अपराध व हिंसा की शिकार स्त्रियों के प्रतिशत में पिछले कुछ सालों में वृद्धि ही हुई है, कमी नहीं. यह समाज वैज्ञानिकों, समाज सुधारकों, शुभचिंतकों व अन्यों के लिए एक गहन चिंता का विषय बना हुआ है क्योंकि नारी को पुरुष द्वारा सुरक्षा के बदले शोषित, तिरस्कृत, अपमानित, उपेक्षित, उत्पीडि़त किया गया है. पुरुष पशुओं की भांति व्यवहार भी करता रहा है.

आज भी स्त्री के प्रति तमाम प्रकार के अपराध होते रहते हैं. जैसे दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, अपहरण, कन्याभ्रूण हत्या, लैंगिक दुर्व्यवहार, बलात्कार, शिशु हत्या आदि तमाम प्रकार के अपराधों की शिकार महिलाएं ही होती हैं.

शिक्षित रूसी सैनिक यूक्रेन में आक्रमण के दौरान जीभर कर वहां की औरतों का रेप कर रहे हैं और राष्ट्रपति पुतिन चुप बैठे हैं.

समाजशास्त्री राम आहूजा के अनुसार, हिंसा अपराध 3 प्रकार के होते हैं.

प्रथम, पुरुष द्वारा स्त्री के प्रति आपराधिक हिंसा की प्रवृत्ति के कारण किए जाने वाली हिंसा, जैसे बलात्कार, अपहरण एवं हत्या आदि हैं.

दूसरे, हिंसा का संबंध परिवार में महिला के साथ किए जाने वाले मानसिक, शारीरिक उत्पीड़न से है. जैसे दहेज हत्याएं, पत्नी को पीटना, विधवाओं पर अत्याचार करना आदि घरेलू हिंसा के अंतर्गत आती हैं.

तीसरे, सामाजिक हिंसा के अंतर्गत भ्रूण हत्या के लिए पत्नी, बहू को विवश करना तथा उन के साथ छेड़छाड़, विधवा युवती को सती होने के लिए विवश करना, बहुओं को अधिक दहेज लाने के लिए उत्पीडि़त करना एवं महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा न देना आदि ये सभी हिंसक वारदातें तीसरी श्रेणी की हैं.

सामाजिक हिंसा के अंतर्गत यौन शोषण व यौन उत्पीड़न को शामिल किया जाता है. एक और श्रेणी है, एक जाति, धर्म द्वारा दूसरी जाति, धर्म की औरतों से बदला लेने के लिए रेप करना. यह सदियों से चला आ रहा है और सभी धर्म व शासन इसे अपने सैनिकों, भक्तों के लिए इनाम की तरह मानते रहे हैं.

घरेलू हिंसा का अर्थ

घरगृहस्थी के अंदर महिला के साथ किया जाने वाला शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न या प्रताड़ना है. महिलाओं के प्रति अन्य आपराधिक हिंसाओं में पढ़ाईलिखाई के बावजूद वृद्धि हो रही है. साथ ही घरेलू हिंसाएं भी कम नहीं हो रही हैं.

हर महिला विवाह से पहले व विवाह के समय बहुत सुंदर सपने देखती है तथा उसे संजोती है कि अब प्रेम, शांति तथा आत्म उपलब्धि से पूरिपूर्ण जीवन की शुरुआत होगी परंतु इस के विपरित अनेक विवाहित स्त्रियों के सपने एक पल में ही चकनाचूर हो जाते हैं, क्योंकि पति की मारपीट और यातना का अंत न होने वाली लंबी अंधेरी गुफाओं में पत्नी अपनेआप को अकेली पाती है जहां उस का चीखनाचिल्लाना, गुहार सुनने वाला कोई नहीं होता.

भारतीय समाज व्यवस्था में तो ऐसी मारपीट का खुलासा करने में भी लज्जा आती है. यदि वे शिकायत की पहल करती हैं तो हमारे यहां पिछड़ी और दलित जातियों की बड़ीबूढ़ी औरतें उन्हें ही दोष देती हैं या फिर उन्हें चुपचाप सहन करने की सलाह दी जाती है.

सच यह है कि जोरू के मामले में अन्य लोग हस्तक्षेप नहीं करते क्योंकि यह मामला आदमीऔरत का निजी माना जाता है. यदि औरत थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने जाती है तो वहां पहले से ही समाज के बड़े पुलिस अधिकारी व कर्मचारी उसी विचारधारा या सोच के होते हैं. महिला को कमजोर समझ कर उस का मजाक उड़ाते हैं तथा रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी करते हैं और रिपोर्ट दर्ज भी नहीं करते.

