मैं 30 वर्षीय वर्किंग गर्ल हूं और मैं और मेरा बौयफ्रैंड लिवइन में रहते हैं. वैसे मुझे अपने बौयफ्रैंड पर पूरा यकीन है, उस का मेरे सिवा किसी और के साथ कोई रिलेशन नहीं है, लेकिन सैक्स करते हुए मैं कभी भी उसे लापरवाही नहीं बरतने देती. हम सेफ सैक्स ही करते हैं लेकिन मुझे सेफ सैक्स के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. कंडोम के अलावा और क्याक्या तरीके होते हैं, बताने की कृपा करें.
जवाब
आप सैक्स करते समय कंडोम का इस्तेमाल करते हैं तो यह सेफ सैक्स का बेहतरीन उपाय है. कंडोम अनवांटेड प्रैग्नैंसी से बचाता है और कई सैक्सुअल डिजीज से भी बचाव करता है. लुब्रिकेटेड कंडोम का इस्तेमाल अच्छा रहता है क्योंकि इस के फटने का खतरा नहीं रहता.
हार्मोनल कौंट्रासैप्शन के लिए कौंट्रासैप्टिव इंजैक्शन लगवा सकती हैं. यह 3 महीने में एक बार लगाया जाता है. रोजाना एक गर्भनिरोधक गोली का सेवन कर सकती हैं लेकिन गायनीकोलौजिस्ट से पहले परामर्श ले लें.
इमरजैंसी कौट्रासैप्टिव पिल का सेवन केवल इमरजैंसी में ही करें क्योंकि इन का नियमित रूप से सेवन नुकसानदायक हो सकता है. असुरक्षित सैक्स के 72 घंटों यानी 3 दिनों के अंदर इस का इस्तेमाल प्रभावकारी होता है.
पीरियड्स के दौरान सैक्स करना सेफ माना जाता है क्योंकि इस दौरान कंसीव करने के चांस कम होते हैं, लेकिन इस के लिए अपने पीरियड्स साइकल को सम?ाते हुए दिनों को कैलकुलेट कर के सैक्स करने से ही अनवांटेड प्रैग्नैंसी से सुरक्षित रह सकती हैं.
हमेशा याद रखें कि सैक्सुअल रिलेशनशिप में अपने पार्टनर के साथ ईमानदार रह कर न केवल आप अपनी सैक्सुअल लाइफ अच्छी तरह से एंजौय कर सकते हैं, बल्कि सैक्सुअल डिजीज के खतरों को भी कम कर सकते हैं.
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रौयल मिशन स्कूल के वार्षिकोत्सव काआज अंतिम दिन था. छात्राओं का उत्साह अपनी चरम सीमा पर था, क्योंकि पुरस्कार समारोह की सब को बेचैनी से प्रतीक्षा थी. खेलकूद, वादविवाद, सामान्य ज्ञान के अतिरिक्त गायन, वादन, नृत्य, अभिनय जैसी अनेक प्रतियोगिताएं थीं. पर सब से अधिक उत्सुकता ‘कालेज रत्न‘ पुरस्कार को ले कर थी, क्योंकि जिस छात्रा को यह पुरस्कार मिलता, उसे अदलाबदली कार्यक्रम के अंतर्गत विदेश जाने का अवसर मिलने वाला था. कालेज में कई मेधावी छात्राएं थीं और सभी स्वयं को इस पुरस्कार के योग्य समझती थीं पर जब कालेज रत्न के लिए सुजाता के नाम की घोषणा हुईर् तो तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ही एक ओर से आक्रोश के स्वर भी गूंज उठे. सब को धन्यवाद दे कर सुजाता स्टेज से नीचे उतरी तो उस की परम मित्र रोमा उसे मुबारकबाद देती हुई, उस के गले से लिपटती हुई बोली, ‘‘आज मैं तेरे लिए बहुत खुश हूं. तू ने असंभव को भी संभव कर दिखाया.‘‘
‘‘इस में तेरा योगदान भी कम नहीं है. तेरा सहयोग न होता तो यह कभी संभव न होता,‘‘ सुजाता कृतज्ञ स्वर में बोली. तभी सुजाता को उस के अन्य प्रशंसकों ने घेर लिया. उस के मातापिता भी व्याकुलता से उस की प्रतीक्षा कर रहे थे पर रोमा के मनमस्तिष्क पर तो पिछले कुछ दिनों की यादें दस्तक दे रही थीं. ‘सुजाता नहीं आई अभी तक?‘ रोमा ने उस दिन सत्या के घर पहुंचते ही पूछा.
‘नहीं, तुम्हारी प्रिय सखी नहीं आई अभी तक,‘ सत्या बड़े ही नाटकीय अंदाज में बोली और वहां उपस्थित सभी युवतियों ने जोरदार ठहाका लगाया. ‘सौरी, तेरी हंसी उड़ाने का हमारा कोई इरादा नहीं था,‘ सत्या क्षमा मांगती हुई बोली.
‘तो किस की हंसी उड़ाने का इरादा था, सुजाता की?‘ ‘तू तो जानती है. हमें सुजाता का नाम सुनते ही हंसी आ जाती है. एक तो उस का रूपरंग ही ऐसा है. काला रंग, स्थूल शरीर, चेहरा ऐसा कि कोई दूसरी नजर डालना भी पसंद न करे. ऊपर से सिर में ढेर सारा तेल डाल कर 2 चोटियां बना लेती है. उस पर आंखों पर मोटा चश्मा. क्या हाल बना रखा है उस ने,‘ सत्या ने आंखें मटकाते हुए कहा.
‘मुझे तो वह बहुत सुंदर लगती है, उस की आंखों में अनोखी चमक है. तुम्हें तो उस की 2 चोटियों से भी शिकायत है. पर हम में से कितनों के उस के जैसे घने, लंबे बाल हैं. मोटा चश्मा तो बेचारी की मजबूरी है. आंखें कमजोर हैं उस की, तो चश्मा तो पहनेगी ही.‘ ‘कौंटैक्ट लैंस भी तो लगा सकती है. अपने रखरखाव पर थोड़ा ध्यान दे सकती है,‘ सत्या ने सुझाव दिया था.
‘हम होते कौन हैं, यह सुझाव देने वाले. वह जैसी है, अच्छी है. मुझे तो उस में कोई बुराई नजर नहीं आती.‘ ‘बुराई तो कोईर् नहीं है पर इस हाल में शायद ही उस का कोई मित्र बने. हम सब के बौयफ्रैंड हैं पर उस की तो तुझे छोड़ कर किसी लड़की से भी मित्रता नहीं है.‘
‘वह इसलिए कि वह हमारी तरह नहीं है. कितनी व्यस्त रहती है वह. खेलकूद, पढ़ाईलिखाई और हर तरह की प्रतियोगिता में क्या हम में से कोई उस की बराबरी कर सकता है. मेरी बचपन की सहेली है वह और मैं उस के गुणों के लिए उस का बहुत सम्मान करती हूं. बस एक विनती है कि उस के सामने ऐसा कुछ मत करना या कहना कि उसे दुख पहुंचे. ऐसा कुछ हुआ तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.‘ ‘तुम्हारी इतनी घनिष्ठ मित्र है, तो कुछ समझाओ उसे,‘ सत्या ने सलाह दी.
‘हम होते कौन हैं, उसे समझाने वाले. सुजाता बुद्धिमान और समझदार लड़की है. अपना भलाबुरा खूब समझती है,‘ रोमा ने समझाना चाहा. ‘अपनीअपनी सोच है. मेरी मम्मी तो कहती हैं कि लड़कियों को सब से अधिक ध्यान अपने रूपरंग पर देना चाहिए, पता है क्यों?‘ आभा भेद भरे स्वर में बोली.
