जिसे राम अच्छे लगने लगे, नरेंद्र मोदी शक्तिमान दिखने लगे, भाजपा दमदार पार्टी लगने लगे, कल को उसे वर्णव्यवस्था की खूबियां भी नजर आने लगेंगी, दलितपिछड़ों के शोषण को वह दैवीय व्यवस्था मानने लगेगा, वह साधुसंतोंशंकराचार्यों के पैरों की धूल भी चंदन समझ माथे से लगाएगा. वामपंथी समझे जाने वाले गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल की मनोस्थिति बदली है तो इस से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होने वाला क्योंकि हार्दिक ने खुद को ऐक्सिडैंटल नेता साबित कर दिया है.

सत्ता की हवस बड़ी अजीब होती है. त्रेता युग में अंगद भी उन्हीं राम की गोद में जा बैठा था जिन्होंने उस के विद्वान और साहसी पिता बालि की हत्या छल से की थी. तो आज मौकापरस्त हार्दिक का क्या दोष क्योंकि कमजोर और लालची लोग लड़ने से पहले ही हथियार डाल देते हैं.

वो क्या जाने पीरपराई...

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में लातूर से भाजपा को रिकौर्ड वोटों से जिताने वाले सांसद सुधाकर श्रंगारे का दर्द आखिर छलक ही गया कि उन के दलित होने के चलते उन्हें प्रशासन सरकारी कार्यक्रमों में आमंत्रित नहीं करता. पेशे से ठेकेदार सुधाकर को तय है यह भी मालूम होगा कि शादी और तेरहवीं में भी दलितों के भोजन के अलग पंडाल लगते हैं जिस से कि दलितों को हीनता और सवर्णों को श्रेष्ठता का एहसास होता रहे.

जवाब तो खुद सुधाकर को इस सवाल का देना चाहिए कि वे उस कार्यक्रम में थे ही क्यों जिस में मूर्तिवाद के धुरविरोधी भीमराव अंबेडकर की 72 फुट ऊंची मूर्ति का अनावरण हो रहा था.

दलितों का अपमान, भेदभाव, अनदेखी और तिरस्कार हमारे धार्मिक और सामाजिक संस्कार हैं. देश में कहीं न कहीं रोज दलित लतियाया जाता है. इस पर सुधाकर कभी कुछ नहीं बोले लेकिन खुद पर गुजरी तो तिलमिला उठे. अब अगर मंच से बोलने की हिम्मत कर ही ली है तो जमीनी तौर पर कुछ करने की भी उन्हें पहल करनी चाहिए.

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