आज क्रिसमस है. रंगबिरंगी मोमबत्तियां जल रही हैं. उन की टिमटिमाहट में उस लड़की की याद फिर ताजा हो गई. क्रिसमस से एक दिन पहले की वह बहस भी याद आ गई जो कि उस लड़की से हुई थी. इसे सिर्फ बहस कह देना ठीक नहीं, मैं इसे ‘एक खूबसूरत बहस’ कहूंगा. इस खूबसूरत बहस ने मु?ा को एक खूबसूरत मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया. शहर के मध्य स्थित वह लाइब्रेरी.
उसी लाइब्रेरी में तो रोज शाम को वह आती थी. अकसर मैं भी शाम को ही लाइब्रेरी जाता था. वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी किया करती थी और मैं साहित्यिक पत्रपत्रिकाएं पढ़ता था. हमारी मेजें अलगअलग थीं. हम दोनों ही अपनेअपने कार्यों में व्यस्त रहते. हमारे बीच कभी कोई संवाद नहीं हुआ. क्रिसमस से एक रोज पहले मैं अपने दोस्तों के साथ लाइब्रेरी की बालकनी में बातें कर रहा था और जब कभी भी दोस्त मिलते हैं, बातें करते हैं तो सहज ही उन की आवाजें तेज हो जाती हैं. यही हुआ भी. हमारी आवाज के शोर से वह लड़की परेशान हो गई थी. उस ने सीधे हमारे पास आ कर गुस्से में कहा, ‘बातें ही करनी हैं तो किसी बगीचे में चले जाओ. लाइब्रेरी में बातें कर के तुम यहां का नियम तोड़ रहे हो.’ ‘लेकिन, हम तो बाहर आ कर बातें कर रहे हैं,’
मेरे एक मित्र ने जवाब दिया. ‘तुम्हारी आवाज लाइब्रेरी के भीतर तक पहुंच रही है और मैं कुछ भी पढ़ नहीं पा रही हूं,’ उस लड़की ने कहा. ‘अच्छा तो आप हमारी बातें सुन रही थीं? बताओ तो हम क्या बातें कर रहे थे?’ एक मित्र ने उसे चिढ़ाया. ‘लाइब्रेरी का नियम है- मौन रहना और पढ़ना. यदि आप नियम तोड़ोगे तो मैं लाइब्रेरियन से शिकायत करूंगी,’ लड़की ने गुस्से से कहा. ‘एक नियम और भी है, पत्रपत्रिकाओं को खराब नहीं करना. आप उन पर कैल्कुलेशन कर के उन को गंदी करती हो. हम भी लाइब्रेरियन से शिकायत करेंगे,’ मैं ने कहा. (बहस बढ़ती ही जा रही थी.) ‘किसी ने ठीक ही कहा है- भैंस के सामने बीन बजाने से क्या फायदा. वैसे भी चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता,’
वह लड़की हम को व्यंग्य कर के पैर पटकती हुई हौल में चली गई. मैं उसे जाते हुए देख रहा था. बहस के अंत में उस की आंखों में आंसू आ गए थे. उस का गला भर आया था. मैं ने उस के लहराते हुए केश देखे थे. मैं ने पहली बार उस लड़की को इतने करीब से देखा था. उस के पतले होंठ गुलाबी रंग लिए थे. आंखें बड़ीबड़ी और काली थीं. लंबी सुराहीदार गरदन में कोई आभूषण नहीं था और सच कहूं तो उसे किसी आभूषण की आवश्यकता भी नहीं थी. नुकीली सुंदर नाक उस के चेहरे को और भी अधिक आकर्षक बना रही थी. उस के केश घने और कुछ सुनहरा रंग लिए थे.
सामान्य कद की और छरहरी थी. वह बहुत आकर्षक थी. मैं ने जलपरी तो कभी नहीं देखी, लेकिन जलपरी से भी अधिक सुंदर लड़की को इतने करीब से देखा था. साधारण वेशभूषा वाली वह लड़की मु?ो सम्मोहित कर गई थी. बहस में उस ने मु?ा पर बहुत से कटाक्ष किए थे, लेकिन मु?ो उस पर गुस्सा नहीं आ रहा था. मैं मुसकरा रहा था. मेरा व्यवहार देख कर मेरे मित्र भी चकित थे. उसे लग रहा था कि वह बहस में हार गई है, लेकिन वास्तविकता यह थी कि मैं अपना हृदय हार चुका था. बहस और लड़ाई का अंत सदैव दुखद होता है, किंतु इस बहस का अंत सुखद रहा. ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी से पहले बहस हो और फिर प्यार. मेरी इच्छा थी कि अभी उस लड़की से ‘सौरी’ कह दूं,
लेकिन उस समय वह बहुत गुस्से में थी. थोड़ी ही देर बाद वह अपने घर चली गई. वह अपनी पुरानी जंग लगी साइकिल से लाइब्रेरी आती थी. साइकिल में चेनकवर नहीं था. फ्रेम में एकदो जगह तो वेल्ंिडग भी की हुई थी. घंटी थी, लेकिन बजती नहीं थी. साइकिल को देख कर उस की आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता था. आर्थिक रूप से भले ही वह गरीब थी, लेकिन प्रकृति ने उसे सौंदर्य की अकूत संपत्ति दी हुई थी. मैं उसी के विषय में सोच रहा था. पंखे में भी उसी का चेहरा दिखाई दे रहा था. हवा से हिलता परदा उस के लहराते केशों की स्मृति कराता. मैं घड़ी देखता तो उस में भी वही नजर आती. दीवार में भी उसी का अक्स था. मैं ने दीवार को ही कई बार ‘सौरी’ कह दिया. मु?ो उसी के खयाल आते रहे. सच तो यह है कि मैं प्रेम में पड़ गया था, लेकिन क्या यह प्रेम एकतरफा था? यही जानने के लिए दूसरे दिन लाइब्रेरी जाना जरूरी था. दूसरे दिन मैं लाइब्रेरी खुलने से पहले ही वहां पहुंच गया था.