‘क्यों?‘ सब ने समवेत स्वर में प्रश्न किया, मानो वह कोई राज की बात बताने जा रही हो. ‘क्योंकि लड़कों की बुद्धि से अधिक उन की आंखें तेज होती हैं,‘ आभा की भावभंगिमा और बात पर समवेत स्वर में जोरदार ठहाका लगा.
‘ऐसी बुद्धि वाले युवकों से दूर रहने में ही भलाई है, यह नहीं बताया तेरी मम्मी ने, रोमा ने आभा के उपहास का उत्तर उसी स्वर में दिया. ‘पता है, हमें सब पता है. अब छोड़ो यह सब और कल की पिकनिक की तैयारी करो,‘ सत्या ने मानो आदेश देते हुए कहा.
सभी सखियां अपने विचार प्रकट करने को उत्सुक थीं कि तभी द्वार पर दस्तक हुई. सुजाता को सामने खड़े देख कर सत्या सकपका गई. लगा, जैसे सुजाता दरवाजे के बाहर ही खड़ी उन की बातें सुन रही थी. पर दूसरे ही क्षण उस ने वह विचार झटक दिया. सुजाता ने उन की बातें सुनी होतीं,
तो क्या उस के चेहरे पर इतनी प्यारी मुसकान हो सकती थी. रोमा तो उसे देखते ही खिल उठी. ‘मिलो मेरे बचपन की सहेली सुजाता से. कुछ दिनों पहले ही हमारे कालेज में दाखिला लिया है,‘ रोमा ने सब से सुजाता का औपचारिक परिचय कराया.
‘हमें पता है,‘ वे बोलीं. हैलो, हाय और गर्मजोशी से हाथ मिला कर सब ने उस का स्वागत किया और पुन: पिकनिक की बातों में खो गईं. किस को क्या लाना है. यह निर्णय लिया गया. सुबह 5 बजे सब को मंदिर वाले चौराहे पर एकत्रित होना था. ‘सुजाता, तुम क्या लाओगी?‘ तभी सत्या ने प्रश्न किया.
‘पता नहीं, मैं आऊंगी भी या नहीं. मेरी मम्मी ने अभी अनुमति नहीं दी है. यदि आई तो तुम लोग जो कहोगी मैं ले आऊंगी.‘ सुजाता ने अपनी बात स्पष्ट की. ‘लो तुम आओगी ही नहीं तो लाओगी कैसे,‘ आभा ने प्रश्न किया.
‘उस की चिंता मत करो. सुजाता नहीं आई तो मैं ले आऊंगी,‘ रोमा ने आश्वासन दिया. ‘ठीक है, तुम दोनों मिल कर पूरियां ले आओ. सुजाता नहीं आ रही हो, तो थोड़ी अधिक ले आना. पर तुम्हारी मम्मी ने अभी तक अनुमति क्यों नहीं दी.‘
‘मेरी मम्मी बड़ी जांचपरख के बाद ही अनुमति देती हैं. वे कुछ जानकारी चाहती हैं, तभी अनुमति देंगी,‘ सुजाता ने स्पष्ट किया. ‘कैसी जानकारी?‘
‘यही कि पिकनिक में लड़के तो नहीं आ रहे हैं. हम पर नजर रखने के लिए कोई बड़ा हमारे साथ जा रहा है या नहीं.‘ ‘तो सुनो, मम्मी को तुरंत सूचित कर दो कि हमारी पिकनिक में छात्रों को आने की अनुमति नहीं है. हमारे कालेज में छात्र हैं ही नहीं. हम पर नजर रखने के लिए आभा की बूआजी आ रही हैं. आभा के घर में भी तेरे घर की तरह शेरनी है यानी कि उस की मां‘.
हमारा मन विचारों की बौछार करता रहता है. हम एक के बाद दूसरा सपना दिन में ही देखने लगते हैं. इस के बावजूद डेड्रीमिंग को परिभाषित करना कठिन है. तात्कालिक स्थिति से इतर जो भी विचार मन में आते हैं, मनोवैज्ञानिक उन्हें दिवास्वप्न या डेड्रीमिंग कहते हैं.
मन का भटकना दिन में सपने देखने का प्रमुख रूप है. हम रोज, कुछ देर के लिए ही सही, जो कर रहे होते हैं उस से भिन्न दिशा में खो जाते हैं. यह खोना अपनी कल्पना में रमना भी हो सकता है और स्मृतियों में गोता लगाना भी. यह तब भी होता है जब हम पढ़ या सुन रहे होते हैं. यह अकस्मात खो जाना अपने ही भीतर होता है, जिस में हम अपनेआप को ही देखते हैं और एक नई ताकत से भर उठते हैं.
कोई कार्य करते समय, जिस में अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है, हमारा मन पुरानी बातों की छानबीन में खो जाता है. हम किसी इंटरव्यू की कल्पना करते हैं, किसी खास तारीख की कल्पना करते हैं और उस अनुभव में खो जाते हैं जो घटित हो चुका है या होने वाला है. दिवास्वप्न में अकसर मनोभावों का योग होता है. कभी वे सुखद होते हैं, कभी डरावने, कभी गुस्सा दिलाने वाले.
ज्यादातर दिवास्वप्न मामूली चीजों के बारे में होते हैं, जैसे किराया देना, बाल कटवाना, सहकर्मी का व्यवहार, किसी खास दोस्त को ले कर किसी समस्या का समाधान आदि. इस किस्म के विचारों का तांता लगा ही रहता है. हम दिवास्वप्न कभी भी देख सकते हैं. जब दाढ़ी बनवा रहे हों, कोई योजना बना रहे हों या चिंतन कर रहे हों. हमारे दिवास्वप्न आगे की चीजों की याद दिलाने का भी काम करते हैं.
फ्रायड ने दिवास्वप्न को फैंटेसी माना है. उन का कहना है कि हर आदमी को फैंटेसी की आवश्यकता पड़ती है. मनुष्य को आनंद, जिस में सैक्स एंजौयमैंट भी शामिल है, को छोड़ना पड़ता है. किंतु यह त्याग उसे बुरा लगता है. सो, उसे उस के कम्पंसेशन की आवश्यकता होती है. इस हेतु व्यक्ति एक मैंटल ऐक्टिविटी डैवलप कर लेता है, जिस से आनंद के छोड़े गए सोर्स बने रहते हैं.
वास्तविक आनंद की प्राप्ति में बाधा देख कर मनुष्य मानसिक आनंद की सृष्टि करना चाहता है. यह मानसिक आनंद फैंटेसी से संभव होता है. जो वास्तविक जीवन में प्राप्त नहीं होता, वह फैंटेसी से प्राप्त हो जाता है. यह फैंटेसी हमारे आवेगों और इच्छाओं के नैराश्य की क्षतिपूर्ति करती है. यह क्षतिपूर्ति एक प्रकार का दिवास्वप्न यानी डे ड्रीमिंग है.
ज्यादातर दिवास्वप्न अपनेआप घटित होते हैं. किंतु कभीकभी आदमी जानबू?ा कर भी दिवास्वप्न देखता है. ऐसे दिवास्वप्नों द्वारा वह स्वयं को मजबूत बनाता है. लड़ाई में जाते समय सैनिक दुश्मन के कुकृत्यों की कल्पना कर अपनेआप को उत्तेजित करता है. उबा देने वाले काम करने वाला कारीगर दिवास्वप्न का जाल बुनता है. दिवास्वप्न व्यक्तियों में भिन्न होते हैं पर प्रकारों में समानता भी होती है. दोतिहाई दिवास्वप्न व्यक्ति की तात्कालिक जरूरतों या कामों से संबंधित होते हैं. बाकी का संबंध रोजमर्रा के कामों, भूत, भविष्य तथा रिश्तों से होता है.
