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GHKKPM: पाखी के खिलाफ लीगल एक्शन लेगी सई, आएगा ये ट्विस्ट

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन दिनों लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो में आपने देखा भवानी सई का सपोर्ट करती है. ऐसे में सई और भवानी की दोस्ती देखकर पाखी भड़क जाती है. और वह सई के साथ एक बड़ा गेम खेलती है. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते है, शो के नये एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जाएगा कि पाखी आइसक्रीम खाने की जिद करेगी. वह कहेगी कि  विराट के साथ आइसक्रीम पार्लर जाएगी. सई पाखी को बाहर जाने से रोकेगी. सई पाखी को घर में ही आइसक्रीम खाने को देगी. ऐसे में पाखी भड़क जाएगी.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि सई पाखी के खिलाफ लीगल एक्शन लेगी. सई पाखी को एक लीगल पेपर देगी. सई कहेगी कि बच्चा पैदा करने के बाद पाखी का उस पर कोई अधिकार नहीं रहेगा.

 

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तो दूसरी तरफ भवानी पाखी को पेपर्स पर साइन नहीं करने देगी. जिसके बाद चौहान परिवार में खूब हंगामा होगा. इसी बीच सई अपने बेडरूम में बेहोश हो जाएगी. शो में अब ये देखना होगा कि पाखी और सई का झगड़ा कैसे खत्म होता है?

 

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10 साल- भाग 3: नानी से सभी क्यों परेशान थे?

हमारे व्यवहार और नीति से हमारे बेटे बेहद खुश थे. वे बाहर जाते तो अपनी बीवियों को कह कर जाते, ‘‘अजी सुनती हो, मां को अब आराम करने दो. थक जाएंगी तो तबीयत बिगड़ जाएगी. मां को फलों का रस जरूर पिला देना.’’ और हमारी बहुएं सारा दिन हमारी वह देखभाल करतीं कि हमारा मन गदगद हो जाता. ‘सोचती, ‘हमारी सास भी अपनी आंखों से देख लेतीं कि फूहड़ बहू सास बन कर कितनी सुघड़ हो गई है.’ हमारा परिवार बढ़ने लगा. हम ने सोचा, अब फिर समय है मोरचा जीतने का. अपनी बढ़ती वृद्धावस्था को बालाए ताक रख कर हम ने फिर से अपनी मोरचाबंदी संभाल ली. बहू से कहती, ‘‘मेहनत कम करो, अपना खयाल अधिक रखो.’’ थोड़ा नौकरों को डांटती, थोड़ा बेटे को समझाती, ‘‘इस समय जच्चा को सेवा और ताकत की जरूरत है. अभी से लापरवाही होगी तो सारी जिंदगी की गाड़ी कैसे खिंचेगी?’’ और हम ने बेटे के हाथ में एक लंबी सूची थमा दी. मोरचा फिर हमारे हाथ रहा. बेटे ने सोचा, मां बहू का कितना खयाल रखती हैं.

दादी बनने का हक हम ने पूरी तरह निभाया. न तो हम ने अपने कपड़ों का ध्यान रखा, न ही चश्मे का. गीता हम इसलिए नहीं पढ़ते थे कि असली गीतापाठ तो यही है, सारा परिवार हमारे कर्मों से खुश रहे. हम पूरी तरह बच्चों को संभालने में रम गए. बहुओं को यह कह कर छुट्टी दे दी, ‘‘अभी तुम लोगों के खानेपीने के दिन हैं, मौज करो, बालगोपाल को हम संभाल लेंगे.’’ हम ने इस बात का बहुत खयाल रखा कि हम बच्चों को इतना प्यार भी न दें कि वे बिगड़ जाएं और हमारे बेटों को सुनना पड़े, ‘तुम्हारी मां ने तुम लोगों को तो इंसान बना दिया था, पर हमारे बच्चों को क्यों जानवर बना डाला?’ बच्चे बड़े हुए तो बहुत डर लगा, अब तक तो सब ठीक था. अब हुआ हमारे बुढ़ापे का कबाड़ा, न चश्मा मिलेगा, न कोई किताब, न ही चप्पलें. मसलन, हमें दिनभर अपने सामान की चिंता करनी पड़ेगी. अब सास की बड़ी याद आई, जिस ने हमारे बच्चों से परेशान हो कर हमें कहा था, ‘जब तुम सास बनो तो तुम्हारी भी ऐसी ही दुर्गति हो.’

हम ने सास के अनुभव को याद कर के बड़ा फायदा उठाया. सास बच्चों को ले कर हमें कोसती थी. लेकिन मैं ने सोचा, ‘मैं बहुओं को नहीं कोसूंगी. उन से प्यार करूंगी. वे स्वयं अपने बालगोपाल को संभाल लेंगी.’ मेरा नुस्खा कारगर साबित हुआ. मैं कहीं भी चीज रख कर भूल जाती तो बच्चों से उन की मां कहती, ‘‘देखें, दादी मां को चीज ढूंढ़ कर कौन देता है.’’ असर यह हुआ कि वे हमारी चीज बिना गुमे ही ढूंढ़ने लगते. तुतला कर पूछते, ‘‘दादी मां, तुच्छ दुमा तो नहीं. धूंध लाऊं.’’ मुझे खानेपीने में देर हो जाती तो वे हम से रूठ जाते. हमारे मुंह में बिस्कुट डाल कर कहते, ‘‘पहले हमाला बिचकत था लो, नहीं तो हम तुत्ती कल देंगे.’’ और अपना हिस्सा खुशीखुशी हमारे पोपले मुंह में डाल देते. मैं खुश हो कर सोचती, ‘अब यह वृद्धावस्था बनी ही रहे तो अच्छा है. कहीं जल्दी चली न जाए.’ अब तो विजयश्री पूरी तरह मेरे हाथ थी. छोटे से ले कर बड़े तक हमारे गुण गाते नहीं थकते थे. आतेजाते के सामने हमारी प्रशंसा होती. पतिदेव की खुशी का ठिकाना नहीं था. हमेशा याद दिलाते, ‘‘तुम्हारी बुद्धिमत्ता से अपनी वृद्धावस्था बड़े मजे में कट रही है.’’ हम ने भी बच्चों को खुश रखने का गुण सीख लिया है. रात को सोने से पहले उन्हें कहानी जरूर सुनाता हूं.

अब घर में कुछ भी आता, हमारा हिस्सा जरूर होता. सब के कपड़ों के साथ हमारे कपड़े भी बनते, जिसे हम खुशी से बहुओं में ही बांट देते. हमारे बालगोपाल तो हमारा इतना ध्यान रखते कि हमें अकेला छोड़ कर वे अपने मांबाप के साथ भी कहीं जाने को तैयार नहीं होते थे.

हम नन्हेमुन्नों को कहानियां ही ऐसी सुनाते थे कि फलां परी का पोता, अपनी दादी से इतना प्यार करता था, उस का इतना खयाल रखता था कि सब उस की तारीफ करते थे. सभी उस बच्चे को बहुत प्यार करते थे. अब बच्चों में होड़ लग जाती कि कौन हमारा सब से अधिक खयाल रखता है ताकि आनेजाने वालों के सामने उस की प्रशंसा की जाए और उसे शाबाशी मिले. दूसरा काम मैं ने यह किया कि बच्चों को यह सिखा दिया कि अपने मम्मीडैडी का सब से पहले कहना मानना चाहिए. हमें डर था कि कहीं बच्चे सिर्फ हमारा ही कहना मानते रहे तो हो सकता है, हमारे खिलाफ बगावत हो जाए और हम मोरचा हार जाएं. गजब तो उस दिन हुआ, जब इतना ज्यादा प्यार हमारे दिल को सदमा दे गया. हुआ यह कि हमारे नन्हेमुन्नों की मां एक बहुत सुंदर साड़ी लाई थी. वह हमें भी दिखाई गई. उस समय नन्हा भी मौजूद था. यह तो मैं बताना भूल ही गई कि घर में जो कुछ भी आता था, सब से पहले हमें दिखाया जाता था, क्योंकि हम ने अपनी बहुओं को बातोंबातों में कई बार जता दिया था कि हम तो अपनी सासजी को दिखाए बगैर कुछ पहनते ही नहीं थे. जब वे देख लेतीं तब हम उस वस्तु को अपनी अलमारी में शरण देते थे. सो, बहुओं की भी यह आदत बन गई थी. हमें पता था, हमारी सास तो जिंदा है नहीं, जो वे उस से वास्तविकता पूछने जाएंगी.

मैं बता रही थी न कि हमें साड़ी बहुत पसंद आई थी. नन्हा बोला, ‘‘दादी मां, यह तुम्हें अच्छी लगी है?’’

‘‘हां, बेटा, बहुत अच्छी है,’’ हम ने प्यार करते हुए कहा.

‘‘तो यह तुम ले लो,’’ वह हमारे गले में बांहें डालता हुआ बोला.

‘‘मेरे तो बाल सफेद हो गए, बेटा. मैं इसे अब क्या पहनूंगी,’’ मैं ने मायूसी से कहा.

‘‘तो ऐसा करते हैं, दादी मां, इसे हम तुम्हारे लिए रख लेते हैं,’’ प्यार से बोला वह.

‘‘मेरे लिए क्यों रख लोगे?’’ मैं ने विस्मय से पूछा.

