जब देश में बेरोजगारी बढ़ रही हो, छोटे धंधों का सफाया हो रहा हो. किसानों की आमदनी रोजाना घट रही हो, बिमारी का खौफ बढ़ रहा हो, हमारे प्रधानमंत्री क्या कर रहे हैं. काशी कौरीडोर और प्रयागराज के हाईवे का पत्थर रख रहे हैं. यह वैसा ही है जब घर में सब बिमार पड़ रहे हों, फसल पानी न होने की वजह से सूख रही हो, बेटा जेल में मारपीट के अपराध में बंद हो और बाप अपनी जिम्मेदारी निभाने के नाम पर 20 दिन पैदल चलकर एक मंदिर में पूजा करने जा पहुंचा हो कि भगवान अब भला करेंगे.
देश की सरकार को आजकल सिवाए आरतियां करने, तीर्थ बनाने और उपदेश देने के अलावा मानो कुछ और आता ही न हो. एक किसान डरता है कि उसे 20 बीधे के खेत के लिए किनी रातें जाग कर काम करना होता है पर यहां ऊंचे नेता हो या छोटे अफसर सब पूजापाठ में लग कर देश की नैया पार कराने में लगे हैं.
सरकार चल रही है क्योंकि देश के किसान मजदूर और छोटे कारखाने वाले अपने जीने का जुगाड़ करने के लिए रात दिन लगे रहते हैं. उन्हें सरकार बहुत मोटा टैक्स बसूलती है. लोगों को कहा जाता है कि किसान तो मुफ्त का अनाज पा रहे हैं, सस्ती बिजली लीेते हैं, उन्हें मुफ्त में सडक़ें बिना जाती हैं. मजदूरों को कहते हैं कि वे तो नशा करने पड़े रहते हैं. छोटे कारखानेदारों पर टैक्स चोरी के इत्जाम ज्यादा लगते हैं, उन की मेहनत के फायदे, कम गिनाए जाते हैं.
यह सब साजिश है ताकि बड़े नेता अपना निकम्मापन छिपा सकें. इस निकम्मेपन को छिपाने के लिए वे मंदिरों का राग अलापते हैं, आज यहां मंदिर में कल वहां मठ में, परसों उस स्वामी के चरणों में, उस के पहले दिन उस मूॢत पर मालाएं. दिन में 4 बार कपड़े बदलने की फुरसत है पर किसान और मजदूर पास भी न फटकें क्योंकि समय नहीं है. देश के किसान साल भर दिल्ली की सडक़ों पर पड़े रहे, 80′ के करीब की मौत हो गई पर एक बोल बोलने का समय नहीं है. यहां तक कि संसद में जाने का भी समय नहीं है जहां सारे फैसले कहने को लिए जाते हैं. जिस को सुनाने के लिए गैर भाजपाई दलों के सांसद बोलते है वह ही कहीं भगवान से प्रार्थना कर रहा है तो क्या फायदा है ऐसी संसद का?
देश का आम आदमी ऐसी सरकार चाहता है जो राज न करे, देश के धंधों, खेतों, सडक़ों, कानून, पुलिस को चलवाए. देश का आम आदमी हो सकता है. पूजापाठी को देख कर खुश हो जाए पर कहीं ऐसा न हो जैसा सोमनाथ मंदिर पर हमले के समय हुआ था. उस का जो इतिहास मुसलिम इतिहासकारों ने लिख कर उस के हिसाब से मंदिर को बचाने के लिए मंदिर के पुजारी घंटे घडिय़ाल बजा रहे थे कि भगवान खुद आकर महमूद गजनी को खत्म कर देंगे. मगर कुछ हुआ नहीं.
आज फिर दोहराया जा रहा है. पहले मार्च 2020 में दिन में कोरोना पर जीत की घोषणा कोरोना आने से पहले कर डाली गई, फिर जनवरी 21 में कह दिया कि भारत ने जीत पा ली. दोनों बार कितना सहा है. देश में यह हर कोई जानता है. कोई पूजापाठ घंटा घडिय़ाल काम नहीं आया. आज जो काम दिख रहे हैं वे मेहनत की कमाई को धर्म के लाभ पर लुटाना भर है. क्योंकि धर्म का नशा नेताओं में भी और जनता की भी नसों में मंदिर तक भरा है. इसलिए कुछ की तो वाहवाही मिलती रहेगी, जब तक ममता बैनर्जी और स्टालिन सा सामने न होगा.