दिवास्वप्नों के बारे में आम धारणा यह है कि वे रोमांटिक, कामुक या हिंसक होते हैं, पर ऐसा है नहीं. अध्ययनों से पता चला है कि इस कोटि के दिवास्वप्न मात्र 5 प्रतिशत होते हैं. डेड्रीमिंग एक व्यक्ति के अनेक पहलू दर्शाता है. जो लोग डरावने सपने देखते हैं, वास्तविक जीवन में उन के अनुभव नकारात्मक होते हैं. ऐसे लोगों को अनिद्रा रोग भी हो जाया करता है. सकारात्मक अनुभव सुखद डेड्रीम के जनक होते हैं. स्त्रीपुरुषों के डेड्रीम में एकजैसी बारंबारता होती है.
हम दिन में सपने क्यों देखने लगते हैं और उन की विषयवस्तु क्या होती है, इस पर अभी भी प्रश्नचिह्न लगा है. अब तक हुए अध्ययनों से पता चला है कि व्यक्ति उन्हीं मुद्दों से संबंधित डेड्रीम करता है जिन का सरोकार तात्कालिक बातों से होता है. नैतिक मूल्य, अपेक्षाएं, चेतावनियां, कुंठाएं जैसी स्थितियां हमारा ध्यान सब से ज्यादा आकर्षित करती हैं. लगता है जैसे मनोभाव ही वह सूत्र है जो हमारे विचारों को प्रभावित करता है.
मनोभावों को उत्तेजित करने वाले शब्दों या घटनाओं का प्रभाव हमारी मानसिक प्रक्रिया पर सर्वाधिक पड़ता है. एक तरह से मनोभावों और तात्कालिक सरोकारों का अंत: संबंध अत्यधिक है. इन्हीं का संबंध दिन के सपनों से भी है. हमारी खुशियां, भय, क्रोध, निराशा, उदासी आदि लक्ष्य प्राप्ति या अप्राप्ति से उत्पन्न प्रतिक्रियाएं ही हैं. लक्ष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता तथा उसे पाना हमारे मनोभावों को नियंत्रित करता है और इसी माध्यम से हमारे सपने भी नियंत्रित होते हैं.
दिवास्वप्न कोई रोग नहीं है. अनुसंधान बताते हैं कि डेड्रीम के बारे में पुरानी धारणाएं पूर्णतया गलत हैं और ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता जिस से लगे कि दिन में सपने देखने से व्यक्ति खंडित मानसिकता वाला हो सकता है या उस में मनोवैज्ञानिक उल?ानें पैदा हो सकती हैं.
ज्यादातर अध्ययन बताते हैं कि दिन में सपने देखने से खंडित मन व्यक्ति या अन्य व्यक्तियों में कोई अंतर नहीं आता. इस के विपरीत, ऐसे प्रमाण अवश्य मिलते हैं कि जो लोग स्वप्न चित्रों यानी फैंटेसी में रुचि रखते हैं, उन में विशेष मानसिक क्षमता होती है. जो बच्चे आमतौर पर कल्पनाशील होते हैं वे अधिक सजग आकर्षक, कुंठामुक्त, निर्भय और विनोदप्रिय देखने में आते हैं. अकसर मुग्धकारी रात को सपने देखने वाले लोग उन लोगों से बेहतर पाए गए हैं जो दिन में कम सपने देखते हैं.
इस प्रकार दिवास्वप्न अपनेआप में बुरे नहीं होते हैं, पर कुछ मामलों में वे बुराई का आधार जरूर बन सकते हैं. भय की मानसिकता वाला व्यक्ति जब सड़क दुर्घटना की कल्पना करता है तो दिन के सपने में अपनेआप को दुर्घटनाग्रस्त पा कर वह अपने भय को और पुख्ता बना सकता है. अपनी विपत्तियों की कल्पना करते रहने वाला विषाद अवसाद की मानसिकता से ग्रस्त आदमी दिवास्वप्नों द्वारा अपना विषाद और अधिक बढ़ा सकता है.
जो लोग औसत से ज्यादा दिवास्वप्न देखते हैं, अकसर औसत से ज्यादा मानसिक ताकत वाले होते हैं और वे संकेत देते हैं कि दिन में सपने देखना वास्तव में लाभदायक हो सकता है. तात्कालिक बातें याद आना, समस्या का पुनरीक्षण, अतीत से सीखना और भावी व्यवहार में परिष्कार की पूर्व तैयारी दिवास्वप्न द्वारा होती है. अनेक साहित्यिक कृतियों की रचना या गणित की गुत्थियां सुल?ाने का रास्ता दिवास्वप्नों या दिवास्वप्न जैसी स्थितियों से हासिल हुआ है.
मनोचिकित्सकों तथा व्यवहारविदों ने निदेशित दिवास्वप्नों द्वारा अपने मरीजों की व्यक्तिगत समस्याओं का निदान किया है. मानसिक कल्पना के माध्यम से व्यक्तिगत अंतर्दिवष्टि प्राप्त की जा सकती है. ऐसे भी प्रमाण मिले हैं कि स्वप्न चित्र में शारीरिक या सामाजिक कुशलता के अभ्यास द्वारा वास्तविक कार्य, व्यापार में सुधार लाया जा सकता है.
हमारे मस्तिष्क का गठन ही ऐसा है कि हम दिन में सपने देखते हैं, काल्पनिक चित्र निर्मित करते हैं जो हमारे कार्यरत आंतरिक मनोवैज्ञानिक पहलुओं को प्रतिबिंबित करते हैं. जब हम अपने मन में दृश्य चित्रों का निर्माण करते हैं तो हम उन्हीं दिमागी प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं जिन से अपने आसपास की दुनिया का अनुभव करते हैं. गतिशील कल्पना चित्रों में दिमाग और शरीर की उन्हीं प्रक्रियाओं का उपयोग होता है जिन का संबंध दिन में सपने देखने वाले की अभिप्रेरणा की स्थितियों से भी होता है.
दिन में सपने देखना दिमाग की प्राकृतिक शक्ति का फलदायी उपयोग करना है. ये अकसर अपनेआप शुरू हो जाते हैं और हमारा दिमाग जो हम कर रहे होते हैं उस से हमारा ध्यान हटा कर, स्वचालित रूप से तात्कालिक बातों की ओर चला जाता है. दिवास्वप्न हमारे मन को सक्रिय बनाए रखते हैं और तालमेल व सृजन में सहायता करते हैं.
मैं 28 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. मातापिता दोनों इस दुनिया में नहीं हैं. हम 2 भाई हैं. मैं छोटा हूं और बड़े भाई का विवाह हो चुका है. वे अपने परिवार के साथ खुश हैं. वे मुझे भी शादी करने के लिए कहते हैं. लेकिन मैं शादी नहीं करना चाहता. इस के पीछे एक वजह है. जब मैं स्कूल में था तो पड़ोस की एक लड़की से प्यार करने लगा था, वह भी मुझे चाहती थी. हम दोनों के परिवार वालों को भी हमारे प्यार के बारे में पता था. लेकिन फिर भी लड़की के परिवार वालों ने उस की शादी कहीं और कर दी. मुझे यह जान कर बहुत दुख हुआ. लेकिन मैं ने अपने कैरियर पर ध्यान दिया और आज मैं नेवी में कार्यरत हूं. मैं उस लड़की के सिवा किसी और को अपनी पत्नी के रूप में नहीं देख सकता. मैं ताउम्र अविवाहित रहना चाहता हू्ं. क्या मेरा यह फैसला सही है?
जवाब
आप का फैसला बिलकुल भी सही नहीं है. आप पढ़ेलिखे हैं. अपने पैरों पर खड़े हैं. सिर्फ उस लड़की के बारे में सोच कर विवाह न करने का फैसला पूरी तरह से गलत है. आप के परिवार में आप के बड़े भाई के अलावा और कोई नहीं है. आप अपने बड़े भाई का कहा मान कर किसी अच्छी पढ़ीलिखी लड़की से विवाह कर लें. जब आप एक रिश्ते में बंध जाएंगे तो धीरेधीरे उस लड़की के बारे में सबकुछ भूल जाएंगे.
