां करके नागरिकों को राहत दी.  सार्वजनिक हित को दृष्टिगत रखते हुए, उ.प्र. लोक सेवा आयोग ने स्वास्थ्य विभाग से सम्बन्धित पदों का चयन जल्द से जल्द वरीयता के आधार किया  जिससे चुने गए अभ्यर्थी शीघ्रातिशीघ्र अपने नियत पदों पर दायित्व संभाल सके. इस क्रम में चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता, शुचिता और पारदर्शिता को अक्षरशः सुनिश्चित करते हुए समयबद्ध कार्यवाही की गयी .

इस क्रम में एलोपैथिक चिकित्साधिकारी (श्रेणी-2) के 15 संवर्गों के 3620 पदों पर चयन सम्बन्धी कार्यवाही का विज्ञापन आयोग द्वारा 28.05.2021 को जारी किया गया जिसमें आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तिथि 28 जून थी.  त्वरित कार्यवाही करते हुए आयोग ने अंतिम तिथि के एक महीने में अभ्यर्थियों का साक्षात्कार प्रारम्भ कर दिए. लगभग ढाई महीने मात्र में समस्त संवर्गों के लिए साक्षात्कार पूरे कर लिए गए.  साक्षात्कार समाप्त होने की तिथि 07.10.2021 थी लेकिन उससे पहले ही साक्षात्कार प्रारंभ होने के महीने भर से पहले ही प्रथम दो संवर्ग पीडियाट्रिक्स / एनेस्थेटिस्ट के परिणाम 18 अगस्त , 2021 को जारी कर दिए गए.  यही नहीं, समस्त संवर्गों का अंतिम परिणाम साक्षात्कार समाप्त होने के महीने भर के अंदर ही दिनांक 2.11. 2021 तक जारी कर दिया गया.

इस प्रकार युद्ध स्तर पर कार्य करते हुए प्राथमिकता के आधार पर एलोपैथिक चिकित्सा विशेषज्ञों के 15 संवर्गों यथा पीडियाट्रिशियन, एनेस्थेटिस्ट फिजिशियन, पैथालाजिस्ट इत्यादि के 3620 पदों पर चयन हेतु 4062 अभ्यर्थियों का साक्षात्कार सम्पन्न किया गया. लगभग चार माह में 1237 अभ्यर्थियों को चयन के लिए उपयुक्त पाया गया.

इसके अतिरिक्त चिकित्सा विभाग के अन्य संवर्गों यथा स्टेटीशियन कम प्रवक्ता, सहायक आचार्य पैथालाजी, कम्युनिटी मेडिसिन साइक्रियाटिक तथा एनेस्थीसिया के लगभग 82 पदों का परिणाम जारी किया गया तथा एम. ओ. एच. सह सहायक आचार्य के 05 तथा सहायक आचार्य, ब्लड बैंक के 15 पदों का भी साक्षात्कार सम्पन्न हो चुका है. उक्त पदों का परिणाम इसी सप्ताह जारी कर दिया जायेगा जबकि सहायक आचार्य के शेष पदों पर यथाशीघ्र साक्षात्कार कराने की कार्यवाही की जा रही है.

कोविड महामारी में स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आयोग ने पारदर्शिता, निष्पक्षता सुनिश्चित रखते हुए अपनी गतिशीलता को और आगे बढ़ाया है. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं उ.प्र. के अंतर्गत स्टाफ नर्स / सिस्टर (ग्रेड-2) (महिला एवं पुरुष) के 4743 पदों का विज्ञापन 16 जुलाई को जारी किया गया. आवेदन के लिए एक माह का समय दिया गया और मात्र डेढ़ मास में तीन अक्टूबर को लिखित परीक्षा आयोजित कर दी गई.उक्त पदों का निम्नवत् श्रेणियों में अंतिम चयन परिणाम औपबंधिक रूप से निम्नवत जारी कर दिया गया है

