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अनकहा प्यार- भाग 2: क्या सबीना और अमित एक-दूसरे के हो पाए?

दुबई से नौकरी छोड़ कर आमिर ने अपना खुद का व्यापार शुरू कर दिया. बेटे सलीम को पढ़ाई के लिए उसे होस्टल में डाल दिया. सबीना का भी आमिर ने अच्छी तरह ध्यान रखा. उसे खूब प्रेम दिया. लेकिन जबजब आमिर सबीना से कहता कि नौकरी छोड़ दो. सबकुछ है हमारे पास. सबीना ने यह कह कर इनकार कर दिया कि कल तुम्हें कोई और भा गई. तुम ने फिर तलाक दे दिया तो मेरा क्या होगा? फिर मुझे यह नौकरी भी नहीं मिलेगी. मैं नौकरी नहीं छोड़ सकती. इस बात पर अकसर दोनों में बहस हो जाती. घर का माहौल बिगड़ जाता. मन अशांत हो जाता सबीना का.

‘तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है?’ आमिर ने पूछा.

‘नहीं है,’ सबीना ने सपाट स्वर में जवाब दिया.

‘मैं ने तो तुम पर विश्वास किया. तुम्हें क्यों नहीं है?’

‘कौन सा विश्वास?’

‘इस बात का कि हलाला में पराए मर्द को तुम ने हाथ भी नहीं लगाया होगा.’

‘जब निकाह हुआ तो पराया कैसे रहा?’

‘मैं ने इस बात के लिए 3 लाख रुपए खर्च किए थे. ताकि जिस से हलाला के तहत निकाह हो, वह  हाथ भी न लगाए तुम्हें.’

‘भरोसा मुझ पर नहीं किया आप ने. भरोसा किया मौलवी पर. अपने रुपयों पर, या जिस से आप ने गैरमर्द से मेरा निकाह करवाया.’’

‘लेकिन भरोसा तो तुम पर भी था न.’

‘न करते भरोसा.’

‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे 3 लाख रुपए भी गए और तुम ने रंगरेलियां भी मनाई हों.’ आमिर की इस बात पर बिफर पड़ी सबीना. बस, इसी मुद्दे को ले कर दोनों में अकसर तकरार शुरू हो जाती और सबीना पार्क में आ कर बैठ जाती.

पार्क की बैंच पर बैठे हुए उस की दृष्टि सामने बैठे हुए एक अधेड़ व्यक्ति पर पड़ी. वह थोड़ा चौंकी. उसे विश्वास नहीं हुआ इस बात पर कि सामने बैठा हुआ व्यक्ति अमित हो सकता है. अमित उस के कालेज का साथी. 45 वर्ष के आसपास की उम्र, दुबलापतला शरीर, सफेद बाल, कुछ बढ़ी हुई दाढ़ी जिस में अधिकांश बाल चांदी की तरह चमक रहे थे. यहां क्या कर रहा है अमित? इस शहर के इस पार्क में, जबकि उसे तो दिल्ली में होना चाहिए था. अमित ही है या कोई और. नहीं, अमित ही है. शायद मुझ पर नजर नहीं पड़ी उस की.

अमित और सबीना एकसाथ कालेज में पूरे 5 वर्ष तक पढ़े. एक ही डैस्क पर बैठते. एकदूसरे से पढ़ाई के संबंध में बातें करते. एकदूसरे की समस्याओं को सुलझने में मदद करते. जिस दिन वह कालेज नहीं आती, अमित उसे अपने नोट्स दे देता. जब अमित कालेज नहीं आता, तो सबीना उसे अपने नोट्स दे देती. कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दोनों मिल कर भाग लेते और प्रथम पुरुस्कार प्राप्त करते हुए सब की वाहवाही बटोरते. जिस दिन अमित कालेज नहीं आता, सबीना को कालेज मरघट के समान लगता. यही हालत अमित की भी थी. तभी तो वह दूसरे दिन अपनत्वभरे क्रोध में डांट कर पूछता. ‘कल कालेज क्यों नहीं आईं तुम?’

सबीना समझ चुकी थी कि अमित के दिल में उस के प्रति वही भाव हैं जो उस के दिल में अमित के प्रति हैं. लेकिन दोनों ने कभी इस विषय पर बात नहीं की. सबीना घर से टिफिन ले कर आती जिस में अमित का मनपसंद भोजन होता. अमित भी सबीना के लिए कुछ न कुछ बनवा कर लाता जो सबीना को बेहद पसंद था. वे अपनेअपने सुखदुख एकदूसरे से कहते. अमित ने बताया कि उस के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. घर में बीमार बूढ़ी मां है. जवान बहन है जिस की शादी की जिम्मेदारी उस पर है. अपने बारे में क्या सोचूं? मेरी सोच तो मां के इलाज और बहन की शादी के इर्दगिर्द घूमती रहती है. बस, अच्छे परसैंट बन जाएं ताकि पीएचडी कर सकूं. फिर कोई नौकरी भी कर लूंगा.’’

सबीना उसे सांत्वना देते हुए कहती, ‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा.

सबीना के घर की उन दिनों आर्थिक स्थिति अच्छी थी. उस के अब्बू विधायक थे. उन के पास सत्ता भी थी और शक्ति भी. कभी कहने की हिम्मम नहीं पड़ी उस की अपने अब्बू से कि वह किसी हिंदू लड़के से प्यार करती है. कहती भी थी तो वह जानती थी कि उस का नतीजा क्या होगा? उस की पढ़ाईलिखाई तुरंत बंद कर के उस के निकाह की व्यवस्था की जाती. हो सकता है कि अमित को भी नुकसान पहुंचाया जाता. लेकिन घर वालों की बात क्या कहे वह? उस ने खुद कभी अमित से नहीं कहा कि वह उस से प्यार करती है. और न ही अमित ने उस से कहा.

अमित अपने परिवार, अपने कैरियर की बातें करता रहता और वह अमित की दोस्त बन कर उसे तसल्ली देती रहती. पैसों के अभाव में सबीना ने कई बार अमित के लाख मना करने पर उस की फीस यह कह कर भरी कि जब नौकरी लग जाए तो लौटा देना, उधार दे रही हूं.