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जब जब इश्क की कलम से दिल के कागज पर मोहब्बत की इबादत लिखी गई है, तबतब मोहब्बत करने वाले फना हुए हैं. इस तरह की कहानी में तब और दिलचस्प मोड़ आया है, जब वह त्रिकोण प्रेम पर आधारित हुई है और प्रेम त्रिकोण की कहानी में अकसर खूनी खेल सामने आता है. कुछ ऐसा ही इस त्रिकोण प्रेम में भी हुआ.
8 दिसंबर, 2017 की अलसाई सुबह चटख धूप के साथ खिली. लोग अपने घरों से निकल कर अपनी दिनचर्या में रम रहे थे.
उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के बिलरियागंज थाने के भदाव गांव के कुछ लोग अपने खेतों की तरफ जा रहे थे. तभी गांव से बाहर कच्ची सड़क से दाईं ओर करीब 500 मीटर की दूरी पर कुदारन तिवारी के खेत में सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार लावारिस हालत में खड़ी दिखी. उत्सुकतावश लोग उस कार की ओर चले गए कि सुबहसुबह खेत में किस की कार खड़ी है.
लोगों ने जब कार के भीतर झांक कर देखा तो भीतर कोई नहीं था. कार का नंबर था यूपी53सी 3262. कार से कुछ दूरी पर एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के सिर के घाव से लग रहा था कि किसी ने सिर में गोली मार कर उस की हत्या की है. उस का चेहरा खून से सना था.
मृतक काले रंग की पैंट और नीलेपीले रंग की धारीदार डिजाइन वाली जैकेट पहने था. उस के पैरों में कोई चप्पल या जूते नहीं थे. चेहरे पर दाढ़ी थी. वह शक्लसूरत और पहनावे से किसी अच्छे परिवार का लग रहा था.
लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही आसपास के गांव के और लोग भी वहां जुटने लगे. उसी भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. चूंकि मामला बिलरियागंज थाने का था, इसलिए पुलिस कंट्रोलरूम ने बिलरियागंज थाने को घटना की इत्तला दे दी. लाश मिलने की खबर पा कर बिलरियागंज के थानाप्रभारी विजय प्रताप यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.
घटनास्थल पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को भी मामले की सूचना दे दी. इस के अलावा उन्होंने फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को भी सूचना दे कर मौके पर बुला लिया.
खबर पा कर एसपी अजय कुमार साहनी, एसपी (देहात) एन.पी. सिंह, सीओ (सगड़ी) सुधाकर सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने कार के नंबर की जांच की तो वह नंबर गोरखपुर आरटीओ का था.
जांचपड़ताल से पता चला कि वह कार गोरखपुर के दीपक सिंह के नाम से रजिस्टर्ड थी. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि मृतक गोरखपुर का रहने वाला होगा. फिर पुलिस ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो उस की जेब से सगड़ी के बाबू शिवपत्तर राय स्मारक कालेज का एक परिचयपत्र मिला. उस परिचयपत्र से उस की शिनाख्त एमए के छात्र विभांशु प्रताप पांडेय के रूप में हुई, जिस में उस का पता गांव भौवापार थाना बेलीपार लिखा था.
कार की तलाशी लेने पर डिक्की में उल्टी और खून के धब्बे मिले. कार में एक जोड़ी लेडीज चप्पल पड़ी मिली. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि बदमाश हत्या कहीं और कर लाश को ठिकाने लगाने ले जा रहे थे, लेकिन कार खेत में फंस जाने की वजह से दूर नहीं भाग सके और उस की लाश फेंक कर फरार हो गए. इस का मतलब साफ था कि कार में कोई महिला भी सवार थी. वह कौन थी? यह मामला और भी पेचीदा हो गया.
पुलिस इस मामले को प्रेम संबंधों से जोड़ कर देखने लगी थी. कार में लेडीज चप्पल और उल्टी ने गुत्थी बुरी तरह उलझा कर रख दी थी. विभांशु के मुंह से झाग निकले थे. वह झाग किसी जहरीले पदार्थ के सेवन से थे या किसी और के, यह बात जांच के बाद ही पता चलना था.
मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. कागजी काररवाई पूरी करने के पहले पुलिस ने घटना की सूचना मृतक के परिजनों को दे दी थी. सूचना मिलने के बाद वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.
मृतक के बड़े भाई जोकि पेशे से एक वकील थे, उन की तहरीर पर पुलिस ने रुचि राय पुत्री अरविंद राय, ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय और उस के भाई सत्यम राय सहित 8 अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.
सभी आरोपी कोतवाली जीयनपुर के बांसगांव के निवासी थे. घनश्याम पांडेय का आरोप था कि भाई को उस की प्रेमिका रुचि राय ने फोन कर के बुलाया था और उस की हत्या करवा दी. रिपोर्ट नामजद लिखाई गई थी, इसलिए पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.
चूंकि वादी घनश्याम पांडेय एक वकील के साथसाथ रसूखदार और ऊंची पहुंच वाला था, पुलिस की थोड़ी सी भी चूक कानूनव्यवस्था बिगाड़ सकती थी, इसलिए एसपी अजय कुमार साहनी ने सीओ सुधाकर सिंह के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम को निर्देश दे दिए थे कि नामजद आरोपियों को जल्द गिरफ्तार किया जाए.
पुलिस टीम ने आरोपियों के घर दबिश डाली तो वह अपने ठिकानों पर नहीं मिले. उन के न मिलने पर पुलिस की समस्या और बढ़ गई. उन की तलाश के लिए पुलिस ने अपने सभी मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.
9 दिसंबर, 2017 की सुबह थानाप्रभारी विजय प्रताप यादव को एक मुखबिर ने आरोपी ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. उस से मिली जानकारी के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ सगड़ी-खालिसपुर मार्ग पर पहुंच गए. श्यामनारायण वहीं खड़ंजे के पास खड़ा मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. वह वहां से कहीं भागने की फिराक में था.
तलाशी लेने पर उस के पास से एक पिस्टल .32 बोर व 2 जिंदा कारतूस के अलावा एक कारतूस का खोखा भी मिला. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई, उस ने विभांशु की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.
पुलिस ने उस के पास से जो पिस्टल बरामद किया था, उसी से उस ने विभांशु की हत्या की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह प्रेम त्रिकोण वाली निकली—
22 वर्षीय विभांशु प्रताप पांडेय उर्फ विभू मूलरूप से गोरखपुर के बेलीपार थाना क्षेत्र के ऊंचगांव (भौवापार) के रहने वाले रमाशंकर पांडेय का बेटा था. रमाशंकर पांडेय के 7 बेटों में विभांशु सब से छोटा और सब का दुलारा था. रमाशंकर पांडेय के सभी बेटे अपने पैरों पर खड़े थे. सब से बड़ा बेटा घनश्याम पांडेय अधिवक्ता था. अन्य बेटे भी अच्छे पदों पर कार्यरत थे.
विभांशु ही घर पर रह कर खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. इस के साथ वह आजमगढ़ के बाबू शिवपत्तर राय स्मारक कालेज से एमए की पढ़ाई भी कर रहा था. वह काफी मेहनती युवक था. उस की एक खास बात थी कि वह जिस भी काम को करने की ठान लेता, उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करता.
खैर, गोरखपुर से आजमगढ़ की कुल दूरी 85 किलोमीटर थी. विभांशु कालेज अपनी बाइक से आताजाता था. वैसे आजमगढ़ के रामगढ़ व जमसर गांव में उस की रिश्तेदारियां थीं. जिस दिन उस का मन कालेज से घर लौटने का नहीं होता तो वह इन में से अपनी किसी रिश्तेदारी में रुक जाता था. अपने रुकने की खबर वह फोन कर के घर वालों को दे देता था.