‘‘हम तुम्हारे ऊपर कफन डालेंगे,’’ वह भोलेपन से बोला था.

‘‘क्या बकवास कर रहा है, जानता है कफन क्या होता है?’’ मम्मी ने उसे डांटा.

‘‘हांहां, जानता हूं, सोमू की दादी मरी थी तो तुम ने डैडी से नहीं कहा था, ‘बहूबेटे ने अपनी मां पर बहुत अच्छा कफन डाला था.’ नन्हा झिड़की खा कर रोंआसा हो गया था. बस, इसी बात का सदमा मेरे मन में बैठ गया है. मैं सोचती हूं इतना प्यार भी किस काम का, जो मरने से पहले कफन भी संजो कर रखवा दे. मुन्ने ने जब से अपनी मां से साड़ी का कफन बनाने के लिए कहा था, वह साड़ी रख दी गई थी, शायद मुन्ने की मां के मन में कफन का नाम सुन कर वहम आ गया था. शायद इसीलिए उस ने उसे नहीं पहना. मेरी परेशानी का अंत नहीं है. मैं अब किस से कहूं, किस नीति का सहारा लूं? कहने से भी डरती हूं. परिवार वाले तो अलग, अपने पति से भी नहीं कह सकती कि मेरा कफन आ गया है. सोचती हूं, क्या कहेंगे, ‘कहां वृद्धावस्था आने से पहले ही मरना चाहती थी. अब जीवन से इतना मोह हो गया है कि मरना ही नहीं चाहती.’  अब तो मुन्ने पर गुस्सा कर के मन ही मन यही कहती हूं. ‘तेरा इतना प्यार भी किस काम का. काश, तू 10 साल बाद पैदा होता ताकि इतनी जल्दी मेरे कफन की व्यवस्था तो न होती.’

बड़ी उम्र में फिसलने से बचें

बाथरूम में फिसल कर गिरे 70 वर्षीय ओमप्रकाश कूल्हे की हड्डी के टूटने से, बिस्तर पर पड़े हैं. आंकड़े बताते हैं कि अधिकतर बुजुर्ग, सड़क पर चोट खाने की अपेक्षा अपने घर या बाथरूम में फिसलने से चोटिल होते हैं. डाक्टरों के अनुसार, 60 वर्ष से ऊपर की उम्र के लोगों की चोट घातक हो सकती है. इस उम्र के पड़ाव पर चोट या फ्रैक्चर की रिकवरी बहुत धीमी हो जाती है. कूल्हे का फ्रैक्चर या रीढ़ की हड्डी में चोट के चलते व्यक्ति ताउम्र बिस्तर से भी लग सकता है. औल इंडिया मैडिकल इंस्टिट्यूट ट्रौमासैंटर के एक चिकित्सक के अनुसार, फिसलने से सिर में चोट व फ्रैक्चर के ज्यादा चांस होते हैं. औल इंडिया मैडिकल इंस्टिट्यूट औफ न्यूक्लिअर मैडिसिन ऐंड एप्लाइड साइंसैस की एक रिसर्च में पाया गया कि देश में 50 वर्ष या उस से अधिक आयुवर्ग के

3 लोगों में से 1 को औस्टियोपोरोसिस या हड्डियों के कमजोर होने की शिकायत है. डाक्टरों के अनुसार, शरीर को 1,000 मिलीग्राम कैल्शियम की रोजाना जरूरत होती है. प्रतिदिन के भोजन से इस की पूर्ति नहीं हो पाती, इसलिए पौष्टिक भोजन के साथ डाक्टर की सलाह पर इस का सप्लीमैंट भी लेना चाहिए ताकि हड्डियां कमजोर होने से बची रहें.

परिवार वाले रखें खयाल

फिजिकल मैडिसिन ऐंड रिहैबिलिटेशन के डा. रामचंद्रन कहते हैं कि बुजुर्गों में देखने व सुनने की समस्या उन के फिसलने या गिरने का कारण बन जाती है. सो, समयसमय पर वे आंखों व कानों की जांच कराएं और चश्मा व हियरिंगएड पहने रहें.

फिसलने से बुजुर्ग बच सकें, इस के लिए उन के परिवार को भी ध्यान देना होगा-

  1. बाथरूम में खुरदरा फ्लोर रखें. नाली ठीक बनी हो ताकि पानी का निकास अच्छी तरह होता रहे. पानी की हलकी सी परत भी चिकने फर्श पर ज्यादा खतरनाक सिद्ध होती है. यहां फिसल कर अकसर बुजुर्ग अपने कंधे, कूल्हे या रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर करा बैठते हैं.
  2. बाथरूम के सामने मोटे फुटमैट रखें जो कि पानी सोखने में सक्षम हों. इस पर पांव सुखा कर ही आगे बढ़ें. छोटे या हलके, खिसकने वाले फुटमैट बिलकुल न रखें क्योंकि इन से फिसल या उलझ कर गिरने का डर रहता है.
  3. बड़ी उम्र (70-80) के लोगों को घर का कोई भी सदस्य बाथरूम तक ले जाए और नहाने में उन की मदद करे ताकि किसी तरह की दुर्घटना न हो.
  4. बाथरूम में दीवारों के साथ रौड लगवाएं या सहारा लेने के लिए कोई भी साधन लगवाएं.
  5. बुजुर्गों के कमरे में पर्याप्त रोशनी का प्रबंध रखें.
  6. फर्नीचर को इस तरह रखें कि बुजुर्ग व्यक्ति चलते वक्त उन से टकराए नहीं.
  7. कौर्डलैस फोन या मोबाइल रखें ताकि फोन के तारों से उलझ कर गिरने की समस्या ही न रहे. अकसर फोन की घंटी बजते ही वे जल्दबाजी करने लगते हैं या कभी अकेले होने पर दरवाजे की घंटी बजते ही बुजुर्ग उठ कर चल पड़ते हैं. ऐसे में दुर्घटना होने के चांस होते हैं. सो, बिना तार के फोन ठीक रहते हैं.
  8. सीढि़यों पर पर्याप्त रोशनी का प्रबंध रखें ताकि बड़ी उम्र के लोग रोशनी में आसानी से कदम उठा सकें.
  9. अपने बड़ों की शुरुआती तकलीफ में ही डाक्टरी जांच करा कर दवा आदि का प्रबंध कर दें, जैसे जोड़ों में लगातार दर्द होना, मांसपेशियों में दर्द होना, कमजोरी महसूस होना आदि.
  10. डाक्टरी परामर्शानुसार, कैल्शियम, विटामिन डी, विटामिन सी देते रहें ताकि हड्डियों की कमजोरी से बुजुर्ग परेशान होने से बचे रह सकें.
  11. ज्यादा बड़ी उम्र के लोग, स्वयं दवा लेने में असमर्थ हो जाते हैं. ऐसे में परिवार का व्यक्ति उन्हें समय पर दवा दे कर उन की तकलीफ को बढ़ने से रोके.
  12. बहरहाल, यह साफ है कि परिवार व बुजुर्ग स्वयं छोटीछोटी बातों को ध्यान में रखें तो बुजुर्गों को फिसलने से बचाए रखा जा सकता है.

स्वयं ध्यान रखें बुजुर्ग

  1. स्टूल, कुरसी, सीढ़ी आदि पर न चढ़ें. अगर मजबूरी हो तो अच्छी तरह परख लें कि कुरसी, स्टूल या सीढ़ी मजबूती से सही तरीके से रखे हैं, तब बैलेंस कर के ही चढ़ें. अकेले में तो भूल कर भी न चढ़ें.
  2. सीढि़यां चढ़ते वक्त व उतरते वक्त अपने पैर जमा कर रखें. साथ ही, साइड की रेलिंग पकड़े रहें.
  3. कमर के बल या उसे झुका कर नीचे से कोई भी वस्तु न उठाएं. यह प्रक्रिया रीढ़ की हड्डी में तकलीफ दे सकती है, बड़ी उम्र में खासकर.
  4. अपनी नाप के ही चप्पल, जूते पहनें. ध्यान रहे कि सोल या तला घिसने से पहले ही चप्पलों को बदल दें और नई चप्पल मंगा लें. पुरानी चप्पल फिसलने का सहज कारण बन जाती हैं.
  5. पांवों को जमीन पर जमा कर रखें. टाइल्स फर्श पर चलते हुए ध्यान रखें. जल्दबाजी में कदम न उठाएं.

मैं आज भी थिएटर कर अपनी प्रतिभा को तराशता रहता हूं: ललित पारिमू

मशहूर टीवी व फिल्म अभिनेता ललित पारिमू किसी परिचय के मोहताज नही है. उन्होंने मैला आंचल से लेकर शक्तिमान सहित कई सीरियलों में सशक्त किरदार निभाकर अपनी पहचान बनायी तो वहीं ललित पारिमू ने गोविंद निहलानी की फिल्म संशोधन विशाल भारद्वाज की हैदर दैदिप्य जोशी की फिल्म कांचली सहित कई फिल्मों में सशक्त किरदार निभा चुके हैं. इन दिनों ललित पारिमू कुलदीप कौशिक निर्देशित फिल्म नार का सुर को लेकर चर्चा में हैं.

प्रस्तुत है ललित पारिमू से हुई बातचीत के अंश

आपके पैंतिस वर्ष लंबे कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?