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के 2582 पदों ( 50 पुरुष एवं 2532 महिला) के सापेक्ष 50  पुरुष तथा 1627 महिला अभ्यर्थी चयनित चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण विभाग के 1235 पदों ( 90 पुरुष एवं 1145 महिला) के सापेक्ष 90 पुरुष तथा 623 महिला अभ्यर्थी चयनित के. जी. एम. यू. के 926 पदों ( 46 पुरुष एवं 880 महिला) के सापेक्ष 46 पुरुष तथा 578 महिला अभ्यर्थी चयनित

उपरोक्त तीनों श्रेणियों में कुल 3014 अभ्यर्थी चयनित हुए

आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम अर्हता अंक न पाने के कारण 1729 पद भर नहीं सके.आयोग के अध्यक्ष संजय श्रीनेत ने बताया कि विज्ञापन जारी होने के लगभग पांच  माह में ही स्टाफ नर्स के 4743 पदों पर चयन की प्रक्रिया पारदर्शी रूप से पूर्ण की गयी जो अपने आप में एक प्रेरणास्पद मानदण्ड है. उन्होंने इसके लिए आयोग कार्मिकों की प्रतिबद्धता और संकल्प और आयोग की कार्य संस्कृति को सराहा जिन्होंने कोविड 19 महामारी की अवधि में भी स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृह बनाए रखने के लिए राष्ट्रहित में अपना योगदान किया. उन्होंने बताया कि स्टाफ नर्स (पुरुष) की शेष 448 रिक्तियों का विज्ञापन भी  इसी माह जारी कर दिया जायेगा .

नेहा और साइबर कैफे

राइटर- सुप्रिया शर्मा

नेहा (बदला हुआ नाम, न भी बदला हो तो कहना ऐसा ही पड़ता है, कोर्ट की रूलिंग आड़े आती है) ने तय किया कि वो भी इंटरनेट सीखे. जरूरी था. बाकि सहेलियां ईमेल का जिक्र किया करती थीं. एमएसएन, याहू के किस्से सुनाया करती थीं. जब भी कहीं उसके सर्किल में कोई याहू मैसेंजर या रैडिफ चैट की बातें करता, वो कोफ्त खाती. आखिर उसे ये सब क्यों नहीं पता.

नेहा ने तय किया वो भी इंटरनेट सीखेगी. उसका भी ऑरकुट पर अकाउंट होगा. सन् 2000 के शुरुआती समय में साईबर कैफे में जाकर एक बंद से कैबिन में 80 रुपए घंटा, 50 रुपए आधा घंटा के हिसाब से इंटरनेट सर्फिंग करना शगल हो चला था. नेहा ने कॉलेज के पास वाले साइबर कैफे में 50 रुपए दिए और आधे घंटे के लिए सिस्टम पर जा बैठी. इंटरनेट एक्सप्लोरर खुला हुआ था. पर करना क्या है उसे कुछ समझ नहीं आया. आज का बच्चा बच्चा कह सकता है कि जो न समझ आए, गूगल से पूछलो.. या यू ट्यूब पर देख लो कि हाऊ टू यूज इंटरनेट फर्स्ट टाइम. पर वो वक्त ऐसा न था. जिसने कभी इंटरनेट नहीं चलाया हो कम से कम एक बार तो कोई बताने वाला होना चाहिए न..

नेहा को लगा, 50 रुपए बर्बाद हो गए. उसे कुछ परेशान होता देख, साइबर कैफे मालिक ने कहा- ‘कोई दिक्कत तो नहीं?’ तकरीबन 24-25 साल के इस गुड लुकिंग गाय को नेहा ने बताया, ‘इंटरनेट सीखना है’. राहुल (सायबर कैफे ऑनर) ने कहा- ‘बस इतनी सी बात. दोपहर 2 से 2.30 नीचे बेसमेंट में आ जाओ. सात दिन की क्लास है. ‘और फीस’ नेहा ने सवाल किया. ‘3 हजार रुपए है, पर आपको 50 परसेंट डिस्काउंट.’

