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सत्यकथा: वासना में अंधी सुनीता ने कराए पति के टुकड़े

औरत के कदम किस उम्र में बहक जाएं, कह नहीं सकते. सुनीता को ही देखिए वह 2 जवान बेटों की मां थी, बबलू यानी कृष्णेंद्र हट्टाकट्टा लंबीचौड़ी कदकाठी का लगभग 45 वर्षीय एक बलिष्ठ व्यक्ति था. चेहरे पर घनी दाढ़ीमूछें, बड़ा माथा और चमकीली आंखें ही उस की खास पहचान थीं. पेशे से वह ट्रक ड्राइवर था. काम के सिलसिले में अकसर कई दिनों तक घर नहीं लौटता था. हालांकि इस की सूचना वह अपने बीवीबच्चों को फोन पर जरूर दे देता था.

वह मध्य प्रदेश में इंदौर के बाणगंगा इलाके के अंतर्गत उमरीखेड़ा के पास कांकड़ का रहने वाला था. परिवार में पत्नी सुनीता और  2 बेटे थे. उन में बड़ा बेटा 19 साल का प्रशांत और छोटा बेटा निशांत 12 साल का था.

उस के एक सप्ताह से घर नहीं लौटने पर पत्नी सुनीता ने 14 फरवरी, 2022 को बाणगंगा थाने में शिकायत लिखवाई थी. शिकायत में उस ने बताया था कि उस का पति  कृष्णेंद्र उर्फ बबलू 7 फरवरी से ही घर नहीं लौटा है. पति ने फोन कर के देर से आने की सूचना तक नहीं दी है.

पुलिस ने सुनीता से पति के बारे में कई सवाल पूछे. उन सवालों में पति के किसी के साथ पुरानी रंजिश से ले कर उस के साथ व्यक्तिगत रिश्ते तक के बारे में कई सवाल थे. सभी का जवाब सुनीता सहजता से देती चली गई.

किंतु जब उस से महिला पुलिस ने अचानक पूछा कि पति के साथ उस का पिछली बार झगड़ा कब हुआ था, तब वहीं पास खड़ा छोटा बेटा तपाक से बोल पड़ा, ‘‘आंटी, झगड़ा तो रोज ही होता था, मारपीट भी होती थी. मम्मी की कमरा बंद कर कुटाई होती थी.’’

यह सुन कर पुलिस सकते में आ गई. वह तुरंत उसे अलग कमरे में ले गई. बदन पर ढंके कुछ कपड़े हटा कर उस के देह की जांच की गई. पुलिस ने पाया कि उस की पीठ पर छड़ी से पिटाई करने की चोटों के निशान हैं. गरदन के पिछले हिस्से पर भी जख्म हैं. कमर और जांघों पर भी काफी चोटों के कई निशान पाए गए. वे जख्म ज्यादा दिनों के नहीं लग रहे थे.

‘‘यह सब कैसे हुआ? किसी ने तुम्हें मारा, पति ने तो नहीं?’’ महिला पुलिस ने पूछा.

‘‘जाने दीजिए ना मैडम यह सब छोडि़ए. मेरे पति को ढूंढ दीजिए. आखिर है तो मेरा सुहाग ही.’’ सुनीता ने बात को वहीं खत्म करने की कोशिश की.

लेकिन वह पुलिस वाली भी अड़ गई. बोली, ‘‘यह तो घरेलू हिंसा है इस की शिकायत तुम ने पुलिस में क्यों नहीं की? अच्छा रुको, आ जाने दो. मैं उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करूंगी.’’

‘‘मुकदमा क्या कीजिएगा, रहेगा तब न.’’

सुनीता की जुबान से अचानक निकल आई बात से पुलिस ने पूछा, ‘‘रहेगा से क्या मतलब?’’

‘‘नहींनहीं मैडम, इसी तरह जुबान फिसल गई. उन का पता लगा दीजिए, जल्दी दूसरे मकान में काम करवाने जाना है,’’ सुनीता मिन्नत करती हुई बोली.

‘‘अच्छा ठीक है तुम जाओ, लेकिन उस के जानपहचान वालों के नाम और फोन नंबर लिखवाती जाओ, उन से तहकीकात की जाएगी.’’

‘‘जी मैडम, यह लीजिए न मेरे मोबाइल से लिख लीजिए. नाम बताती जाइए, मैं उस के बारे में बता दूंगी,’’ सुनीता बोली.

‘‘लाओ इधर,’’ महिला पुलिसकर्मी बोली और उस का मोबाइल ले कर कौंटैक्ट्स को स्क्राल करने लगी.

सुनीता का मोबाइल चैक करते हुए पुलिस ने पाया कि 2 फोन नंबरों से सुनीता की कई बार बात हुई थी. पुलिस उन के बारे में सवाल पूछने लगी. इस पर सुनीता ने बताया के मजदूरों के नंबर हैं, जो उन के दूसरे मकान में मरम्मत का काम करने आते हैं.

‘‘तुम्हारा पति कहां का सामान लाने के लिए घर से निकला था?’’ पुलिस के अचानक पूछे गए इस सवाल के लिए सुनीता तैयार नहीं थी.

फिर भी उस ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘जी, नहीं मालूम. मुझे क्या पता वह कहांकहां जाते थे?’’ उस की आवाज में खीझ थी.

‘‘तुम ने पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने में एक सप्ताह का समय क्यों लगा दिया?’’

इस सवाल का कोई ठोस जवाब सुनीता नहीं दे पाई. उस ने सिर्फ इतना ही कहा कि वह कई दिनों के लिए ट्रक से सामान ले कर बाहर जाते रहते थे, इसलिए उस ने ध्यान नहीं दिया.

सुनीता यह भी नहीं बता पाई कि पति कृष्णेंद्र कहां का सामान ले कर निकला था? सामान किस का था? ऐसे ही कई सवाल थे, जो दुविधा वाले थे. पुलिस के सवालजवाब के बीच वह कई बार घबराई, सकपकाई हुई भी दिखी. उस की बौडी लैंग्वेज भी बदलती रही. चेहरे के भाव तेजी से बदल रहे थे.

पुलिस को मुखबिर से मिली अहम जानकारी

सुनीता के जाने के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ मुखबिर लगा दिए और फोन नंबरों पर काल कर कृष्णेंद्र के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी.

इसी सिलसिले में पुलिस ने उन 2 नंबरों पर भी काल की, जिन पर सुनीता की कई बार बातें हो चुकी थीं. पुलिस चौंक गई. कारण जिसे उस ने मजदूरों का नंबर बताया था, दरसअल वे कसाई भाइयों के थे.

उन के नाम रिजवान कुरैशी और भय्यू उर्फ इरशाद कुरैशी थे. वे जूनी इंदौर क्षेत्र में मटन शौप पर काम करते थे. इसी बीच मुखबिर से मालूम हुआ कि ये दोनों कसाई सुनीता के प्रेमी हैं. सुनीता अपने दूसरे मकान में मरम्मत और प्लास्टर का काम करवा रही है. यहीं से पुलिस ने जांच और कृष्णेंद्र की तलाश का नजरिया बदल दिया.

मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि सुनीता के 2 मकान हैं. एक कांकड़ में और दूसरा नरवाल में. वह परिवार के साथ कांकड़ में रहती है, लेकिन नरवाल वाले घर में अभीअभी प्लास्टर करवाया है.

पुलिस का माथा ठनका कि जिस औरत का पति हफ्ते भर से गायब है, वह भला घर में प्लास्टर करवाने का काम क्यों करेगी? जरूर दाल में कुछ काला है.

थाने से एसआई स्वराज डाबी और श्रद्धा यादव तुरंत नरवाल स्थित मकान पर पहुंचे. संयोग से सुनीता भी अपने बड़े बेटे प्रशांत के साथ वहीं मिल गई. पुलिस को अचानक वहां आया देख सहम गई.

एसआई डाबी ने आते ही सवाल दागा, ‘‘तुम्हारा पति गायब है और तुम यहां मजे में घर का काम करवा रही हो. चलो दिखाओ, कहांकहां तुम ने मरम्मत का काम करवाया है?’’

खुले जमीन पर एक कोने के थोड़े हिस्से में ताजा फर्श देख कर उसे खुदवाया. एकडेढ़ फीट ही खुदने के बाद पुलिस के होश उड़ गए. वहां मानव शरीर के कुछ अंग काट कर गाड़े गए थे.

पुलिस ने सुनीता और प्रशांत को तुरंत हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उन से अलगअलग पूछताछ की गई तो जल्द ही दोनों टूट गए. उस के बाद उन्होंने जो सनसनीखेज वारदात का खुलासा किया, उसे सुन कर पुलिस भी भौचक्की रह गई.

दरअसल, जिस कृष्णेंद्र उर्फ बबलू की गुमशुदगी की रिपोर्ट सुनीता ने 14 फरवरी को यह कह कर दर्ज करवाई थी कि वह 7 फरवरी से गायब है, उस का सुनीता और उस के 2 प्रेमियों ने मिल कर 5 फरवरी को ही कत्ल कर दिया था. बाद में उस की लाश को ठिकाने लगाने में बेटा प्रशांत भी शामिल हो गया था.

सुनीता के दोनों प्रेमी रिजवान कुरैशी और इरशाद कुरैशी ही थे. उन्होंने बेहोश कृष्णेंद्र को मटन काटने वाली छुरी और चापड़ से काट कर कई टुकड़े कर डाले थे. उन्होंने कुछ टुकड़े जंगल में फेंक दिए, जबकि कुछ सुनीता के नरवाल वाले घर में गड्ढा खोद कर दफना दिए. बाद में सुनीता ने मजदूर बुला कर वहां का फर्श बनवा दिया था.

क्यों कराई पति की हत्या

एक सवाल था कि आखिर सुनीता ने अपने पति की हत्या क्यों करवाई? इस बारे में सुनीता ने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

ट्रक ड्राइवर कृष्णेंद्र की पत्नी और 2 बेटों की मां सुनीता उर्फ सोनू एक कारखाने में काम करती थी. वहीं उस की मुलाकात रिजवान कुरैशी से हुई थी. मुलाकातें पहले दोस्ती में और फिर शारीरिक नजदीकियों में बदल गईं.

सुनीता का पति ट्रक चलाता था, कईकई दिनों तक घर से दूर रहता था. इस के अलावा उसे शराब पीने की लत लगी हुई थी. वह जब भी घर लौटता, तब शराब के नशे में ही होता था. उस का असर बड़े बेटे प्रशांत पर भी हो गया था और वह भी शराब पीने लगा था.

कृष्णेंद्र जब तक घर में होता, एक तूफान की तरह माहौल बना रहता था. सभी उस की आदतों से डरते थे. उस की रौबदार आवाज से थर्राते थे. सुनीता तो भीगी बिल्ली बनी रहती थी. छोटीछोटी गलतियों पर सुनीता समेत बच्चों को भी डांटता रहता था. हालांकि वह घर की सभी जरूरतें पूरी करने में कोई कटौती नहीं करता था.

घर के खर्च के लिए जब भी सुनीता या बच्चे पैसे मांगते थे, वह उन्हें दे देता था. यही उस की एकमात्र खूबी थी. जबकि वह परिवार के सभी सदस्यों की नजर में बुराइयों का पुलिंदा था.