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पहला टर्निंग प्वाइंट्स तो थिएटर से टीवी रहा. मैंने कभी टीवी पर काम करने की नहीं सोची थी. क्योंकि उन दिनों हम टीनएजर के जो सपने थे. उन सपनों में टीवी कहीं था ही नहीं. वैसे भी उस वक्त तक टीवी कम चर्चा में रहता था. सिर्फ दूरदर्शन हुआ करता था जिसे लोग समाचार जानने का माध्यम मानते थे. लेकिन टीवी के मनोरंजक कार्यक्रमों ने जल्द ही अपनी जगह बनायी और तमाम कलाकारों को अभिनय करने का मौका दिया तो मेरे कैरियर का यही पहला टर्निंग प्वाइंट रहा कि मुझे दूरदर्शन के पुलिस फाइल से हिमालय दर्शन से मैला आंचल सहित तमाम सीरियलों में अभिनय करने का अवसर मिला. दूसरा टर्निंग प्वाइंट तकनीकी परिवर्तन का रहा. पहले दूरदर्शन के सीरियल लो बैंड पर फिल्माए जाते थे. फिर हाई बैंड पर फिल्माए जाने लगे फिर बीटा पर शूट होने लगा. 1992 के बाद सेटेलाइट चैनल का दौर आ गया. अब तो डिजिटल का दौर आ गया. तीसरा टर्निंग सीरियल शक्तिमान से जुड़ना रहा. मुझे इस सीरियल में डा. जकाल के किरदार को निभाने के लिए सिर्फ चार एपीसोड के लिए बुलाया गया था. मगर पहले एपीसोड ने कुछ ऐसा धमाल मचाया कि निर्माता व निर्देशक ने सलाह मशविरा कर मेरे किरदार को 350 एपीसोड तक लेकर गए. प्रेस के अलावा आम दर्शकों ने जिस तरह से डा. जकाल की तारीफ की उससे हर किसी को सोचना पड़ा. चौथा टर्निंग प्वाइंट संशोधन व हैदर जैसी फिल्मों में अभिनय करना रहा. चौथा टर्निंग प्वाइंट ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज स्कैम 92 में अभिनय करना रहा. नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज अरण्यक की.

जिन दिनों आप टीवी पर व्यस्त थे. उन दिनों फिल्म वाले टीवी कलाकारो को अछूत की तरह देखते थे. पर आपको उस वक्त भी बुलाकर फिल्में दी जा रही थीं. यह क्या माजरा था?

हमने भी हार्ड कोर कमर्शियल फिल्में नही की. मुझे गोविंद निहलानी की संशोधन या विशाल भारद्वाज की हैदर जैसी कलात्मक फिल्में ही करने का अवसर दिया गया. इसकी कइ्र वजहें रही. हम टीवी के लिए हर माह 20 से पच्चीस दिन शूटिंग कर रहे थे. ऐसे में टीवी से छुट्टी लेकर फिल्म निर्माता या निर्देशक के पास जाकर मिलने का वक्त नहीं मिल रहा था. टीवी सीरियल दो सौ से चार सौ एपीसोड तक चलते थे. एक सीरियल में मैने चार सौ एपीसोड किए थे. सीरियल शक्तिमान के साढ़े तीन सौ एपीसोड में मैं डा. जकाल के किरदार में नजर आया था. मैंने दीप्ति नवल के साथ सहारा टीवी के लिए एक सीरियल कर रहा था. अशोक पंडित निर्देशित इस सीरियल के तब तक दस एपीसोड फिल्माए गए थे और दीप्ति नवल ने मुझसे कहा.

ललित आपने इस सीरियल के दस एपीसोड में जितनी लाइनें बोली हैं. उतनी अपनी जिंदगी में नही बोली होगी. फिर हमने अनुमान लगाया कि हम सभी हार्ड कोर टीवी आर्टिस्ट जितनी लाइनें संवाद बोलते हैं अथवा जितने लंबे समय तक हम कैमरे का सामना करते हैं. उतना मौका फिल्म कलाकार को नहीं मिलता. हम लोग हर दिन दस घंटे की शूटिंग में आठ से नौ सीन पूरा कर लेते थेण्कहने का अर्थ कि हम टीवी कलाकारों का बहुत ज्यादा समय तक काम करना पड़ता था और आज भी है.

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आप अभी भी थिएटर से जुड़े हुए हैं

जी हां, मैं नए नए कलाकारों को अभिनय सिखाता था और आज भी सिखा रहा हूं खुद ही एक्टिंग के वर्कशॉप करता था. मैं अपने नाट्यग्रुप समाज के माध्यम से खुद को पॉलिश करने का काम करता था. मैंने कभी भी समय बर्बाद नहीं किया. मैं आज कल एक्टिंग क्लासेस में अभिनय पढ़ा रहा हॅूं और मैं सभी को एक ही बात समझाता हॅूं कि कलाकार को अपना वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए. वहह शूटिंग करे अथवा थिएटर करे अथवा अकेले बैठकर भी कुछ नया सीखे. दो तीन दोस्त मिलकर अभिनय का रियाज करें जैसा कि हर इंसान करता है. ण्सरोद वादक हर दिन सरोद का रियाज करता है. हरमोनियम वादक भी हर दिन रियाज करता है. सितार वादक ऐसा करते हैं. हर डांसर व गायक भी हर दिन रियाज करता है अपने आपको पॉलिश करता रहता है. मगर हमारा कलाकार कुछ नही करता. हर कलाकार खुद को अपनी अफेयरबाजी की ही खबरों में रखता है. यह दुखद पक्ष है. इस मसले पर मुझे कुछ कहने का हक तो नहीं है. मुझे पता है कि इसमें जल्दी बदलाव नहीं आ सकता. पर यह सब हौलीवुड की नकल कर रहे हैं. आखिर क्यों हमें कलाकारों के अफेयर की चर्चा करनी पड़ती है. एक अच्छे गायक के अफयेर की चर्चा क्यों नही होती.

फिल्म नार का सुर को लेकर क्या कहेंगे?

कुलदीप कौशिक के निर्देशन में बनी यह फिल्म समाज के पुरुष प्रधान सोच पर एक प्रहार हैण्हम सभी की तरफ से फिल्म नार का सुर नारी को उचित सम्मान दिलाने का प्रयास है. इसमें भी बुराई पर अच्छाई की जीत की कहानी है. यह फिल्म बेहतर समाज के निर्माण की उम्मीद जगाती है. फिल्म ष्नार का सुर एक संपूर्ण जीवन दर्शन है. हमारी इस फिल्म की कहानी नारी को उनकी शक्ति का एहसास दिलाती है कि अगर वह चाहें तो पलभर में समाज को सुधार सकती हैं. उन्हें अपनी ताकत को कम नही आंकना चाहिए. पांच अगस्त को प्रदर्शित होने वाली इस फिल्म में महिला सशक्तिकरण का मजबूत संदेश भी है. यह एक गांव की कहानी है जहां 12 नारियां शोषित होती हैंण्सभी नारियों के पति निकम्मे हैं पर सभी अपनी पत्नियों का शोषण कर रहे हैं. उन्हें सता रहे हैं पुरूष शराब पीते रहते हैं और अपनी औरतों से काम करवाते हैं गांव का जमींदार भैरो सिंह चालाकी व जालसाजी से सभी की जमीन अपने नाम करवा लेता है जब इसका विरोध होता है तो भैरो सिंह शर्त रखता है कि गांव की औरत में हमारे पुरूषों के साथ कबड्डी खेले और उन्हें हरा दें तो हम सभी की जमीन वापस कर देंगें उसके बाद किस तरह औरतों के जुझारूं पन सामने आता है वह किस तरह से कबड्डी के खेल के सीखती हैं अंततः सकारात्मक मोड़ पर फिल्म खत्म होती है फिल्म नार का सुर यही है कि जब नारी किसी काम को करने की ठान ले तो उसे कोई पराजित नहीं कर सकता.

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आपने फिल्म नार का सुर में किस तरह का किरदार निभाया है?

फिल्म नार का सुर का मैं खलनायक हॅूं इसमें मैने गांव के काइयां व धूर्त किस्म के जमींदार भैरो सिंह का किरदार निभाया है. बहुत कमीना है मैंने इसे खलनायक की तरह ही निभाया है. भैरों सिह क गुण अवगुण की बात करें तो वह घमंडी है. उच्च महत्वाकांक्षी और घृणा से युक्त है. पावर की भूख है. वह गांव के हर इंसान की जमीन हथियाना चाहता है.गुंडे पाल रखे हैं. जरा जरा सी बात पर मारा मारी करता है. लोगों से किसी न किसी बहाने पैसे एंठता रहता है.

क्या आपके किरदार भैरो सिंह को कुछ नया गेटअप दिया गया है?

गेटअप लगभग ऐसा ही है. जैसा कि मैं नजर आ रहा हॅूं. कुछ दृश्यों में निर्देशक ने मेरी आंखों में कुछ लगाया है. इसे कोई पौराणिक खलनायक नहीं बनाया है. इसकी पटकथा कमाल की है. इसमें घूंघट वाली नारी का जबरदस्त संघर्ष है. बहुत ही स्ट्रांग किरदार है. फिल्म अच्छी बनी है और आम दर्शक इसे पसंद करेंगें. इसके गाने अच्छे हैं. इसमें शुद्ध व कर्णप्रिय भारतीय संगीत है.