सन 2015 की बात है. रिश्तेदारी में आतेजाते एक दिन विभांशु की नजर एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो वह उसे अपलक निहारता रह गया. पहली ही नजर में वह उस के कजरारे नैनों के तीर से घायल हो गया था. उस ने अपने स्रोतों से पता किया तो जानकारी मिली कि उस का नाम रुचि राय है और वह पड़ोस के कल्याणपुर बांसगांव में रहती है.
रुचि के दिल में प्यार का रंग भरने के लिए विभांशु रिश्तेदारों के यहां ज्यादा समय बिताने लगा. वहीं रह कर पढ़ने लगा. घर वाले इस बात से बेखबर थे कि विभांशु पर प्रेम रोग का रंग चढ़ने लगा है. एक दिन की बात है. विभांशु कालेज से घर आ रहा था तभी सड़क पर उसे रुचि जाती हुई दिखाई दी. रुचि को देख कर उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा.
विभांशु ने तय किया कि आज वह उस से बात कर के ही रहेगा. थोड़ी दूर बढ़ने के बाद विभांशु ने अपनी बाइक उस के नजदीक ले जा कर रोक दी. अचानक पास बाइक रुकी देख रुचि सहम गई. इस से पहले कि वह कुछ कहती, विभांशु बोला, ‘‘मैं आप से कुछ बात करना चाहता हूं.’’
इतना सुनते ही रुचि चौंकते हुए बोली, ‘‘आप को मैं पहचानती नहीं. और मैं अजनबियों से बात नहीं करती.’’
‘‘लेकिन मैं आप को अच्छी तरह जानतापहचानता हूं. रुचि राय नाम है आप का और कल्याणपुर बांसगांव में रहती हैं.’’ उस ने कहा.
अपना नाम सुन कर रुचि हैरान रह गई कि अजनबी युवक को मेरा नाम और पता कैसे पता चला. बिना कोई उत्तर दिए वह आगे बढ़ गई पर विभांशु भी उस के पीछेपीछे बाइक से आ रहा था. रास्ता सुनसान था. पीछे बाइक सवार युवक को अपनी ओर आते देखा तो रुचि सहम गई.
वह तेजतेज कदमों से आगे बढ़ने लगी. विभांशु ने आगे बढ़ कर उस का रास्ता फिर रोक लिया और बोला, ‘‘मुझे गलत मत समझो, मैं कोई लुच्चालफंगा नहीं हूं.’’
‘‘रास्ता रोकने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? हट जाओ मेरे रास्ते से वरना अभी शोर मचा दूंगी.’’ हिम्मत बटोर कर वह बोली, ‘‘मुझे ऐसीवैसी लड़की मत समझना, वरना अभी दिन में ही तारे दिखा दूंगी.’’
‘‘नाराज क्यों हो रही हैं. नहीं रोकूंगा, जाइए. वैसे मैं अपने बारे में तो बताना भूल गया. मेरा नाम विभांशु प्रताप पांडेय है और पड़ोस के गांव रामगढ़ में रहता हूं. अभी तुम जाओ, मैं फिर मिलूंगा.’’
कह कर विभांशु बाइक तेज गति से चला कर वहां से निकल गया. उस के जाने के बाद रुचि की जान में जान आई. रास्ते भर वह यही सोचती रही कि इस युवक को मेरा नाम और पता कैसे मालूम हुआ. सोचतेसोचते घर कब पहुंची उसे पता नहीं चला.
बात आईगई, खत्म हो गई और वह अपने कामों में लग गई. अब जब भी वह मिलती विभांशु हायहैलो कर के निकल जाता था. पर यह इत्तफाक था या कुछ और कि उस दिन के बाद रुचि से रास्ते में उस की मुलाकात अकसर हो जाया करती थी. विभांशु की आशिकी की निगाहें देख कर रुचि के दिल में भी उस के लिए चाहत के बीज अंकुरित होने लगे.
इस के बाद विभांशु जब भी उस से हायहैलो कहता, वह भी मुसकरा पड़ती थी. अपनी ओर उसे आकर्षित हुआ देख कर विभांशु की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. फिर उन के बीच बातचीत भी होने लगी.
मौका देख कर उन्होंने एकदूसरे से अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर दिया. रुचि और विभांशु की मोहब्बत की गाड़ी पटरी पर दौड़ी तो वो भविष्य के सपने बुनने लगे और शादी तक के सपने देखने लगे. यह पंछी प्यार की उड़ान भरने लगे. दोनों बाइक पर इधरउधर खूब घूमने लगे. इस बात पर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि जानने वालों ने उन्हें देखा भी है या नहीं. लिहाजा उन के प्यार की चर्चा गलीमोहल्लों में होने लगी थी.
रुचि और विभांशु की मोहब्बत की खुशबू कल्याणपुर बांसगांव के ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय तक पहुंची. श्यामनारायण राय रुचि का हमउम्र और अविवाहित था. लिहाजा उस का मन मचल गया और वह रुचि की ओर आकर्षित हो गया. रुचि को पाने की हसरतें उमंगें भरने लगीं. किसी के माध्यम से उस ने अपनी मोहब्बत का पैगाम रुचि तक भिजवाया पर रुचि ने उस का पैगाम ठुकरा दिया.
श्यामनारायण काफी दबंग और पहुंच रखने वाला था. उस की मोहब्बत एकतरफा थी, जबकि रुचि विभांशु से प्यार करती थी. रुचि द्वारा ग्रामप्रधान को लिफ्ट न देने पर वह बौखला गया. इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह रुचि और विभांशु की मोहब्बत में बाधा को सफल नहीं होने देगा.
विभांशु भी कमजोर नहीं था. ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय से मुकाबला करने के लिए उस के सामने आ खड़ा हुआ. यह बात श्यामनारायण को काफी नागवार लगी कि एक बाहरी युवक उसी के घर में घुस कर उसे ही चुनौती देने पर आमादा है. यह बात उस के बरदाश्त के बाहर थी.
रुचि को चाहने वाले 2 लोग थे लेकिन रुचि तो उन में से केवल एक को ही चाहती थी. लिहाजा रुचि को ले कर उन दोनों के बीच विवाद खड़ा हो गया जो थमने के बजाय बढ़ता ही गया.
अक्तूबर, 2017 की बात है. विभांशु दशहरे का मेला घूमने गया था. फोन कर के उस ने रुचि को भी मेले में बुला लिया था. काफी देर तक साथसाथ मेला घूमने के बाद दोनों अपनेअपने घरों को रवाना हुए. प्रेमिका से विदा होते विभांशु ने उसे फ्लाइंग किस दिया. रुचि ने मुसकरा कर इस का जवाब दे दिया.
इत्तफाक से उसी समय श्यामनारायण भी कहीं से उधर आ पहुंचा. उस ने दोनों को किस लेतेदेते देख लिया था. यह देख कर उस का खून खौल उठा. उस ने आव देखा न ताव, कुछ ग्रामीणों को आवाज लगा दी.
ग्रामप्रधान की आवाज सुन कर गांव के तमाम लोग वहां पहुंच गए. प्रधान ने विभांशु पर गांव की लड़की को छेड़ने का आरोप लगाया. इस के बाद तो ग्रामीण भड़क गए. विभांशु वहां से भागा तो उन्होंने दौड़ कर उसे दबोच लिया. इस के बाद उस की जम कर पिटाई की.
पिटाई के बाद भी उन्होंने विभांशु को नहीं छोड़ा बल्कि प्रधान श्यामनारायण ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया. जीयनपुर के थानाप्रभारी ने विभांशु को लड़की छेड़ने के आरोप में जेल भेज दिया. इस तरह प्रधान ने विभांशु को जेल भिजवा कर अपनी खुन्नस निकाल ली.
घर वालों को जब यह पता चला कि लड़की छेड़ने के आरोप में विभांशु जेल में बंद है तो वे परेशान हो गए. शर्म के मारे उन का चेहरा झुक गया. किसी तरह विभांशु के बड़े भाई वकील घनश्याम पांडेय ने उस की जमानत कराई. घर वालों ने विभांशु को खूब डांटा, साथ ही समझाया कि ये इश्कविश्क का चक्कर छोड़ कर पढ़ाई पर ध्यान दो. जब समय आएगा तो किसी अच्छी लड़की से शादी करा कर गृहस्थी बसा दी जाएगी.