बातबात पर गुस्सा हो जाना उस के स्वभाव में शामिल था. सुनीता से तो हमेशा किसी न किसी बात पर लड़ाई हो जाती थी. वह उस पर हाथ उठा दिया करता था. बच्चों के सामने भी वह सुनीता को कई बार पीट चुका था. इस से सुनीता के मन में पति के प्रति नफरत पैदा हो गई थी.

2 सगे भाई बने सुनीता के प्रेमी

पति से न उसे प्यार मिल पाता था और न ही यौन संतुष्टि ही मिल पाती थी. यही वजह थी कि सुनीता ने रिजवान की ओर अपने कदम बढ़ा लिए थे. सुनीता पति की गैरमौजूदगी में रिजवान को घर बुलाने लगी थी या फिर दूसरे खाली पड़े मकान में मिलने चली जाती थी.

यह सब पति और बेटे की पीठ पीछे चलता रहा. यही नहीं सुनीता ने रिजवान के भाई इरशाद से भी नजदीकियां बढ़ा लीं.

यह जानते हुए भी कि वह गलत राह पर चल पड़ी है, जब पति और 2 प्रेमियों से मिले देहसुख की तुलना करती, तब उसे कुछ भी गलत नहीं लगता. उस के दिमाग में एक ही बात आती थी कि प्रेमियों से कुछ समय के लिए ही सही उस के दिल को सुकून तो मिलता है. मन में खुशी तो आती है.

एक रात अचानक कृष्णेंद्र घर लौट आया था. शराब की लत तो सुनीता को भी लग ही चुकी थी. उस ने सुनीता को रिजवान और इरशाद के साथ शराब के नशे में मौज मनाते पकड़ लिया था. उस रात सुनीता ने अपने बेटों को दूसरे मकान पर भेज दिया था.

सुनीता की रंगरलियां देख कृष्णेंद्र आगबबूला हो गया. दोनों प्रेमी किसी तरह से वहां से निकल भागे, लेकिन सुनीता कहां जाती. तब कृष्णेंद्र ने पत्नी को घूरते हुए कहा, ‘‘साली, हरामजादी बहुत गरमी चढ़ी है जो एक नहीं 2-2 यारों के साथ… मेरे पीछे यह गुल खिलाती है. आज तेरी गरमी ऐसी निकालूंगा कि…’’ इस के बाद उस ने नग्नावस्था में ही खूब पिटाई की. अधमरी सुनीता को छोड़ कर कृष्णेंद्र सुबह होने से पहले ही चला गया.

सुबह किसी तरह से सुनीता ने खुद को संभाला और जैसेतैसे अपने जख्म साफ किए. सुबह बेटे के आने पर उस ने पिता की हरकत के बारे में सारी बात बताई और दवाइयां लाने के लिए कहा. उस की पिटाई का कारण बताया कि उस ने उस की विदेशी शराब पी ली थी.

इसी के साथ सुनीता ने बेटे को यह भी हिदायत दी कि यह घर की बात है किसी को कुछ नहीं बताए. किंतु मां की हालत देख कर प्रशांत विचलित हो गया. उस के मन में पिता के प्रति आक्रोश से भर गया. लेकिन वह अपने पिता के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता था.

पोल खुलने के बाद बढ़ने लगे जुल्म

दूसरी तरफ रिजवान और इरशाद भी रंगेहाथों पकड़े गए थे, इस कारण वे भी डर गए थे. 2 दिनों बाद वे सुनीता से मिले. उस की हालत देख कर बेचैन हो गए, लेकिन उन्होंने कुछ दिनों तक एकदूसरे से दूर रहना उचित समझा.

सुनीता के साथ प्रेमियों को देखने के बाद से कृष्णेंद्र और भी गुस्सा हो गया था. जबतब उस पर जुल्म ढाने लगा. आखिर पति के जुल्म से एक दिन सुनीता ने छुटकारा पाने की ठान ली.

ऐसी योजना बनाई जिसे वह अकेले अंजाम नहीं दे सकती थी. उस ने अपनी यह योजना दोनों प्रेमियों रिजवान और इरशाद को बताई. यही नहीं, उस में बेटे प्रशांत को भी शामिल कर लिया. उस के लिए एक दिन तय किया गया.

वह दिन 5 फरवरी का था. कृष्णेंद्र शाम को घर लौटा तो सुनीता ने उसे दालबाटी खाने को दी. उसे पता था कि दालबाटी कृष्णेंद्र को काफी पसंद थी.

वह तुरंत खाने बैठ गया. मगर इस खाने के तुरंत बाद उसे नींद आने लगी और वह जम्हाई लेने लगा. तुरंत बिछावन पर चला गया. दरअसल, सुनीता ने उस के खाने में नींद की गोलियां मिला दी थीं.

सब कुछ योजना के मुताबिक हो रहा था. कुछ समय में ही रिजवान और इरशाद भी वहां पहुंच गए. दोनों ने मिल कर कृष्णेंद्र को साथ लाए तेज धार वाली छुरी से कत्ल कर दिया. फिर चापड़ से उस के हाथ, पैर, सिर और धड़ सब अलगअलग कर दिए.

बाप के शरीर के टुकड़े करने में बेटे प्रशांत ने भी कातिलों का हाथ बंटाया. कृष्णेंद्र के शरीर के काफी टुकड़े उन लोगों ने पौलीथिन की थैलियों में भर लिए और देव गुराडि़या के नजदीक जंगल में ले जा कर फेंक आए. बाकी बचे टुकड़े सुनीता को ठिकाने लगाने के लिए दे दिए.

यह 5 फरवरी, 2022 की रात की घटना है. तब तक रात काफी हो गई थी. दूसरे दिन यानी 6 फरवरी की सुबह सुनीता ने पड़ोसियों को  नरवल वाले घर पर जाने की बात बोली. उस ने बताया कि वहां उसे कुछ मरम्मत का काम करवाना है.

कृष्णेंद्र के धड़ के बचे टुकड़े एक प्लास्टिक के ड्रम में भर लिए और उस के ऊपर कुछ बरतन रख दिए.

घर में ही दबा दिए पति की लाश के टुकड़े

वहां पहुंच कर उस ने सेप्टिक टैंक की मरम्मत के बहाने मजदूरों से गहरा गड्ढा खुदवा लिया. गड्ढा खोद कर मजदूर शाम को चले गए. उन के जाने के बाद सुनीता ने कृष्णेंद्र की लाश के टुकड़ों को एक बोरे में डाल कर गड्ढे में नमक के साथ दफना दिए.

कुछ दिन बाद जब उस ने उस जगह पर फर्श बनवाने के लिए फिर से मजदूर बुलाया, तब पुलिस के मुखबिर को इस की भनक लग गई.

पति की हत्या करने का सुनीता को कोई अफसोस नहीं है. उस ने पुलिस को रूखेपन सक बताया कि हत्या नहीं करती तो और क्या करती ऐसे आदमी का, जो उसे नंगा कर के लातघूंसों, बेल्ट और जूतों से पीटता था. गंदीगंदी गालियां देता था.

सुनीता और उस के बेटे प्रशांत से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश क जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों को भी खोजने लगी.

पुलिस को सुनीता के प्रेमी रिजवान कुरैशी और इरशाद कुरैशी के टोंककला स्थित मुरसुदा मसजिद में छिपे होने की सूचना मिली थी. पुलिस के वहां पहुंचते ही दोनों खिलचीपुर की ओर निकल भागे थे. पुलिस ने उन की तलाश में कई जगह दबिशें डालीं, लेकिन वे हाथ नहीं आ रहे थे.

फिर पुलिस ने रिजवान के बड़े भाई को बुला कर उस से रिजवान को फोन लगवाया. पुलिस के कहने पर बड़े भाई ने रिजवान को एक जगह आ कर मिलने के लिए कहा. पुलिस ने उस जगह अपनी टीम भेज कर घेराबंदी कर ली.

जैसे ही बताए हुए पते पर रिजवान और इरशाद पहुंचे, पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. इंदौर जोन 3 के डीसीपी धर्मेंद्र भदौरिया के अनुसार, दोनों ही आरोपियों पर पुलिस ने 4 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया था.

उन्होंने पुलिस को देव गुराडि़या के नजदीक जंगल में फेंके गए कृष्णेंद्र की लाश के कुछ अंग के बारे में बता दिया. पुलिस ने बड़ी मुश्किल से खून से सनी प्लास्टिक की कुछ थैलियां बरामद कर लीं.

पुलिस ने सुनीता के दोनों प्रेमियों रिजवान कुरैशी और इरशाद कुरैशी से पूछताछ कर उन्हें भी न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कृषि से जुड़ी काम की बातें

वसीम खान, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केंद्र, फतेहपुर

इन दिनों खाली खेतों की गहरी जुताई कर जमीन को खुला छोड़ दें, ताकि सूरज की तेज धूप से गरम होने के कारण इस में छिपे कीड़ों के अंडे और घास के बीज नष्ट हो जाएंगे.

धान की नर्सरी

* धान की नर्सरी डालने के लिए खेत की तैयारी करें. साथ ही, उन्नतशील किस्मों में नरेंद्र धान-359, नरेंद्र धान-2026, नरेंद्र धान-2064, नरेंद्र धान-2065, नरेंद्र धान-3112, सरजू-52, सीता आदि हैं और संकर किस्मों में एराइज-6444, प्रो. एग्रो-6201, पीएचबी-71, पायनियर-27 पी 31, 27 पी 37, 28 पी 67, आरआरएक्स-113, कावेरी-468, केआरएच-2, यूएस-312, आरएच-312, आरएच-1531 आदि हैं और सुगंधित धान की किस्म-टाइप-3, पूसा बासमती-1, मालवीय सुगंध-105, मालवीय सुगंध-3-4, नरेंद्र सुगंध एवं सीएलआर-10 आदि में से किसी एक किस्म के बीजों एवं खाद की व्यवस्था कर नर्सरी डालें.

* धान के बीजों की नर्सरी डालने के 15 दिन पूर्व खेत में हलकी सिंचाई करें, ताकि खेत में निकलने वाले खरपतवार खेत तैयार करते समय नष्ट हो जाएं.

अरहर

* अरहर की बोआई के लिए खेत को तैयार करें. बीज किसी प्रमाणित संस्था या कृषि विज्ञान केंद्र से ही खरीदें. किसानों को सलाह है कि वे बीजों को बोने से पहले अरहर के लिए उपयुक्त राईजोबियम और फास्फोरस में घुलनशील बैक्टीरिया से अवश्य उपचार कर लें.

अरहर की उन्नत किस्में

* पूसा-2001, पूसा-991, पूसा-992, पारस, मानक, यूपीएएस यानी उपास 120.

* खरीफ मक्का की बोआई के लिए खेतों की तैयारी करें, साथ ही उन्नतशील संस्तुति संकुल एवं संकर प्रजातियां-प्रकाश, वाई-1402, बायो-9681, प्रो.-316, डी-9144, दिकाल्ब-7074, पीएचबी-8144, दक्कन 115, एमएमएच-133 आदि में से किसी एक प्रजाति की बोआई के लिए खाद एवं बीज की व्यवस्था करें.

* मक्के की संकुल प्रजाति की बोआई के लिए 20-25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर और संकर प्रजाति के लिए 18-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई करें.