कुछ वर्ष पहले मध्यप्रदेश में औरतों ने शोषण से निपटने के लिए एक दल बनाया था जो कि गुलाबी गैंग के नाम से काफी लोकप्रिय हुआ था. इसके अलावा 2001 में आमीर खान की फिल्म लगान आयी थी.

क्या आपकी फिल्म नार का सुर इन दोनों का मिश्रण है?

ऐसा हो सकता है,  मगर सच कहॅूं तो मुझे गुलाबी गैंग के बारे में जानकारी नही है. हां फिल्म लगान के बारे में मुझे जानकारी है. लगान या ष्चक देष् जैसी फिल्मों का कुछ हिस्सा है. यह नारी प्रधान लगान है. इसमें नारी पुरूषों को पुरूष वाले खेल यानी कि कबड्डी के खेल में मात देती हैं. इसमें अंडरडॉग के विजेता बनने की कहानी है. फिल्म में औरतें कमजोर हैं और जब कमजोर जीतता है तो इसे सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है.

इन दिनों हर तरफ नारी उत्थान की ही बातें की जा रही हैं. क्या वास्तव में नारियों का उत्थान हो रहा है?

देखिए इसके दो पक्ष हैं  कई जगह नारियों का शोषण होता है तो कई जगह खुद नारी पुरूष का शोषण करती हैं जिन घरों में हिंसात्मक व्यवहार होता है वहां तो नारियां दब जाती हैं मैं मानता हॅूं कि डोमैस्टिक वायलेंस काफी होता है. कई बार औरतें भी हिंसात्मक वायलेंस का हिस्सा बन जाती हैं वह अपने पतियों के साथ गाली गलौज व मारपीट करती हैं. पहले नारियों के साथ डोमैस्टिक वायलेंस की घटनाएं ज्यादा होती थी. मगर अब पुरूष डोमैस्टिक वायलेंस की पीड़ा सह रहा है.

जहां तक नारी उत्थान का सवाल है तो शहरों में सही मायनों मे नारी उत्थान हुआ है. शहरों में नारियां शिक्षा से लेकर नौकरी तक हर जगह बहुत बढ़िया काम कर रही है. नारियां कई कारपोरेट कंपनियों में सीअईओ के पद पर कार्यरत हैं. डॉक्टर व नर्स के रूप में काबिले तारीफ काम कर रही हैं. कोविड के दौरान मैं भी कोविड का षिकार हुआण्उस वक्त मैने महसूस किया कि डाक्टर व नर्स के रूप में कार्यरत हर नारी कितनी कर्मठता समर्पण व मेहनत से मरीज को बचाने में जुटी हुई हैं. मैंने उनके अंदर सेवा भाव भी देखा. इसे हम उनका विकासए या उनका उत्थान कह सकते हैं.

फिल्म नार का सुर को कहां कहां फिल्माया गया है ?

इस फिल्म को मथुरा में फिल्माया गया है. इसका फिल्मांकन कोविड के वक्त हुआ है . हर कलाकार व तकनीशियन ने बहुत कठिनाई के साथ इस फिल्म का बेहतर बनाने का प्रयास किया है फिल्म का बजट काफी कम है. इसलिए निर्माता कलाकारों को वैनिटी वैन वगैरह की सुविधा नही दे पाया. हमने छोटे छोटे टंटों में गर्मी में समय बिताया. फिर भी इसफिल्म से जुड़े किसी भी इंसान को कोई शिकायत नहीं रही.

अपने लंबे कैरियर में आपने कई किरदार निभाए हैं किसी किरदार को निभाने का कोई खास अनुभव

ऐसे कई किरदार रहे. फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास मैला आंचल पर सीरियल मैला आंचल बना था जिसमें मैंने अभिनय किया. उन दिनों मैं थिएटर से दूरदर्शन पर आया था. अच्छा अभिनय करने का एक जुनून था तो मेरे अंदर किरदार में घुसने की बात दिमाग में थी. इसलिए मैंने सबसे पहले मैला आंचल उपन्यास को चार पांच बार पढ़ा.

आपने डा. प्रशांत के किरदार में घुसने का प्रयास करता रहा. मैं एक टेबल पर किताबें वगैरह जमाकर बैठ जाता था. गांव के गरीब लोगों की नब्ज देखना उनकी आंख का चेकअप करना यह सब किया करता था मैंने पूरी तरह से अपने आपको डॉक्टर के रूप में तब्दील किया था. जिस गांव में इस सीरियल को फिल्माया जा रहा था वहां इतना प्यार मिला कि हर दिन किसी न किसी घर पर मुझे भोजन का निमंत्रण मिला करता था दो माह की शूटिंग के बाद जब हम उस गांव से निकलेए तो सभी की आंखों में आंसू थे. गांव के लोग मुझे असली डॉक्टर प्रशांत ही समझते थे उनके लिए मैं अभिनेता ललित पारिमू नहीं था इसी तरह सीरियल हिमालय दर्शन का अनुभव रहा इसमें मैने शेफर्ड का किरदार निभाया है इस किरदार को भी मैंने पूरी आत्मा से निभाया था हिमालय पर शैफर्ड कई दिनों तक नहाते नही थे तो मैंने भी शेफर्ड

के किरदार के साथ नयाय करने के लिए अपने बाल काफी लंबे रखे कई दिनों तक नहाया नही डोगरी भाषा सीखी मवेशी चराता था जिस दिन शूटिंग नहीं होती उस दिन ऐसे ही घूमा करता था कहानी के अनुसार शेफर्ड को सपने में भगवान शिवजी दिखायी देते हैं और वह एक दिन उनके पीछे जाते जाते पहाड़ी के उपर से नीचे खायी में छलांग लगा देता है यह हिमाचल की एक लोकगाथा है. मैं इस किरदार में अंदर से इस तरह से घुस चुका था कि प्रकृति के स्वाभाविक प्रभाव के वशीभूत होकर मैं भी अपने प्राण देने चल पड़ा था पहाड़ी के किनारे पहुंचने के बाद मुझे अंदर से लगा कि मैं मां प्रकृति की गोद में समा जाउंगा.

आपकी राय के अनुसार हर कलाकार को बीच बीच में थिएटर करते रहना चाहिए क्या लगातार फिल्में करते हुए कलाकार के अभिनय में जो मोनोटोनस आ जाता है उससे अलग होकर नई ताजगी लाने में थिएटर मदद करता है

अगर कलाकार इमानदारी से थिएटर करे तो निश्चित रूप से उसके अभिनय का मोनोटोनस खत्म होगा थिएटर में समय देना पड़ता  है देखिए एक वक्त के बाद अच्छे से अच्छा कलाकार भी पैसे के लिए काम करने लगता है. हर कलाकार के पास अभिनय के दो चार फार्मूले ही होते हैं अन्यथा वह पोषाक व मेकअप बदलते रहते हैं. लेकिन कलाकार की आवाज व इमोशन तो वही रहते हैं.

हमारे देश में फिलहाल उतने अच्छे कलाकार नही हैं जो कि अपनी आवाज बदल दें अपने शरीर का ढांचा ही बदल दें थिएटर में तो ऐसा करने की संभावनाएं होती हैं मगर सिनेमा में ऐसा लोग नहीं कर पाते यदि सिनेमा का कलाकार कुछ समय के अंतराल में सिनेमा से ब्रेक लेकर थिएटर करे तो इससे उसके अभिनय में निखार आना तय है. थिएटर में जो तीस से चालिस दिन की रिहर्सल होती है. वह आत्मा से जुड़ता है. इससे उसकी परफार्मेंस नेचुरल ज्यादा होने लगती है. वह अपने इमोशन व भावों को ज्यादा इमानदारी से पेश कर सकता है अन्यथा कलाकार मेकेनिकल हो जाता है और मेकेनिकल अभिनय में कोई रस नहीं होता सिनेमा में कलाकार के अभिनय को लाइटिंग एकैमरा आदि से सजाया जाता है जबकि थिएटर में ऐसा नहीं किया जाता नाटक में अभिनय करने से याददाश्त तेज होती है.

पिछले बीस पच्चीस वर्षों में टीवी व फिल्मों की स्थिति में जो बदलाव आया है उसे आप किस तरह से देखते हैं

गिरावट महज टीवी या फिल्म में नहींएबल्कि समाज में भी आयी है. यही है कि सबसे पहले सामाजिक ढांचा में गिरावट आती है उसके बाद कला व संस्कृति का ह्रास होता है. कभी गांधी या समाजवाद या साम्यवाद का आदर्श था तब उसी तरह के नाटक व फिल्में थीं. पर अब नही है. आदर्श ही टूट गए अब जो आदर्श हैं जो जीवन शैली है वही तो टीवी सीरियल व फिल्मों में भी नजर आएगा. आदर्श विहीन समाज की कला व समाज का दर्शन भी वैसा ही होगा.

आज अच्छे लेखक व निर्देशक का अभाव है, फिल्म नार का सुर के अलावा भी कोई फिल्म कर रहे हैं

जी हां, दो तीन फिल्में कर रहा हूं. रोहित शेट्टी निर्देशित वेब सीरीज कर रहा हूं.cs

Anupamaa: कपाड़िया हाउस की बहू बनेगी पाखी! क्या करेगा वनराज?

