उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर के थाना महमूदाबाद का एक गांव है बेहटी मानशाह. इसी गांव का रामकुमार 19 फरवरी, 2018 को बड़ी बेचैनी से घर के आंगन में इधर से उधर चक्कर लगा रहा था. बारबार उस की निगाहें एक उम्मीद से दरवाजे की तरफ उठतीं और फिर अगले ही पल निराश हो कर दूसरी ओर देखने घूम जातीं.

रामकुमार की बेचैनी की वजह थी, उस की 19 वर्षीय बेटी सावित्री, जो शाम 5 बजे सिरौली में लगने वाले बाजार के लिए निकली थी, लेकिन रात में काफी देर होने के बाद भी वह घर नहीं लौटी थी. एकलौती बेटी के साथ कोई अनहोनी न हो गई हो, इस आशंका से उस का दिल घबरा रहा था.

सावित्री गांव की ही शांति नाम की एक महिला के साथ बाजार गई थी. रामकुमार शांति के घर पता लगाने के लिए गया. शांति का घर गांव की सीमा पर एकांत में था. वह शांति के घर पहुंचा तो वह घर पर ही मिल गई.

रामकुमार ने उस से बेटी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि सावित्री उस के साथ बाजार गई तो थी, लेकिन बीच रास्ते में ही उसे कोई काम याद आ गया था तो वह वापस लौट आई थी.

शांति की बात सुन कर रामकुमार के दिमाग में विचार आया कि अगर वह बीच रास्ते से लौट आई थी तो अभी तक घर क्यों नहीं पहुंची. आखिर क्या हुआ उस के साथ. वह शांति के घर से वापस लौट आया. चूंकि उस समय काफी रात हो गई थी. मोहल्ले के लोग भी अपनेअपने घरों में सो गए थे, पर बेटी की चिंता में वह पूरी रात नहीं सो पाया.

अगले दिन सुबह होते ही वह अपने दोनों बेटों मुकेश और सुरेश के साथ सावित्री की खोज में लग गया. तीनों इधरउधर सावित्री को ढूंढ ही रहे थे कि गांव के कुछ लोगों ने रामकुमार को बताया कि सावित्री की लाश सुरेश के गन्ने के खेत में लगे यूकेलिप्टस के पेड़ से बंधी हुई है.

यह खबर मिलते ही रामकुमार दोनों बेटों के साथ मौके पर पहुंच गया. वहां पेड़ से उस की बेटी की लाश बंधी मिली. बेटी की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगा. गांव के तमाम लोग भी वहां पहुंच चुके थे. किसी ने फोन द्वारा इस की सूचना थाना महमूदाबाद को भी दे दी.

सूचना पाकर थानाप्रभारी रंजना सचान पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गईं. जाने से पहले उन्होंने मामले की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया. सावित्री की लाश यूकेलिप्टस के पेड़ से बंधी थी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से काटने के निशान थे.

घटनास्थल का निरीक्षण करने पर वहां हत्या से संबंधित कोई सबूत नहीं मिल सका. इसी बीच एसपी आनंद कुलकर्णी, एएसपी मार्तंड प्रताप सिंह, सीओ  (महमूदाबाद) जावेद खान भी वहां पहुंच गए.

उच्चाधिकारियों ने भी लाश और घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने मृतका के पिता रामकुमार व वहां मौजूद अन्य लोगों से भी पूछताछ की. इस के बाद एसपी आनंद कुलकर्णी थानाप्रभारी रंजना सचान को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. थानाप्रभारी ने मौके की जरूरी कार्रवाई करने के बाद सावित्री की लाश पोस्टमार्टम के लिए सीतापुर के जिला अस्पताल भेज दी.

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थानाप्रभारी ने रामकुमार की तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201 और एससी/एसटी एक्ट 3 (2) 5 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुलिस ने जांच की तो यह बात सामने आई कि शांति ही सावित्री को बाजार के बहाने अपने साथ ले गई थी. लिहाजा शांति पुलिस के शक के दायरे में आ गई.

21 फरवरी, 2018 को शाम करीब साढ़े 7 बजे थानाप्रभारी रंजना सचान शांति के घर पहुंचीं. वह घर पर ही मिल गई. पूछताछ के लिए वह उसे थाने ले आईं. उन्होंने शांति से जब सख्ती से पूछताछ की तो घटना का राजफाश हो गया.

उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी रात करीब 10 बजे सावित्री के गांव के ही रहने वाले उस के प्रेमी महेंद्र यादव उर्फ सगुनी को सिरौली तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. शांति और महेंद्र यादव से पूछताछ के बाद सावित्री की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

महेंद्र यादव बेहटी मानशाह गांव के रहने वाले राजबहादुर यादव का बेटा था. महेंद्र के अलावा राजबहादुर यादव के एक बेटी व 3 बेटे और थे. राजबहादुर खेतीकिसानी से परिवार का ठीक से पालनपोषण कर रहा था.

वह अपनी बेटी और 3 बेटों की शादी कर चुका था. केवल महेंद्र ही शादी के लिए रह गया था. वह सब से छोटा था, जिस से उस पर कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी. इसलिए वह दिन भर दोस्तों के साथ इधरउधर घूमताफिरता रहता था.

राजबहादुर के मकान से कुछ ही दूरी पर रामकुमार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में 2 बेटों मुकेश और सुरेश के अलावा एक बेटी सावित्री थी. करीब 14 साल पहले रामकुमार की पत्नी जयदेवी गांव के ही एक व्यक्ति के साथ भाग गई थी, जिस के बाद वह आज तक नहीं लौटी.

रामकुमार ने बिन मां के बच्चों को बड़े प्यार से पाला. उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होने दी. उस ने पिता के साथसाथ मां का भी फर्ज अदा किया. उस की एकलौती बेटी सावित्री ने घर की जिम्मेदारी बखूबी संभाल ली थी.

एक दिन सावित्री घर का खाना बना कर निपटी तो उस ने देखा कि घर में पीने का पानी नहीं है. वह बाल्टी ले कर अपने घर से कुछ दूरी पर स्थित सार्वजनिक हैंडपंप पर पहुंची. वहां कुछ औरतें पहले से पानी भर रही थीं. वहीं पास में ही एक मकान के चबूतरे पर महेंद्र अपने 2 दोस्तों के साथ बैठा बातें कर रहा था.

उन सब से अंजान सावित्री झुक कर हैंडपंप चला रही थी. हैंडपंप के हत्थे के साथसाथ उस का शरीर भी ऊपरनीचे हो रहा था. अचानक महेंद्र की नजर सावित्री पर पड़ी तो महेंद्र के दिल की घंटी बज उठी. सावित्री को ले कर महेंद्र के मन में चाहत पैदा हो गई.

हालांकि महेंद्र ने इस से पहले भी सावित्री को देखा था, पर उस के दिल में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. महेंद्र जिद्दी स्वभाव का था. उस ने उसी समय तय कर लिया था कि वह सावित्री को हर हाल में पा कर रहेगा.

उस दिन महमूदाबाद कस्बे में महाशिवरात्रि का मेला था, जिस से उस दिन वहां ज्यादा चहलपहल व शोरगुल था. बच्चों व बड़ों में उत्साह बना हुआ था. महेंद्र भी मेले में घूमने गया. अचानक उस की निगाह सावित्री पर चली गई.

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वह अपनी एक सहेली के साथ आई थी. सावित्री एक दुकान पर खड़ी अपने लिए कंगन देख रही थी. वह काफी बनसंवर कर मेले में आई थी. सचमुच उस दिन वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी. दूर खड़ा महेंद्र उस की खूबसूरती को निहार रहा था और मन ही मन हसीन कल्पना कर रहा था. वह यह भी सोच रहा था कि कैसे सावित्री से बात शुरू कर के नजदीकियां बढ़ाए. तभी सावित्री की सहेली एक दूसरी दुकान पर कुछ सामान खरीदने चली गई तो महेंद्र खुश हो उठा और वह सावित्री के पास पहुंच गया. सावित्री उस समय कंगन पसंद कर रही थी, तभी महेंद्र ने कहा, ‘‘सावित्री, तुम पर यह लाल वाला कंगन ज्यादा अच्छा लगेगा.’’

अपना नाम सुन कर पहले तो सावित्री चौंकी. जब उस ने नजरें उठा कर देखा तो महेंद्र को देखते ही वह बोली, ‘‘अरे महेंद्र तुम, तुम इस बिसाती की दुकान से क्या खरीद रहे हो?’’

‘‘मैं तो कुछ नहीं खरीद रहा लेकिन इधर घूमते समय मैं ने तुम्हें यहां देखा तो चला आया. वैसे आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’ महेंद्र ने तारीफ की.

अपनी तारीफ सुन कर सावित्री खुश होते हुए बोली, ‘‘तुम भी कोई कम हैंडसम नहीं हो.’’

‘‘सच… तुम्हारे मुंह से यह सुन कर मुझे अच्छा लगा. तो ठीक है, तुम वही लाल कंगन ले लो. मुझे अच्छे लग रहे हैं.’’ मुसकराते हुए महेंद्र ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं लाल कंगन ही ले लेती हूं.’’ सावित्री ने दुकानदार की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘भैया, ये लाल कंगन पैक कर देना.’’

सावित्री ने मुसकराते हुए उस की बात मान ली तो महेंद्र का दिल तेजी से धड़क उठा. महेंद्र ने झट से दुकानदार को कंगन के पैसे दे दिए. यह देख कर सावित्री मना करने लगी. तब महेंद्र ने कहा, ‘‘कम से कम नई दोस्ती के नाम पर पैसे देने दो. वैसे भी मैं कोई अजनबी तो हूं नहीं, तुम्हारा पड़ोसी ही हूं. इसलिए इतना तो हक बनता है मेरा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी बात मान लेती हूं. लेकिन अब तुम मेरे लिए पैसे खर्च नहीं करोगे.’’ मुसकराते हुए सावित्री ने कहा.

‘‘करूंगा…लेकिन सिर्फ एक जगह. मेरा मतलब है कि मेले में तुम्हारा मुंह मीठा जरूर कराऊंगा.’’ महेंद्र ने कहा तो सावित्री मुसकरा पड़ी.

बात को आगे बढ़ाते हुए महेंद्र ने कहा, ‘‘सावित्री, चलो न. सामने की मिठाई की दुकान पर दोनों चलते हैं. वहीं बैठ कर कुछ खाएंगे.’’

‘‘हम दोनों नहीं, बल्कि हम तीनों खाएंगे. मेरी सहेली भी मेरे साथ मेले में आई है.’’ सावित्री अभी बता ही रही थी कि उस की सहेली वहां आ गई.

सावित्री को महेंद्र के साथ बातें करते देख वह चहक उठी, ‘‘अरे तुम महेंद्र भैया के साथ? लगता है जानपहचान आगे बढ़ाई जा रही है.’’

‘‘अरे, हम दोनों पड़ोसी हैं तो क्या बात भी नहीं कर सकते. अब चलो मिठाई खाने दुकान पर.’’ महेंद्र ने कहा तो वे दोनों महेंद्र के साथ मिठाई की दुकान पर पहुंच गईं. वहां तीनों ने मिठाई और समोसे का स्वाद लिया. इस के बाद तीनों एक साथ मेला भी घूमे.

उस दिन के बाद से महेंद्र और सावित्री अकसर एकदूसरे से मिलने लगे और अपने दिल की बात करने लगे. महेंद्र स्मार्ट तो था ही, व्यवहार में भी मिलनसार था, इसलिए सावित्री बरबस उस की ओर आकर्षित होती चली गई. उस के दिल में भी महेंद्र के प्रति चाहत पैदा हो गई. एक दिन दोनों ने एकदूसरे से अपने प्रेम का इजहार भी कर दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ निभाने का वादा भी किया.

एक दिन मौसम सुहाना था और बारिश होने की पूरी संभावना थी. ऐसे में दोनों एकांत में बैठे प्रेमालाप कर रहे थे. वे एकदूसरे का हाथ थामे हुए थे, तभी रिमझिम फुहारें पड़ने लगीं. तब दोनों बारिश से बचने के लिए सुरक्षित जगह की ओर भागे. वे एक टूटेफूटे घर में घुस गए, जिस में कोई नहीं रहता था.

दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा रहे थे. पानी की फुहारों से भीग कर सावित्री के कपड़े उस के तन से चिपक गए थे. सुनसान जगह के साथ मौसम का भी साथ मिला तो उन के दिल के साथ उन के तन भी एक हो गए.

तनमन से एक होने के बाद मुलाकातों का सिलसिला भी बढ़ गया. गांव में कोई जोड़ा प्यार की पींगें बढ़ाए और गांव वालों को पता न चले, यह तो संभव नहीं होता. जल्द ही उन दोनों के रंगढंग से गांव के लोग वाकिफ हो गए कि उन के बीच क्या खिचड़ी पक रही है.

सावित्री के पिता रामकुमार को जब बेटी के इश्क की बात पता चली तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. रामकुमार काफी समझदार था. वह जानता था कि ऐसे मामलों में बेटी के साथ मारपीट या बंदिश लगाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि बैठ कर उसे प्यार से समझाना ही ठीक रहेगा.

उसी दिन रामकुमार ने सावित्री से बात की. उस समय रामकुमार के अलावा उस के घर में और कोई नहीं था. रामकुमार ने बेटी को समझाया कि उस की और महेंद्र की बिरादरी अलगअलग है, इसलिए उन के बीच कोई रिश्ता नहीं हो सकता.