फसल सुरक्षा

* मूंग की फसल में फली बेधक कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है. अत: इस की रोकथाम

के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5 फीसदी एसजी 220 ग्राम प्रति हेक्टेयर या डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी

1 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें.

* सब्जियों की फसलों में फल छेदक/पत्ती छेदक कीट की रोकथाम के लिए नीम औयल 1.5-2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 3-4 छिड़काव

8-10 दिन के अंतराल पर करें. सब्जियों की खड़ी फसलों में निराईगुड़ाई करें और सिंचाई का काम 8-10 दिन के अंतराल पर शाम के समय करें.

* फल मक्खी कीट की संख्या जानने और उस के नियंत्रण के लिए कार्बारिल

0.2 फीसदी+प्रोटीन हाईड्रोलाइसेट या सीरा

0.1 फीसदी अथवा मिथाइल यूजीनाल

0.1 फीसदी+मैलाथियान 0.1 फीसदी के घोल को डब्बे में डाल कर ट्रैप लगाएं.

पशुपालन में बरतें सावधानी

* पशुओं को दिन के समय छायादार जगह पर बांध कर रखें. पशुशाला में बोरे का परदा डाल कर रखें और उस पर पानी का छिड़काव कर ठंडा रखें.

* पशुओं को पीने के लिए पर्याप्त मात्रा में ताजा और शुद्ध पानी उपलब्ध कराएं. तेज धूप से काम कर के आए पशुओं को तुरंत पानी न पिलाएं. आधा घंटा सुस्ताने के बाद पानी दें. पशुओं को सुबह और शाम नहलाएं.

* पेट में कीड़ों से बचाव के लिए पशुओं को कृमिनाशक दवा दें. खुरपकामुंहपका रोग की रोकथाम के लिए एफएमडी वैक्सीन से और लंगडि़या बुखार की रोकथाम के लिए बीक्यू वैक्सीन से पशुओं का टीकाकरण अवश्य कराएं. पशुओं में गलघोंटू और फड़ सूजन की रोकथाम के लिए टीकाकरण कराएं. शाम के समय पशुओं के पास नीम की पत्तियों का धुआं करें, ताकि मच्छर व मक्खी भाग जाएं.

मुरगीपालन

* मुरगियों को भोजन में पूरक आहार दें. विटामिन व ऊर्जा खाद्य सामग्री इस में मिलाएं और साथ ही साथ कैल्शियम सामग्री भी मुरगियों को आहार में दें.

* पेट में कीड़ों की रोकथाम के लिए दवा दें. मुरगियों को गरमी से बचाव के लिए मुरगीघर में परदे, पंखे और वैंटिलेशन की व्यवस्था करें.

* मुरगियों को गरमी से बचाने के लिए मुरगीघर में लगे हुए जूट के परदों पर पानी के छींटे मारें, जिस से ठंडक बनी रहे.

मंजिल से भी खूबसूरत सफर

सफर कितना खूबसूरत होता है, यह तो उस पर जा कर ही जान सकते हैं. बात कुछ महीने पहले की ही है जब यों ही गपशप लगाते हुए पता नहीं कैसे कहीं घूमने जाने की बात निकल आई. फिर क्या था, हिमाचल जाने से शुरू हुई बातचीत उदयपुर जाने पर आ कर रुकी. बातें तो मैं ने और मेरे दोस्तों ने ऐसे कीं कि मानो दिल्ली में बैठेबैठे ही हम उदयपुर घूम आए हों.

हम ने हर दिन तारीखों पर लड़ाई की, कब जाना है, कहां जाना है और कैसे जाना है जैसी चीजों पर चर्चाएं शुरू हो गईं. जाने में एक हफ्ता ही बचा था जब सब ने एकएक कर अपनेअपने कारणों से ट्रिप पर जाने से मना कर दिया. आखिर में फैसला मेरे हाथ में था कि मैं जाना चाहता हूं या नहीं. मैं ने लंबी सांस ली, अपने बचपन के दोस्त राहुल से पूछा, उस ने हां कहा और हम निकल पड़े उदयपुर के सुहाने सफर पर अपने सपनों की पोटली लिए अपनी पीठ पर.

ट्रेन से रात का सफर मैं और राहुल पहली बार करने वाले थे. ट्रेन अपने समय से 5 मिनट पहले ही स्टेशन पर आ कर खड़ी हो गई मानो उसे हम से ज्यादा जल्दी थी दिल्ली से निकलने की. नवंबर की सर्दी थी तो ठिठुरन में ही रात निकल रही थी. हालांकि गर्मजोशी भी हम में कुछ कम नहीं थी लेकिन दिल्ली में मोटीमोटी रजाइयां ले कर सोने वाले हम, ट्रेन के कंबलों में कंपकपाने से खुद को नहीं रोक पाए.

इसी बीच सामने वाली सीट पर बैठे अंकल से उन का मोबाइल सीट की साइड वाली दरार में गिर गया. उस फोन को ढूंढ़ने में पूरी बोगी के लोग लग गए. कोई छड़ी ले कर आया तो कोई सैल्फी स्टिक, लेकिन फोन किसी से नहीं निकला. कुछ देर मेहनतमशक्कत करने के बाद थकहार कर आरपीएफ कौंस्टेबल को बुलाया गया तो उन्होंने ट्रेन के रुकने पर फोन ढूंढ़ने का सु?ाव दिया. उन अंकल की शक्ल तो ऐसी हो रखी थी जैसे किसी ने उन्हें आधे घंटे अपनी दोनों किडनियों के बिना जीने के लिए कह दिया हो.

अगले सिग्नल पर ट्रेन रुकी तब जा कर उन अंकल को अपने जिगर के टुकड़े समान फोन मिला तो उन के साथसाथ हम सभी ने चैन की सांस ली. खैर, फोन तो हमारा नहीं था लेकिन फोन के खोने का दर्द अपनाअपना सा लगा.

एक चाचा बैठे थे दूसरी सीट पर. उन्होंने मु?ा से और राहुल से पूछा, ‘‘बेटा कहां से आए हो, दोनों इंजीनियर से लगते हो.’’ यह सुन कर हम दोनों अपनी हंसी नहीं रोक पाए. उन चाचा ने जरा नजर हटाई तो मैं ने राहुल से पूछ लिया, ‘‘यार, हमारी शक्ल पर दिखने लगा है क्या कि हम सिंगल हैं?’’ मतलब मैं सम?ा देता हूं, अकसर हम यानी दिल्ली के विद्यार्थी शायद देशभर के विद्यार्थी इंजीनियर को सिंगल ही सम?ाते हैं तो सिंगल का पर्यायवाची इंजीनियर को कह सकते हैं तो उन चाचा का हमें इंजीनियर कहने का अर्थ हमें यही लगा कि वे हमें सिंगल कह रहे हैं.

सुबह की पहली किरण हम ने उदयपुर में देखी. स्टेशन से बाहर निकले तो औटो वालों ने हमें ऐसे घेर लिया जैसे वाइवा दे कर आए पहले बच्चे को बाकी विद्यार्थी घेरते हैं. सब हमें उदयपुर घुमाने के अलगअलग औफर दे रहे थे लेकिन हमें पहले से ही पता था कि हमें कहां जाना है और कैसे. हम पैदल ही बातें करते हुए अपने बुक किए गए होटल पर पहुंच गए. वहां जा कर हम ने कुछ देर आराम किया.

सिटी पैलेस की सैर

12 बजे के करीब हम अपने होटल से सिटी पैलेस देखने निकल गए. सिटी पैलेस उदयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. सिटी पैलेस पर हमें हमारे गाइड मिले, रतनजी. उन की बड़ीबड़ी मूंछों और सिर पर पहनी पगड़ी ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींच लिया. उन्होंने हमें सिटी पैलेस के विषय में ढेरों जानकारियां दीं. किसी बात पर वे कहते ‘काश हम ऐसे राजाओं के घर ही पैदा हो जाते जहां के चम्मच भी सोने के होते.’ उन की बात सुन कर हंसी आने लगी.

सिटी पैलेस राजस्थान के विशाल महलों में से एक है जिस का निर्माण महाराणा उदय सिंह द्वितीय के समय में हुआ था. इस महल को देख कर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह अभी इतना खूबसूरत है तो जिस समय बना था तब कितना सुंदर रहा होगा.

इस पैलेस की चमक आज भी बरकरार है. लेक पिछोला के तट पर स्थित इस पैलेस के अंदर भी अनेक छोटी इमारतें बनी हुई हैं. सिटी पैलेस के अंदर दरबार हाल, दिलखुश महल, छोटी चित्रशाली, चीनी चित्रशाली, कृष्णा विलास, लक्ष्मी विलास चौक, मानक महल, रंग भवन, मोर चौक, शीश महल, अमर विलास, बड़ी महल, भीम विलास फतेहप्रकाश पैलेस और म्यूजियम हैं.

इन सभी स्थानों पर एक से बढ़ कर एक कलाकृतियां हैं जिन्हें देख कर राजस्थान की सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान होता है. हैरत की बात नहीं कि यहां इतने टूरिस्टों का जमावड़ा क्यों लगा रहता है. वहां 4 घंटे घूम कर हम लेक पिछोला जा कर बोटिंग करने लगे. ऐसा लग रहा था जैसे हम इंडिया में न हो कर किसी और देश में पहुंच गए हों. सूरज की किरणें ?ाल में उतर रही थीं और सीधा हमारी आंखों में पड़ रही थीं. हवा तो इतनी ठंडीठंडी चल रही थी मानो सीधा स्विट्जरलैंड से आ रही हो.

परी नगर उदयपुर

?ालों के नगर या कहें परी नगर में खाना इतना लाजवाब मिलता है कि दिल्ली के बड़े से बड़े रैस्तरां भी इस के आगे फेल हैं. हम लेक पिछोला से निकल कर पास के एक छोटे कैफे में जा बैठे. वह कैफे अपने स्वादिष्ठ राजस्थानी खाने के लिए फेमस था. वहां के मेनू को देखने से ही मेरे मुंह में पानी आ गया.

गट्टे की सब्जी, दाल बाटी चूरमा, लाल मांस, घेवर, मावा कचोरी, चूरमा लड्डू, बादाम का हलवा और जाने क्याक्या ही नहीं था उस मेनू में. देख कर लगा तो यह था कि ये सब खाना तो मेरे दाएं हाथ का खेल है, वह अलग बात है कि चार रोटी, गट्टे की सब्जी और घेवर खा कर ही मैं ढेर हो गया. वहीं दूसरी तरफ राहुल सब खाना ऐसे ठूंस रहा था मानो सदियों का भूखा हो.

शाम होते ही हम उदयपुर में होने वाले डांसिंग शो को देखने चले गए. टिकट लिया तो पता चला शो को शुरू होने में एक घंटे का समय है. सो हम आसपास टहलने निकल गए. जो खुशी, जो अपनापन और जो ताजगी मैं वहां महसूस कर रहा था वह शायद ही कभी मैं ने दिल्ली में महसूस की हो. वापस शो में आए तो अलगअलग नृतक वहां अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे. कुछ गायकों ने ‘केसरिया बालम आवो ने पधारो ने मारो देस, देस रे…’ गाया तो लगा मेरे लिए ही गा रहे हों. मैं तो मंत्रमुग्ध हो कर रह गया.

