सैक्स की जरूरत कुदरत की देन है और जैसे ही लडक़ी को माहवारी शुरू हो और लडक़े का अंग खड़ा होने लगे वे सैक्स को तैयार हो जाते हैं. तमिलनाडू के तंजौर जिले में एक 12 साल के लडक़े को गिरफ्तार किया गया है क्योंकि 17 साल की एक लडक़ी को एक बच्चे हुआ जिस का जिम्मेदार वह लडक़े को बताती है. पुलिस जांच में जो भी निकले. सैक्स के मामलों में यह कोई अजीब बात नहीं है और दिल्ली के निर्भया कांड में एक नाबालिग ने जिस वहशी ढंग से चलती बस में लडक़ी का रेप किया था उस से यह लगा था कि वह 15-16 साल का लडक़ा अच्छाखासा खेलाखाला था.
अमेरिका में हुए एक सर्वे में पता चला कि जिन लडक़ों के साथ बचपन में दूसरे बड़े लोग सैक्स कर र लेते है उन्हें पकने से पहले ही मैक्स की आदत पड़ जाती है और वे शिकार की तलाश में लगने लगते हैं. यह कहना कि हर लडक़ी से जबरदस्ती की जरूरत होती है, जरूरी नहीं. जिन लड़कियों के साथ घुटपन से बड़े चाहे घर के करीबी हों या बाहर वाले सैक्स खेल खेलते रहते हैं वे माहवारी पाने के बाद खुदबखुद तैयार होने लगती हैं.
जहां घर में पिता न हो या मां किसी और के साथ भाग जाए वहां इस के मौके बड़ जाते हैं. बिहार के सिवान जिले में 10 व 11 साल के 2 लडक़े 5 साल की लडक़ी का रेप करने पर पकड़े गए थे. बिहार के ही चंपारन में 11 साल के लडक़ ने 3 साल की लडक़ी का रेप कर डाला था. एक मामले में तो 7 साल के लडक़े को 6 साल की लडक़ी के साथ सैक्स खेल के लिए पकड़ कर जुवेलाइन बोर्ड के सामने लाया गया था.
यह सब कुदरती है पर अपने को पाकसाफ साबित करने के लिए हम सब किसी को दोष ठहराते रहते हैं. कभी फिल्मों को तो कभी पौर्न साइटों को जबकि हकीकत है कि सैक्स को हर धर्म में छूट छिपे ढंग से मिली है. महाभारत में ही एक कहानी एशूलकेश मुनि को जिस ने अप्सरा मेनका ने गंयावेराज से बिना शादी हुई एक बेटी को पालपोस कर बड़ा किया. कहानी इस……का एक सांप के काटे जाने की हैपर इतना साफ करती है कि पौराणिक युग में बिना शादी के बच्चे अक्सर पैदा होते रहते थे. आज तो हालात और खराब है.
छोटे लडक़ेलड़कियां 3-4 साल की उम्र में ही शिकार हो सकते है और एक चाकलेट, मिठाई खिलौने के लालच में खेलखेल में कुछ भी करने लगते हैं. ये सब जरा बड़े होते हैं तो बड़ों को सैक्स करते देखना मिल ही जाते है खासतौर पर जहां पूरा परिवार एक ही झोपड़े या एक कमरे के मकान में रहता हो. हम ऊपर से चाहे कितना कहते रहते हो कि धर्म तो इस तरह की बातों पर पाबंदी लगाता है पर हर धर्म में यह होता है और ये लोगों की पूजा तक आम बात है.
बच्चों को सैक्स से बांध कर रखना मांबाप के लिए बहुत मुश्किल है. वे हर समय बच्चों के सिर पर नहीं बैठ सकते. बच्चों को आजादी भी चाहिए होती है. फिर ज्यादातर घरों में खुल कर औरत के मांग को लेकर गालियां खुलकर दी जाती हैं और औरतें भी पीछे नहीं रहतीं. पशुओं तो सैक्स करते तो सब देखते ही है और कुदरती तौर वर वजह जानने की 3-4 साल की आयु में शुरू हो जाती है.
हम ऊपर से सैक्स संबंधों को ले कर चाहे जितना शरीफ बनते हों पर बच्चों तक ये यह बिमारी गहरे वैसी है जैसेजैसे बच्चे अकेले रहने को मजबूर होते हैं, यह संबंध जबरन या इच्छा से बनने लगते हैं. उन मामलों की कमी नहीं है जहां मांबाप खुद अपने अबोध लड़कियों को महंतों के आश्रमों में छोड़ आते हैं. अमेरिका और यूरोप के चर्च हर साल लाखों डौलर मुआवजा उन मामलों में देते हैं जिन में पादरियों के लडक़ों के साथ हुए कुकर्म सामने आ जाते हैं.
छोटे घरों और भाईबहनों की कमी इस परेशानी को बढ़ा रही है क्योंकि गरीब हो या अमीर, बच्चों को अकेले या अनजानों के साथ छोडऩा पड़ रह है जो न जाने क्याक्या हरकतें करते हैं. इन मामलों में जेल नहीं डाक्टर और सलाहकार जरूरी है. दिक्कत यह है कि हमारे यहां हर बात के लिए या तो दानदक्षिणा बाले या मारपीट का वर्दी वाले ही नजर आते हैं और दोनों खुद वहथी और कुछ भी कर सकते हैं. वे पीडि़त को और ज्यादा दुख भी बिा माथे पर पसीना लाए दे सकते हैं.