परिवार के दबाव में आ कर उस समय तो कह दिया कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिस से परिवार की बदनामी हो लेकिन वह दिल से रुचि को निकाल नहीं पाया. साथ ही वह श्यामनारायण द्वारा जेल भिजवा देने वाली बात से काफी आहत था. उस ने तय कर लिया कि वह इस का बदला जरूर लेगा.
वह प्रधान श्यामनारायण से बदला लेने का मौका ढूंढने लगा. इसी बीच 4 दिसंबर, 2017 को ग्रामप्रधान श्यामनारायण पर किसी ने हमला कर दिया. प्रधान का पूरा शक विभांशु पर आ गया. प्रधान ने तय कर लिया कि वह विभांशु को सूद के साथ इस का भुगतान करेगा. जबकि वास्तविकता यह थी कि विभांशु का उस हमले से कोई लेनादेना नहीं था और न ही उस ने ऐसा किया था.
बहरहाल, इश्क की जलन ने एक नाकाम प्रेमी श्यामनारायण राय को इंसान से शैतान बना दिया था. वह विभांशु के खून का प्यासा हो गया. वह मौके की तलाश में था लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था.
7 दिसंबर, 2017 की शाम 6 बजे रुचि ने विभांशु को फोन कर के मिलने के लिए आजमगढ़ बुलाया. प्रेमिका के बुलावे पर वह बेहद खुश था. तैयार हो कर वह बाइक ले कर रुचि से मिलने निकल गया. घर से निकलते समय उस ने घर वालों से यही कहा था कि वह शहर जा रहा है और थोड़ी देर में आ जाएगा.
विभांशु पहले अलहलादपुर में रहने वाले अपने दोस्त दीपक सिंह के घर गया. वहां उस ने बाइक खड़ी की ओर उस की स्विफ्ट डिजायर कार ले कर प्रेमिका से मिलने आजमगढ़ रवाना हो गया. यह बात पता नहीं कैसे प्रधान श्यामनारायण को पता चल गई. फिर तो उस की बांछें खिल उठीं. वह कल्याणपुर बांसगांव से पहले खालिसपुर गांव के पास घात लगा कर बैठ गया. रात 11 बजे के करीब विभांशु स्विफ्ट डिजायर कार ले कर गुजरा.
प्रधान ने गाड़ी में विभांशु को जाते देख लिया. प्रधान मोटरसाइकिल पर था. उस ने कार का पीछा किया और ओवरटेक कर के उसे रोक लिया. सुनसान जगह पर प्रधान को देख विभांशु का माथा ठनक गया. वह कार ले कर वहां से भागना चाहा लेकिन कार के आगे प्रधान और उस की बाइक थी, इसलिए वहां से नहीं भाग सका.
सड़क पर ही दोनों के बीच बहस छिड़ गई. बात काफी बढ़ गई. मामला गालीगलौज से हाथापाई तक पहुंच गया. प्रधान श्यामनारायण का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस ने कार का दरवाजा खोल कर विभांशु को खींच कर बाहर निकाल लिया. उसी समय उस ने कमर से लाइसेंसी पिस्टल निकाली और उस के सिर में गोली मार दी.
गोली लगते ही विभांशु कटे पेड़ की तरह धड़ाम से सड़क पर गिर गया और मौके पर ही उस की मौत हो गई. इस के बाद प्रधान ने फोन कर के छोटे भाई सत्यम राय उर्फ रजनीश को मौके पर बुला लिया.
श्यामनारायण और सत्यम दोनों ने मिल कर उसे कार की पिछली सीट पर डाला फिर लाश ठिकाने लगाने के लिए गांव के बाहर ले गए.
वह कार को सड़क से नीचे खेत में ले गए. वहां से वह नहर की ओर ले जा रहे थे, तभी कार कुदारन तिवारी के खेत में जा कर फंस गई. वहां से कार नहीं निकली तो वह वहीं खेत में छोड़ दी और लाश भी कुछ आगे डाल दी. इस के बाद वे घर लौट आए और इत्मीनान से सो गए.
उन्हें विश्वास था कि पुलिस को उन पर शक नहीं होगा पर जब मृतक के भाई घनश्याम पांडेय ने नामजद रिपोर्ट लिखाई तो प्रधान श्यामनारायण पुलिस से बचने के लिए घर से निकल कर सगड़ी-खालिसपुर मार्ग पर जा कर खड़ा हो गया और उधर से आने वाले वाहन का इंतजार करने लगा. इस से पहले कि वह वहां से कहीं जाता, थानाप्रभारी विजयप्रताप यादव ने उसे मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिया.
प्रधान श्यामनारायण राय से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के 3 दिनों के बाद उस का छोटा भाई सत्यम राय उर्फ रजनीश भी बांसगांव से गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.
कथा लिखे जाने तक पुलिस कार में मिली महिला की सैंडिल और उल्टी के बारे में जांचपड़ताल कर रही थी. आरोपी रुचि राय फरार चल रही थी. पुलिस उस की तलाश में जुटी हुई थी.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
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बुद्धाजंलि रिसर्च फाउन्डेशन एवं बीइंग मदर स्टैंड यूनाइटेड, मुम्बई द्वारा दिल्ली के द अशोका में होटल में आयोजित एक भव्य समारोह में लखनऊ निवासी बालीवुड की जानी मानी अभिनेत्री कंचन अवस्थी को बालीवुड सिंगर उदित नारायण, संगीत निर्देशक अनु मलिक, अभिनेत्री एवं प्लेबैक सिंगर सलमा आगा, माननीया सांसद, लोक सभा श्रीमती सुनीता दुग्गल तथा केलाश मासूम, अध्यक्ष, बुद्धाजंलि रिसर्च फाउन्डेशन चैरिटेबुल ट्रस्ट द्वारा सम्मानित किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में माननीय मंत्री भारत सरकार श्री रामदास अठावले ने दीप प्रज्जवलन कर के कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया.
कंचन अवस्थी को इसके पूर्व बेस्ट डांसर अवार्ड, मंजू श्री सम्मान, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सम्मान, यू0पी0 आर्टिस्ट अकादमी द्वारा बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड,वर्ष 2018 में बेस्ट अपकमिंग एक्ट्रेस का सम्मान,ग्लोबल एचीवर्स अवार्ड, फिल्म बंधु,उत्तर प्रदेश द्वारा काशी फिल्म महोत्सव में दिये गये अवार्ड सहित कई सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है.
कंचन अवस्थी ने फीचर फिल्म फ्राड सैंया, मंटो रीमिक्स ( अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शित),लव हैकर्स, अंकुर अरोड़ा मर्डर केस, गन वाली दुलहनिया, भूत वाली लव स्टोरी,मैं खुदी राम बोस, चापेकर ब्रदर्स,जय जवान जय किसान, कुतुब मीनार सहित बहुत सी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है. अभी हाल ही में भैया जी स्माइल सहित कई वेब सीरीज एवं धारावाहिक अम्मा में भी अहम किरदार निभाया है.
बारिश के मौसम में हर किसी को कुछ चटपटा खाने का मन करता है. ऐसे में अगर बात की जाए बेसनी पनीर का तो सभी के मुंह में पानी आ जाता है. आइए जानते हैं बेसनी पनीर बनाने की विधि.
सामग्री
– 3/4 कप बेसन
– 1 इंच अदरक
– 3 लहसुन
– 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
– 1/2 छोटा चम्मच नमक
– 1/2 छोटा चम्मच जीरा
– 1 छोटा चम्मच रिफाइंड औयल
ग्रेवी के लिए
– 1/2 कप प्याज का पेस्ट
– 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट
– 1/2 चम्मच हलदी पाउडर
– 2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर
– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च
– 1 छोटा चम्मच कश्मीरी मिर्च पाउडर
– 1/4 कप टोमैटो प्यूरी
– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला
– नमक स्वादानुसार
– 2 चम्मच रिफाइंड औयल ग्रेवी भूनने के लिए
– धनियापत्ती सजावट के लिए.