अगले दिन की सुबह दालबाटीचूरमा से हुई. आज हम बड़ी लेक, बाहुबली हिल्स और मानसून पैलेस घूमने वाले थे. हम ने बाहुबली हिल्स जाने के लिए औटो लिया तो औटो वाले भैया ने बकबक करना शुरू कर दिया. उन्होंने हमारे बिना पूछे ही अपनी लवस्टोरी जो सुनानी शुरू की तो फिर रुके ही नहीं.

उन्होंने बताया कैसे एक ही बार मिलने पर उन्हें उस लड़की से प्यार हो गया और उस लड़की को उन से. कैसे वे उसे खत लिखा करते थे और कैसे छिपछिप कर मिला करते थे और फिर किस तरह आज वे शादी कर के खुशहाल जिंदगी बिता रहे हैं. यह सब सुन कर पहले तो थोड़ी लानत महसूस हुई खुद पर (जन्म से सिंगल जो ठहरे) और फिर एहसास भी हुआ कि कैसे चिट्ठी और खत वाला प्रेम चैटिंग बन कर रह गया है.

बातें करतेकरते हम बाहुबली हिल्स पहुंच गए. वहां ऊंचाई पर पहुंच कर लगा मानो जिंदगी अब खत्म भी हो जाए तो गम नहीं. हम ने कुछ फोटो लीं ताकि बुढ़ापे में उन्हें देखदेख कर इस दिन को याद कर सकें. बाहुबली हिल्स से उतरे तो सामने बाड़ी लेक थी. बाड़ी लेक में हमें बिलकुल दिल्ली जैसा नजारा दिखा, जैसे दिल्ली के पार्कों में सिक्योरिटी गार्ड प्रेमियों को भगाते हैं वैसे ही एक गार्ड अंकल वहां कपल्स को भगा रहे थे. वे कपल्स भी कुछ कम ढीठ नहीं थे एक जगह से उठते तो दूसरी जगह पहुंच जाते.

कुछ देर वहां आराम करने के बाद हम मानसून लेक की तरफ चल दिए. मानसून लेक पर पहुंच कर उदयपुर का जो मनमोहक दृश्य दिखा उसे शब्दों में पिरोना आसान नहीं. वहां से आए तो हम घाट किनारे चल दिए. वहां कुछ स्टूडैंट्स दिखे जो मस्तीमजा कर रहे थे. एक ने गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया तो समां थोड़ा रोमांटिक होने लगा. मु?ो इस रोमांटिक माहौल में अपनी वह गर्लफ्रैंड याद आने लगी जो असल में कभी गर्लफ्रैंड बनी ही नहीं (सिंगल होने के कुछ साइड इफैक्ट्स).

कुछ देर बार खाना खाने गए और लौटते हुए सोचा चलतेचलते ही होटल पहुंचा जाए. बाजार बड़ेबड़े बल्बों से सजा हुआ था. दुकानों के बाहर रंगबिरंगे दुपट्टे टंगे हुए थे. खाने की खुशबू हर ओर से आ रही थी. जूतियां, बैग, खिलौने और जाने क्याक्या ही बाजार की शोभा बढ़ा रहे थे. मन में आया कि कुछ चूडि़यां मैं भी खरीद लूं लेकिन राहुल ने कहा, ‘‘भाई ले तो लेगा पर देगा किस को?’’ तो उन चूडि़यों को खरीदने का खयाल भी मन से निकल गया.

इसी के साथ खत्म हुआ हमारा 2 दिनों का सफर. उदयपुर मेरी मंजिल नहीं थी, न ही वापस दिल्ली आना मेरी मंजिल है. असल में मु?ो पता ही नहीं है मेरी मंजिल क्या है. उदयपुर से दिल्ली, दिल्ली से गोवा, गोवा से हिमाचल और हिमाचल से उत्तराखंड जाना भी मेरी मंजिल नहीं था. सब सफर था या कहूं कि सफर है.

अगला सफर शायद इंडिया से बाहर का भी होगा. लेकिन मेरी मंजिल क्या है, मु?ो पता नहीं. सफर में मिलने वाले लोग, यादें, अलगअलग संस्कृति और सभ्यताओं से परिचय, ढेरों बातें और ढेर सारे अनुभव ही सफर को यादगार बनाते हैं. आखिर में बस, इतना ही कहूंगा, ‘मैं उड़ना चाहता हूं, दौड़ना चाहता हूं, गिरना भी चाहता हूं… बस, रुकना नहीं चाहता.’

कमाऊ मुरगी: क्यों धैर्या की शादी नहीं होने देना चाहते थे घरवाले?

‘‘मां,भैया देखो मैं किसे आप से मिलाने लाई हूं,’’ धैर्या ने कमरे में घुसते ही खुशी से अपने परिवार के लोगों को पुकारा. ‘‘अरे कौन है भई जो इतनी खुश नजर आ रही है मेरी बहना?’’ भाई अमन पत्नी के साथ अपने कमरे से बाहर आते हुए बोला.

अब तक मां भी ड्राइंगरूम में आ चुकी थीं. ‘‘मां, ये हैं मेजर वीर प्रताप सिंहजी.

इन की पूना में पोस्टिंग है,’’ धैर्या ने चकहते हुए अपने साथ आए एक लंबे कद के आकर्षक पर्सनैलिटी वाले व्यक्ति से सब का परिचय कराया. ‘‘नमस्ते,’’ कह कर मेजर ने सब का अभिवादन किया.

चायनाश्ते के दौरान मेजर ने बताया कि वे हरियाणा के करनाल के रहने वाले हैं और अपने मातापिता के इकलौते बेटे हैं. वे जाट परिवार से हैं और अभी तक कुंआरे हैं. चायनाश्ता कर के मेजर धैर्या की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘अच्छा धैर्या अब मैं चलता हूं, कल मिलते हैं.’’

‘‘जी, अच्छा,’’ कह धैर्या उन्हें बाहर तक छोड़ने गई. ‘‘2-4 दिनों में तुम्हें अपने मातापिता से मिलवाने की कोशिश करता हूं,’’ मेजर ने अपनी कार में बैठते हुए कहा.

जब धैर्या अंदर आई तो मां, भाई और भाभी सभी को अपनी ओर गुस्से से देखते हुए पाया. ‘‘कौन थे ये जनाब दीदी और हम से मिलवाने का क्या मतलब था?’’ भाभी व्यंग्यात्मक स्वर में बोलीं.

‘‘मां, ये सेना में अधिकारी हैं. उम्र में मुझ से 10 साल बड़े हैं, इसलिए आप से मिलवाने लाई थी,’’ एक सांस में सारी बात कह कर धैर्या अपने कमरे में चली गई. यह सुन कर घर के तीनों सदस्यों को जैसे सांप सूंघ गया. सब हैरान से एकदूसरे को देखने लगे.

‘‘दिमाग खराब हो गया है इस लड़की का. अब इस उम्र में शादी करेगी और वह भी गैरजाति के लड़के से… हमारी तो बिरादरी में नाक ही कट जाएगी,’’ मां अपना सिर पकड़ कर बोलीं. ‘‘बाहर आने दो, मैं बात करता हूं इस से,’’ भाई अमन बोला.

‘‘ननद रानी का तो दिमाग ही फिर गया है… शादी वह भी इतनी बड़ी उम्र के इंसान से?’’ भाभी धारिणी भला कहां चुप रहने वाली थी. ‘‘भाभी, क्या बुरा कर रही हूं मैं? इस संसार में सभी तो शादी करते हैं… आप भी तो शादी कर के ही इस घर में आई हैं. फिर उम्र से क्या फर्क पड़ता है? मेरी उम्र भी कौन सी कम है?’’ कमरे से बाहर आते हुए धैर्या बोली.

‘‘अच्छीभली तो चल रही है तेरी जिंदगी… क्यों उस में आग लगा रही है? एक तो पिछड़ी जाति का लड़का और फिर उम्र में भी तुझ से 10 साल बड़ा… न शक्ल न सूरत, तुझे उस में क्या दिखा, जो शादी करने की सोच ली. तेरे आगे कहीं नहीं लगता वह,’’ मां ने समझाने की कोशिश की. ‘‘ठीक है न मां, सारी जिंदगी तो आप सब के हिसाब से ही चली. अब कुछ अपने मन का भी करने दें,’’ कह धैर्या नहाने चली गई.

उस दिन से घर में जैसे तूफान आ गया. सुबह उस से किसी ने बात नहीं की. वह चुपचाप नाश्ता कर के औफिस चल दी. तभी मेजर का फोन आ गया, ‘‘हैलो गुड मौर्निंग डियर, हाऊ आर यू? नींद आई थी भी

या नहीं?’’ ‘‘मैं ठीक हूं,’’ धैर्या ने उत्तर दिया.

‘‘क्या हुआ कुछ मूड ठीक नहीं है. ऐनी प्रौब्लम?’’ धैर्या को रोना आ गया. बोली, ‘‘घर में कल आप के जाने के बाद जम कर कुहराम मचा… कोई मेरी शादी नहीं करना चाहता… ऐसा मैं ने क्या कर दिया,’’ वह रोंआसे स्वर में बोली.

‘‘कोई बात नहीं, तुम उदास न हो… ये सब हम बाद में हल कर लेंगे. कल मम्मीपापा आ रहे हैं अपनी लाड़ली बहू से मिलने, तुम तैयार रहना,’’ मेजर ने उत्साह से कहा. यह सुन धैर्या एकदम चौंक कर अपने आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘कल… क… ल… मैं कैसे कर पाऊंगी सब?’’ ‘‘तुम्हें करना ही क्या है. बस तैयार हो कर कल 11 बजे होटल ताज पहुंच जाना. मैं वहीं मिलूगा.’’

‘‘जी वे सब तो ठीक है, पर मैं बहुत नर्वस फील कर रही हूं,’’ धैर्या ने थोड़ा घबराते हुए कहा. ‘‘अरे, इस में नर्वस होने की क्या बात है. मेरे मातापिता बेहद सीधे हैं. वे कब से अपनी बहू के लिए तरस रहे हैं. बस मैं ही शादी के लिए तैयार नहीं था… उन का बस चले तो आज ही शादी कर के तुम्हें घर ले जाएं. ठीक है तो कल मिलते हैं,’’ कह कर मेजर ने फोन काट दिया.

शाम को औफिस से घर आ कर धैर्या कौफी का मग ले कर बालकनी में आ खड़ी

हुई. उस का मन आज से 6 माह पहले मेजर से हुई पहली मुलाकात पर चला गया था. होश संभालते ही घर की जिम्मेदारियों को निभातेनिभाते वह अपने बारे में सोचना ही भूल गई थी. बस मां, भाई, भाभी, भतीजा ही उस की दुनिया थे. पर पिछले कुछ दिनों से घर वालों का बर्ताव और कुछ कानों में पड़ी बातों ने उस के मन को बुरी तरह आहत कर दिया था. तभी उसे समझ आया कि घर में सब अपनेअपने में मसरूफ हैं… सभी को उस के पैसे से मतलब है न कि उस से. वह तपड़ उठी थी जब मौसी ने मां से उस की शादी के बारे में बात की थी. तब मां बोली थीं, ‘‘अरे जीजी धैर्या का ब्याह हो गया तो हमारी जिंदगी तो नर्क हो जाएगी. अमन की तो नौकरी लगतीछूटती रहती है… शादी के बाद ससुराल वाले मायके की मदद तो नहीं करने देंगे न.’’