‘मतलब कि मुझे 1500 रुपए देने पड़ेंगे. और अगर सात दिन न आना हो, दो-तीन दिन ही…’ नेहा के ये कहते ही राहुल ने कहा- ‘आप 1000 रुपए दीजिए.. दो या तीन दिन, जब तक सीखना हो सीखो.’ नेहा ने कंप्यूटर स्क्रीन की विंडो मिनिमाइज की और चेयर से उठ खड़ी हुई. बोली- ‘थैंक्स. कल आती हूं 2 बजे. फीस कल ही दूंगी.’ ‘आराम से, कोई जल्दी नहीं है’ राहुल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया.

नेहा ठीक 1.55 पर साइबर कैफे के बेसमेंट में कॉपी पैन लेकर मोर्चा संभाल चुकी थी. उसके साथ कोई आठ दस लड़के लड़कियां उस बैच में थे. राहुल ने कंप्यूटर जेंटली ऑन करने, मॉनिटर ऑन करने से लेकर ब्रॉडबेंड आइकन को क्लिक कर मॉडम में नंबर डाइलिंग से शुरुआत की.. और इंटरनेट चलाने के बेसिक्स बताए. आधे घंटे की क्लास शानदार रही. जाते-जाते काउंटर पर राहुल को हजार रुपए दिए और कहा- ‘ये लीजिए फीस.’ राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘ऊं…. अभी नहीं. पहले सीख लो.. फिर दे देना.’ नेहा सरप्राइज थी. उसने मुस्कुरा कर पैसे जींस की जेब में रख लिए. पहले दिन की क्लास से वो उत्साहित थी. इंटरनेट एक्सप्लोरर नाम के नए दोस्त से हुए इंट्रो ने घर तक के पूरे रास्ते उसके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी.

सात दिन बीत चुके थे. नेहा इंटरनेट सर्फिंग का रोज आनंद ले रही थी, राहुल ने अब तक उससे फीस नहीं ली थी. बल्कि अब साइबर कैफे की आधे, एक घंटे की फीस भी वो उससे नहीं ले रहा था. नेहा दो नए दोस्त पाकर खुश थी. नेहा आज याहू मैसेंजर पर अकाउंट बनाकर चैट कर रही थी. ASL (एज, सेक्स, लोकेशन), LOLZ, OMG जैसे नए टर्म लिखे हुए मैसेज देख उत्साहित थी.

‘ओह तो चैटिंग शैटिंग चल रही है’, अचानक पीछे आए राहुल ने कहा. ‘हम्म.. सीख रही हूं.’ नेहा ने जवाब दिया. ‘कैरी ऑन कैरी ऑन.. अब एक घंटा नहीं पूरा दिन भी इंटरनेट पर कम लगने लगेगा. कुछ दिनों में तो घर पर भी सिस्टम लगवा ही लोगी. असल दोस्तों को भूल जाओगी और वर्चुअल दोस्त ही पसंद आएंगे.’ राहुल का तंज समझ नेहा मुस्कुराई और टेबल पर रखे उसके हाथ पर हाथ इस तरह मारा जैसे बिना कहे कह रही हो, ‘चल हट’. ‘अच्छा नेहा थोड़ी देर में नीचे क्लास में आ जाना, आज कुछ स्पेशल सैशन रखा है. नए स्टूडेंट्स भी हैं, बेसिक तो तुम्हीं बता देना सबको.’ ‘मैं’..मैं तो खुद ट्रेनी हूं, मैं क्या बताऊंगी.’ नेहा के जवाब को इग्नोर कर राहुल फुर्ती से नीचे की ओर रवाना हुआ, जाते-जाते सीढ़ी से उसकी आवाज़ जरूर आई, ‘सीयू इन नेक्स्ट 5 मिनट इन बेसमेंट’.