और अमित को न चाहते हुए भी मदद लेनी पड़ती. यदि मदद नहीं लेता तो उस का कालेज कब का छूट चुका होता. कालेज की तरफ से कभी पिकनिक आदि का बाहर जाने का प्रोग्राम होता, तो अमित के न चाहते हुए भी उसे सबीना की जिद के आगे झकना पड़ता. कई बार सबीना ने सोचा कि अपने प्यार का इजहार करे लेकिन वह यह सोच कर चुप रह गई कि अमित क्या सोचेगा? कैसी बेशर्म लड़की है? अमित को पहल करनी चाहिए. अमित

कैसे पहल करता? वह तो अपनी गरीबी

से उबरने की कोशिश में लगा हुआ था. अमित सबीना को अपना सब से अच्छा दोस्त मानता था. अपना सब से बड़ा शुभचिंतक. अपने सुखदुख का साथी. लेकिन वह भी कर न सका अपने प्यार

का इजहार.

प्यार दोनों ही तरफ था. लेकिन कहने की पहल किसी ने नहीं की. कहना जरूरी भी नहीं था. प्यार है, तो है. बीए प्रथम वर्ष से एमए के अंतिम वर्ष तक, पूरे 5 वर्षों का साथ. यह साथ न छूटे, इसलिए सबीना ने भी अंगरेजी साहित्य लिया जोकि अमित ने लिया था. अमित ने पूछा भी, ‘तुम्हारी तो हिंदी साहित्य में रुचि थी?’

‘मुझे क्या पता था कि तुम अंगरेजी साहित्य चुनोगे,’ सबीना ने जवाब दिया.

‘तो क्या मेरी वजह से तुम ने,’ अमित ने पूछा.

‘नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. सोचा कि अंगरेजी साहित्य ही ठीक रहेगा.’

‘उस के बाद क्या करोगी?’

‘तुम क्या करोगे?’

‘मैं, पीएचडी.’

‘मैं भी, सबीना बोली.’

ज्योति -भाग 1: सब्जबाग के जाल में

प्रियंका अपने कमरे में ज्योति को बिठा कर उस के लिए कुछ खानेपीने का सामान लाने कमरे से बाहर चली गई, तो हरीश तेजी से उस कमरे में घुस आया. हरीश के उस समय इंटर के एक्जाम चल रहे थे. आते ही वह बोला, “ज्योति, तुम बहुत सुंदर हो. पता नहीं क्यों जब भी तुम्हें देखता हूं, तो मन तुम्हें सीने से लगाने को करता है.”

“तुम पढ़ाई करते हो या ये सब सोचते रहते हो. तुम्हें अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाना चाहिए. ज्योति ने समझाना चाहा, तो वह बोला, “ज्योति, पढ़ाई के साथसाथ जिंदगी के मजे भी लेने चाहिए.”

“मजे लेने से क्या मतलब है तुम्हारा…?” ज्योति के ऐसा पूछने पर वह बिलकुल उस के करीब आया और उस के कान के पास झुक कर धीरे से बोला, “मजे लेने का मतलब है…” ऐसा कहते हुए उस ने ज्योति को अपने सीने में भींच कर उस के दोनों होंठों को अपने होंठों से गीला कर दिया.

ज्योति एकदम से घबरा गई थी. उस ने जोर से हरीश को धक्का दिया और बोली, “ये क्या कर रहे थे तुम? शर्म नहीं आती…”

“तुम्हें बता रहा था कि मजे…”

तभी प्रियंका एक ट्रे में कुछ खाने का सामान और पानी का गिलास लिए आ गई.

उस के आते ही हरीश ने बात बदल दी, “हां, तो मैं बता रहा था कि मजेदार सब्जेक्ट है ‘मैथ’. तुम 9वीं में मैथ अवश्य लेना,” इतना कह कर उस ने प्रियंका की पढ़ाई वाली मेज पर पड़ा स्केल उठाया और तेजी से कमरे से बाहर निकल गया.

ये हरकत हरीश ने इसलिए की कि प्रियंका समझे कि वह कमरे में उस का स्केल लेने आया था.

उस के बाद ज्योति ने प्रियंका के घर जाना ही बंद कर दिया, जबकि इस से पहले जब भी प्रियंका स्कूल से लौटते समय उस से अपने घर चलने को कहती थी तो वह कभी मना नहीं करती थी. कुछ देर उस के घर में रुक कर ही अपने घर जाती थी.

फिर 9वीं में एडमिशन के बाद दोनों के सैक्शन बदल गए थे, तो इस कारण भी दोनों का घर आनाजाना न के बराबर हो गया था. पर, ज्योति और प्रियंका के भाइयों के इंटर करने के बाद पौलीटैक्निक में एक ही विषय लेने के कारण दोस्ती बढ़ गई थी. अधिकतर जुगल ही हरीश के घर संयुक्त रूप से पढ़ाई करने के कारण पहुंच जाता था.

मेरी लॉकडाउन में नौकरी चली गई है, मैं फाइनैंशियल परेशान हूं कुछ उपाय बताएं?

सवाल
मैं 35 वर्षीय हूं. लौकडाउन के दौरान मेरी नौकरी चली गई थी और घर में फाइनैंशियल दिक्कत आ गई थी. इस मारे मैं ने अपने एक मित्र से 60 हजार रुपए का कर्जा लिया था. आज 8 महीने बीत गए हैं. नौकरी अभीअभी लगी है. मैं उस का कर्जा चुका देना चाहता हूं पर कर्जा चुकाने लायक पैसा अभी नहीं जोड़ पाया हूं. वह पैसों के लिए फोन कर रहा है पर उस का फोन उठा कर उस से बात करने की हिम्मत नहीं हो रही. बताइए मैं क्या करूं?
जवाब
 

अगर कर्जा लिया है तो सही समय पर चुकाना ही चाहिए. वरना जिन से कर्जा लिया है उन से रिश्ते बिगड़ते ही बिगड़ते हैं. इस से सिर्फ रिश्ते नहीं बिगड़ते साथ में आगे के लिए रास्ते भी बंद हो जाते हैं. आप बता रहे हैं कि आप फोन नहीं उठा रहे. यह तो बहुत ही गलत कर रहे हैं आप.