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’  में इन दिनों बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि पाखी कपाड़िया हाउस अधिक के साथ गई है. और बरखा उस पर खूब प्यार लूटा रही है. दूसरी तरफ अनुपमा पाखी को वहां से जाने के लिए कहती है लेकिन पाखी बरखा की बातों में आकर अनुपमा से  बदतमीजी करती है. शो के  आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज को पता चल जाएगा कि पाखी उसे बिना बताए अनुपमा के घर गई है. ऐसे में वह गुस्से में कपाड़िया हाउस पहुंच जाएगा.

वनराज का गुस्सा देखकर अधिक घबरा जाएगा. अनुपमा पाखी को शाह हाउस जाने के लिए कहेगी. अनुपमा दावा करेगी कि वो वनराज की इजाजत के बिना उसके घर में नहीं रुक सकती.

वनराज भी कहेगा कि अगर पाखी कपाड़िया हाउस में रुकेगी तो उसके लिए शाह हाउस के दरवाजे बंद हो जाएंगे. पाखी न चाहते हुए भी अनुपमा के घर से चली जाएगी. पाखी खुद से वादा करेगी कि वह जल्द ही कपाड़िया हाउस की बहू बनकर घर में कदम रखेगी.

 

वनराज फैसला करेगा कि पाखी-अधिक के मामले को लेकर वह समझदारी से काम लेगा. वनराज पाखी और अधिक को अलग करने के लिए मास्टर प्लान बनाएगा.

 

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दूसरी तरफ अनुज छोटी अनु के साथ गेम खेलेगा. इस दौरान अनु अनुज का मेकअप करेगी. जिसके बाद अनुज और अनुपमा अनु के साथ किचेन किचेन खेलेंगे. अनु को घर में चहचहाते देखकर अनुज और अनुपमा इमोशनल हो जाएंगे.

नीरज चोपड़ा के भाले ने भेदा सिल्वर मैडल

भारत के हैंडसम और दमदार एथलीट नीरज चोपड़ा ने खेल दुनिया के नक्शे पर फिर से अपना सिक्का जमाया है. उन्होंने अमेरिका के यूजीन में हो रही वर्ल्ड एथलैटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर मैडल जीता है. यह मैडल जीत कर उन्होंने रिकौर्ड बना दिया है, क्योंकि इस टूर्नामैंट के इतिहास में ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय पुरुष बन गए हैं. इस से पहले महिलाओं में दिग्गज भारतीय एथलीट अंजू बौबी जौर्ज ने साल 2003 में ऐतिहासिक ब्रांज मैडल जीता था.

वर्ल्ड एथलैटिक्स चैंपियनशिप के फाइनल मुकाबले में जगह बनाने के लिए नीरज चोपड़ा ने 88.39 मीटर का थ्रो किया था. यह उन के कैरियर का तीसरा सब से बेहतरीन थ्रो था.

इस रोमांचक फाइनल मुकाबले में नीरज चोपड़ा की पहली कोशिश फाउल रही थी, जबकि दूसरी कोशिश में उन्होंने 82.39 मीटर का थ्रो किया थी. पर यह थ्रो उन के बैस्ट प्रदर्शन से काफी पीछे था और वे मैडल की लिस्ट में काफी पीछे थे, जबकि ग्रेनाडा के एथलीट एंडरसन पीटर्स ने पहली ही कोशिश में 90 मीटर को पार कर लिया था. इतना ही नहीं, उन्होंने लगातार 3 कोशिशों में 90.46, 90.21 और 90.46 मीटर का थ्रो करते हुए अपना गोल्ड मैडल तकरीबन पक्का कर लिया था.

दूसरी ओर हिम्मत न हारते हुए नीरज चोपड़ा ने तीसरी कोशिश में अपने प्रदर्शन में सुधार किया और वे 86.37 मीटर का थ्रो करते हुए चौथे नंबर पर पहुंच गए. चौथे राउंड में उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और 88.13 मीटर का थ्रो करते हुए दूसरा नंबर पा लिया. फाइनल मुकाबले में हर एथलीट को 6 बार थ्रो करने का मौका दिया जाता है, जिस में से नीरज चोपड़ा ने 3 बार फाउल थ्रो किया था.

याद रहे कि नीरज चोपड़ा का यह ओलिंपिक से भी बेहतर प्रदर्शन था. उन्होंने पिछले ओलिंपिक खेलों में 87.58 मीटर का जैवलिन थ्रो करते हए गोल्ड मैडल जीता था.

नीरज चोपड़ा का इस सीजन में शानदार प्रदर्शन रहा है, जो अब तक जारी है. इस स्टार खिलाड़ी ने 2 बार अपने व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में सुधार किया है. उन्होंने 14 जून को फिनलैंड में पावो नुर्मी खेलों में 89.30 मीटर और 30 जून को प्रतिष्ठित स्टौकहोम डायमंड लीग प्रतियोगिता में 89.94 मीटर दूर भाला फेंका था, जिस से वे महज 6 सैंटीमीटर से 90 मीटर की दूरी हासिल करने से चूक गए थे.

बहरहाल, इस टूर्नामैंट में चैक गणराज्य के याकूब वालडेश को ब्रांज मैडल मिला. भारत के रोहित यादव भी फाइनल मुकाबले में पहुंचे थे और वे 78.72 मीटर के अपने बैस्ट थ्रो के साथ 10वें नंबर पर रहे.

Manohar Kahaniya: इज्जत का अपहरण

अपराह्न के साढ़े 3 बजे थे. कुलदीप के ट्यूशन जाने का समय हो गया था लेकिन अब तक वह दोस्तों के साथ खेल कर घर नहीं आया था. घर वालों ने कुलदीप को तलाशना शुरू किया, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

कुलदीप ताजमहल के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध आगरा के थाना इरादत नगर के गांव हरजूपुरा निवासी किराना व्यापारी गब्बर सिंह का 9 वर्षीय बेटा था. गांव में जब वह कहीं नहीं मिला तो घर वालों को चिंता सताने लगी. कुलदीप दोपहर में गांव के मंदिर के पास अपने दोस्तों के बीच खेलने को कह कर गया था. वह गांव में आयोजित एक तेरहवीं के भोज में भी देखा गया था. इस के बाद उस का कोई पता नहीं चला. यह बात 23 जनवरी, 2022 की है.

उन दिनों उत्तर प्रदेश में चुनावी शोरगुल चल रहा था. गांव में चुनाव प्रचार के लिए विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशी, उन के  कार्यकर्ता आजा रहे थे. ऐसी आशंका व्यक्त की गई कि कुलदीप कहीं चुनाव पार्टी वालों के साथ तो दूसरे गांव में नहीं चला गया?

कई घंटे तक तलाश करने के बाद भी जब कुलदीप का पता नहीं लगा तब घर वालों ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर कुलदीप की तलाश शुरू कर दी. किराना व्यापारी के मासूम बेटे कुलदीप के अचानक लापता होने से गांव वाले भी परेशान थे.

कुलदीप को लापता हुए 6 दिन हो गए थे. गांव वालों के साथ घर वाले तथा पुलिस की 4 टीमें भी उस की तलाश में लगीं थीं. इस के साथ ही सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने के साथ ही रेलवे स्टेशनों और बस स्टेशनों पर भी एक टीमें लगाई गईं.

उस दिन गांव में आयोजित तेरहवीं के भोज में बड़ी संख्या में लोग आए थे. कुलदीप को साथ के बच्चों ने तेरहवीं में जाते हुए देखा था. तेरहवीं में आए लोगों की सूची बनाने का काम पुलिस की एक टीम ने शुरू कर दिया.

इन दिनों प्रत्याशी विधानसभा चुनाव के लिए गांव में वोट मांगने आ रहे थे. दबाव बनाने के लिए परिवार के लोगों के साथ ही ग्रामीणों ने उन से लापता बालक कुलदीप को ढूंढ कर लाने पर ही मतदान करने की शर्त भी रखी थी.

कुलदीप पूरे परिवार का दुलारा था. अपनी आखों के तारे कुलदीप को 6 दिनों से न देख पाने से किसी अनहोनी की आशंका से मां मनोरमा देवी और दादी कमला देवी की आंखों के आंसू रोरो कर सूख चुके थे. मां दरवाजे की ओर टकटकी लगाए थी. हर आहट व हलचल पर दरवाजे से बाहर की ओर दौड़ जाती है कि कहीं उस का बेटा कुलदीप तो नहीं आ गया.

कुलदीप का छोटा भाई विहान भी रोरो कर मां से बारबार भाई के बारे में पूछता. उधर पिता गब्बर सिंह भी पुलिस से बारबार अपने बेटे को लाने की गुहार लगा रहे थे.

कुलदीप की गुमशुदगी पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. जिस के बाद पुलिस ने एक योजना के तहत 5 फरवरी, 2022 को कुलदीप के घर वालों की ओर से उस का सुराग देने वाले को 5 लाख रुपए का ईनाम देने की बात प्रसारित कर दी. इस के साथ ही इस संबंध में पर्चे छपवा कर गांव में बंटवा दिए.