नेहा ने पांच मिनट बाद याहू मैसेंजर से लॉगआउट किया. सिस्टम शट डाउन कर नीचे बेसमेंट की ओर रवाना हो गई. उसे अजीब सा लग रहा था, कि वो कैसे पढ़ाएगी. नीचे जाकर ऐसा कुछ नहीं हुआ. राहुल ने वीपीएन सर्वर के बारे में बताया, कि कैसे आपके ऑफिस में कोई साइट ब्लॉक हो तो आप उसे वहां भी खोल सकते हो. आईटी टीम को बिना पता चले. फ्रैशर्स को सिखाने के लिए एक दूसरे लड़के को कह दिया, जो करीब 15 दिन से क्लास में आ रहा था. नेहा ने राहत की सांस ली. उसने आंखों ही आंखों में राहुल को थैंक्स भी कहा, लंबी सांस लेते हुए. बाकि स्टूडेंट्स अपने अपने टास्क में बिजी थे, नेहा जाने की तैयारी कर ही रही थी कि राहुल से फिर उसकी नजरें मिली, उसने उसकी तरफ आने का इशारा किया. नेहा पर्स वहीं छोड़ डायस पर टेबल के पीछे लगी कुर्सी पर बैठ गई, जो राहुल की कुर्सी के ठीक बराबर थी. सामने टेबल पर राहुल ने इंटरनेट खोल रखा था.  जैसे ही नेहा की नजर स्क्रीन पर गई, वो सकपका गई. राहुल स्क्रीन पर ही नजरें गड़ाए हुए बोला- ‘ये लो नेहा, आज की ये एक्सरसाइज, आगे भी तुम्हारे काम आएगी, ये न देखा तो इंटरनेट पर क्या देखा, तुम्हारे कॉलेज प्रोजेक्ट्स में भी तुम अब एडवांस हो जाओगी.’ राहुल की लैंग्वेज पूरी क्लास को भ्रमित करने के लिए काफी थी, इसीलिए किसी का ध्यान उस ओर गया भी नहीं कि अब तक नेहा पसीने-पसीने हो चुकी है.

स्क्रीन पर पॉर्न साइट खुली हुई थी. राहुल बिलकुल न्यूट्र्ल फेस किए हुए कुछ न कुछ बोले जा रहा था, नेहा अब तक समझ ही नहीं पा रही थी कि वो कैसे रिएक्ट करे. इतने में राहुल ने नेहा के पैर पर हाथ रखा, टेबल कवर होने के कारण उसकी इस हरकत को सामने क्लास में कोई समझ न पाया. नेहा का डर के मारे कलेजा कांप रहा था. उसने उठने की कोशिश की तो राहुल ने जोर से उसे बैठा दिया. ये मानते हुए कि नेहा अब कुछ बोलने वाली है, राहुल ने उसे टोका, ‘नेहा जी ये भी देख लो.’ ये कहते ही राहुल ने वीएलसी प्लेयर पर कर्सर क्लिक किया. वहां एक वीडियो पॉज्ड था. कुछ धुंधला-धुंधला दिखा, लेकिन तीन या चार सैकेंड के बाद ही नेहा को साफ दिख गया कि ये उसी का वीडियो है. नेहा की आंखों से आंसू टपके, लेकिन सामने क्लास को देखते हुए उसने उन्हें पौंछ लिया. उसने अब तक सिर्फ खबरों में ही पढ़ा था कि बाथरूम्स व्गैरह में हिडन कैमरे से लड़कियों के वीडियो बन रहे हैं. पर खुद को उसका शिकार होते देख वो अब स्तब्ध थी. सात दिन पहले बने दोस्त की मुस्कान के पीछे की दरिंदगी वो समझ ही नहीं पाई. नेहा को याद आ गया था कि तीन दिन पहले वो साइबर कैफे से अपनी फ्रेंड की पार्टी में सीधे गई थी. सुबह की घऱ से निकली हुई थी इसलिए ड्रेस साथ लाई थी. साइबर के वाशरूम में ही उसने ड्रेस चेंज की थी, जो उसकी सबसे बड़ी भूल थी.

राहुल धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला- ‘शाम को सात बजे तुम्हारा इंतजार रहेगा, यहीं. बताने की जरूरत तो नहीं न कि न आई तो कल इंटरनेट पर तुम ही धमाल मचाती दिखोगी.’

नेहा झट से सामने अपनी सीट तक आई, टेबल पर रखा पर्स और स्कार्फ उठाया और अपनी स्कूटी की और दौड़ पड़ी.