सब से पहले तो जिन्होंने आप को कर्जा दिया है उन के टच में रहें. किन्हीं दिक्कतों से गुजर रहे हैं तो बेहतर यह है कि आप लेनदार से व्यक्तिगत रूप से बात करेंउन से मिलें और अपनी अवस्था का वितरण बताएं. आप की ईमानदारी में खोट नहींयह उन्हें सम?ाएं और दोस्त को विश्वास में लें. इस से दोनों एकदूसरे की दिक्कत सम?ा सहमति पर आगे बढ़ेंगे.

कोशिश करेंआप एक तय किस्त बांध लेंजिसे समयसमय पर दे कर कर्जा मुक्त होते रहें. इस से दोस्त को भी लगेगा कि आप पैसा देने के सही में इच्छुक हैं. आप की नौकरी लग गई है तो कुछ पैसा आप के पास आएगा. कोशिश करें कर्जे से छुटकारा पाने के लिए अपने खर्चों को कम करें और जितनी जल्दी हो सके कर्जमुक्त हों.

औरत की औकात- भाग 1: प्रौपर्टी में फंसे रिश्तों की कहानी

कल रात से ही वह अपनी सास से हुई बहस को ले कर परेशान थी. उस पर सोते वक्त पति के सामने अपना दुखड़ा रो कर मन हलका करना चाहा तो उस के मुंह से रमा सहाय का नाम सुन कर पति का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. सारी रात आंखों में ही कुछ समझते हुए और कुछ न समझ आने पर उस पर गहन विचार करते हुए उस ने गुजार दी.

सुबह उठी तो आंखें बोझिल हो रही थीं और सिर भारी हुआ जा रहा था. रात को सास और फिर पति के संग हुई बहस की वजह से आज उस का मन किसी से भी बात करने को न हो रहा था. न चाहते हुए भी भारी मन से पति के लिए टिफिन बना कर उन्हें नौकरी के लिए विदा किया और फिर आंखें बंद कर बैठ गई. वैसे भी इंसान को अपनी समस्याओं का कोई हल नहीं मिलता तो अंतिम सहारे के रूप में वह आंख बंद कर प्रकृति के बारे में सोचने लगता है.

“अब बंद भी कर यह नाटक और रसोई की तैयारी कर.” तभी उस के कानों में तीखा स्वर गूंजा.

अपनी सास की बात का कोई जवाब न दे कर वह हाथ जोड़ कर अपनी जगह से खड़ी हो गई. सास से उस की नजरें मिलीं. एक क्षण वह वहां रुकी और फिर चुपचाप रसोई में आ गई. उस के वहां से उठते ही उस की सास अपनी रोज की क्रिया में मग्न हो गई.

अभी भी कल वाली ही बात पर विचार कर वह अनमनी सी रसोई के प्लेटफौर्म के पास खड़ी हुई थी. तभी रसोई के प्लेटफौर्म की बगल वाली खिड़की से उस की नजर बाहर जा कर टिक गई. रसोईघर के बाहर खाली पड़ी जगह में पड़े अनुपयोगी सामान के ढेर पर कुछ दिनों से कबूतर का एक जोड़ा तिनकातिनका जोड़ कर घोंसला बनाने की कोशिश कर रहा था लेकिन थोड़े से तिनके इकट्ठे करने के बाद दोनों में न जाने किस बात को ले कर जोरजोर से अपने पंख फड़फड़ाते व सारे तिनके बिखर कर जमीन पर आ गिरते. जैसेतैसे आपस में लड़तेझगड़ते और फिर एक हो कर आखिरकार घोंसला तो उन्होंने तैयार कर ही लिया था और कबूतरी घोंसले में अपने अंडों को सेती हुई कई दिनों से तपस्यारत इत्मीनान से बैठी हुई थी. उसे आज घोंसले में कुछ हलचल नजर आई. अपनी जिज्ञासा मिटाने के लिए वह खिड़की के पास के दरवाजे से बाहर गई और अपने पैरों के पंजों को ऊंचा कर घोंसले में नजर डालने लगी. उस की इस हरकत पर घोंसले में बैठी हुई कबूतरी सहम कर अपनी जगह से थोड़ी सी हिली. 2 अंडों में से एक फूट चुका था और एक नन्हा सा बच्चा मांस के पिंड के रूप में कबूतरी से चिपका हुआ बैठा था. सहसा उस के चेहरे पर छाई उदासी की लकीरों ने खुदबखुद मुड़ कर मुसकराहट का रूप ले लिया. उस ने अपना हाथ बढ़ा कर कबूतरी को सहलाना चाहा लेकिन कबूतरी उस के इस प्रयास को अपने और अपने बच्चे के लिए घातक जान कर गला फुला कर अपनी छोटी सी चोंच से उसे दूर खदेड़ने का यत्न करने लगी.

एक छोटा सा नजारा उस के मन को अपार खुशी से भर गया. वह वापस अंदर रसोई में आने को मुड़ी और उस के होंठों से अनायस ही उस का पसंदीदा गाना, मधुर आवाज के साथ, निकल कर उस के मन के तारों को झंकृत करने लगा.

“न समय देखती है न बड़ों का लिहाज करती है. यह कोई समय है फिल्मी गाना गाने का? गाना ही है तो भजन गा तो मेरी पूजा भी सफल हो जाए,” सास का यह नाराजगीभरा स्वर सुन कर उस की आवाज बंद होंठों के अंदर सिमट गई और चेहरे पर कुछ देर पहले छाई हुई मुसकराहट को उदासी ने वापस अपनी आगोश में समा लिया. हाथ धो कर उस ने फ्रिज खोला और उस में रखा पत्तागोभी निकाल कर अनमने भाव से उसे काटने लगी.