धर्मसत्ता हावी

घरेलू हिंसा की शिकार या अन्य हिंसा की शिकार महिलाएं कितनी ही बार थाने में पुलिस अधिकारी की छेड़छाड़, यौन शोषण का शिकार हो जाती हैं. एक पीडि़ता होमगार्ड की बहू को पुलिस इंस्पैक्टर अकेले चैंबर में बुला कर 4 घंटे अर्धनग्न कर यह जांच करता रहा कि कहां खरोच आई है. इस तरह की तमाम घटनाएं घटती रहती हैं.

समाज में या थाने में लोग या कर्मचारी कहते हैं कि स्त्री इस के लायक होती है, इसलिए पत्नी को पुरुष की पिटाई का निरपेक्ष अधिकार है. ऐसी घटना केवल कम पढ़ेलिखे परिवारों में ही नहीं हो रहीं बल्कि बड़े घरों, सम्मानित परिस्थिति वाले परिवारों में जहां के लोग पढ़ेलिखे और आत्मनिर्भर हैं वहां भी मारपीट की घटनाएं आम बात हो गई हैं.

पिता द्वारा अपनी अविवाहित बेटियों तथा भाई द्वारा अपनी बहनों को मारनापीटना आज भी हक माना जाता है. औरतें अपने सगेसंबंधी, पड़ोसी, पुलिस, जज, वकील आदि से शिकायत भी करती हैं तो ऐसे में सारे लोग उन्हें समझौता करने की राय देते हैं और व इस के लिए दबाव भी बनाते हैं.

सच यह है कि पतिपत्नी को मांबाप भी सलाह देते हैं कि पत्नी अपने पति को सर्वस्व और परमेश्वर माने चाहे पति छोटीछोटी बातों में तानाशाही दिखाए. स्त्री पति को ईश्वर समझती है, बावजूद इस के पति (ईश्वर) के अत्याचार और उत्पीड़न सहती है. यहां तक कि परिवार में किसी भी प्रकार के नुकसान को पत्नी के सिर मढ़ कर पीटने की घटनाएं तो आम हैं.

पति की अकाल मृत्यु हो या पति की मां या बहन की, अगर पत्नी नई है तो उसे अपशकुनी कहने में देर नहीं लगती और उस से बहुत हिंसात्मक व्यवहार होते हैं, जिस के पीछे धर्म प्रचारक ही होते हैं. हिंसा, चोट, लात मारने से ले कर हड्डी तोड़ना, यातना देना, मार डालने की कोशिश और हत्या तक भी की जाती है. ऐसे में कितनी महिलाएं अपने पति व परिवार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा पाएंगी या करा पाती होंगी जहां धर्मसत्ता पूरी तरह हावी है.

घरेलू हिंसा के स्वरूप

धर्म के प्रवचन सुनसुन कर बढ़ेपले भारतीय समाज में लड़केलड़कियों के पालनपोषण में पूर्णरूप से पितृसत्ता हावी है जिस के फलस्वरूप लड़कियों को कमजोर, लड़कों को ताकतवर बनाया जाता है. लड़कियों को घर का सारा काम सौंप दिया जाता है और लड़के काम में हाथ तक नहीं बंटाते हैं.

इस तरह से लड़कियों के स्वतंत्र व्यक्तित्व को प्रारंभ से ही कुचला जाता है. कानून की दृष्टि में महिला के प्रति घरेलू हिंसा अपराध माना गया है और पुलिस का दायित्व है कि ऐसे मामलों की जांच करे. घरेलू हिंसा के रूप में दहेज हत्याएं, बलात्कार, लैंगिक दुर्व्यवहार, हत्या तथा शिशुहत्या, अपहरण और अगवा करना आदि शामिल हैं.

दहेज हत्याएं : भारतीय समाज व्यवस्था में विवाह हेतु दहेज अनिवार्य है, जिस से दहेज की समस्या एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जब दहेज उत्पीड़न, दहेज हत्या का मामला समाचारपत्रों, टीवी चैनलों पर न पढ़ा व देखा गया हो.

महिलाओं के पक्ष व दहेज हत्या के विरुद्ध कई कठोर कानून बनाए गए हैं. बावजूद इस के, दहेज हत्याएं सामने आती हैं जहां पीडि़ता पक्ष ने हिम्मत के साथ पुलिस थाने में जा कर रिपोर्ट दर्ज कराई. तमाम महिलाओं के तो ऐसे मामले दर्ज नहीं किए जाते अगर पति का पक्ष रसूखदार है या पुलिस को वह खरीद सका है.

कुछ समय पूर्व यह केवल उच्च एवं मध्यवर्ग तक ही सीमित था, लेकिन अब यह निम्नवर्ग में भी संक्रामक रोग की तरह फैलता गया है. दहेज प्रथा व उस के उत्पीड़न, दहेज हत्या रोकने हेतु कई कानून हैं. उन्हें समय व परिस्थितियों के अनुसार प्रभावी बनाने के लिए संशोधन भी किए जा रहे हैं.