इस का नतीजा दूसरे दिन यानी 6 फरवरी को ही सामने आ गया. गब्बर के घर के बाहर स्थित उस के घेर में 35 लाख की फिरौती का पत्र मिला. घेर के मौखले से पत्र फेंका गया था. फिरौती न देने पर बच्चे को बेचने और जान से मारने की धमकी दी गई थी.

पत्र में दिए गए पते पर पिता गब्बर सिंह लाल रंग के बैग में रुपए ले कर पहुंचे और बताए अनुसार बैग को पेड़ पर लटका दिया. लेकिन बैग को लेने कोई नहीं आया. ऐसा 2 दिन किया गया.

दूसरा पत्र 9 फरवरी को और तीसरा पत्र 11 फरवरी को मिला था. इस पत्र के साथ कुलदीप का टोपा (कैप) भी था. उस लेटर को भी रात में किसी ने घेर के अंदर फेंका था. पत्रों में पुलिस को जानकारी देने अथवा कोई चालाकी करने पर बच्चे की हत्या करने की धमकी दी गई थी.

जब परिजनों ने कुलदीप का टोपा देखा तो उन का माथा ठनका. इस संबंध में पुलिस को पूरी जानकारी दी.

गांव में आने का एक ही रास्ता था. मगर जब पत्र मिले, तब गांव में कोई बाहरी व्यक्ति नहीं आता दिखाई दिया था. इस से पुलिस को गांव के ही किसी व्यक्ति के शामिल होने का शक हुआ. पुलिस ने गब्बर से पुरानी रंजिश आदि के बारे में पूछा, लेकिन गब्बर सिंह ने किसी से भी दुश्मनी होने की बात नकार दी.

अपहर्त्ताओं ने पहले पत्र में जहां फिरौती के रूप में 35 लाख की मांग की थी, वहीं बाद के पत्रों में रकम घटा कर 25 लाख कर दी गई थी. मगर तीनों पत्रों में एक बात समान थी, वह यह कि फिरौती की रकम ले कर आने की जगह नहीं बदली गई थी.

तीनों ही पत्रों में अपहर्त्ताओं ने जगनेर के सरैंधी में पैट्रोल पंप के पास एक शीशम के पेड़ पर फिरौती की रकम को एक लाल रंग के बैग में रख कर टांगने के लिए कहा था.

पिता गब्बर व उन के जीजा सुरेंद्र सिंह  को शक हुआ कि फिरौती मांगने वालों के तार जरूर सरैंधी व उस के आसपास के गांव से जुड़े हुए  हैं. इस के बाद गांव के लोगों के बारे में गोपनीय तरीके से जानकारी करनी शुरू कर दी कि कितने लोगों के सगेसंबंधी सरैंधी के आसपास के गांवों में रहते हैं.

जानकारी करने पर पता चला कि गब्बर के घर के सामने रहने वाले आशु उर्फ कालिया का एक संबंधी सरैंधी के पास वाले गांव में रहता है. जबकि कुछ अन्य लोगों के रिश्तेदार फिरौती वाली जगह से दूर रहते थे.

इतनी जानकारी मिलने के बाद आशु के उस रिश्तेदार के बारे में छानबीन की गई तो पता चला कि वह भाड़े पर गाड़ी चलाता है.

जानकारी मिलने के 3 दिन बाद सुरेंद्र सिंह आशु के उस रिश्तेदार के गांव पहुंचा और दूसरे दिन खेरागढ़ जाने के लिए गाड़ी बुक करने की बात कही. इस बीच बातचीत के दौरान कुलदीप के बारे में बात की. इस पर रिश्तेदार चिंतित नजर आया. सुरेंद्र उसे सौ रुपए एडवांस दे कर आटो स्टैंड के लिए चल दिया.

सुरेंद्र के जाते ही रिश्तेदार ने सुरेंद्र सिंह का आटो स्टैंड तक लगातार पीछा किया. सुरेंद्र सिंह आटो स्टैंड पहुंचा और एक आटो में बैठ कर चल दिया. इस बीच उसे पता चल गया था कि आशु का रिश्तेदार उस की रेकी कर रहा है. करीब 100 मीटर दूर जाने के बाद सुरेंद्र आटो से उतर कर वापस आटो स्टैंड आ गया.

उस समय वहां पर वह रिश्तेदार किसी से मोबाइल पर बात कर रहा था. सुरेंद्र बिना बताए चुपचाप वहां खड़ा हो गया. देखा कि वह फोन पर बात करते समय घबराया हुआ था. सुरेंद्र सिंह यह सब जानकारी पाने के बाद गब्बर सिंह के पास पहुंचा और आशु पर शक जताते हुए पुलिस को हकीकत बताई और आशु से पूछताछ करने को कहा.

पुलिस को भी जांच के दौरान पहले ही आशु पर शक हो रहा था. लेकिन कुलदीप के परिजनों द्वारा उस पर कोई शक नहीं जताने तथा आशु के कुलदीप की तलाश में परिजनों के साथ सबसे आगे होने पर पुलिस उस से पूछताछ करने से हिचक रही थी.

इस के बाद पुलिस ने जानकारी जुटा कर कड़ी से कड़ी जोड़ी और एसओजी प्रभारी कुलदीप दीक्षित तथा थानाप्रभारी अवधेश कुमार गौतम की टीम ने आशु को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से कड़ाई से पूछताछ की.

पूछताछ के दौरान पता चला कि अपहरण में उस के 2 और साथी कन्हैया और मुकेश शामिल थे. अपहरण वाले दिन ही उन्होंने कुलदीप की हत्या करने के बाद उस की लाश जंगल में दफना दी थी.

पुलिस ने 17 फरवरी, 2022 की रात को गब्बर सिंह के पड़ोस में रहने वाले तीनों आरोपी आशु, मुकेश व कन्हैया को गिरफ्तार कर लिया. तीनों ने कुलदीप का अपहरण करने के बाद उस की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस में कुलदीप के अपहरण और हत्याकांड के 26 दिन बाद मामले का परदाफाश करते हुए बताया कि कुलदीप की हत्या के पीछे रंजिश का मामला निकल कर आया है. उन्होंने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार  करने की जानकारी दी.

पुलिस ने हत्यारों की निशानदेही पर गब्बर के घर से एक किमी दूर जंगल में दफनाए गए कुलदीप के शव को बरामद कर लिया. कुलदीप की हत्या अपहरण करने वाले दिन ही अंगौछे (गमछा) से गला घोट कर दी गई थी. पुलिस ने गमछा, फावड़ा व अन्य सामान भी बरामद कर लिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का कारण गला घोटना बताया गया था. इस अपहरण और हत्या के पीछे जो कहानी निकल कर आई वह चौंकाने वाली थी—

आरोपी आशु 2 साल पहले मृतक के पिता गब्बर सिंह के घर चोरी करते पकड़ा गया था. तब उसे अपमानित किया गया था. पंचायत ने आशु को गांव से बाहर रहने का फैसला सुनाया था. पंचायत के फैसले के बाद आशु अपनी बहन के घर खेरागढ़ चला गया था. उस की रिश्तेदारी गांव सरैंधी में भी है. इस बीच वह सरैंधी में रिश्तेदार के यहां भी रहा.

करीब 5 माह पहले आशु फिर से वापस गांव आ गया. आरोपी आशु को कुलदीप चोरचोर कह कर चिढ़ाता था. वह गब्बर व उस के बेटे कुलदीप से चिढ़ने लगा और दोनों से दिली रंजिश मानने लगा.

आरोपी मुकेश और कन्हैया, गब्बर सिंह के दूर के रिश्तेदार हैं. मुकेश लंबे समय से गब्बर के घर में ही किराए पर रहता था. मुकेश की एक बहन थी. ससुराल में उस की मौत हो गई. ससुरालीजनों ने समझौते की जो रकम दी थी, वह गब्बर सिंह ने रख ली थी और मांगने पर भी वह रकम वापस नहीं कर रहा था.

साथ ही पिछले दिनों गब्बर ने उस से अपना मकान भी खाली करा लिया था. इस से मुकेश भी गब्बर से रंजिश मानने लगा था. वर्तमान में मुकेश तीसरे आरोपी कन्हैया के घर में किराए पर रह रहा था.

मुकेश मथुरा के फरह का मूल निवासी है. वह 2 फरवरी को दिल्ली में फैक्ट्री में काम करने के लिए चला गया था. लेकिन उसे बहाने से आशु ने बुला लिया था.

तीनों ने गब्बर सिंह से बदला लेने के लिए साजिश रची. घटना वाले दिन 23 जनवरी को गांव में एक जगह तेरहवीं के भोज का आयोजन होने व विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए विभिन्न पार्टी नेताओं के आने से गहमागमी थी. इस का फायदा उठाते हुए हत्यारोपियों ने साजिश के तहत कुलदीप का बहाने से अपहरण कर लिया.

कुलदीप गिल्ली डंडा खेलने का शौकीन था. गिल्ली डंडा के लिए लकड़ी लेने के बहाने मुकेश कुलदीप को जंगल की ओर ले गया. रास्ते में उस के साथी कन्हैया और आशु मिल गए.

तीनों उसे गांव से करीब एक किलोमीटर दूर जंगल में ले गए. कन्हैया और मुकेश ने कुलदीप के पैर पकड़े और आशु ने अपने गमछे से गला घोट कर उस की हत्या कर दी. तीनों ने वहीं गड्ढा खोद कर शव को दबा दिया और गांव आ गए.