तभी डोरबैल बजने पर उस ने जा कर दरवाजा खोला तो अपने सामने एक अपरिचित व्यक्ति को खड़ा पा कर अचरज से उस से कुछ पूछने जा ही रही थी कि तभी पीछे से आ कर उस की सास ने उस व्यक्ति को नमस्ते करते हुए अंदर आने को कहा. उस ने भगवा धोतीकुरता पहने उस व्यक्ति को गौर से देखा. उस के माथे पर लंबा तिलक लगा हुआ था और उस ने गले में रुद्राक्ष की माला पहन रखी हुई थी. उस की सास उस पंडितवेशधारी व्यक्ति से कुछ दूरी बना कर उस के साथ सोफे पर बैठ गई और उसे पानी लाने के लिए कहा.

पानी देने के बाद खाली गिलास ले कर वह अंदर जाने को हुई तो सास ने उसे टोका, “यहां पंडितजी के पास बैठ. ये बहुत बड़े ज्ञानी है और हाथ देख कर सारी समस्याओं का हल बता देते हैं.”

सास की बात सुन कर वह चौंक गई. उस ने मना करना चाहा लेकिन फिर कल रात परिवार में हुई अनबन को याद कर बात को और आगे न बढ़ाने के लिए वह पंडितजी से कुछ दूरी बना कर उन के पास बैठ गई. पंडितजी ने मुसकरा कर उस की तरफ देखा और उसे अपना सीधा हाथ आगे बढ़ाने को कहा. उस ने झिझकते हुए अपने सीधे हाथ की हथेली उन के आगे कर दी. पंडितजी ने उस की हथेली को छूते हुए उस पर हलका सा दबाव डाला. उस ने अपनी हथेली पीछे करनी चाही पर उस के ऐसा करने से पहले ही पंडित उस की हथेली पर अपनी उंगलिया फेरते हुए उस की सास से पूछने लगे, “तो यह आप की बहू है?”

 

दीवाली स्पेशल: जिंदगी जीने का हक

क्या यह प्रेम था : भाग 2

बाद में उसे संकोच हुआ कि अगर कोई दूसरा हुआ तो वह उसे कितना गलत समझेगा. कुहू ने एक बार फिर उस का प्रोफाइल चैक किया और उस के फोटो को देखने लगी तो उस का फोटो देख कर उस की आंखें नम हो गईं. यह तो उसी का आरव है. फोटो में उसे उस के हाथ का वह काला निशान यानी ‘बर्थ मार्क’ दिख गया था.

अगले ही दिन आरव का संदेश आया, ‘‘हां.’ अब इस हां का अर्थ 2 तरह से निकाला जा सकता था- एक हां का मतलब मैं आरव ही हूं और दूसरा यह कि तुम मुझे भी याद हो. मगर कुहू को तो दोनों ही अर्थों में हां दिखाई दी.

कुहू ने इस संदेश के जवाब में अपना फोन नंबर दे दिया. थोड़ी देर में आरव औनलाइन दिखाई दिया तो दोनों ही यह भूल गए कि उनकी जिंदगी 15 साल आगे निकल चुकी है. कुहू 1 बच्चे की मां तो आरव 2 बच्चों का बाप बन चुका है. इस के बाद दोनों में बात हुई तो कुहू ने पूछा, ‘‘आरव, तुम ने अपने घर में मेरी बात की

थी क्या?’’

आरव की मां को कुहू के बारे में पता था कि दोनों में खूब बातें होती हैं. जब उस ने अपनी मां से कुहू की सगाई के बारे मं बताया उस ने राहत की सांस ली थी. यह बात आरव ने ही कुहू को बताई थी. इस पर आरव पर क्या असर पड़ा, यह जाने बगैर ही कुहू खूब हंसी थी. आरव सिर्फ उस का मुंह ताकता रह गया था.

हां, तो जब कुहू ने आरव से पूछा कि उस ने उस के बारे में अपने घर में बताया कि नहीं, तो इस पर आरव हंस पड़ा था. हंसी को काबू करते हुए उस ने कहा, ‘‘न बताया है, न बताऊंगा. मां तो अब हैं नहीं, मेरी पत्नी मुझ पर शक करती है. इसलिए उस से कुछ भी बताने की हिम्मत मैं नहीं कर सकता.’’

दोनों की चैटिंग और बातचीत का सिलसिला चलता रहा. आरव हमेशा शिकायत करता कि वह उसे छोड़ कर चली गई. इस पर कुहू को पछतावा होता.

बारबार आरव के शिकायत करने पर एक दिन उस ने नाराज हो कर कहा, ‘‘क्यों न चली जाती? क्या तुम ने मुझे रोका था? किस के भरोसे रुकती?’’

आरव ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं, पर अब उस का कोई मतलब नहीं और तुम जो जवाब दोगी वह भी मुझे पता है. फिर भी तुम मुझे बताओ कि अगर मैं तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाता तो तुम मना तो न करतीं? पर आज बात कुछ अलग है.’’

सचमुच इस सवाल का कुहू के पास कोई जवाब नहीं था और कोई भी…

एक दिन आरव ने हंस कर कहा, ‘‘कुहू, कोई समय घटाने की मशीन होती तो हम 15 साल पीछे चले जाते.’’

‘‘अरे मैं तो कब से वहीं हूं, पर तुम कहां हो….’’

‘‘मैं तुम्हारे पीछे खड़ा हूं,’’  आरव ने जोर से हंस कर कहा, ‘‘पर तुम बहुत झूठी हो, मुझे दिखाई ही नहीं दे रही हो,’’ और उस ने एक गाना गाया, ‘बंदा परवर थाम लो जिगर…’’

कुहू भी जोर से हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारी यह गाने की आदत अब तक नहीं गई. अब इस आदत का मतलब खूब समझ में आता है, पर अब इस का क्या फायदा.’’

दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई कि वह जो कर रही है वह गलत है. फिर उस ने सबकुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया और रात में खाने के बाद उस ने सारी सचाई बता दी.