लेकिन अब इस का जम कर दुरुपयोग भी हो रहा है और इसलिए पुलिस वाले व अदालतें विवाह बचाने के चक्कर में हिंसा के मामलों में भी बीचबचाव ही करने की कोशिश करते हैं. जब मृत्यु हो जाए तो मामला गंभीर होता है पर मृतका के पति को सजा देने से लाभ क्या है. यह न्याय उस औरत को नहीं मिल रहा जो हिंसा की शिकार हुई.

पुरुष वर्चस्व वाली संस्था परिवार में किसी भी अपराध से बचने के लिए कोई न कोई उपाय ढूंढ़ ही लेते हैं. असाधारण मृत्यु दहेज हत्या को साधारण मृत्यु बता कर पुरुष थाने व अन्य जगहों पर घूस दे कर सजा से मुक्त हो जाता है और समाज में स्वतंत्र जीता है. इस तरह वह औरों के साहस को बढ़ावा देने में प्रेरक सिद्ध होता है. इन कानूनों के अलावा भी समय व परिस्थितियों के अनुसार न्यायालयों द्वारा कानून प्रतिपादित किए गए हैं. इन में स्वयंसेवी संगठनों को भी एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है और इस में आत्महत्या करने वाली स्त्री द्वारा आत्महत्या पूर्व लिखा किसी भी पत्र को साक्ष्य के तौर पर मानने की अनुमति है.

तमाम कानूनों के बावजूद दहेजप्रथा का प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है, क्योंकि कानून केवल कागजों तक ही सीमित हैं और इसे चलाने वाले पौराणिक विचारधारा के लोग हैं. वे आसानी से पुरुष को सजा पाते नहीं देखना चाहते हैं. वे महिला से अपनेआप को श्रेष्ठ समझते हैं.

हमारे शास्त्रों में महिला को बारबार शूद्र कहा गया है. तुलसीदास कहते हैं कि शूद्र, गंवार, ढोल, पशु, नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी. इस के अनुसार ही भारतीय पुरुषों की मानसिकता बनी हुई है. इस को बढ़ावा देने में पुलिस प्रशासन का विशेष योगदान है. घरेलू हिंसा का चाहे कोई भी रूप हो- दहेज उत्पीड़न, दहेज हत्या, यौन शोषण, लैंगिक दुर्व्यवहार या कन्याभ्रूण हत्या हो इन्हें रोकने के लिए ब्राह्मणवादी सोच व पितृसत्तात्मक सोच को बदल कर समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर समझना व व्यवहार में लाना होगा, पर यहां तो आज उलट हो रहा है और पुराणों का गुणगान किया जा रहा है.

जिस समाज में कन्याभ्रूण हत्या आम हो और उस में औरत स्वयं और उस के मातापिता भी शामिल हों वहां औरतों के प्रति हिंसा तो आम है ही. दलित और पिछड़ी औरतों को ऊंची जातियों से

इतनी दुत्कार मिलती है कि वे घर की मारपीट को सहने की आदी हो जाती हैं. पढ़ीलिखी और कमाऊ दलित व पिछड़ी औरतों को धर्म पर भी भरोसा कुछ ज्यादा होता है कि उन्हें देवीदेवता बचाने आ जाएंगे, जो कभी नहीं आते.

खुद पर भरोसा जरूरी

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो 2015 के सर्वे में पाया गया कि 56 प्रतिशत औरतों को मानसिक या शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा. जो औरतें अब पढ़ भी ली हैं, वे भी मारपीट से मुक्त नहीं हैं क्योंकि पति जानता है कि कमाऊ होने के बावजूद औरत के पास कोई और ठिकाना नहीं है.

हमारे यहां ऐसी पौराणिक कहानियां भरी हुई हैं जिन में पति के लिए हर बलिदान औरतों के लिए पुण्य का काम है और वे अकसर इसी भुलावे में पति की हिंसा को सहती हैं कि यह तो उन के जीवन में ही लिखा है.

ऊंचे घरों की इंग्लिश पढ़ीलिखी औरतें तो फिर भी अपने हकों को समझती हैं पर पहलीदूसरी पीढ़ी की पिछड़ी व दलित जातियों की औरतों का रहनसहन शिक्षा के बावजूद नहीं बदला है और वे जानकारी के अभाव में हिंसा का मुकाबला नहीं कर पातीं.

पिछड़े व दलित घरों की पढ़ीलिखी औरतों को स्कूली या कालेज की शिक्षा के बाद कुछ पढ़ने नहीं दिया जाता और उन्हें कमजोर बनाए रखने के हजार प्रपंच किए जाते हैं. जब तक औरतों में अपना भरोसा नहीं होगा कि वे हिंसक पुरुष को छोड़ सकती हैं, तब तक वे हिंसा का शिकार बनती रहेंगी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...