मां की बातें सुन कर धैर्या के पैरों तले की जमीन जिसक गई. 1 सप्ताह के गंभीर मंथन के बाद वह किसी नतीजे पर पहुंचती, तभी उसे एक दिन औफिस जाते समय मैट्रो में अपनी बचपन की सहेली निशा मिल गई. धैर्या की आपबीती सुन कर निशा गुस्से से भर कर बोली, ‘‘तू अभी तक उन सब को ढो रही है. अंकल थे तब तू कमाऊ पूत थी और अंकल के जाने के बाद सब के लिए मात्र सोने के अंडे देने वाली कमाऊ मुरगी बन कर रह गई है, जिसे तेरे घर वाले शादी कर हलाल नहीं करना चाहते हैं. अब मैं तेरी एक नहीं सुनूंगी. बस तू अभी मेरे साथ चल,’’ कह कर वह उसे अपने एक जानपहचान के मैरिज ब्यूरो ले गई और फिर उस का वहां शादी के लिए रजिस्ट्रेशन करवा दिया.

मैरिज ब्यूरो से 1 माह बाद ही धैर्या के पास फोन आ गया और तब उस की मेजर सिंह से मुलाकात हुई. वे उसे पहली मुलाकात में ही भा गए थे. बिना लागलपेट के उन्होंने धैर्या को बताया कि वे 42 साल के हो कर भी सिर्फ इसलिए कुंआरे हैं कि वे अपनी नौकरी में मसरूफ थे. अपनी पोस्टिंग पर उन्हें परिवार को ले जाने की मनाही थी. छुट्टी भी बहुत कम मिलती थी. मातापिता की देखभाल के लिए किसी भी लड़की को ब्याह कर ससुराल में छोड़ना उन्हें पसंद नहीं था. अब उन की पोस्टिंग पूना में है और वे परिवार को अपने साथ रख सकते हैं. इसीलिए शादी को तैयार हो गए. धैर्या के बारे में सब सुन कर उन्होंने कहा, ‘‘आप जैसी जिम्मेदार लड़की से कौन शादी नहीं करना चाहेगा… आप को अपने घर ला कर मैं और मेरे मातापिता खुद को धन्य समझेंगे.’’

मेजर साहब से होटल में मिलने के बाद धैर्या ने वहीं से निशा को उन के बारे में बताया तो वह खुशी से बोली, ‘‘अब देर मत कर, भले ही तुझ से उम्र में 10 साल बड़े हैं, जाति और कल्चर अलग हैं, पर उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम दोनों समझदार हो. तू अपना सबकुछ लुटा कर भी परिवार वालों की सगी नहीं हो सकती… वे सिर्फ अपना मतलब निकाल रहे हैं. शादी कर के अपना घरपरिवार बसा और अपनी जिंदगी जी.’’ मेजर सिंह से कुछ मुलाकातों में ही उस की समझ में आने लगा कि जीवनसाथी के साथ जिंदगी बिताने का आनंद क्या होता है. खुद को अंदर से मजबूत कर के और शादी का पक्का मन बनाने के बाद ही उस ने मेजर सिंह को अपने परिवार वालों से मिलवाया.

अगले दिन सुबह धैर्या फीरोजी रंग की शिफौन की साड़ी पर हैदराबादी मोतियों का सैट पहन कर घर से निकली तो मां और भाभी उसे खा जाने वाली नजरों से देख रही थीं.

ताज होटल के कमरा नं. 403 के बाहर पहुंच कर घंटी पर हाथ रखते समय उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. उसे लग रहा था मानो वह जिंदगी का सब से बड़ा इम्तिहान देने जा रही हो.

जैसे ही दरवाजा खुला मेजर सिंह सामने खड़े थे. वे उस का हाथ पकड़ कर उसे अंदर तक ले गए. उसे देखते ही उन के मातापिता खड़े हो गए. उस ने हाथ जोड़ कर उन का अभिवादन किया. मेजर सिंह की मां ने उसे अपने गले से लगा लिया और फिर बोलीं, ‘‘कुदरत का लाखलाख शुक्र है जो उस ने हमें इतनी प्यारी लड़की बहू के रूप में दी. इस दिन के लिए मेरी आंखें कब से तरस रही थीं.’’

‘‘बैठो, बेटा आराम से बैठो,’’ मेजर सिंह के पिता ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा. धैर्या लजाते हुए सामने रखे सोफे पर बैठ गई.

‘‘बेटा, हम तुम से कुछ नहीं पूछना चाहते. हमें प्रताप ने सब बता दिया है. हम बस तुम्हें एक बार देखना चाहते थे, अब बस हम तुम्हारे परिवार वालों से मिल कर शादी की डेट तय करना चाहते हैं. शाम को हम तुम्हारे घर आ रहे हैं,’’ मेजर सिंह के पिता ने कहा. ‘‘जी, जैसा आप ठीक समझें,’’ धैर्या सिर नीचा किए शरमाते हुए बोली.

हलकेफुलके चायनाश्ते के बाद वह घर आ गई. फ्रैश हो कर चाय पीतेपीते वह गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मां, भैया, मेजर साहब के मातापिता आज शाम को आ कर आप दोनों से मिल कर हमारी शादी की तारीख तय करना चाहते हैं.’’ ‘‘शादी? कैसी शादी? हमें यह शादी मंजूर नहीं और न हम ऐसी किसी शादी में शामिल होंगे… हम ऐसी गैरजाति की बेमेल शादी नहीं होने देंगे.’’

भाई अमन तो मानो अपना आपा ही खो बैठा था. ‘‘पर मैं ने तय कर लिया है भैया कि मैं मेजर साहब से ही शादी करूंगी,’’ धैर्या दृढ़ता से बोली.

यह सुन कर अमन भी तेज आवाज में बोला, ‘‘मैं बरसों से पापा की बनीबनाई

इज्जत को मिट्टी में नहीं मिलने दूंगा.’’ ‘‘कुछ तो बोलो मां, आप क्यों चुप बैठी हो?’’ धैर्या ने शांति से तमाशा देख रहीं मां की ओर देख कर कहा.

मां पहले से ही कुढ़ी बैठी थीं. अत: गुस्से से बोलीं, ‘‘अरे मैं क्या बोलूं, जब तुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा.’’ ‘‘क्या समझ नहीं आ रहा मां? शादी ही तो कर रही हूं कोई गलत काम तो नहीं कर रही,’’ धैर्या ने लगभग रोंआसे स्वर में कहा.

‘‘ननद रानी आप तो बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम वाली बात कर रही हैं. शादी वह भी इस उम्र में?’’ भाभी ने भी अपनी औकात दिखा ही दी. ‘‘क्यों भाभी कल तक जब आप के लिए महंगे सूट, साडि़यां और गहने लाती थी, तब तो बड़ी प्यारी ननद और बहन कहतेकहते नहीं थकती थीं आप और आज मैं बूढ़ी घोड़ी हो गई? असल में आप तीनों ही मेरी शादी करना नहीं चाहते, क्योंकि मैं आप के लिए महज एक कमाऊ मुरगी हूं. मेरी कमाई से ही तो आप सब अपने शौक पूरे कर रहे हैं. आप सब अपनी दुनिया में मस्त हैं, कभी किसी ने मेरे बारे में सोचा है?’’

‘‘देख बेटा अब तू अपनी सीमाएं लांघ रही है. उस मेजर ने लगता है तेरा दिमाग खराब कर दिया है,’’ मां गुस्से से बोलीं. ‘‘नहीं मां मेरा दिमाग तो अब तक खराब था. आज ही ठिकाने आया है. याद है पिछले महीने जब मौसी ने मेरी शादी की बात आप से की थी तो आप ही कह रही थीं कि धैर्या की शादी कर दी तो हम कैसे रहेंगे? उसी से तो घर चलता है. बताइए, इसीलिए तो आप ने कभी मेरी शादी के बारे में नहीं सोचा.’’

‘‘छोटी बस कर, बहुत बोल ली तू… इस उम्र में ये शादीवादी के सपने देखना छोड़ दे. चैन से नौकरी कर और सब के साथ रह जैसे अब तक रहती आई है,’’ अमन ने थोड़ा नर्म होते हुए कहा. ‘‘भैया आप को याद है, आप और भाभी हमेशा हर नई फिल्म का पहला शो देखते हो. पिछली बार जब आप कोई फिल्म देख कर आए थे और भाभी से मेरी शादी की बात कर रहे थे, तब भाभी ने कहा था कि दीदी की शादी हो गई तो हमारा खर्चा नहीं चलेगा. इसलिए जैसा चल रहा है चलने दो और आप ने कहा था, यह तो है. मेरी तनख्वाह से तो हमारा घर का गुजारा नहीं हो सकता. फिल्म देखना तो दूर की बात है.’’

‘‘भैया आप अपनी दुनिया में इतने व्यस्त हो गए कि मुझ से 5 साल बड़े हो कर भी आप ने कभी मेरे बारे में नहीं सोचा,’’ धैर्या ने गुस्से में कहा तो भैया और भाभी निरुत्तर हो कर एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

‘‘देख बेटा अब इस उम्र में शादी के सपने देखना छोड़ दे. एक तो गैरजाति का लड़का ऊपर से उम्र में 10 साल बड़ा. ये लोग बड़े चालाक होते हैं. लड़कियों की कोई इज्जत नहीं होती इन के यहां. मुझे तो लगा वे बस तेरे पैसे के लालच में शादी करने की बात कर रहे हैं… तू पछताएगी,’’ मां ने अपना आखिरी दांव चला.

‘‘नहीं मांजी, आप गलत सोच रही हैं. मेरे परिवार को पैसों का कोई लालच नहीं है. हमारा परिवार तो धैर्या जैसी लड़की को अपने परिवार की बहू बना कर अपने को धन्य समझेगा. मैं उसे जीवन की वह हर खुशी दूंगा जिस पर एक लड़की और एक पत्नी का अधिकार होता है. शादी के बाद भी यह आप लोगों पर खर्च करना चाहे, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी,’’ मेजर सिंह की आवाज सुन कर धैर्या चौंक गई, जो दरवाजे की ओट में खड़े न जाने कब से घर के सदस्यों की बातें सुन रहे थे. ‘‘आप… आप यहां कब आए?’’ धैर्या ने अचकचाते हुए पूछा.

‘‘धैर्या, तुम जल्दीबाजी में अपना मोबाइल होटल में ही भूल आई थीं… मैं इसे देने यहां चला आया. अब मुझे लगता है कि मेरे मम्मीपापा को शादी तय करने के लिए यहां आने की जरूरत नहीं है.’’‘और मैं आप सब से भी कहना चाहता हूं कि आज से बल्कि अभी से इस के जीवन का हर सुखदुख मेरा है. मैं ने आप सब लोगों की सारी बातें सुन ली हैं और अब मैं इसे यहां आप लोगों के बीच एक पल भी नहीं रहने दूंगा. धैर्या, चलो मेरे साथ.’’ हम दोनों शादी कर रहे हैं. आप लोगों को यदि उचित लगे तो आशीर्वाद देने आ जाइएगा. शादी 1 माह बाद अदालत में होगी. उतने दिन धैर्या मेरे घर में मेहमान की तरह रहेगी. धैर्या के घर वालों को अपना फैसला सुना कर मेजर सिंह धैर्या का हाथ पकड़ कर उसे बाहर अपनी गाड़ी तक ले गए.