अंत में कहा, ‘‘इस में सारी गलती मेरी ही है. मैं ने ही आरव को ढूंढ़ा और अब मुझ से झूठ नहीं बोला जाता. अब आप को जो सोचना है, सोचिए.’’

पहले तो उमंग थोड़ा परेशान हुआ, पर फिर बोला, ‘‘कुहू, तुम झूठ बोल रही हो. तुम मजाक कर रही हो. सच बोलो… मेरे दिल की धड़कन थम रही है.’’

‘‘नहीं उमंग यह सच है.’’ कुहू ने कहा. उस ने सारी बातें तो उमंग को बता दी थी, पर गाने सुनाने और फिल्म देखने वाली बात नहीं बताई थी. शायद हिम्मत नहीं कर सकी.

उमंग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. कहा, ‘‘जाने दो, कोई प्रौब्लम नहीं है. इस तरह तो होता रहता है. जीवन में यह सब चलता रहता है.’’

अगले दिन कुहू ने सारी बात आरव को बताई तो वह हैरान होते हुए बोला, ‘‘कुहू, तुम बहुत खुशहाल हो, जो तुम्हें ऐसा जीवनसाथी मिला है, जबकि सुरभि ने तो मुझे कैद कर रखा है.’’

‘‘इस में गलती तुम्हारी है, जो तुम अपने जीवनसाथी को विश्वास में नहीं ले सके.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. मैं ने बहुत कोशिश की. सुरभि भी मेरे साथ वकील है… वह पता नहीं ऐसा क्यों करती है.’’

इस के बाद एक दिन आरव ने कुहू की बात सुरभि से करा दी. उस ने कुहू से तो खूब मीठीमीठी बातें कीं, पर इस के बाद आरव का जीना मुहाल कर दिया.

उस ने आरव से स्पष्ट कहा, ‘‘तुम कुहू से संबंध तोड़ लो वरना मैं मौत को गले लगा लूंगी.’’

अगले दिन आरव का संदेश था, ‘कुहू मैं तुम से कोई बात नहीं कर सकता. सुरभि ने सख्ती से मना कर दिया है.’

उस समय कुहू और उमंग खाना खा रहे थे. संदेश पढ़ कर कुहू रो पड़ी. उमंग ने पूछा तो उस ने बेटे की याद आने का बहाना बना दिया. कितने दिनों तक वह संताप में रही. फोन भी किया, पर आरव ने बात नहीं की. हार कर कुहू ने संदेश भेजा कि एक बार तो बात करनी ही पड़ेगी, ताकि मुझे पता चल सके कि क्या हुआ है.

इस के बाद आरव का फोन आया. बोला, ‘‘मेरे यहां कुछ ठीक नहीं है. तीन दिन हो गए, हम सोए नहीं हैं. सुरभि को हमारी निस्स्वार्थ दोस्ती से सख्त ऐतराज है. अब मैं आप से प्रार्थना कर रहा हूं कि मुझे माफ कर दो. मुझे पता है, इन बातों से तुम्हें कितनी तकलीफ हो रही है और मुझे ये सब कहते हुए भी. विधि का विधान भी यही है… हम इस से बंधे हुए जो हैं.’’

कुहू बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना कह पाई, ‘‘कोई प्रौब्लम नहीं, अब मैं तुम से मिलने के लिए 15 साल और इंतजार करूंगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर आरव ने फोन काट दिया.

कूहू ने भी उस का नंबर डिलीट कर दिया और उसे अपनी फ्रैंडलिस्ट स निकाल दिया. कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यार मोनिका, मैं ने उस का नंबर    तो डिलीट कर दिय, पर जिस नंबर को मैं पिछले 15 सालों से नहीं भूल सकी उसे इस तरह कैसे भूल सकती हूं. वजह मुझे पता नहीं. मुझे उस से प्यार नहीं था, फिर भी मैं उसे नहीं भूल सकी. उस के लिए मेरा दिल दुखी हुआ है और अब मुझे यह पता नहीं कि इस दिल को समझाने के लिए क्या करूं. मेरी समझ में नहीं आता कि उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, जबकि उसे पता था, फिर भी उस ने ऐसा क्यों किया. बस, जब तक उसे अच्छा लगा, मुझ से बातें करता रहा और जब जान पर आ गई तो तुम कौन और मैं कौन वाली बात कह कर किनारा कर लिया.’’

कुहू इसी तरह की बातें कह कर रोती रही और मोनिका ने भी उसे रोने दिया. उसे रोका नहीं. यह समझ कर कि उस के दिल पर जितना बोझ है, वह आंसुओं के रास्ते बह जाए.

अब मोनिका उस से कहती भी क्या, जबकि वह जानती थी कि वह प्यार ही था, जिसे कुहू भुला नहीं सकी थी. एक बार आरव से उस ने खुद कहा था, ‘‘हम औरतों के दिल में 3 कोने होते हैं- एक में उस का घर, दूसरे में उस का मायका और जो दिल का तीसरा कोना होता है उस में उस की अपनी कितनी यादें संजोई रहती हैं, जिन्हें वह फुरसत के क्षणों में निकाल कर धोपोंछ कर रख देती है.’’

मोनिका सोचने लगी, जो लड़की प्यार को कैमिकल रिएक्शन मानती थी और दिल को मात्र रक्त सप्लाई करने का साधन, उस ने दिल की व्याख्या कर दी थी और अब कह रही थी कि उसे आरव से प्यार नहीं है.

मोनिका ने उसे यही समझाया और वह खुद भी समझतीजानती थी कि उसे जो मिला है,

अच्छा ही मिला है, कोई भी विधि का विधान नहीं बदल सकता.    ‘‘दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई

कि वह जो कर रही है वह गलत है.