दोपहर से शाम तक नेहा की हालत बिगड़ी रही, घर वाले सोच रहे थे कि लू लग गई. ‘बार-बार कहते हैं फिर भी ध्यान नहीं ऱखती, धूप में बाहर आती जाती है.’ सब उसे ऐसा कहकर टोक रहे थे. नेहा चाहकर भी किसी को बता न सकी. घबराहट में उसे दो बार वोमिट हुई. कभी राहुल की पोर्न वाली हरकत, तो कभी अपना वीडियो आंखों के सामने आ रहा था. और कभी ये सोचकर ही रूह कांप रही थी कि शाम को वो क्या करने वाला है. इसी बीच मम्मी एप्पल ले आईं. वहीं काटकर उसे खिलाने लगीं. मम्मी ये सोच रही थीं कि भूखे पेट गर्मी असर कर गईं और नेहा चाकू को देख रही थी.

शाम सवा सात बजे नेहा साइबर कैफे पहुंची. जैसा उसने सोचा था, ठीक वैसा ही नजर भी आया. राहुल कैफे में टेबल पर पैर रख कर बैठा था. बत्तियां बुझा रखी थी, बस एक कैबिन की लाइट चल रही थी, उसी से रौशनी बाहर आ रही थी. नेहा को आते देख राहुल ने कहा- ‘आओ जान आओ, तीन दिन से जब से तुम्हें वीडियो में बिना टॉपर के देखा है, इस ही लम्हे का इंतजार कर रहा हूं.’

राहुल ने ये कहते हुए सामने रखा डीओ अपनी पूरी शर्ट और बगलों के नीचे छिड़का. सहमी हुई नेहा कुछ धीमे कदमों से ही राहुल की ओर बढ़ी. राहुल ने होठ आगे कर दिए, इस जबरन हक को मानते हुए, कि जैसा वो पिछले पांच घंटों से इमेजन कर रहा है, अब बस वो होने को है.

एक तेज तमाचे ने राहुल को इमेजिनेशन से बाहर निकाला. उसका गाल पर हाथ पहुंचा ही था कि एक जोर का मुक्का उसकी नाक पर आकर लगा और तेजी से खून बहने लगे. अचानक सकपकाए राहुल ने होठों तक आए खून को हाथ से देखा फिर पागल सा होकर वो नेहा को मारने दौड़ा. वो नेहा की ओर बढ़ा ही था कि बाहर के गेट से दो लड़के दो लड़कियां अंदर आए और नेहा को पीछे कर राहुल को पीटने लगे. चंद मिनटों में राहुल अधमरा हुआ पड़ा था, माफी मांग रहा था. बेशर्मी से बार बार माफी मांग रहा था. नेहा के दोस्तों ने एक-एक कंप्यूटर को खंगाला. साइबर के बाकी सिस्टम्स में तो कुछ नहीं था, एक क्लास रूम और दूसरे ऊपर कैफे एरिया में राहुल के सिस्टम में वॉश रूम की कुछ क्लिप्स थी. क्लास रूम के सिस्टम में ऊपर का ही फोल्डर कॉपी किया हुआ था, जिसमें तकरीबन चार लड़कियों के वॉशरूम वीडियो थे. काफी मार पड़ी तो राहुल गिड़गिड़ाया कि नेहा उसका पहला शिकार ही थी. इंटरनेट पर साइबर कैम के लीक्ड वीडियो देख उसकी भी हिम्मत हुई वो ऐसा करे. नेहा के दोस्तों ने दोनों ही सिस्टम से फोल्डर ऑल्ट प्लस कंट्रोल दबाकर डिलीट किए और फिर गुस्से में दोनों सिस्टम भी तोड़ डाले.

फिर कभी उस साइबर कैफे का ताला खुला किसी ने न देखा. कुछ दिनों बाद वहां एक परचूनी की दुकान खुल गई. राहुल वहां कभी नहीं दिखा, हां, नेहा अक्सर गर्दन ऊंची कर स्कूटी पर वहां से गुजरते हुए नजर आती रही.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें