सवाल

मैं 28 साल का एक कुंआरा और बेरोजगार नौजवान हूं. मेरे घर वाले अब मुझ से उम्मीद छोड़ चुके हैं. उन की नजर में मैं निठल्ला और नकारा हूं. इतना होने के बावजूद मेरे कान पर जूं तक नहीं रेंगती है. मुझे अपना निकम्मापन पसंद आने लगा है. पर अब मेरे घर वाले बोल रहे हैं कि या तो कमा कर लाओ, नहीं तो कहीं और चले जाओ. इस बात से मैं डर गया हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

मुफ्त की रोटी की लत आप को लग चुकी है और आप अव्वल दर्जे के बेशर्म नौजवान हैं, जिस की गैरत घर वालों द्वारा लतियाए जाने के बाद भी नहीं जाग रही तो कोई आप का क्या बिगाड़ लेगा.

अब आप के सामने 3 ही रास्ते बचे हैं. पहला, बेशर्मों की तरह घर में पड़ेपड़े घर वालों की छाती पर मूंग दलते रहिए. दूसरा, बाहर कहीं जा कर दूसरों की जूठन से जिंदगी बसर कीजिए, लेकिन अगर तीसरे रास्ते पर चलेंगे, तो आप को जिंदगी के सही माने मिल जाएंगे. वह यह है कि मेहनत कीजिए, पैसा कमाइए और अपने पसीने की खाइए.

गैरत की जिंदगी जिएंगे, तो आप को लगेगा कि खाने का जायका ही बदल गया है. इस से लोगों का नजरिया बदल जाएगा. शादी के रिश्ते भी आने लगेंगे. निकम्मापन छोडि़ए और निकल पड़ें काम की तलाश में. एक बेहतर जिंदगी आप का इंतजार कर रही है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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