धैर्या तब तक अपना सामान पैक कर चुकी थी. परिवार के तीनों सदस्य धूल उड़ती गाड़ी को चुपचाप जाते देखते रह गए. धैर्या ने मेजर सिंह के कंधे पर सिर टिका कर अपनी आंखें मूंद लीं मानो जीवन में आने वाले नए उजाले के सपने देखने की कोशिश कर रही हो.

मैं शादीशुदा महिला से प्रेम करता हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 26 साल का नौजवान हूं. एक दिन मेरे फेसबुक अकाउंट में एक महिला का फ्रैंड सजेशन आया. मैं ने उसे अपनी फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. कुछ दिनों बाद उस महिला ने मेरी फ्रैंड रिक्वैस्ट एक्सैप्ट कर ली, फिर धीरेधीरे हमारी हायहैलो होनी शुरू हो गई. मैं उस महिला की ओर जबदस्त आकर्षित होता जा रहा हूं जबकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि वह शादीशुदा है, 46 साल की है, 2 बच्चों की मां है.

उस के पति दूसरे शहर में पोस्टेड हैं और वह बच्चों के साथ अकेली रहती है और अपना बुटीक चलाती है. वह अब मु?ो अपने घर बुला रही है. मैं उस से मिलने के लिए दीवाना हो रहा हूं लेकिन फिर भी दिल में कहीं न कहीं यह खयाल भी आ रहा है कि ‘नहीं, यह सब ठीक नहीं होगा’. दिमाग बहुत ज्यादा खराब हो रहा है. अजीब कशमकश चल रही है. आप की राय शायद मु?ो कोई सही राह दिखाए.

जवाब

ओफ, शुक्र है आप ने अभी कोई गलत कदम नहीं उठाया. आप जिंदगी की सब से बड़ी गलती करने जा रहे हैं. आप क्या अपनी अच्छीखासी जिंदगी को पचड़ों में डाल कर बरबाद करना चाहते हैं? वह महिला शादीशुदा है, 2 बच्चों की मां है, आप से उम्र में 20 साल बड़ी है. उस के साथ इन्वौल्व हो कर आप क्या हासिल कर लेंगे.

न आप उस से शादी कर फैमिली बना सकते हैं, न उसे अपने परिवार वालों से मिलवा सकते हैं. आप यह कदम उठा कर किसी दूसरे की गृहस्थी में आग लगाएंगे. उस के पति को आप के बारे में पता चल जाएगा तो न जाने क्या हश्र होगा.

एक बार चलो माने लेते हैं कि वह महिला अपना अकेलापन दूर करने के लिए आप से दोस्ती करना चाहती है. आप दोनों फिजिकल रिलेशन रख कर एकदूसरे की कमी को पूरा करना चाहते हैं लेकिन फिर भी यह ठीक  नहीं होगा.

आप के लिए तो बिलकुल भी नहीं क्योंकि अभी आप की उम्र पड़ी है एक नई शुरुआत करने की, एक हमउम्र साथी के साथ अपनी गृहस्थी बसाने की. उस महिला का तो कुछ नहीं जाएगा. आप से वह अपनी सैक्सुअल डिजायर पूरी कर लेगी लेकिन आप का क्या. उस का अपना परिवार है, बच्चे हैं, पति की समाज में प्रतिष्ठा है. लेकिन आप को इस महिला से संबंध रख कर क्या हासिल होगा, कुछ नहीं.

आप आकर्षण के जाल में फंस रहे हैं. मत फंसिए. कुछ हाथ नहीं आएगा. अपनी जिंदगी को गलत ट्रैक पर मत ले जाइए.

हमारी राय मानिए उस महिला से कौंटैक्ट रखना बंद कर दीजिए. मीडिया की हर साइड से उसे ब्लौक कर दें. अननौन नंबर से फोन आए तो बिलकुल कौल न उठाएं. हो सकता है वह दूसरे नंबर से आप को कौंटैक्ट करने की कोशिश करे. थोड़े दिन आप बेचैन रहेंगे लेकिन धीरेधीरे आप सम?ा जाएंगे कि आप ने जो किया अच्छा किया. लाइफ जब अच्छीखासी सीधी चल रही है तो उसे पचड़ों में क्यों उल?ाया जाए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

सिसकी: रानू और उसका क्या रिश्ता था

अपना घर: आखिर विजय के घर में अंधेरा क्यों था?

विजय ने अपना स्कूटर खड़ा किया और कमरे में घुसा. कमरे में शाम का अंधेरा फैला हुआ था. उस ने लाइट औन की. सोफे पर उदास सी बैठी हुई सुरेखा को देखते ही वह चिल्ला कर बोला, ‘‘कौन मर गया है जो अंधेरे में बैठी रो रही हो?’’

CUET: परीक्षा बदला पैटर्न, चिंता वही

देश की सैंट्रल यूनिवर्सिटीज में स्टूडैंट्स के दाखिले के लिए कटऔफ की जगह एंट्रैंस टैस्ट अनिवार्य कर दिया गया है. ऐसे में एंट्रैंस टैस्ट को ले कर उन में कई तरह के कन्फ्यूजन्स हैं. आइए जानें कि उन कन्फ्यूजन्स को कैसे दूर करें.

कालेज में जाने का सपना किस यंगस्टर का नहीं होता, महानगरों में बने विश्वविद्यालयों में तो कालेज की दहलीज तक घुसने के लिए भारी जद्दोजेहद करनी पड़ती है. हर युवा चाहता है कि वह कालेज की लाइफ एंजौय करे, अपनी पढ़ाई के साथसाथ हमउम्र युवा को दोस्त बनाए, नया फ्रैश माहौल हो, बिना बाउंडेशन के खुले में घूमनेफिरने की आजादी हो, दुनिया को देखेसम?ो, हिचकिचाहट दूर करे.

कोविड महामारी के चलते 2 वर्षों से पूरे देश के एजुकेशन सिस्टम पर भारी असर पड़ा. स्कूलों से ले कर कालेजों तक को बंद करने की नौबत आ गई. पढ़ाई और एग्जाम औनलाइन शुरू हुए. इस दौरान स्टूडैंट्स ने कई बदलाव देखे. इन सब से निकलने के बाद अब छात्रों को एक नए बदलाव से गुजरना पड़ेगा. यह बदलाव हायर एजुकेशन में हुआ है.

देश में ‘न्यू एजुकेशन पौलिसी’ के साथ हायर एजुकेशन में दाखिले की प्रक्रिया में बदलाव आया है. इस साल से सैंट्रल यूनिवर्सिटीज के ग्रेजुएशन कोर्सेज में एडमिशन के लिए एंट्रैंस टैस्ट देना अनिवार्य कर दिया गया है. अब दाखिले कटऔफ के आधार पर नहीं होंगे. यानी 12वीं के मार्क्स मिनिमम एलिजिबिलिटी तो बन सकते हैं पर एडमिशन दिलाने का टिकट नहीं.

नए नियमानुसार, सरकार इस एग्जाम के माध्यम से देश के सभी स्टूडैंट्स को एकसमान अवसर देना चाहती है ताकि छात्रों को राज्यों के अलगअलग बोर्डों के आधार पर भेदभाव का सामना न करना पड़े और ऊंचीऊंची कटऔफ का डर छात्रों के मन से निकल जाए.

यानी पहले जैसे 12वीं क्लास में नंबर लाने की होड़ मची रहती थी, कुछ चयनित यूनिवर्सिटीज और कालेजों में दाखिले के लिए मारामारी मची रहती थी. अब उस तरह की होड़ नहीं रहेगी. एग्जाम में जो कालेज अनुसार बेहतर रैंक ले कर आएगा उसे दाखिला मिल जाएगा.

यूजीसी के नए नियमों के अनुसार देश की 45 सैंट्रल यूनिवर्सिटीज व इन से संबंधित तमाम कालेजों में छात्रों को इस सैशन से ग्रेजुएशन कोर्सेज में सैंट्रल यूनिवर्सिटीज एंट्रैंस टैस्ट (सीयूईटी) की रैंक के आधार पर ही दाखिला मिलेगा, जिस का एग्जाम नीट और आईआईटी की तरह नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी (एनटीए) लेगी. यह एग्जाम जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते के बीच में होगा.

अब चूंकि यह एंट्रैंस टैस्ट इसी साल से शुरू हो रहा है, इसलिए देश के तमाम छात्रों के बीच चिंता और असमंजस की स्थिति बन गई है. चिंता जायज भी है. कारण है नई प्रक्रिया में कई पेचीदगियां होना, जो एकदम से सामने आने से कई छात्रों को अभी भी गले नहीं उतर पाई हैं वह भी ऐसे समय में जब

2 वर्षों से स्कूल व कालेजों से छात्र दूर रहे. वे इतना तो सम?ा रहे हैं कि अब कालेजों में दाखिले के लिए एंट्रैंस एग्जाम अनिवार्य हो गया है लेकिन एग्जाम में क्या होगा, कैसे होगा, क्या पूछा जाएगा, सीयूईटी के बाद कालेज में कैसे एडमिशन मिलेगा आदि तमाम तरह के कन्फ्यूजंस छात्रों में हैं. तो आइए कन्फ्यूजंस दूर करें.

परीक्षा का माध्यम

सीयूईटी एग्जाम नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी (एनटीए) कंडक्ट करा रही है. सीयूईटी स्कोर के आधार पर हर यूनिवर्सिटी अपनी मैरिट लिस्ट निकालेगी जिस में सफल कैंडिडेंट को एडमिशन दिया जाएगा.

भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में देश में हो रही घटनाओं, जैसे पेपर लीक, परीक्षाओं में देरी, रिजल्ट में लगने वाले समय और पेपर में होने वाली धांधलियों से बचाव के लिए नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी का गठन किया था, जो सभी प्रकार के एंट्रैंस एग्जाम का देशभर में आयोजन करती है.

जैसे इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लेने हेतु जौइंट एंट्रैंस एग्जामिनेशन, मैडिकल कोर्स में प्रवेश लेने हेतु नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रैंस टैस्ट (नीट), मैनेजमैंट कोर्स में प्रवेश लेने हेतु मैनेजमैंट एडमिशन टैस्ट, फार्मेसी कोर्स में प्रवेश लेने हेतु ग्रेजुएट फार्मेसी एप्टीट्यूड टैस्ट, नैशनल एलिजिबिलिटी टैस्ट (नैट) इत्यादि का आयोजन नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी द्वारा आयोजित किया जाता है, उसी प्रकार ग्रेजुएशन में दाखिले के लिए अब सीयूईटी एग्जाम होंगे.

सीयूईटी कंप्यूटर आधारित टैस्ट (सीबीटी) मोड में आयोजित किया जाएगा जिस में मल्टीपल चौइस क्वेश्चन मिलेंगे. यह एग्जाम 13 भाषाओं में कराया जाएगा. इस के साथ ही इस में एक वैकल्पिक भाषा टैस्ट भी होगा.