हत्यारोपियों ने अपने दुश्मन के बेटे के अपहरण के दिन ही उस की हत्या कर दी थी. इतना ही नहीं, आशु, कन्हैया और मुकेश हत्याकांड को अंजाम देने के बाद पीडि़त परिजनों के साथ कुलदीप की खोजबीन का नाटक भी करते रहे.

जब बेटे का कोई सुराग नहीं मिला तो गब्बर सिंह ने 5 लाख का ईनाम देने की घोषणा कर दी. तब तीनों हत्यारों के मन में लालच जाग गया. तीनों ने फिरौती मांगने की योजना बनाई जो उन के पकड़े जाने का सबब बनी.

आरोपी कन्हैया का घर गब्बर सिंह के घर से लगा हुआ है. जबकि आशु का घर गब्बर सिंह के घर के सामने है. गब्बर सिंह के घर के बाहर स्थित घेर की दीवार में 4 मोखले बने हुए हैं. इन मोखलों से कन्हैया पत्र फेंक देता था. जबकि फिरौती मांगे जाने के बाद पुलिस गांव में आने वाले हर व्यक्ति पर नजर रख रही थी.

इस के साथ ही वह गब्बर सिंह के घर के सामने से गुजरने वालों पर भी निगरानी कर रही थी. लेकिन आरोपी इतने शातिर थे कि पुलिस और परिजनों की आंख से काजल चुरा रहे थे. लगातार फिरौती के पत्र आने से पुलिस इतना तो समझ गई थी कि फिरौती मांगने वाले गांव के ही किसी व्यक्ति का हाथ है.

एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने बताया कि पत्रों में लिखी हैंड राइटिंग की जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला से रिपोर्ट मंगाई जाएगी. केस में मजबूत साक्ष्य पुलिस के पास हैं. 3 पत्र डाले गए थे. हैंड राइटिंग का मिलान कराया तो पता चल कि वो पत्र कन्हैया ने लिखे थे.

इस के साथ ही कुलदीप का टोपा (कैप) भी भेजा गया था. वहीं जहां शव दफनाया गया था, वहां पर फावड़ा मिला था. गला घोटने वाला गमछा भी बरामद कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का कारण दम घुटना बताया गया था. गिरफ्तार किए गए तीनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, अपने पीछे कोई न कोई सुराग जरूर छोड़ जाता है. कुलदीप अपहरण और हत्याकांड की इस दिल दहलाने वाली वारदात में भी यही हुआ.

आरोपियों ने फूलप्रूफ प्लान बनाया था. लेकिन लालच के वशीभूत हो कर उन के द्वारा भेजे गए फिरौती के पत्रों व कुलदीप की कैप से ही पुलिस और परिजन हत्यारों तक पहुंच गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जुलाई का महीना किसानों के लिए है खास

देवेश कुमार विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि इंजीनियरिंग),

राघवेंद्र विक्रम सिंह विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि प्रसार),

अरविंद कुमार सिंह वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रधान, कृषि विज्ञान केंद्र, संत कबीर नगर

देश के किसान हर महीने अलगअलग फसलों की खेती कर अपनी आजीविका चला रहे हैं. इस के चलते किसानों के लिए जून और आने वाला महीना जुलाई सब से अहम होता है.

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि मुख्य व्यवसाय है. देश में लगभग आधी आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है. यही वजह है कि देश के किसान पूरे साल अलगअलग फसलों की खेती करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जूनजुलाई का महीना किसानों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है. वह इसलिए, क्योंकि इस महीने में

किसान अपनी खेती के लिए सब से अहम काम करते हैं.

जूनजुलाई में होती है मुख्य फसल की खेती

दरअसल, भारतीय फसल को मौसम के आधार पर 3 भागों में बांटा गया है. पहला खरीफ सीजन, दूसरा रबी सीजन और तीसरा जायद सीजन. खरीफ की खेती का मौसम मानसून के दौरान जून से ले कर अक्तूबर तक चलता है, वहीं रबी की खेती का मौसम नवंबर से ले कर अप्रैल तक चलता है.

ऐसे में अभी किसानों के लिए खरीफ का सीजन चल रहा है. खरीफ के सीजन में ही भारत की सब से मुख्य फसलों में से एक धान की खेती की जाती है.

किस फसल की कब रोपाई करें, इस को ले कर किसान चिंतित रहते हैं. यहां हम किसानों को उन फसलों के बारे में बताएंगे, जिन की इन महीनों में खेती कर आप लाखों रुपए का मुनाफा कमा सकते हैं. खरीफ की फसलों की बोआई की शुरुआत हो चुकी है.

इस बीच किसानों के जेहन में फसलों की बोआई को ले कर कई सारी चिंताएं सामने आती हैं. इन सब के अलावा इस बार किसानों को सिंचाई से ले कर जलवायु संकट तक से गुजरना पड़ सकता है. इस बीच सरकार इन सब स्थितियों को देखते हुए किसानों को अपने स्तर पर प्रयास करती हुई दिख रही है.

बोआई संबंधी काम

धान की सीधी बिजाई : इस विधि द्वारा पानी व श्रम की बचत होती है. सीधी बिजाई भूमिगत जल को रिचार्ज करने में भी सहायक सिद्ध होती है.

धान की सीधी बिजाई वाली फसल रोपाई कर के लगाई गई धान की फसल की तुलना में 7 से 10 दिन पहले पक कर तैयार हो जाती है. इस वजह से धान की पराली संभालने व कनक की बिजाई करने के लिए अधिक समय मिल पाता?है.

सीधी बिजाई वाले खेत में बीमारियों की समस्या भी कम देखने को मिलती है. सीधी बिजाई वाली नई तकनीक, जिस में तरबतर खेत में धान की सीधी बिजाई की जाती?है, को साल 2020 में बड़े स्तर पर किसानों द्वारा अपनाया गया. नई तकनीक में पहला पानी बिजाई के लगभग 21 दिन बाद लगाया जाता है, जिस के कई फायदे हैं जैसे कि :

* पानी की ज्यादा बचत (15-20 फीसदी)

* खरपतवारों की कम समस्या.

* जड़ें गहरी चले जाने के कारण लोह तत्त्व की समस्या बहुत कम आती है.

* राज्य का 87 फीसदी इलाका बिजाई के अनुकूल है.

* पैदावार रोपाई कर के लगाए गए धान के बराबर आती है. अगर पैदावार में थोड़ी कमी आए, तो भी मुनाफा अधिक होता है, क्योंकि इस तरीके से लागत कम आती है.

धान की खेती पारंपरिक विधि से

पारंपरिक रोपाई के तहत सब से पहले किसानों द्वारा नर्सरी (पूरे खेत का 5-10 फीसदी क्षेत्र) तैयार कर धान के बीज की बोआई की जाती है और 25-35 दिनों के पश्चात इन धान के छोटेछोटे पौधों को नर्सरी से हटा कर पूरे खेत में रोप दिया जाता है.

बारिश होने की स्थिति में धान में लगभग 4-5 सैंटीमीटर पानी की गहराई बनाए रखने के लिए रोजाना सिंचाई करनी पड़ती है. जून के महीने में धान की नर्सरी से ले कर इस की बोआई संबंधी सारी प्रक्रिया पूरी कर लें.

बता दें कि इस की खेती में सिंचाई की बेहद आवश्यकता पड़ती है. ऐसे में इस की सुविधा बेहतर रखनी चाहिए.

धान

* जुलाई माह में किसान धान की रोपाई का काम निबटा लें.

* रोपाई के लिए 20 से 30 दिन पुरानी पौध का उपयोग करें.

* रोपाई को कतारों में ही करें.

इस के अलावा मक्का की खेती को भी इस मौसम की प्रमुख फसल माना जाता है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, 25 जुलाई तक मक्का की बोआई कर दें. यदि सिंचाई की सुविधा हो, तो इस की बोआई का काम 15 जुलाई तक भी पूरा किया जा सकता है. इस के अलावा अरहर की बोआई भी इसी महीने पूरी की जा सकती?है.

मूंगफली

* इस फसल की बोआई जुलाई के मध्य तक पूरी कर लें.

* औसतन प्रति हेक्टेयर 80 से 100 किलोग्राम बीज का उपयोग करें.

बाजरा

* इस की बोआई के लिए जुलाई का दूसरा या तीसरा सप्ताह उपयुक्त रहता है.

* देश के उत्तरी क्षेत्रों में बारिश के होते ही इस की बोआई कर दी जाती है.

ज्वार

* एक हेक्टेयर में इस फसल की बोआई के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज का उपयोग कर सकते हैं.

अरहर

* इस फसल की कम समय में पकने वाली किस्मों की बोआई करें.

* बोआई जुलाई के पहले सप्ताह में

कर लें.

* एक हेक्टेयर के लिए 12 से

15 किलोग्राम बीज का उपयोग करें.

सोयाबीन

* देश के उत्तरी, मैदानी और मध्य क्षेत्रों में जुलाई के पहले सप्ताह में इस की बोआई कर देनी चाहिए.

* बीज की मात्रा 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से होनी चाहिए.

* जुलाई माह में टमाटर, बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की पौध लगा सकते हैं. भिंडी की बोआई का भी यह उपयुक्त समय है. इस के अलावा लौकी, खीरा, चिकनी तोरई, आरा तोरई, करेला व टिंडा की बोआई भी इस माह में की जा सकती है.