फिर उस ने सबकुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया…’

Diwali 2022 : दीवाली का मेला पर मैं अकेला

बाहर महल्ले में कतारबद्ध दीयों की टिमटिमाती रोशनी और पटाखों का शोर सुन अंकुश रहरह कर अधीर हो उठता है. अपने होस्टल की खिड़की से जाने कब से वह इन रोशनी की लडि़यों को एकटक देखे जा रहा है. मायूसी के आलम में खुद को बारबार कोस रहा है कि काश, वह इन त्योहारों में घर क्यों नहीं चला गया. उस की वेदना मुखर हो उठती है. यह तनहाई और अकेलेपन का दर्द सिर्फ अंकुश जैसे छात्रों तक ही नहीं सिमटा है बल्कि सुदूर ग्रामीण इलाकों से आए मजदूर, कामगार छात्र और नौकरीपेशा लोग भी इस एकाकीपन का शिकार हैं. त्योहारों का सिलसिला शुरू होते ही घरपरिवार से दूर पढ़ाई या काम के सिलसिले में शहर से दूर बैठे युवाओं को एकाकीपन से दोचार होना ही पड़ता है.

ये एकाकीपन वाकई सालता है और तनहाइयां कचोटती हैं और ऐसे लोगों को अकसर मन में यह कोफ्त होती है कि अगर सिर पर पढ़ाई या नौकरी का बोझ न होता तो वे तीजत्योहारों की उमंगों को अपनों के साथ तो बांट पाते. भागतीदौड़ती जिंदगी में जैसे सबकुछ सिमट कर रह गया हो. त्योहार कब आए और कब चले गए इस का पता भी नहीं चलता. कहते हैं तीजत्योहार बेतहाशा भागती हमारी जिंदगी में, सुकूनभरे ठहराव के कुछ पल साथ ले कर आते हैं. वे हमारी बोझिल व उबाऊ दिनचर्या में ताजगी और खुशियों के नए रंग भरते हैं. दरअसल, त्योहारों की प्रासंगिकता भी इसलिए है कि एक नियत ढर्रे पर दौड़ रही जिंदगी की रफ्तार में उल्लास के बे्रक लगाए जाएं. त्योहारों की प्राचीन अवधारणा इस तथ्य की बखूबी पुष्टि करती है. पर उन का क्या जिन पर न तो होली के रंग चढ़ पाते हैं और न दीवाली की रोशनी प्रतिबिंबित हो पाती है. आज लाखों की तादाद में ऐसे युवा हैं जो अपनी मिट्टी से दूर तनहाइयों में अपनी दीवाली या ईद सैलिब्रेट कर रहे हैं. इसे उन की लाचारी कहें या मजबूरी जिस ने उन्हें मां के आंचल व बड़ेबूढ़ों के प्यारदुलार से वंचित रखा है. जेएनयू छात्रावास में रहने वाले छात्रों से जब इस बाबत बात की गई तो उन्होंने अपने एकाकीपन के अनुभव कुछ इस तरह बयां किए :

शोध छात्र अजय पूर्ति का कहना है, ‘‘जाहिर सी बात है तीजत्योहारों के अवसर पर घरपरिवार की नितांत कमी तो खलती ही है. एकबारगी तो ऐसा लगता है सबकुछ छोड़छाड़ कर घर का रुख कर लें पर शोधकार्य और कैरियर की मजबूरी हमें बांधे रखती है. पर इस एकाकीपन को यहां दूर करने के लिए दोस्तों के साथ कुछ घूमने की योजना बनाते हैं जिस से बोरियत दूर हो.’’ वहीं निफ्ट कोर्स के लिए एंट्रैंस की तैयारी में जुटे कुणाल सिंह अपनी राय रखते हुए कहते हैं, ‘‘मां के हाथ की बनी गुझियां और बहनों संग पटाखे छुड़ाने का स्वाद और अंदाज कौन भूल सकता है, खासकर त्योहारों पर घर वालों के प्रेम, स्नेह व दुलार का एहसास होता है पर फैस्टिविटी के रंग को मैं अपनी बोरियत से फीका नहीं पड़ने देता. बाहर जाता हूं, दोस्तों के संग मौजमस्ती करता हूं पर हां घर वालों को बहुत मिस करता हूं.’’ डीयू छात्रावास में रहने वाली रिद्धि का कहना है, ‘‘अकेलेपन को दूर करने के लिए हम ने गर्ल्स की टीम बनाई है. घर से दूर होने के कारण हम आपस में ही एंजौय करते हैं और फैस्टिविटी के मजे को दोगुना कर देते हैं.’’

अवसर न गंवाएं

सवाल है कि क्या वाकई घर और अपनों से बढ़ती दूरियों ने तमाम लोगों के लिए तीज और त्योहार के माने बदल दिए हैं जो अपनों से दूर रहते हैं. अपने घर से दूर क्या अकेलापन इतना सालता है कि इस तनहाई का कोई विकल्प नहीं. निसंदेह जब हम पूरे मन से खुशियों का आलिंगन करते हैं तो खुशियां बांहें फैलाए हमारा तहेदिल से स्वागत करती हैं. जाहिर सी बात है जब हम अपने नीरस और एकाकी जीवन को रचनात्मकता और बौद्धिकता के साथ बांटें तो नीरस और बेरंग जीवन भी एकाएक जीवंत हो उठता है. माना कि आप अपने प्रियजनों से दूर हैं, अकेले हैं पर त्योहार तो आप की प्रतीक्षा नहीं करते. वे आते हैं और नियत समय पर चले भी जाते हैं. तो क्यों आप भी इस अवसर को गंवाए बिना तैयार हो पूरी जीवंतता के साथ त्योहारों का स्वागत करें. कुछ ऐसे रंग जिन की उमंग में सराबोर हो आप अपने त्योहारों को रंगीन बना सकते हैं, फिर सोचना क्या, अपनी तनहाई को कुछ इस तरह बांटें :