भाषा टैस्ट विषय : हिंदी, इंग्लिश, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी, गुजराती, उडि़या, बंगाली, असमिया, पंजाबी और उर्दू.

वैकल्पिक भाषा टैस्ट विषय : फ्रैंच, स्पेनिश, जरमन, नेपाली, फारसी, इतालवी, अरबी, सिंधी, कश्मीरी, कोंकणी, बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संथाली, तिब्बती, जापानी, रूसी और चीनी.

परीक्षा पैटर्न

हर एग्जाम एक तयशुदा पैटर्न पर लिया जाता है, जिस में सिलेबस का खाका खींचा जाता है. अगर एग्जाम में सिलेबस का अतापता न हो तो एग्जाम में कौन से सवाल, किस वेटेज और किस सैक्शन में आएंगे, यह जाने बगैर छात्रों को परेशानी उठानी पड़ सकती है. इसलिए एग्जाम के पैटर्न के बारे में जानना छात्रों के लिए जरूरी हो जाता है तब जब छात्र इस तरह के एग्जाम में पहली बार बैठ रहे हैं.

लेटैस्ट सीयूईटी अपडेट 2022 के अनुसार, सीयूईटी प्रवेश परीक्षा 2022 का प्रश्नपत्र 3 सैक्शनों में होगा.

सैक्शन आईए : 13 भाषाएं (माध्यम).

सैक्शन आईबी : 20 भाषाएं.

सैक्शन ढ्ढढ्ढढ्ढ : 27 विषय डोमेन.

सेक्शन ढ्ढढ्ढढ्ढ : सामान्य टैस्ट.

पहले सैक्शन में हर भाषा में 50 में से 40 प्रश्न करने होंगे. प्रत्येक भाषा के लिए 45 मिनट दिए जाएंगे. इस में लैंग्वेज से जुड़े प्रश्न होंगे.

दूसरे सैक्शन में 27 डोमेन सब्जैक्ट के औप्शन होंगे. जिस में वह सब्जैक्ट चुनने का औप्शन है जो 12वीं में छात्रों ने पढ़े हैं या जिन का वे एग्जाम देना चाहते हैं. इन में से अधिकतम 6 सब्जैक्ट छात्र चुन सकेंगे. इस में भी 50 प्रश्न होंगे जिन में से 40 करने होंगे और इस के लिए 45 मिनट दिए जाएंगे.

तीसरे सैक्शन में जनरल टैस्ट होगा. इस में जीके, करंट अफेयर्स, मैंटल एबिलिटी, बेसिक मैथमैटिकल नौलेज आदि शामिल होंगे. इस में कुल 75 सवाल पूछे जाएंगे, जिन में से 60 प्रश्न करने होंगे. इस सैक्शन के लिए छात्रों को 60 मिनट का समय दिया जाएगा.

तैयारी में जुटे छात्र

गाजियाबाद के सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल में इस साल 12वीं की पढ़ाई करने वाले छात्र अभिनंदन अधिकारी सीयूईटी एग्जाम को ले कर आश्वस्त हैं. उन के लिए यह दाखिले की प्रक्रिया बदली जरूर है पर वे एग्जाम पैटर्न के हिसाब से अपनी तैयारी कर रहे हैं. वे बताते हैं कि उन के स्कूल में इन चीजों को ले कर तैयार रहना सिखाया जाता है, कई तरह के ओलंपियाड होते हैं, ऐसे में वे मैंटली प्रिपेयर हैं, बस, एग्जाम के लिए कुछ तैयारियां हैं जो करनी बाकी हैं.

हर्षवर्धन दिल्ली विश्वविद्यालय के नौर्थ कैंपस में दाखिला लेना चाहते हैं. हर्षवर्धन बताते हैं कि इस एग्जाम को ले कर कई कोचिंग सैंटर खुल गए हैं लेकिन वे खुद से एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं. वे कहते हैं, ‘‘पिछले 2 साल कोविड में निकल गए और पढ़ाई जिस तरह होनी चाहिए थी वैसे नहीं हो पाई. इतनी जल्दी नई चीजों को सम?ाना कठिन होता है, खासकर उन के लिए जो सुविधाओं से दूर हैं. ऐसे में इस समय यह बदलाव ठीक नहीं पर मैं कोशिश कर रहा हूं कि एग्जाम के लिए जो सिलेबस दिया हुआ है उसे पढ़ं ू. इस के लिए एग्जाम के हिसाब से दिन को मैनेज करूं.’’

अभिनंदन और हर्षवर्धन, हालांकि मानते हैं कि स्कूल में इस तरह के एग्जाम के लिए तैयार रहना सिखाया जाता है पर वे इस के लिए खुद का टाइमटेबल बनाना जरूरी है. ‘‘जिस तरह से 3 सैक्शनों में एग्जाम बंटा हुआ है, उस हिसाब से खुद को बांटना बहुत जरूरी है. उन्होंने भी पढ़ाई को 3 हिस्सों में बांटा है. अभी यह एकदम नया है तो थोड़ा सम?ाने में मुश्किल आ रही है पर सिलेबस के हिसाब से वे तैयारी कर रहे हैं. इस के लिए वे पेरैंट्स और स्कूल टीचर्स से गाइडैंस ले रहे हैं.’’

द्वारका के डीपीएस में पढ़ाई कर रहे हर्ष भी तैयारी में जुट गए हैं. वे कहते हैं कि ‘‘एग्जाम में 6 डोमेन सब्जैक्ट्स तो स्टूडैंट्स के 12वीं के आधार पर होंगे, वह तो हो जाएगा पर जो अलग है वह तीसरा सैक्शन है जिस के सब से ज्यादा मार्क्स वैटेज है. उस में जीके, करंट अफेयर्स, मैंटल एप्टीट्यूड, रीजनिंग की तैयारी जरूरी है.’’ इस की तैयारी को ले कर जब उन से पूछा तो वे बताते हैं कि उन के घर में शुरू से न्यूजपेपर और मैगजीन आते रहे हैं. उन्हें दिक्कत इसलिए नहीं है क्योंकि पत्रिकाओं में गहरी जानकारी और अखबारों में रोजमर्रा के घटनाक्रम उन्हें पता चलते रहते हैं. बाकी इस दौरान उन्होंने जीके और रीजनिंग वगैरह की कुछ बुक्स खरीद ली हैं, बाकी वे एग्जाम के पैटर्न के हिसाब से तैयारी कर रहे हैं.

हर्ष कहते हैं, ‘‘किसी भी एग्जाम में बैठने के लिए सब से पहले एग्जाम एथिक्स सम?ाने जरूरी हैं. एग्जाम में क्या, कितना और कहां से आएगा और आप उस के लिए कितने तैयार हैं, यह सम?ाना जरूरी है. यह स्कूल से निकले स्टूडैंट्स के लिए नए तरह का एग्जाम जरूर है जिस में अभी थोड़ाबहुत कन्फ्यूजन है पर एग्जाम पैटर्न देखसम?ा कर कुछ तैयारी जरूर की जा सकती हैं.’’

कुछ डर, कुछ चिंताएं

हर्ष कुछ चिंता भी जाहिर करते हैं. वे कहते हैं कि अभी क्लीयर नहीं है कि एग्जाम के बाद कालेज किस बेस पर एडमिशन देंगे. सीयूईटी के साथ यही है कि इस में स्टूडैंट्स एलिमिनेट का प्रोसैस ज्यादा खराब है, क्योंकि इस में अब सीधा स्टूडैंट्स पर पासफेल का ठप्पा लगने वाला है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘जैसे आईआईटी और जेईई, नीट को क्लीयर करने वाले अधिकतर छात्र किसी कोचिंग सैंटर वाले होते हैं वैसे ही आगे जा कर इस में भी यही देखने को मिलेगा, जो अच्छीखासी कोचिंग लेंगे वे ही इस एग्जाम को पास कर पाएंगे.’’

जाहिर है, जब कोई बदलाव होता है तो सब से पहले उसे ले कर चिंताएं सामने होती हैं कि क्या जो चीज बदलने जा रही है, वह उन के फायदे के लिए होगी या नहीं? इसे बदलने का मकसद क्या है? पिछले साल तक जो व्यवस्था थी उस में क्या कोई दिक्कत आ रही थी? और क्या अब नई व्यवस्था से चीजें दुरुस्त हो जाएंगी? ऐसी कुछ चिंताएं छात्रों और शिक्षकों की तरफ से सामने हैं.

यूजीसी के नए चेयरमेन एम जगदीश कुमार ने इस बदलाव के पीछे की भावना को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह टैस्ट छात्रों की भलाई को ध्यान में रख कर शुरू किया जा रहा है.

एक इंटरव्यू में वे कहते हैं, ‘‘छात्रों के ऊपर बहुत दबाव होता था कि वे 98 प्रतिशत, 99 प्रतिशत नंबर लाएं क्योंकि कई विश्वविद्यालयों में अगर इतने ज्यादा परसैंट नंबर नहीं आए तो दाखिला नहीं मिलता था. इस के साथ ही छात्रों को देश के अलगअलग हिस्सों में स्थित अलगअलग विश्वविद्यालयों के लिए प्रवेश परीक्षाओं में बैठना पड़ता था.’’

सीटें बढें़गी तभी समस्या सुलझेगी

अब सरकार के अपनी तरह के तर्क हैं, पर इस में कुछ चिंताएं हैं जैसे धड़ल्ले से कोचिंग सैंटरों का खुलना और छात्रों पर पैसा व एग्जाम को क्लीयर करने का अतिरिक्त दबाव पड़ना. मिरांडा हाउस में फिजिक्स की प्रोफैसर आभा देव हबीब कहती हैं, ‘‘यह फिल्टर लगाने का एक तरीका है कि जितनी सीटें हैं हमें उतने ही छात्र सिस्टम के अंदर चाहिए तो राहत तो उतने ही छात्रों को मिलेगी, वह चाहे सीयूईटी से हो या परसैंटेज की प्रक्रिया से. समस्या तब तक नहीं सुल?ोगी जब तक सीटों की संख्या नहीं बढ़ेगी, जब तक और कालेज व विश्वविद्यालय नहीं खुलेंगे.’’

कृषि यंत्रों में ईंधन की बचत

मशीनों का इस्तेमाल जिस तरह से खेती में दिनोंदिन बढ़ रहा है, उस की वजह से खेती के काम भी बेहद आसान हो गए हैं. आज खेती से जुड़ा कोई ऐसा काम नहीं है, जिस के लिए मशीनें न हों. खेती में मशीनीकरण और यंत्रीकरण के चलते मेहनत, लागत के साथ ही साथ समय की बचत और जोखिम में भी कमी आई है.

खेती में डीजल या पैट्रोल की खपत बहुत ज्यादा होती है. खेती में काम आने वाली ज्यादातर मशीनें पैट्रोल या डीजल से ही चलती हैं. ऐसे में देश में आएदिन पैट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं. उसी के चलते खेती में लागत भी तेजी से बढ़ी है, इसलिए जरूरी हो जाता?है कि किसान खेती में काम आने वाली मशीनों, ट्रैक्टर व इंजनों में डीजलपैट्रोल की खपत को कम करने के लिए जरूरी सावधानियां बरतें. इस से न केवल ईंधन पर खर्च होने वाली लागत में कमी आएगी, बल्कि इस प्राकृतिक संसाधन के फुजूल खर्च में भी कटौती की जा सकती है.