मेरी जेब में कुछ टौफियां थीं, जो मैं ने रास्ते की दुकान से खरीदी थीं. 15 मिनट के बाद लाइब्रेरी का गेट खुला. मैं उस के आने का इंतजार करने लगा. मैं ने घड़ी देखी, उस के आने में आधे घंटे का समय शेष था. इंतजार का आधा घंटा आधे माह की तरह लंबा लगा. वह आई और अपनी सीट पर जा कर बैठ गई. मैं हिम्मत जुटा कर उस के पास पहुंचा और ‘मैरी क्रिसमस’ कह कर टौफियां उस की ओर बढ़ा दीं. वह हौले से मुसकराई और एक टौफी उठा कर बोली, ‘सेम टू यू, थैंक्यू.’ ‘कल शाम को आप से मेरी बहस के लिए मैं शर्मिंदा हूं,’ मैं ने कहा. ‘रात गई, बात गई,’ उस का मुहावरेदार उत्तर सुन कर मैं भी मुसकरा दिया. ‘देयर आर मैनी गिफ्ट्स अंडर द क्रिसमस ट्री, बट द बैस्ट वन इज द गिफ्ट औफ योर फ्रैंडशिप,’ यह वाक्य मैं ने क्रिसमस पर कहीं पढ़ा था, उस के सामने कह दिया.
जवाब में वह अपना दाहिना हाथ मेरी ओर बढ़ा कर बोली, ‘शेक हैंड एंड होली क्रिसमस.’ और हमारी दोस्ती का श्रीगणेश हो चुका था. बातों ही बातों में उस ने बताया कि उस का घर बहुत छोटा है और सदस्य अधिक हैं. घर के पास ही लोहा बाजार है. कुछ लघु उद्योग भी हैं. सारा दिन कोलाहल रहता है, इसलिए वह घर पर ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाती. बीते दिवस की बहस और कटाक्ष के लिए उस ने भी खेद व्यक्त किया. ‘वह सब तात्कालिक था,’ मैं ने कहा. इस पर वह हंसने लगी. जिसे मैं ने बहुत तुनकमिजाज सम?ा था, वह लड़की बहुत ‘फ्रैंडली’ और खुशमिजाज थी. मैं सोचता रहा कि किसी भी व्यक्ति के विषय में हमें कोई भी राय इतनी जल्दी नहीं बना लेनी चाहिए. वह पुस्तक पढ़ने में व्यस्त हो गई. अब हम रोज ही मिलने लगे थे. पढ़ाई के साथ बहुत सी बातें भी करते. अब फोन पर भी बातें होतीं तकरीबन रोज ही.
वह बहुत अच्छी हिंदी बोलती. उस का शब्दकोश बहुत अच्छा था. वाक्यों में मुहावरे और लोकोक्तियां होतीं. बहुत से शब्दों के पर्यायवाची उसे याद थे. उसे हिंदी साहित्य पढ़ना अच्छा लगता. महादेवी वर्मा और मुंशी प्रेमचंद को उस ने खूब पढ़ा था. स्कूल के दिनों में छुट्टी वाले दिन और वार्षिक परीक्षाओं के बाद हिंदी साहित्य पढ़ा करती, ऐसा उस ने बताया था. मैं ने देखा कि उस लड़की में बनावट बिलकुल नहीं. वह अपनी सादगी और मौलिकता में भी खूबसूरत थी. सिर्फ बाहर से ही नहीं, भीतर से भी खूबसूरत. सूरत और सीरत दोनों आकर्षक. एक शाम किसी कारण से मु?ो लाइब्रेरी जाने में देर हो गई. वह बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थी. मेरे पहुंचते ही उस ने कहा, ‘मैं कब से इंतजार कर रही हूं. क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि हम एकदूसरे के पूरक हैं?’ ऐसा कहते वक्त उस की आंखें ?िलमिलाने लगी थीं. मु?ो लगा कि मैं आकाश में उड़ने लगा हूं. ठंडे बादल मेरे आसपास से हो कर गुजर रहे हैं. मैं अपने शरीर में बादलों की छुअन से उत्पन्न एक शीतल लहर को महसूस कर रहा था.
सब से खूबसूरत और खूबसीरत लड़की मु?ो अपना पूरक मानती है. जब मैं विद्यार्थी था, तब मु?ो ‘अनुत्तीर्ण’ और ‘पूरक’ शब्दों से डर लगता था, किंतु आज मु?ो ‘पूरक’ शब्द अच्छा लगा. ‘पूरक’ तो मु?ो ‘पूरब’ की तरह लगने लगा था- सुहाना. ‘पूरक’ में भी मु?ो ‘पूरब’ के जैसी ही सुनहरी किरणें दिखाई दे रही थी, प्रेम की किरणें, रोमांच की किरणें. 2 दिनों बाद ‘वैलेंटाइन डे’ था. उस के लिए मैं ने गिफ्ट खरीदा और ‘वैलेंटाइन डे’ के दिन अपने प्रेम का इजहार कर दिया.