  1. तनहाई को बोझ न समझें. अगर अकेले हैं और त्योहार वाले दिन आप बिलकुल तनहा महसूस कर रहे हैं तो कुछ रचनात्मक करें.
  2. अपनी किसी पुरानी हौबी को जगाएं, फिर चाहे वह संगीत हो, नृत्य हो या फिर गेम.
  3. इस दिन दोस्तों के साथ फिल्म देखने या कहीं आउटिंग पर जाने का भी कार्यक्रम बना सकते हैं.
  4. आसपास कोई दूरदराज का या कोई नजदीकी सगासंबंधी हो तो उस के घर जाने की योजना बना सकते हैं.
  5. अपने रूममेट या अन्य दोस्तों को घर बुला कर एक छोटा गैटटुगैदर आयोजित कर सकते हैं.
  6. दोस्तों संग पिकनिक का प्लान कर सकते हैं.
  7. बोरियत ज्यादा हो रही है तो शौपिंग पर निकल जाएं.
  8. कमरे की साफसफाई या पुराने पैंडिंग काम भी कर सकते हैं.
  9. अपनी मनपसंद किताब भी पढ़ सकते हैं.
  10. सब से अच्छा तरीका है अपने आसपास कोई चाइल्ड होम या ओल्डऐज होम तलाशें, वहां रह रहे लोगों के साथ समय बांटें.
  11. अगर अकेले हैं तो किसी अच्छे से रेस्तरां में जा कर अच्छी सी डिश का आनंद लें.
  12. चाहें तो अपनी पुरानी डायरी या फोटो एलबम निकाल कर भी देखें.
  13. अगर सोलो सैलिबे्रशन का मूड हो तो अपनी बाइक पर लौंगड्राइव पर निकल जाएं.
  14. जरूरी नहीं कि त्योहार ग्रुप में ही सैलिब्रेट किए जाएं, अगर अकेले हैं तो अकेले सैलिबे्रशन करें, घर को डैकोरेट करें, उस की साफसफाई करें.
  15. पुराने दोस्तों या घर वालों के साथ चैट या वीडियो चैट भी अच्छा विकल्प हो सकता है.
  16. तरह त्योहारों में मस्ती के रंग भरने के ढेरों तरीके हैं. हर तरीके को आजमाएं, निसंदेह कहीं न कहीं तो बात बन ही जाएगी.
  17. बड़ी खुशियों की तलबगार नहीं होती, छोटीछोटी खुशियों में भी बड़ी खुशी तलाशी जा सकती है. राहें तो आप को खुद बनानी होंगी.
  18. फिर अकेले हैं तो क्या गम है. अपनी खुशियों को तनहाइयों के पास क्यों गिरवी रखें. उठें और त्योहारों की इस समृद्ध विरासत और गौरवशाली ख्याति के साक्षी बनें. गम और एकाकीपन को दूर करें और खुशी व उल्लास की सतरंगी चमक से सरोबार रहें. फिर देखिए यह फैस्टिव सीजन कैसे आप का बैस्ट सीजन बनता है.

Diwali 2022: इस आसान तरीके से बनाएं बादाम की बर्फी

कई बार घर पर रहते हुए आपको कुछ मीठा खाने को मन करता है. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं बादाम  की बर्फी   आसानी से घर पर कैसे बनाएं .

सामग्री−

150 ग्राम बादाम करीबन एक कप

200 ग्राम कंडेस्ड मिल्क

एक चौथाई कप मिल्क पाउडर

एक छोटा चम्मच घी

एक बड़ा चम्मच दूध में भिगोए हुए केसर के धागे

-सबसे पहले बादाम को भिगोकर कुछ घंटों के लिए छोड़ दें. इसके बाद आप बादाम को छील लें. अब आप एक जार लेकर उसमें बादाम, केसर का दूध और आधा कंडेस्ड मिल्क डालें और अच्छी तरह ग्राइंड कर लें.

-इसके बाद आप बचा हुआ कंडेस्ड मिल्क भी मिक्सर जार में डाल दें.कुकरी एक्सपर्ट कहते हैं कि बादाम को पीसते हुए आपको कभी भी एक साथ कंडेस्ड मिल्क नहीं डालना चाहिए. अगर आप एक स्मूद पेस्ट चाहती हैं तो कंडेस्ड मिल्क को दो या तीन बार थोड़ा−थोडा करके जार में डालें.

-बस अब आपका बादाम पेस्ट तैयार है. अब आप एक नॉन स्टिक कड़ाही लेकर उसमें एक चम्मच घी डालें और फिर उसमें तैयार बादाम पेस्ट डालें और अच्छी तरह मिक्स करें. लो फ्लेम पर बादाम पेस्ट को अच्छी तरह पकाएं.

-अब आप बीच में ही इसमें थोड़ा मिल्क पाउडर डालें इसे आप लगातार चलाते रहें.कुकरी एक्सपर्ट कहते हैं कि बादाम पेस्ट को लगातार चलाते रहना चाहिए. अगर आप इसे पकने के लिए छोड़ देंगे तो यह जल जाएगा और फिर बर्फी भी सही नहीं बनेगी.

-अब जब मिक्सचर थोड़ा थिक होने लग जाए, तब भी इसे लगातार चलाते रहें.अगर आप यह जानना चाहते हैं कि बादाम का मिक्सचर सही तरह से पक गया है तो ऐसे में आप अपने हाथों को घी की मदद से हल्का सा ग्रीस करें और फिर थोड़ा सा मिक्सचर लेकर उसे रोल करें.अगर वह सही तरह से रोल होता है तो इसका अर्थ है कि मिक्सचर रेडी है.

-अब एक प्लेट को घी की मदद से ग्रीस करें. इसके बाद इसमें तैयार मिश्रण डालें और आठ−दस मिनट के लिए ठंडा होने दें. इसके बाद आप हाथों को ग्रीस करके उससे हल्का सा मिश्रण को दबाएं. अब एक प्लास्टिक शीट और बेलन को ग्रीस करें.

-अब आप प्लास्टिक शीट के ऊपर बादाम का तैयार मिश्रण रखें और बेलन की मदद से बेलें. आप अपनी पंसद के अनुसार इसे पतला व मोटा रख सकते हैं। अब आप इस शीट को करीबन 20 मिनट के लिए फ्रिज में रखें. इसके बाद आप इसे बाहर निकालें और बर्फी को मनपसंद आकार में काटें.