इस बारे में जनपद बस्ती में विशेषज्ञ, कृषि अभियंत्रण इंजीनियर वरुण कुमार से बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

ट्रैक्टर का इस्तेमाल करते समय डीजल की खपत को कम करने के लिए कौन सा तरीका अपनाया जा सकता है?

जब?भी?ट्रैक्टर का इस्तेमाल करने जा रहे हों, तो ट्रैक्टर को?स्टार्ट करने से पहले उस के चारों पहियों में हवा जरूर जांच लें.

अगर पहियों में हवा कम है, तो डीजल की खपत बढ़ जाती है, इसलिए पहियों में हवा का सही दबाव बनाए रखने के लिए ट्रैक्टर के साथ मिलने वाली निर्देशपुस्तिका के मुताबिक ट्रैक्टर के पहियों में हवा डलवा लें, तभी इस का इस्तेमाल करें.

इस के अलावा खेत में ट्रैक्टर से इस तरह से काम लें कि खेत के किनारों पर घूमने में कम समय लगे. कोशिश करें कि?ट्रैक्टर को चौड़ाई के बजाय लंबाई में घुमाया जाए. इस से ट्रैक्टर खेत में खाली कम घूमता है और डीजल की खपत भी कम हो जाती?है.

क्या इंजन में मोबिल औयल के पुराने होने से ईंधन या डीजल खर्च बढ़ जाता?है?

जी हां. अगर इंजन में मोबिल औयल ज्यादा पुराना हो गया हो, तो इंजन के काम करने के तरीके पर इस का सीधा असर पड़ता है और इंजन की कूवत घटने लगती है. इस वजह से ईंधन का खर्च बढ़ जाता है.

डीजल खर्च बढ़ने न पाए, इसलिए निश्चित समय पर इंजन का मोबिल औयल और फिल्टर जरूर बदल देना चाहिए.

अगर इंजन से काला धुआं निकल रहा हो, तो क्या डीजल की खपत ज्यादा हो रही है. अगर हां, तो इसे कैसे कम करें?

इंजन से काला धुआं निकलना डीजल के ज्यादा खर्च होने का संकेत है. इस का मतलब है कि इंजैक्टर या इंजैक्शन पंप में कोई खराबी हो सकती है. इन हालात से बचने के लिए ट्रैक्टर को 600 घंटे चलाने के बाद उस के इंजैक्टर की जांच जरूर करवा लें या उसे फिर से बंधवाने की जरूरत होती है.

कभीकभी इंजन स्टार्ट करने के बाद कुछ मिनट तक काला धुआं निकलता है, जो कुछ ही समय बाद सफेद हो जाता है. अगर इंजैक्टर या इंजैक्शन पंप ठीक होने पर भी काला धुआं लगातार निकलता रहे, तो यह इंजन पर पड़ रहे ओवरलोड की निशानी है. इसलिए ओवरलोड कर के इंजन नहीं चलाना चाहिए.

पंप सैट में डीजल की खपत को कम करने के लिए कौनकौन सी सावधानियां बरतें?

सब से पहले तो यह ध्यान देना जरूरी है कि पंप सैट को खाली न चलाया जाए, बल्कि उसे चालू करने के तुरंत बाद ही काम लेना शुरू कर दें, क्योंकि ठंडा इंजन चलाने से उस के पुरजों में घिसावट होती?है. इस के चलते इंजन में ज्यादा तेल लगता है.

इस के अलावा पंप सैट से ज्यादा दूरी से पानी खींचने में भी डीजल की खपत ज्यादा होती?है, इसलिए यह ध्यान दें कि जब भी पंप सैट से पानी खींचना हो, तो उसे पानी की सतह से करीब लगा कर इस्तेमाल करना चाहिए. इस से डीजल की खपत को काफी हद तक कम किया जा सकता है. साथ ही, पंप सैट को चलाने वाली बैल्ट यानी पट्टे के फिसलने से डीजल का खर्च बढ़ता है, इसलिए बैल्ट को?टाइट कर के रखना चाहिए.

यह भी ध्यान दें कि बैल्ट में कम से कम जोड़ हों और घिर्रियों की सीध में हों. इस से पंप सैट पर लोड कम पड़ने से डीजल कम खर्च होता?है.

पंप सैट से जुड़ी पानी को बाहर फेंकने वाली पाइप को जमीन की सतह से बहुत ज्यादा ऊपर नहीं उठाना चाहिए,?क्योंकि पाइप जमीन की सतह से जितनी ऊंची होगी, इंजन पर उतना ज्यादा बोझ पड़ेगा और डीजल ज्यादा खर्च होगा. पाइप को उतना ही ऊपर उठाना चाहिए, जितनी जरूरत हो.

डीजल या पैट्रोल से चलने वाली मशीनों में ईंधन की खपत को कम करने के लिए और किन चीजों पर ध्यान देना जरूरी?है?

जब भी इंजन चालू किया जाता है, तो उस की आवाज ध्यान से सुनें. अगर उस के टाइपिट से आवाज आ रही हो, तो इस का मतलब है कि इंजन में हवा कम जा रही है. इस से इंजन में डीजल की खपत बढ़ जाती है, इसलिए टाइपिट से आवाज आने पर उसे सही से फिट कराएं.

खेती की मशीनें, जो डीजल या पैट्रोल से चलती हैं, उन में डीजल के किफायती खर्च के लिए मशीन खरीदते समय निर्देशपुस्तिका मिलती?है. उस में तमाम तरह की सावधानियां लिखी होती?हैं. निर्देशपुस्तिका में लिखी गई उन तमाम बातों का पालन जरूर करें.

अनोखी जोड़ी- भाग 3: शादी के बाद विशाल और अवंतिका के साथ क्या हुआ?

विशाल उसे सांत्वना दे ही रहा था कि विवेक ने प्रवेश किया, ‘‘मैं कान्फिडेंशल सेल से आया हं. यह कागजात, पिस्तौल और साइनाइट की टिकिया है. और हां, ये 2 टिकिट रोम के हैं. अंतिम जानकारी वहां दी जाएगी.’’

विवेक के जाने के बाद विशाल ने समझाया कि रोम तक वह भी चल सकती है तो अवंतिका मान गई.

हेमंत ने विवेक को अवंतिका के घर से निकलते देखा तो उसे कुछ शक हुआ और थोड़ी दूर पर विवेक को पकड़ कर बोला, ‘‘मैं प्रधानमंत्री के गुप्तचर विभाग से हूं. यह विशाल क्यों आंदोलनकर्ताओं से मिल रहा है? बताओ…वरना…’’ और हेमंत की घुड़की काम कर गई. विवेक ने पूरी कहानी उगल दी.

हवाई अड्डे से अब मुंशी दंपती निकल रहे थे तो विशाल और अवंतिका दिखाई दिए. विशाल ने अवंतिका को वहीं रुकने को कह कर मुंशी साहब का अभिनंदन किया, ‘‘साहब, श्रीमतीजी की मां मौत के मुंह में हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है.’’

उधर हेमंत ने मौका मिलते ही अवंतिका को विशाल की झूठ पर आधारित पूरी योजना समझा दी. फिर क्या था, गुस्से से लाल होते हुए उस ने विशाल को परची लिखी, ‘‘माफ करना, मैं रोम नहीं जा सकती. आंदोलन में भाग लेना है. तुम चाहो तो साइनाइड की टिकिया खा सकते हो.’’

मुंशी दंपती और विवेक सभा भवन के पास पहुंच रहे थे कि देखा बिकनी पहने एक महिला घोड़े पर सवार है और विशाल उस से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है. हेमंत व पुलिस के 2 सिपाही उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. विशाल को जब तीनों ने दबोचा तो संवाददाताओं व फोटोग्राफरों ने अपनेअपने कार्य मुस्तैदी से किए.

मुंशी साहब घबरा कर बोले, ‘‘अरे, यह तो विशाल की पत्नी है और विशाल कर क्या रहा है?’’

विवेक ने जवाब दिया, ‘‘साहब, वह मां के दुख से पागल लगती है. विशाल उसे संभाल रहा है.’’

पुलिस ने सब को हिरासत में ले लिया.

अगले दिन अदालत में न्यायाधीश ने अवंतिका व हेमंत की गवाही सुन उन्हें मुक्त कर दिया फिर विशाल की तरफ मुड़े, ‘‘आप की सफाई के बारे में आप के वकील को कुछ कहना है?’’

विवेक के वकील ने दलील पेश की कि उस का मुवक्किल एक प्रसिद्ध तेल कंपनी का उच्च पदाधिकारी है और अपने मालिक से मिलने बैठक में जा रहा था कि रास्ते में उसे अश्लील वस्त्र पहने पत्नी दिखी जो उस की कंपनी को बदनाम करने पर उतारू थी. अब जज साहब ही निर्णय दें कि क्या उस का अपनी पत्नी को बेहूदी हरकत से बचाने का कार्य गैरकानूनी था?’’

वकील के बयान पर जज को कुछ शक हुआ तो उन्होंने सीधे विशाल से पूछा, ‘‘क्यों मिस्टर विशाल स्वरूप, क्या आप के वकील का बयान सच है?’’

‘‘बिलकुल झूठ, जज साहब. रत्ती भर भी सच नहीं है,’’ और विशाल ने 8 वर्ष से तब तक की पूरी कहानी सुनाई. अवंतिका ने भी चुपचाप अदालत में उस की कहानी सुनी.

विशाल ने अंत में कहा, ‘‘जज साहब, मैं अपनी कंपनी के प्रबंधक का आभारी हूं कि उन्होंने मेरा साथ अंत तक निभाया. किंतु उन्हें यह करने की कोई जरूरत नहीं थी. मैं ने अपना त्यागपत्र उन्हें कल ही भेज दिया है. मेरी पत्नी इस तरह के आंदोलन में विश्वास रखती है, मैं नहीं रखता. किंतु सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं उस से प्रेम करता हूं. कल जो मैं ने किया उसे रोकने के लिए नहीं बल्कि उसे यह बताने के लिए कि उस का पति बना रहना ही मेरा सब से बड़ा ध्येय व पद है.’’

जज साहब हंस दिए, ‘‘मैं आशा करता हूं कि आप अपने ध्येय में सफल रहें और फिर कभी पत्नी से अलग न हों. मुकदमा बरखास्त.’’

मुंशी साहब विशाल से हाथ मिलाते हुए बोले, ‘‘तुम्हारा त्यागपत्र स्वीकार होने का सवाल ही नहीं उठता. कल तुम और अवंतिका रोम, पैरिस व लंदन के लिए रवाना हो जाओ.’’

न्यायालय से बाहर निकलते समय विवेक का हेमंत से टकराव हो गया, ‘‘माफ कीजिएगा, आप ने अपना परिचय नहीं दिया.’’

हेमंत ने हाथ बढ़ाते हुए जवाब दिया, ‘‘इंस्पेक्टर जयकर, दिल्ली गुप्तचर विभाग.’’

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