गन्ना

* फसल को गिरने से बचाने की व्यवस्था कर लें.

* खेतों से पानी निकालने की व्यवस्था कर लें.

* फसल में लगी बेल को काट कर अलग कर दें.

मक्का

* फसल से खरपतवार निकालते रहना चाहिए.

* अतिरिक्त पौधों की छंटाई कर देनी चाहिए.

* खेत में नमी का ध्यान रखना चाहिए.

* अगर फसल की बोआई नहीं की गई है, तो जल्दी ही बो दें.

आम

* नए बाग लगा सकते हैं.

* रोपाई का काम शुरू कर सकते हैं.

* फलों को तोड़ कर बाजार में भेज

सकते हैं.

* इस के साथ ही साथ बाग में जल निकास की व्यवस्था कर लें.

अमरूद

* जुलाई माह में नए बाग की रोपाई का काम शुरू कर सकते हैं.

इन फसलों से जुड़े कामों को जुलाई

माह में पूरा कर लिया जाए, तो फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है. इस से किसानों को बाजार में फसलों का भाव अच्छा मिल पाएगा, साथ ही साथ अच्छी आमदनी हो पाएगी.

पुरस्कार: आखिर क्या हुआ विदाई समारोह में?

झटका- भाग 2: उस औरत से विवेक का क्या संबंध था

संगीता के कुछ जवाब देने से पहले ही उस औरत ने फोन काट दिया. उस औरत ने अपना नंबर ब्लौक कर रखा था. वह वापस फोन भी नहीं कर सकती थी. फोन किसी लैंडलाइन से आया था.

वह जब फोन रख कर मुड़ी, तब बहुत गुस्से में थी. सीधे चल कर वह अंजलि के पास पहुंची और सारी बात उसे बता दी.

‘‘भाभी, बेकार में खुद को परेशान मत करो. वह स्त्री तुम्हें तंग करने के लिए ही छेड़ रही है,’’ अंजलि ने उसे शांत स्वर में सम?ाया.

‘‘कहीं वह सच ही न बोल रही हो,’’ संगीता की आंखों में भय और चिंता के भाव ?ालके.

‘‘अरे नहीं भाभी. मु?ो विश्वास है कि भैया का किसी औरत से कोई गलत संबंध नहीं है.’’

अंजलि के सम?ाने से संगीता का मन बड़ी हद तक शांत हो गया. लेकिन यह भी सच था कि वह विवेक के औफिस से लौटने का इंतजार बेसब्री से कर रही थी.

उसे यह मालूम था कि उन की बिरादरी के मर्द अकसर दूसरी निचली बाजारू औरतों से संबंध बना लेते हैं. उस ने अपने चाचाओं, मौसाओं के बहुत किस्से सुने थे. उस के ससुर सरकारी नौकरी में थे और खासे सुधर गए थे.

शाम को उसे जबरदस्त धक्का लगा. विवेक की कमीज से उठती लेडीज सैंट की महक कई फुट दूर खड़ी संगीता तक पहुंच कर उसे एकदम से रोंआसा कर गई.

पास में खड़ी अंजलि को बेहद चिंतित देख कर संगीता के मन में असुरक्षा का भाव और गहरा हो गया. ‘‘क्या हाल है तुम्हारा संगीता?’’ सोफे पर बैठते हुए विवेक ने मुसकराते हुए सवाल किया.

‘‘कौन है यह औरत?’’ संगीता ने रोंआसे स्वर में उलटा उस से ही

सवाल पूछा.

‘‘कौन औरत?’’ विवेक चौंक पड़ा.

‘‘वही औरत जिस से लिपटाचिपटी कर के आ रहे हो.’’

‘‘यह क्या बकवास कर रही हो?’’ विवेक गुस्सा हो उठा.

‘‘मु?ा से छिपाइए मत.’’

‘‘मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं तुम से.’’

‘‘आप के कपड़ों से लेडीज सैंट की खुशबू क्यों और कैसे आ रही है?’’

विवेक ने अपनी कमीज को सूंघा. पहले माथे पर बल डाल कर सोच में खोया रहा और फिर उल?ानभरे लहजे में बोला, ‘‘बस की सीट पर मेरी बगल में एक औरत बैठी तो थी पर मु?ो ध्यान नहीं आता कि उस ने ऐसा सैंट लगाया हुआ था.’’

‘‘?ाठ बोलने की कोशिश मत करिए. मु?ो उस ने फोन पर पहले ही बता दिया था कि तुम्हारे शरीर से आज शाम उस की महक आएगी. मु?ो क्यों धोखा दे रहे हैं आप?’’ संगीता की आंखों से आंसू बह निकले.

‘‘तुम पागल हो गई हो. मेरा किसी औरत से कोई संबंध नहीं है. मैं तुम्हें कैसे इस बात का विश्वास दिलाऊं?’’ विवेक भन्ना उठा. संगीता की एकदम से रुलाई फूट पड़ी और वह कमरे की तरफ भाग गई. विवेक ने गहरी सांस खींची और दुखी अंदाज में अपनी पत्नी को सम?ानेमनाने उस के पीछे चला गया.

संगीता ने विवेक की एक न सुनी. नाराजगी दर्शाते हुए उस ने रात का खाना खाने से इनकार कर दिया. तब विवेक ने गुस्से से भर कर खूब जोर से डांट दिया.

अपने कमरे में आंसू बहा रही संगीता को संभालने की जिम्मेदारी अंजलि के कंधों पर आ पड़ी.

अंजलि की सिर्फ एक बात संगीता के दिल में जगह बना पाई. वह चाह कर भी उस बात की अहमियत को नजरअंदाज नहीं कर पाई.

‘‘भाभी, इस स्त्री की असलियत का पता तो हम चला ही लेंगे पर आप मेरे एक सवाल का जवाब दोगी?’’ अंजलि बहुत गंभीर नजर आ रही थी.

‘‘पूछो.’’

‘‘भाभी, मान लेते हैं कि भैया की जिंदगी में उस औरत की जगह है. हमें उन्हें उस के चुंगल से भैया को छुड़ाना भी होगा पर क्या आप उन से एक सवाल आत्मविश्वासभरे स्वर में पूछ पाओगी?’’

‘‘कौन सा सवाल?’’

‘‘यही कि मु?ा में क्या कमी थी, जो आप को उस दूसरी स्त्री से संबंध बनाने पड़े?’’

संगीता से कोई जवाब देते नहीं बना. उस ने अपने गिरहबान में ?ांका तो पहली नजर में ही उसे अपने बदन में कई खामियां नजर आईं. जब से वह जवान हुई थी, उस के पीछे लड़कों की लाइन लगी रही थी. विवेक से शादी भी पहली बार देखनेदिखाने में हो गई क्योंकि वह नौकरी भी कर रही थी और बेहद सुंदर थी.

‘‘मैं ने विवेक को खो दिया तो जीतेजी मर जाऊंगी,’’ वह विलाप कर उठी.

‘‘भाभी, यों हौसला छोड़ने से काम नहीं बनेगा. अपनेआप को संभालो. मैं आप के साथ हूं न,’’ अंजलि ने संगीता का फौरन हौसला बढ़ाया.

‘‘मु?ो क्या करना चाहिए?’’ संगीता के इस सवाल के जवाब में अंजलि उसे देर तक बहुत से सु?ाव देती रही.

अपनी ननद की सलाहों पर चलने के कारण संगीता का महीनेभर में कायाकल्प हो गया. यूट्यूब और पत्रिकाओं पर उस ने बहुत से टिप्स देखे. उस ने लगातार पढ़ने की आदत भी डाली.

उस ने वजन कम कर के अपनी सेहत और अट्रैक्शन दोनों बढ़ा लिए. सारा दिन अपने कमरे में बंद न रह कर वह घर के कामों में पूरा हाथ बंटाने लगी.

विवेक से उस के संबंध तनावपूर्ण ही बने रहे क्योंकि उस स्त्री के संगीता को किलसाने व अपमानित करने वाले फोन लगातार लैंडलाइन से आ रहे थे.

विवेक ने एक बार भी माना नहीं कि उस का किसी औरत से गलत चक्कर चल रहा था. इस विषय पर मौन युद्ध चलने के कारण पतिपत्नी के बीच बोलचाल लगभग बंद चल रही थी.

फोन करने वाली स्त्री की पहचान ढूंढ़ निकालने का उपाय अंजलि को सू?ा था. उस ने ट्रूकौलर से कोशिश की. 2 दिनों में ही वह कामयाब हो गई.

अंजलि ने उसे उस रात बताया, ‘‘उस स्त्री का नाम निशा है. अपने मातापिता के साथ रहती है. वह खुद भी अच्छी नौकरी करती है और उस के पिता भी काफी अमीर हैं. उस के आकर्षण से भैया को मुक्त करना आसान नहीं होगा, भाभी.’’

‘‘कैसे नहीं छोड़ेगी वह विवेक को? मैं उस का खून नहीं पी जाऊंगी,’’ संगीता को जोर से गुस्सा आ गया.

‘‘यह हुआ न बढि़या आत्मविश्वास,’’ अंजलि खुश हो गई, ‘‘हम कल ही उस के घर पहुंच कर उस की खबर लेते हैं.’’

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