हमारा मन विचारों की बौछार करता रहता है. हम एक के बाद दूसरा सपना दिन में ही देखने लगते हैं. इस के बावजूद डेड्रीमिंग को परिभाषित करना कठिन है. तात्कालिक स्थिति से इतर जो भी विचार मन में आते हैं, मनोवैज्ञानिक उन्हें दिवास्वप्न या डेड्रीमिंग कहते हैं.

मन का भटकना दिन में सपने देखने का प्रमुख रूप है. हम रोज, कुछ देर के लिए ही सही, जो कर रहे होते हैं उस से भिन्न दिशा में खो जाते हैं. यह खोना अपनी कल्पना में रमना भी हो सकता है और स्मृतियों में गोता लगाना भी. यह तब भी होता है जब हम पढ़ या सुन रहे होते हैं. यह अकस्मात खो जाना अपने ही भीतर होता है, जिस में हम अपनेआप को ही देखते हैं और एक नई ताकत से भर उठते हैं.

कोई कार्य करते समय, जिस में अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है, हमारा मन पुरानी बातों की छानबीन में खो जाता है. हम किसी इंटरव्यू की कल्पना करते हैं, किसी खास तारीख की कल्पना करते हैं और उस अनुभव में खो जाते हैं जो घटित हो चुका है या होने वाला है. दिवास्वप्न में अकसर मनोभावों का योग होता है. कभी वे सुखद होते हैं, कभी डरावने, कभी गुस्सा दिलाने वाले.

ज्यादातर दिवास्वप्न मामूली चीजों के बारे में होते हैं, जैसे किराया देना, बाल कटवाना, सहकर्मी का व्यवहार, किसी खास दोस्त को ले कर किसी समस्या का समाधान आदि. इस किस्म के विचारों का तांता लगा ही रहता है. हम दिवास्वप्न कभी भी देख सकते हैं. जब दाढ़ी बनवा रहे हों, कोई योजना बना रहे हों या चिंतन कर रहे हों. हमारे दिवास्वप्न आगे की चीजों की याद दिलाने का भी काम करते हैं.

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