विधि
– बेसन को तीन कप पानी में घोल लें.
– अदरकलहसुन को पीस कर हल्दी के साथ बेसन में मिला दें.
– एक नौनस्टिक कड़ाही में एक बड़ा चम्मच तेल गरम कर के जीरा चटकाएं फिर उस में बेसन का घोल और नमक डाल दें.
– लगातार चलाते हुए मीडियम गैस पर मिश्रण के इकट्ठे होने तक घोटें.
– जब मिश्रण कड़ाही छोड़ने लगे तो चिकनाई लगी थाली में फैला दें.
– ठंडा होने पर मनचाहे टुकड़े काट लें. एक बड़े चम्मच तेल में सभी टुकड़ों को सौटे करें. ग्रेवी बनाने के लिए बचे तेल में प्याज व अदरक लहसुन पेस्ट भूनें.
– मसाला की सभी सामग्री डाल कर 2 चम्मच पानी डाल कर पुन: तेल निकलने तक मसाला भूनें.
– इस में बेसनी पनीर व 2 कप पानी डालें.
– यदि सब्जी गाढ़ी लगे तो थोड़ा और डाल दें.
– 2 उबाल आने के बाद सब्जी ढक दें.
– 10 मिनट बाद पुन: गरम करें. सर्विंग बाउल में पलटें और ऊपर से गरममसाला व हरा धनिया बुरक कर सर्व करें.
मैं विवाहित हूं. विवाह पूर्व प्रेमिका मुझे परेशान कर रही है. मैं अपनी पत्नी से बहुत खुश हूं. विवाह के बाद प्रेमिका से कोई संबंध नहीं रखा क्योंकि उस ने ही शादी के लिए मना किया था. मुझे लग रहा है कि वह मेरी खुशी बरदाश्त नहीं कर पा रही और मेरा वैवाहिक जीवन बरबाद करना चाहती है. कृपया बताएं ऐसे हालात में मैं क्या करूं?
जवाब
क्या आप की प्रेमिका के पास ऐसा कुछ है जिस से वह आप को ब्लैकमेल कर सकती है? यदि ऐसा है तो पत्नी को विश्वास में ले कर अपनी पूर्व प्रेमिका के बारे में बताना ठीक रहेगा. इस से प्रेमिका आप को ब्लैकमेल नहीं कर पाएगी. बस ध्यान रहे पत्नी को आप पर पूरा भरोसा होना चाहिए, वरना आप की शादीशुदा जिंदगी खतरे में पड़ सकती है.
अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.
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डर की भावना जब शक की सीमाएं लांघने लगती है तो वह फोबिया बन कर मानसिक रोगों को पैदा करने लगती है. कोरोना व लौकडाउन के दौरान बंद कमरे में रहने का सब से बड़ा दुष्परिणाम आइसोलेशन से पैदा हुई मानसिक बीमारियां रही हैं. मानसिक बीमारी की चपेट में कमोबेश कभी न कभी हर कोई आ जाता था. अवसाद, अनिद्रा, तनाव, चिंता, भय ये कुछ ऐसी मानसिक स्थितियां हैं जिन्हें बीमारी कहना किसी को नागवार भी गुजर सकता है. हालांकि मनोचिकित्सकों का मानना है कि एक हद तक तो ये स्थितियां ठीक हैं लेकिन जब ये एक सीमा से बाहर चली जाएं तो किसी को मानसिक तौर पर बीमार घोषित करने के लिए पर्याप्त होती हैं.
रोजमर्रा के जीवन में हम सब तनाव भय, नाराजगी, नफरत जैसी मानसिक स्थितियों से अच्छी तरह परिचित हैं. किसी परिजन की मौत के दुख से भी हम सब कभी न कभी गुजरते ही हैं, लेकिन ये मानसिक स्थितियां बहुत ज्यादा देर तक या दिनों तक नहीं टिकतीं. एक समय के बाद हम स्वाभाविक जीवन में लौट आते हैं. लेकिन अगर कोई ऐसी मानसिक स्थिति से लंबे समय से गुजर रहा हो तो यह खतरे की घंटी है.
कुछ समय पहले तक समाज में किसी भी तरह की मानसिक समस्या का हल ओझा, बाबा, तांत्रिक और झाड़फूंक में ढूंढ़ा जाता था. अंधविश्वास और कुसंस्कार के चलते किसी भी राह की मानसिक समस्या के लिए किसी दूषित हवा या बयार, भूतप्रेत का साया को जिम्मेदार मान कर लोग बाबाओं व तांत्रिकों की शरण में चले जाया करते थे. गनीमत है कि इस कोविड के आइसोलेशन से परेशान लोगों ने अंधविश्वासों की शरण कम ली, पर अब फिर इन अंधविश्वासों को बेचने वालों ने व्यापार शुरू कर दिया है.
कोलकाता के मनोचिकित्सक
डा. पारोमिता मित्र भौमिका का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हमारी आबादी में मोटेतौर पर महज एक प्रतिशत लोग जटिल और गंभीर मानसिक बीमारी के शिकार होते हैं और इस का इलाज करने में वक्त लग सकता है. बाकी 10 प्रतिशत कुछ सामान्य मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं, जो गंभीर नहीं होते हैं और काउंसलिंग से ठीक हो सकते हैं.
वहीं 30 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो कभी भी ऐसी किसी बीमारी की चपेट में आ सकते हैं अगर समय रहते सचेत नहीं हो जाते. इस के अलावा जो लोग किसी शारीरिक तकलीफ को ले कर चिकित्सा के लिए अस्पताल या डाक्टर के क्लीनिक में जाते हैं उन में से 50 प्रतिशत लोग छिटपुट मानसिक समस्या के शिकार होते हैं. ऐसे मामलों में होता यह है कि ये लोग वाकई मानसिक तौर पर बीमार होते हैं या मानसिक बीमारी के कारण इन में तरहतरह के शारीरिक लक्षण उभर आते हैं. यह बात कोई ठीकठाक समझ भी नहीं पाता है और समझने की कोशिश भी नहीं करता है. इन में भी लगभग 4-5 प्रतिशत लोग झाड़फूंक और तंत्रमंत्र जैसे अवैज्ञानिक तरीके अपनाते हैं.
शरीर के आंखकान, हाथपैर, किडनी, दिल, लिवर और पाचन संस्थान में अगर कोई बीमारी हो तो इस के लक्षण सामने आते हैं. उसी प्रकार एहसास, आवेग, चिंता, दुख, क्रोध आदि मन के भाव हैं और अगर मन में कोई बीमारी घर कर रही हो तो इस के भी कुछ निदृष्ट लक्षण सामने आएंगे. चूंकि शरीर और मन दोनों एकदूसरे से हैं, इसीलिए शारीरिक बीमारी का असर मन पर पड़ता है और मानसिक लक्षण सामने आते हैं. वहां मानसिक बीमारी के शारीरिक लक्षण भी दिखाई देते हैं.
मानसिक बीमारी के 2 हिस्से हैं, न्यूरोसिस और साइकोसिस. न्यूरोसिस संबंधित मानसिक बीमारी में मन की भावना व आवेग एक स्वाभाविक सीमा से परे चले जाते हैं. जब किसी व्यक्ति के आवेग के कारण उस का अपना जीवन दुरूह बन जाता है बल्कि परिवार, शिक्षा, पेशेवर जीवन और यहां तक कि समाज को भी जब प्रभावित करने लगता है तब यह मानसिक बीमारी का रूप ले लेता है. इस के उलट, कभीकभी मानसिक तनाव के लक्षण शारीरिक तौर पर नजर आते हैं. ऐसे मामलों में लक्षण शारीरिक होने के बावजूद, इस के पीछे वजह मानसिक है, इस का प्रमाण शारीरिक जांच में नहीं मिल पाता है.