और फिर यदि कल को कहीं महेंद्र ही बदल गया तो उस की तो जिंदगी बदतर हो जाएगी. इसलिए ऐसे में जिंदगी को जानबूझ कर परेशानियों में डालना अक्लमंदी का काम नहीं है.

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पिता के मुंह से निकला एकएक शब्द सावित्री के दिमाग में बैठता चला गया. उसे अपने पिता के बातों में अपनी भलाई दिखी. इसलिए उस ने फैसला कर लिया कि अब वह महेंद्र से कोई रिश्ता नहीं रखेगी. अपने इस फैसले से उस ने पिता को भी अवगत करा दिया. बेटी की समझदारी पर रामकुमार भी खुश हो गया.

इस के बाद महेंद्र ने कई बार सावित्री से मिलने की कोशिश की लेकिन सावित्री उस से नहीं मिली. सावित्री में अचानक आए इस परिवर्तन से महेंद्र हैरत में पड़ गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि जो सावित्री पहले उस के साथ विवाह करने को तैयार थी, वह अचानक बदल कैसे गई?

सावित्री के एकदम पलट जाने से महेंद्र बौखला गया. वह कई बार सावित्री से मिला और उसे समझाने की लाख कोशिश की लेकिन सावित्री नहीं मानी.

महेंद्र और सावित्री का मिलन कराने में गांव की शांति उर्फ संगीता नाम की महिला की खास भूमिका थी. महेंद्र की उस से पहले से ही दोस्ती थी. वह शांति को भाभी बुलाता था. शांति का पति गोपी एक ईंट भट्ठे पर मजदूर था. शांति के 2 बेटे व एक बेटी थी. इस के बावजूद वह गांव की उन कथित भाभियों में से थी, जो गांव के जवान बच्चों का भविष्य बिगाड़ने में लगी रहती हैं.

जब सावित्री और महेंद्र खेतों में मिलते थे तो शांति उन की चौकीदारी का काम करती थी. किसी के आने पर वह उन को आगाह कर देती थी. जब महेंद्र ने सावित्री से भाग कर विवाह कर लेने की बात कही तो सावित्री तैयार नहीं हुई.

महेंद्र ने इस काम में शांति को लगाया. शांति ने भी सावित्री को समझाने की भरपूर कोशिश की लेकिन सावित्री नहीं मान रही थी.

इस के बाद महेंद्र ने गांव के ही अपने दोस्त दयानंद मिश्रा, पिंटू यादव और शांति के साथ एक योजना बनाई. योजना के अनुसार 19 फरवरी, 2018 को महेंद्र दयानंद मिश्रा उर्फ पप्पू और पिंटू यादव को ले कर सुरेश के गन्ने के खेत में पहुंचा. फिर शांति से कह कर सावित्री को बाजार जाने के बहाने वहां बुला लिया. सावित्री के वहां पहुंचते ही महेंद्र ने अपने साथियों के साथ मिल कर सावित्री को पकड़ कर खेत में ही खड़े यूकेलिप्टस के पेड़ से बांध दिया.

महेंद्र ने सावित्री से एक बार फिर भाग कर विवाह करने के बारे में पूछा तो सावित्री ने साफ मना कर दिया. बेवफा माशूका के मुंह से ‘न’ सुन कर महेंद्र आगबबूला हो उठा.

उस ने सावित्री की नाक पर एक जोरदार घूंसा मारा, जिस से सावित्री बिलख कर रोने लगी और बेहोश हो गई. महेंद्र ने अपने साथियों के साथ मिल कर सावित्री के गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

सावित्री जीवित न रह जाए, इसलिए जेब से उस्तरा निकाल कर महेंद्र ने उस का गला भी रेत दिया. ऐसा उस ने एक बार नहीं कई बार किया. गला कटने से सावित्री की मौत हो गई. हत्या करने के बाद वे सभी वहां से फरार हो गए.

लेकिन उन का गुनाह पुलिस के सामने आ ही गया. थानाप्रभारी रंजना सचान ने शांति और महेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस्तरा और खून से सने कपड़े घटनास्थल से मात्र 100 मीटर की दूरी पर एक गेहूं के खेत से बरामद कर लिए. आवश्यक लिखापढ़ी करने के बाद दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने पिंटू यादव को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था, जबकि दयानंद मिश्रा फरार था. मामले की विवेचना सीओ (महमूदाबाद) जावेद खान कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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