आपकी बर्फी तैयार है. इसके उपर आप पिस्ते का एक टुकड़ा रखकर सजाएं

राखी सावंत ने बॉयफ्रेंड आदिल के लिए रखा करवाचौथ का व्रत

इंडस्ट्री की ड्रामा क्वीन राखी सावंत बड़े धूमधाम से करवाचौथ का व्रत मनाई हैं, बता दें कि राखी सावंत ने अपने बॉयफ्रेंड आदिल खान के लिए इस व्रत को रखा था. बता दें कि राखी पिछले कुछ महीने से अपने बॉयफ्रेंड आदिल खान दुरानी को डेट कर रही हैं.

यह दोनों सभी पार्टियों में एक साथ नजर आते हैं, ऐसे में राखी ने भी आदिल के प्रति अपना प्यार जाहिर करने के लिए व्रत रखा था. राखी सावंत ने न सिर्फ करवा चौथ का व्रत रखा है बल्कि आदिल के नाम की मेहंदी भी अपने हाथों पर लगाया है.

 

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करवा चौथ के खास मौके पर राखी सावंत ने सफेद रंग का सूट पहना था, जिसमें वह काफी ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं. राखी और आदिल यू तो कई लोगों के सामने अपने रिश्ते को कबूल कर चुके हैं लेकिन इन दोनों के साथ में देखकर फैंस काफी ज्यादा खुश रहते हैं.

आदिल ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह जब मैसूर गए थें , तब राखी ने कुछ लोगों को उऩके पीछे भेजा था चेक करने के लिए, वैसे भी फैंस उस दिन का इंतजार कर रहे हैं कि राखी और आदिल की शादी कब होगी. कब दोनों सात फेरे लेते नजर आएंगे.

ये प्यार न कभी होगा कम -भाग 1: अनाया की रंग लाती कोशिश

“मितेश, तुम समझ नहीं रहे हो. अनाया की जिंदगी अलग है. वह मौडलिंग में है, देर रात घर आती है, खुद की जिंदगी में बिजी रहती है, सौम्या का वहां उस के फ्लैट में रहना उसे रास नहीं आएगा. फिर वह मात्र 25 साल की ही तो है. वह अभी कैसे किसी की जिम्मेदारी ले सकती है? तुम यहीं अपने शहर ग्वालियर में उस की पढ़ाई का इंतजाम कर दो.”

“भैया, उस का मुंबई के फैशन डिजाइनिंग कालेज में एडमिशन हो चुका है. ठीक है भैया, आप मना करते हो तो अनाया के पास नहीं रहेगी सौम्या, बस. बाकी आप राय न दें.”

“अरे भई, तुम बुरा क्यों मान जाते हो? मुंबई के खर्चे तुम्हारे बस की बात नहीं है. देखादेखी में पड़ने की आदत से उलटा नुकसान है, खासकर सौम्या जैसी घरेलू लड़की मुंबई जैसे स्मार्ट शहर में गुजारा कैसे करेगी?तुम लोग सच में, खुद को देखते नहीं, दुनिया के पीछे दौड़े रहते हो.”

मितेश का दिमाग बहुत गरम हो रहा था, लेकिन अपने से 4 साल बड़े 56 साल के बड़े भाई से उन्हें कभी मुंह लगने की आदत नहीं रही थी.

मितेश गुस्सा दिखाने के लिए बस फोन बिना कुछ कहे काटना चाह रहे थे कि उसे अरुणेश की बीवी और उस की हमउम्र 52 साल की शीना भाभी की जरा कर्कश सी आवाज सुनाई पड़ी, “मितेश का परिवार भी… बड़े पैरासाइट टाइप के लोग हैं. जो करो खुद के बूते करो. कोई स्ट्रगल कर के अपने पैर पर खड़ा हुआ है, तो उस के कंधे पर बंदूक रख कर लगे दागने.”

मितेश फोन रखते हुए रुक गए. अरुणेश जब तक फोन बंद करते, शीना भाभी की बात मितेश के कानों में पहुंच चुकी थी.

मितेश की बीवी नलिनी 48 साल की और उन की 2 बेटियां 19 साल की सौम्या और 16 साल की स्निग्धा डिनर टेबल पर डिनर के लिए मितेश का इंतजार कर रहे थे.

मितभाषी नलिनी 8वीं तक के प्राइवेट स्कूल में कक्षा 5 की क्लास टीचर थी. महीने की 10,000 की तनख्वाह, फिर भी उस के इस ऊबड़खाबड़ गड्ढे वाली गृहस्थी के लिए किसी तरह मुरम का काम कर देती थी.

पति मितेश एक पान मसाला कंपनी में मैनेजर थे, मुश्किल से 40,000 की नौकरी थी, पेंशन की तो बात ही नहीं, ग्रेच्युटी, प्रोविडेंट फंड भी दोनों भाइयों की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरा बराबर ही था.

नलिनी को यद्यपि अरुणेश जेठ के जवाब का अंदाजा हो गया था, फिर भी उस ने हौले से पूछा, “भैया ने मना कर दिया?”

“और क्या करते…? जब अपने बेटे को न्यूयौर्क के फ्लाइट के लिए यहां से दिल्ली भेजने की बात थी, तब तो मैं ही नजर आया था. जीतेश तो बड़ा सरकारी वकील है, वो क्यों जाता उस के पीछे सूटकेस खींचते. छोटेबड़े किसी भी काम के लिए सभी भाई मेरा इस्तेमाल कर लेते हैं, क्योंकि मैं प्राइवेट कंपनी में कम वेतन की नौकरी करता हूं, मुझ से बोलने में उन्हें अच्छेबुरे का भान नहीं रहता. छोटे भाई जीतेश का बेटा रुड़की ‘आईआईटी’ में पढ़ने गया, तो बड़े भैया बड़े जोश में थे. लेकिन, मेरी बेटी, गरीब की बेटी है, तो उस के लिए मुंबई ठीक नहीं, उसे घर पर रह कर ही किसी तरह पढ़ लेना चाहिए.”

 

 

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