न्यूरोसिस बीमारी के मामले में पीडि़त आमतौर पर वास्तविकता से अपना संबंधविच्छेद नहीं करता. यहां तक कि पीडि़त के व्यक्तित्व में ऊपरी तौर पर भी कोई बदलाव नजर नहीं आता है. न्यूरोसिस संबंधित मानसिक बीमारी में डिप्रैसिव डिसऔर्डर, एंग्जाइटी डिसऔर्डर, फोबिक डिसऔर्डर, औब्सेसिव कंप्लसिव डिसऔर्डर आते हैं. अगर केवल एंग्जाइटी डिसऔर्डर की बात करें तो यह 3 तरह का होता है.
जनरलाइज्ड एंग्जाइटी : इस से पीडि़त हमेशा किसी न किसी बात को ले कर बेचैन व चिंतित रहता है.
फोबिक एंग्जाइटी : इस एंग्जाइटी से पीडि़त व्यक्ति किसी स्थान या माहौल में जाने पर आशंकित हो जाता है या असुरक्षा महसूस करता है. ऐसा व्यक्ति नए माहौल और व्यक्तियों का सामना करने से कतराता है. ऐसी स्थिति एक्रोफोबिया कहलाती है. कुछ को अनजान लोगों के बीच बलात्कार का भय होता है.
पैनिक डिसऔर्डर : किसी विशेष व्यक्ति, माहौल या परिस्थिति के सामने न पड़ने के बावजूद कल्पना के वशीभूत हो कर पीडि़त उत्कंठा बेचैन या व्याकुल हो उठता है. मसलन, आज रात दिल का दौरा पड़ सकता है, इस डर से रात आंखों ही आंखों में कट जाती है.
साइकोसिस से पीडि़त व्यक्ति हरेक को अपना दुश्मन मान लेता है. उस के दिमाग में यह बात घर कर जाती है कि हर कोई उसे नुकसान पहुंचाने वाला है.
हर तरफ उसे अपने खिलाफ षड्यंत्र की आशंका सताती रहती है. कुल मिला कर वह वहम के वशीभूत हो जाता है. पीडि़त अजीबअजीब सी आवाजें सुनाई पड़ने या भूतप्रेत दिखाई देने का दावा करता है. लोगों में आने वाले ऐसे बदलावों से मानसिक डिसऔर्डर का पता चल जाता है. सिजोफ्रेनिया, मेनिया बाईपोलर डिसऔर्डर आदि साइकोसिस मानसिक बीमारी की मिसालें हैं.
कई बार देखने में आता है कि पीडि़त अपनेआप से बारबार बातें करता है. हावभाव में अजीब सी बेचैनी होती है. कुल मिला कर व्यक्तित्व व हावभाव में कोई तारताम्य नजर नहीं आता.
कुछ केस हिस्ट्री
हम यहां ऐसे ही कुछ मामलों का हवाला दे रहे हैं. एमबीए करने के बाद पल्लवी को एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में अच्छे पद पर काम करने का मौका मिला. 10वीं मंजिल पर एक छोटी सी क्यूबिकल पैनोरैमिक ग्लास लिफ्ट से चढ़नेउतरने में उसे डर लगता है. यह डर एक तरह से आतंक का रूप लेने लगा. जाहिर है, काम पर जाना उस के लिए मुश्किल हो गया. दफ्तर न जाने के बहाने ढूंढ़ने में काफी समय लगाने लगी. खोईखोई सी रहती. मन ही मन बड़बड़ाती रहती. हर वक्त सिरदर्द, उबकाई की शिकायत रहती. इन सब से उस के काम और कैरियर पर असर पड़ने लगा. सिरदर्द और उबकाई की शिकायत ले कर वह डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने कुछ दवा प्रिस्क्राइब तो की और मन में किसी तरह के डर की बात कह कर काउंसलिंग के लिए कहा.
डाक्टर के यहां से निकल कर पल्लवी सोचने लगी कि वह किसी भी तरह से डरपोक लड़की तो नहीं है. फिर डाक्टर ने डर की बात क्यों कही. लेकिन इस बात को उस ने ज्यादा तूल नहीं दिया और प्रिस्क्राइब की गई दवा लेने लगी. कुछ दिन बाद सिरदर्द और उबकाई की शिकायत में कमी आई. लेकिन फिर जस का तस. इस बीच दफ्तर में सबकुछ गड़बड़ नजर आने लगा. अकसर बौस की झिड़कियां, सहयोगियों की बेरुखी का सामना होने लगा.
तब पल्लवी ने काउंसलिंग का जरिया आजमाने का फैसला किया. काउंसलिंग के दौरान जो तथ्य निकल कर आया वह इस प्रकार का था- पल्लवी बचपन में बहुत ही चंचल स्वभाव की थी. अकसर एडवैंचरस किस्म की बदमाशियां किया करती थी. तब मां उसे भूत का डर दिखा कर शांत किया करती थी. यह भूत का डर बचपन से उस के भीतर घर कर गया था और यह डर क्यूबिकल ग्लास व पैनोरेमिक एलिवैटर से उतरनेचढ़ने में तबदील हो गया. एलिवेटर से चढ़नेउतरने के दौरान अगर कभी भूल से पल्लवी की नजर नीचे की ओर जाती तो उसे यही एहसास होता कि वह अब गिरी कि तब गिरी, या फिर लिफ्ट अब टूट कर गिरी. काउंसलिंग के दौरान साफ हुआ कि पल्लवी एक्रोफोबिया की शिकार है. दरअसल यह एक्रोफोबिया ऊंचाई का भय है. इस का इलाज कुछ मैडिसिन के साथ काउंसलिंग है.
एक अन्य मामले को लें. विवाहित और 3 बच्चों की मां लावणी की उम्र 35 साल है. पति का अपना कारोबार है. घर पर किसी चीज की कोई कमी नहीं है. न तो पति के परिवार से कोई करीबी है और न ही उस के मां के परिवार से. दोनों अपनेअपने परिवार में इकलौते हैं. किसी तरह का कोई पारिवारिक मामला भी नहीं है. बावजूद इस के कुछ दिनों से रात को वह सो नहीं पाती है. अगर आंख लगी भी तो महज घंटे या दो घंटे के लिए. इस के बाद नींद एकदम से जाने कहां हवा हो जाती है और फिर सारी रात बिस्तर पर करवट बदलती रहती है.
नतीजा, सुबह से चिड़चिड़ापन उसे घेर लेता है. छोटीमोटी बातों पर गुस्सा और इस तरह घर का माहौल बिगड़ जाता है. किसी भी काम में मन नहीं लगता. भूख भी नहीं लगती. हर वक्त मन में एक अजीब सी छटपटाहट रहती है. काउंसलिंग से पता चला कि लावणी फोबिया एंग्जाइटी डिसऔर्डर से पीडि़त है. उस के मन में अचानक यह डर बैठ गया है कि हो सकता है किसी दिन उसे दिल का दौरा पड़ जाए, तब उस के बच्चों का क्या होगा.
मनोचिकित्सक पारोमिता मित्र भौमिक कहती हैं कि हमारी आजकल की जीवनशैली भी एक हद तक मानसिक बीमारी के लिए जिम्मेदार है. समाज के लिए यह बड़ी चुनौती बन गई है. लोग सिमट गए हैं, समाज सिमट गया है. लोग अपनीअपनी कोठरियों में बंद हैं. एक पड़ोसी को दूसरे पड़ोसी की खबर नहीं होती. टीवी की संस्कृति ने लोगों को अपनीअपनी फैंटेसी में जीने की आदत डाल दी है और यही सब स्थितियां मानसिक बीमारी का कारण बन रही हैं.